Author : Syed Ali

Published on Apr 12, 2021 Updated 0 Hours ago

ज़रूरी चीज़ों के दाम में अचानक आई गिरावट, बढ़ते निर्यात, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की बदली हुई दिशा और तेज़ी से बढ़ रही बेरोज़गारी ने लैटिन अमेरिकी अर्थव्यवस्थाओं को परेशान कर रखा है

कोविड-19: लैटिन अमेरिका की आर्थिक प्रगति चुनौतियों का सामना कर रही है

वर्ष 2020 के बारे में ये कहना बहुत कम होगा कि ये उल्लेखनीय और हमारी ज़िंदगियों पर गहरा असर डालने वाला था. बल्कि, ये कहना ज़्यादा सटीक होगा कि ये साल हमारी ज़िंदगियों को बदल डालने वाला था. कोविड-19 की महामारी के ख़ात्मे से पहले-जो शायद पूरी दुनिया के टीकाकरण के बाद ख़त्म होगा-पूरी दुनिया में कोविड-19 के बाद के विश्व के बारे में कई परिचर्चाएं हो रही हैं. अब कोरोना वायरस के नए नए स्ट्रेन सामने आने के बाद, हम किसी तरह से इस महामारी के ख़ात्मे के क़रीब नहीं पहुंच सके हैं. इसके बावजूद हमारे मूलभूत गुण सक्रिय हो गए हैं और हमने इस ‘नए बदलाव’ के हिसाब से ख़ुद को ढाल लिया है. नई परिस्थितियों से तालमेल बिठाने की इस प्रक्रिया के दौरान हमारे रहन-सहन में कई बदलाव भी आए हैं. इनमें सबसे बड़ा बदलाव तो ये आया है कि आज भूमंडलीकरण के ख़िलाफ़ ज़ोर शोर से आवाज़ उठाई जा रही है. इसके साथ व्यापार और आपूर्ति श्रृंखलाओं की भी नए सिरे से परिकल्पना की जा रही है. आपूर्ति श्रृंखलाओं में बदलाव की इस परिकल्पना का असल मक़सद, वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में चीन के प्रभुत्व को ख़त्म करना है. व्यापार एवं वाणिज्य में इस क्रांति से नई ताक़तों के उभरने की राह निकलेगी, जिससे समानता पर आधारित बहुध्रुवीय व्यवस्था का निर्माण होगा. इस द्वंदयुद्ध में भारत बाक़ी दुनिया के साथ अपना संपर्क, और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं से संवाद बढ़ाकर बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. यहां तक कि दूर स्थित लैटिन अमेरिकी देशों के साथ भी भारत का संपर्क बढ़ा है. वहीं दूसरी तरफ़, विकासशील देश और लैटिन अमेरिकी देश अपनी आर्थिक सुस्ती के मौजूदा दौर के साथ साथ चीन पर अपनी अत्यधिक निर्भरता के दुष्चक्र से बाहर आने की कोशिश कर रहे हैं.

व्यापार एवं वाणिज्य में इस क्रांति से नई ताक़तों के उभरने की राह निकलेगी, जिससे समानता पर आधारित बहुध्रुवीय व्यवस्था का निर्माण होगा. इस द्वंदयुद्ध में भारत बाक़ी दुनिया के साथ अपना संपर्क, और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं से संवाद बढ़ाकर बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है.

