Published on Sep 25, 2021 Updated 0 Hours ago

लैटिन अमेरिका और कैरेबियाई देशों ने शिक्षा के क्षेत्र में जो प्रगति की थी, उसे इस महामारी ने पीछे धकेल दिया है. 

कोविड-19 महामारी: लैटिन अमेरिकी, कैरेबियाई देशों के बच्चों के विकास पर चोट और उसके दुख़द नतीजे

पिछले एक साल से ज़्यादा वक़्त से कोविड-19 महामारी से जूझते हुए हमने इसके बहुत से सामाजिक समूहों पर पड़ने वाले कई तरह के दुष्प्रभावों को देखा है. इस लेख का केंद्र बिंदु जो वर्ग यानी बच्चे हैं, उन पर भी महामारी का गहरा असर हुआ है. इसके लेखकों का मक़सद, महामारी से निपटने के लिए लैटिन अमेरिका द्वारा अपनाए गए उपायों, नीतियों और संभावित समाधानों पर रौशनी डालना है. हो सकता है कि कुछ उपाय पूरे क्षेत्र के लिए कारगर हों और कुछ न हों.

मूल्यांकन

जहां तक बच्चों की शिक्षा की बात है, तो महामारी की आमद से पहले से ही, लैटिन अमेरिका के कुछ देश, दुनिया के अन्य क्षेत्रों और देशों की तुलना में कमतर प्रदर्शन कर रहे थे. किसी भी देश में बच्चों की पढ़ाई की कुशलता का आकलन इस आधार पर किया जाता है कि क्या बच्चों को उनकी शिक्षा के स्तर के हिसाब से सही विषयों से परिचित कराया जा रहा है. हालांकि, जब कोविड-19 महामारी ने हमला बोला, तो पूरे देश में लगाए गए लॉकडाउन, पोषण के स्तर, मानसिक सेहत से जुड़े मसले, अध्यापकों के टीकाकरण की दर और स्कूल खुलने की दर, और दूरस्थ शिक्षा हासिल करने की तकनीक व संसाधनों तक पहुंच ने ही बच्चों की पढ़ाई पर गहरा और नकारात्मक असर डाला है. ये दुष्प्रभाव कम आमदनी वाले तबक़े पर कुछ ज़्यादा ही देखने को मिला है.

किसी भी देश में बच्चों की पढ़ाई की कुशलता का आकलन इस आधार पर किया जाता है कि क्या बच्चों को उनकी शिक्षा के स्तर के हिसाब से सही विषयों से परिचित कराया जा रहा है. 

विश्लेषण

  1. स्कूल को अलविदा

वर्ष 2020 में बहुत से बच्चों ने अपने परिवार की आर्थिक हालत या सेहत से जुड़े मसलों के चलते स्कूल में दाखिला नहीं कराया था. जैसे जैसे वक़्त गुज़र रहा है, वैसे वैसे इन बच्चों को पढ़ने के लिए दोबारा स्कूल ला पाने की चुनौती बढ़ती जा रही है, क्योंकि इन्होंने पढ़ाई का कई वर्ष पहले ही गंवा दिए हैं और वो आर्थिक रूप से अपने मां-बाप की मदद के लिए काम कर रहे हैं. विश्व बैंक का आकलन है कि, इस महामारी के चलते, दुनिया भर में क़रीब 12 करोड़ बच्चे एक साल की पढ़ाई का मौक़ा गंवा देंगे और बच्चों के स्कूल छोड़ने की तादाद में भी 15 फ़ीसद का इज़ाफ़ा होगा. यूनिसेफ़ के मुताबिक़, लैटिन अमेरिका में क़रीब तीस लाख बच्चे अनिश्चित काल के लिए स्कूल से दूर हो जाएंगे.

  1. स्कूलों का खोला जाना

स्कूल खोले जाएं या नहीं, ये एक बेहद जटिल नीतिगत फ़ैसला है. ख़ास तौर से तब और जब इंसान की ज़िंदगी से जुड़ी दो अहम प्राथमिकताओं के बीच टकराव हो: पढ़ाई या फिर हर इंसान को स्वस्थ और सुरक्षित रखना. इसके बावजूद, स्कूल में पढ़ाई की व्यवस्था को घर पर ही लागू करने के अलग अलग तरह के प्रयोग और अनुभव देखने को मिले हैं. इनका कोई मानक नहीं है. स्कूल का माहौल बच्चों के बीच हेल-मेल और सामाजिक मेल-जोल में बहुत बड़ी भूमिका अदा करता है. ये किसी भी बच्चे के विकास का ज़रूरी आयाम होता है. फिर भी, यूनिसेफ़ के मुताबिक़ लैटिन अमेरिका के ज़्यादातर देशों ने पिछले साल अपने स्कूल पूरी तरह या आंशिक रूप से बंद रखे थे. हालांकि, लैटिन अमेरिका के तीन देशों: कोस्टा रिका, निकारागुआ और उरुग्वे ने अपने स्कूल खोल दिए हैं. वहीं, इस क्षेत्र के छह और देश स्कूल खोलने और बच्चों की पढ़ाई से जुड़े मूल्यांकन कर रहे हैं. इन सबके बावजूद, जो आंकड़े हमारे सामने आए हैं, वो भयंकर चेतावनी देने वाले हैं: स्कूल बंद होने से लैटिन अमेरिका और कैरेबियाई देशों के क़रीब 6.3 करोड़ बच्चों पर असर पड़ा है- इनमें से बीस लाख बच्चे स्कूल पूरी तरह बंद होने के शिकार हुए हैं, तो 6.1 करोड़ बच्चे आंशिक तौर पर स्कूल बंद होने से प्रभावित हुए हैं.

पढ़ाई या फिर हर इंसान को स्वस्थ और सुरक्षित रखना. इसके बावजूद, स्कूल में पढ़ाई की व्यवस्था को घर पर ही लागू करने के अलग अलग तरह के प्रयोग और अनुभव देखने को मिले हैं. इनका कोई मानक नहीं है. 

  1. दूर बैठकर पढ़ाई

दूर बैठकर पढ़ाने के संसाधनों के ज़रिए घरों में स्कूल की पढ़ाई का माहौल बनाने की कोशिशें कुछ स्तरों पर आंशिक रूप से ही सफल हुई हैं. ये भी वहीं हुआ है, जहां माहौल और संसाधन उपलब्ध हैं. अच्छी कनेक्टिविटी, ऑनलाइन पढ़ाई के औज़ारों को सही तरीक़े से इस्तेमाल करना, उनके इस्तेमाल का प्रशिक्षण देना और कक्षाएं लेने के लिए अलग जगह, और आस-पास ऐसे व्यक्ति की मौजूदगी जिससे सवाल पूछे जा सकें, और इसके साथ दूर बैठकर पढ़ाई कराने का सही तरीक़ा, ऑनलाइन पढ़ाई से जुड़े कुछ अहम तत्व हैं. लेकिन, बदक़िस्मती से कुछ ही घरों में ये सारी सुविधाएं मौजूद हैं. निश्चित रूप से इस मामले में सबसे अहम बात तो अच्छी कनेक्टिविटी ही रहती है. पिछले कुछ वर्षों में लैटिन अमेरिका क्षेत्र में इंटरनेट की सुविधाओं का विस्तार हुआ है, जिससे आज 15 साल से कम उम्र के क़रीब 77 फ़ीसद बच्चों तक इंटरनेट की सुविधा पहुंचाई जा सकी है. लेकिन, यहां भी कम आमदनी वाली आबादी (हर दिन 1.90 डॉलर की आय से भी कम पर बसर करने वाले) के बीच लैटिन अमेरिका में केवल 19 प्रतिशत कवरेज है. आज लैटिन अमेरिका के हर छात्र के लिए टैबलेट या लैपटॉप और उन्हें चलाने का सही तरीक़ा मालूम होना, एक बड़ी समस्या है. हालांकि, इस समस्या का समाधान क्लाउड औज़ारों और कम रेंज के दूसरे संसाधनों जैसे कि स्मार्टफ़ोन, सेलफ़ोन और टीवी प्रसारण जैसे उपाय अपनाकर निकाला जा साकता है.

  1. स्वास्थ्य की स्थिति

पोषण और मानसिक सेहत, ये ऐसी समस्याएं हैं जो फ़ौरी तौर पर नज़र में नहीं आती हैं. लेकिन, ये समस्याएं बच्चों पर सीधा असर डालती हैं. उदाहरण के लिए लैटिन अमेरिका क्षेत्र के बहुत से बच्चों को स्कूलों में ही खाना दिया जाता है. अब अगर इन बच्चों को स्कूल बंद होने से खाना नहीं मिल पा रहा है, तो ज़ाहिर है ये स्वस्थ पोषण के स्तर को बनाए रख पाने के लिए संघर्ष करेंगे और इस तरह पढ़ने के लिए ज़रूरी ताक़त और ध्यान लगाने वाली ऊर्जा पर बुरा असर पड़ता है. वर्ष 2020 में 1.4 करोड़ बच्चे भुखमरी के शिकार थे. और इस क्षेत्र के क़रीब 34 लाख बच्चे, कुपोषण के चलते अपने शारीरिक विकास में चुनौतियों का सामना करते हैं. शहरी क्षेत्रों में रहने वाले 51.2 प्रतिशत बच्चों के पास ऑनलाइन कक्षाएं लेने के लिए पर्याप्त जगह नहीं है. ऐसे में वो घरों में ऐसी जगह पर बैठकर पढ़ाई करते हैं, जो पढ़ाई के लिहाज़ से ठीक नहीं होतीं. यूनिसेफ़ ने लैटिन अमेरिका और कैरेबियाई देशों के क़रीब 9 हज़ार बच्चों और किशोरों पर एक अध्ययन किया था. इसके मुताबिक़, घर में भीड़ और जगह की कमी ऐसी समस्या है, जो बच्चों की पढ़ाई के साथ साथ उनकी दिमाग़ी सेहत पर भी बुरा असर डालती है. इस स्टडी के शुरुआती नतीजों से पता चलता है कि सर्वे में शामिल 15 प्रतिशत बच्चे डिप्रेशन के और लगभग 27 फ़ीसद बच्चे चिंता के शिकार थे; और रिसर्च के इस इंटरव्यू से महज़ सात दिन पहले उनके मां-बाप के हालात ने उनकी मानसिक और जज़्बाती स्थिति पर गहरा असर डाला था. इसके अलावा, सर्वे में ये भी पाया गया कि मानसिक रूप से परेशान होने के बावजूद, क़रीब 40 फ़ीसद बच्चों ने मदद नहीं मांगी थी.