हाल ही में, अर्जेंटीना के विदेश मंत्री फेलिपे सोला के साथ ‘नई विश्व व्यवस्था में भारत और अर्जेंटीना’ नाम से हुई परिचर्चा में भारत के विदेश मंत्री डॉक्टर एस. जयशंकर ने इस ज़रूरत पर बल दिया कि भारत और लैटिन अमेरिकी देशों को मिलकर संसाधनों और ऊर्जा सुरक्षा के क्षेत्र में संभावनाएं तलाशनी चाहिए. डॉक्टर जयशंकर ने भारत में बैटरी निर्माण की क्षमता को बढ़ाने के लिए लैटिन अमेरिकी देशों से लिथियम ख़रीदने का ख़ास तौर से ज़िक्र किया था. वहीं, अर्जेंटीना के विदेश मंत्री ने ज़ोर देकर कहा कि लैटिन अमेरिका के साथ भारत के व्यापार और निर्माण क्षेत्र में सहयोग को विविधतापूर्ण बनाने की ज़रूरत है, ताकि कोविड-19 के कारण आई आर्थिक सुस्ती के दौर से बाहर निकला जा सके. सिर्फ़ अर्जेंटीना ही नहीं, पूरे के पूरे लैटिन अमेरिका पर इस महामारी का बहुत बुरा असर पड़ा है, फिर वो आर्थिक क्षेत्र में हो या आम लोगों पर. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के विश्व आर्थिक दृष्टिकोण के मुताबिक़, वर्ष 2020 में लैटिन अमेरिका की GDP में 8.1 प्रतिशत की गिरावट आएगी. लैटिन अमेरिकी देशों को अर्थव्यवस्था में इस गिरावट का मानवीय मूल्य भी चुकाना पड़ा है. इसे आप कोरोना के संक्रमण की संख्या से भी देख सकते हैं. लैटिन अमेरिकी देशों में दुनिया की केवल 8.2 प्रतिशत आबादी रहती है. लेकिन, सितंबर 2020 तक, दुनिया भर में कोविड-19 से संक्रमण के कुल मामलों में से 28 प्रतिशत इन्हीं देशों के थे. जबकि इस महामारी से पूरे विश्व में हुई कुल मौतों में 34 प्रतिशत लैटिन अमेरिका में हुईं. कई लैटिन अमेरिकी देशों के लिए चुनौती तब और बढ़ गई, जब आर्थिक सुस्ती से निपटने की उनकी कोशिश को घटती वैश्विक मांग, ज़रूरी सामान के दामों में कमी, बढ़ती वित्तीय स्थिरता और कम निवेश के साथ-साथ पर्यटन में कमी और विदेशों में बसे नागरिकों द्वारा भेजे जाने वाली रक़म में कमी जैसी चुनौतियों को और झटका लगा.

मेक्सिको, ब्राज़ील और निकारागुआ को छोड़ दें, तो ज़्यादातर लैटिन अमेरिकी देशों ने कोविड-19 की महामारी रोकने के लिए देश भर में लॉकडाउन जैसा क़दम उठाया. जब लॉकडाउन से भी वायरस का संक्रमण नहीं रुका, तो आवाजाही पर लगी पाबंदियों में कमी लाई गई, ताकि अर्थव्यवस्था को हो रहे नुक़सान को कम किया जा सके. हालांकि, इन देशों में सबसे कमज़ोर लोगों पर महामारी का बेहद गहरा सामाजिक आर्थिक प्रभाव पड़ा है. असंगठित क्षेत्रों में काम करने वाले क़रीब 60 फ़ीसद लोग इससे प्रभावित हुए हैं. ये वो लोग हैं जो दिहाड़ी मज़दूरी करते हैं और महामारी के चलते उनके दोबारा ग़रीबी के दलदल में धंसने का ख़तरा है. इससे वर्ष 2020 के अंत तक लैटिन अमेरिकी देशों में बेरोज़गारी की दर 13.5 प्रतिशत पहुंच गई.

लैटिन अमेरिका के कई देशों ने मौद्रिक और वित्तीय उपाय लागू 

अर्थव्यवस्था में नई जान फूंकने के लिए, लॉकडाउन की शुरुआत के साथ ही लैटिन अमेरिका के कई देशों ने मौद्रिक और वित्तीय उपाय लागू किए हैं. लेकिन, वर्ष 2012 से आवश्यक वस्तुओं के दाम में विश्व स्तर पर आई गिरावट ने उनकी अर्थव्यवस्थाओं को कमज़ोर किया है. इसके चलते कोविड-19 के चलते लगे लॉकडाउन के प्रभाव से निपटने की उनकी वित्तीय क्षमताओं पर विपरीत प्रभाव पड़ा है. दुर्भाग्य से लैटिन अमेरिकी देशों की विकसित देशों को कमोडिटी के निर्यात पर निर्भरता एक ऐसी संरचनात्मक कमज़ोरी है, जिसने उनकी अर्थव्यवस्था को इस झटके से उबरने में मदद करने के बजाय नुक़सान ही पहुंचाया है. उदाहरण के लिए, कच्चे तेल की क़ीमतें अप्रैल 2020 में पचास प्रतिशत तक गिर गई थीं. वहीं, कोयले की क़ीमतों में 17 फ़ीसद की गिरावट आई थी. यही नहीं, अन्य खनिजों और धातुओं के दाम भी गिर गए थे-जैसे कि प्लेटिनम के दाम में 23 फ़ीसद की कमी के साथ तांबे और ज़िंक की क़ीमत में 15 प्रतिशत की गिरावट आई थी. इसी तरह विश्व खाद्य संगठन के फूड प्राइस इंडेक्स में भी गिरावट दर्ज की गई, वहीं चीनी और खाद्य तेलों के दाम में तो 14.3 और 5.2 प्रतिशत के साथ सबसे ज़्यादा कमी आई थी. लैटिन अमेरिकी देशों की अर्थव्यवस्था में मौजूदा कमी के लिए न केवल इन सामानों के दाम में गिरावट ज़िम्मेदार है, बल्कि इनके निर्यात में आई कमी भी इसकी बड़ी वजह है. वर्ष 2020 में अंतरराष्ट्रीय व्यापार में वैश्विक स्तर पर 13 प्रतिशत से 32 प्रतिशत तक की कमी दर्ज की गई थी. इसकी बड़ी वजह चीन, अमेरिका और यूरोप में खपत में कमी और आर्थिक गतिविधियों का सुस्त पड़ जाना थी.