लैटिन अमेरिका क्षेत्र के बहुत से बच्चों को स्कूलों में ही खाना दिया जाता है. अब अगर इन बच्चों को स्कूल बंद होने से खाना नहीं मिल पा रहा है, तो ज़ाहिर है ये स्वस्थ पोषण के स्तर को बनाए रख पाने के लिए संघर्ष करेंगे और इस तरह पढ़ने के लिए ज़रूरी ताक़त और ध्यान लगाने वाली ऊर्जा पर बुरा असर पड़ता है.

कौन से क़दम असरदार हो सकते हैं?

लैटिन अमेरिका क्षेत्र के कई देशों जैसे कि, कोलंबिया, चिली, मेक्सिको और पेरू ने सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने के लिए आंकड़ों के खुले स्रोतों का इस्तेमाल किया है. आज भी इसका पूरा ज़ोर संक्रमण रोकने और टीकाकरण की दर बढ़ाने, और उसके साथ साथ स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने पर है. लेकिन, इस महामारी का बच्चों और उनकी पढ़ाई पर असर व विकास से जुड़े अन्य प्राथमिक विषयों को उस तरह की तवज्जो नहीं मिली है, जैसी उन्हें दरकार है. जैसा कि हम देख सकते हैं कि ये आंकड़े उम्मीद नहीं जगाते. लेकिन हम ख़तरे का संकेत देने वाले इन आंकड़ों के आधार पर संस्थागत तरीक़े से समस्या के समाधान की योजनाएं ज़रूर बना सकते हैं. 

जैसा कि हम देख सकते हैं कि ये आंकड़े उम्मीद नहीं जगाते. लेकिन हम ख़तरे का संकेत देने वाले इन आंकड़ों के आधार पर संस्थागत तरीक़े से समस्या के समाधान की योजनाएं ज़रूर बना सकते हैं. 

इन सभी समस्याओं का मुक़ाबला करने का एक ही तरीक़ा है कि इनके प्रति एक व्यापक नज़रिया बनाया जाए. इस समस्या को हल करने के लिए स्वास्थ्य (पोषण और अध्यापकों का टीकाकरण), संचार (इंटरनेट और उपकरण), मूलभूत ढांचे (स्कूल, आवाजाही के संसाधन), और शिक्षा (लचीले पाठ्यक्रम) के क्षेत्रों के बीच परस्पर सहयोग को बढ़ावा देने की ज़रूरत है. इसके लिए एक साफ़ और मापे जा सकने वाला लक्ष्य निर्धारित किया जाना चाहिए- इनमें कम अवधि के छोटे लक्ष्य (जैसे कि मध्यम वर्ग के बच्चों को पढ़ाई में मदद के लिए कुछ संसाधन दिए जाएं) और लंबी अवधि के लक्ष्य, जो मोटे तौर पर कम आय वर्ग के बच्चों के सीखने से जुड़े हों. शिक्षा के क्षेत्र के सामने पहले ही कई चुनौतियां खड़ी थीं. इस महामारी ने कई नई मुश्किलें भी खड़ी कर दी हैं. हालांकि कोविड से पहले लैटिन अमेरिका के देशों ने शिक्षा के क्षेत्र में काफ़ी तरक़्क़ी की थी. लेकिन बदक़िस्मती से इस महामारी ने इन देशों को दोबारा ज़मीनी स्तर से काम शुरू करने पर मजबूर कर दिया है. इस क्षेत्र को अपने संसाधनों को संस्थागत तरीक़े से इस्तेमाल करने की ज़रूरत है और उन्हें हमारे बच्चों की पढ़ाई के भविष्य को तेज़ रफ़्तार से संवारने की आवश्यकता है.

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