अर्थव्यवस्था में नई जान फूंकने के लिए, लॉकडाउन की शुरुआत के साथ ही लैटिन अमेरिका के कई देशों ने मौद्रिक और वित्तीय उपाय लागू किए हैं. लेकिन, वर्ष 2012 से आवश्यक वस्तुओं के दाम में विश्व स्तर पर आई गिरावट ने उनकी अर्थव्यवस्थाओं को कमज़ोर किया है. 

लैटिन अमेरिकी देशों से कमोडिटी के निर्यात की सबसे बड़ी वजह उनके प्रमुख व्यापारिक साझेदारों-चीन और अमेरिका से मांग में गिरावट आना है. मांग में इस कमी का कारण है यात्रा में कमी और ईंधन की मांग में गिरावट. इसके अलावा चीन के निर्माण और तकनीकी उद्योग को भी लॉकडाउन के दौरान बंदी का सामना करना पड़ा था. चीन के ये उद्योग अपने खनिज की ज़रूरत का बड़ा हिस्सा लैटिन अमेरिका से ही मंगाते हैं. कोविड-19 के संकट का एक और असर ये भी होने का डर है कि जिंसों के दाम में कम और दूरगामी अवधि में कमी आने से विदेशी निवेश में भी गिरावट आ सकती है. बहुत सी बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने लैटिन अमेरिकी देशों में निवेश की अपनी योजनाओं को फिलहाल टाल दिया है. महामारी की शुरुआत से तमाम देशों के बीच खनिजों के सौदे क़रीब 32 प्रतिशत तक कम हो गए हैं. लंदन स्थित बड़ी खनिज कंपनी एंग्लो अमेरिका ने पेरू के पहाड़ों पर स्थित क़्वेलावेको तांबे की खान में 1.5 अरब डॉलर के निवेश का फ़ैसला टाल दिया है. इसके अलावा लैटिन अमेरिकी से बड़े पैमाने पर पूंजी के पलायन की डराने वाली ख़बरें आ रही हैं. कोलंबिया में उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, विदेशी निवेशकों ने कोलंबिया से 11.57 करोड़ अमेरिकी डॉलर का निवेश कहीं और स्थानांतरित कर दिया है. ये कोलंबिया में विदेशी निवेश का लगभग 16 प्रतिशत है.

चीन के ये उद्योग अपने खनिज की ज़रूरत का बड़ा हिस्सा लैटिन अमेरिका से ही मंगाते हैं. कोविड-19 के संकट का एक और असर ये भी होने का डर है कि जिंसों के दाम में कम और दूरगामी अवधि में कमी आने से विदेशी निवेश में भी गिरावट आ सकती है.

कमोडिटी के बाज़ार पर ज़ोर देना एक आसान विकल्प

कमोडिटी की क़ीमतों और निर्यात में आई इस अचानक गिरावट, विदेशी निवेश का रुख़ मुड़ने और बढ़ती बेरोज़गारी ने लैटिन अमेरिकी देशों की अर्थव्यवस्था के विकास में ख़लल डाल दिया है. इससे सरकारों के बजट पर इस बात का दबाव बढ़ गया है कि वो महामारी से निपटने के लिए अपना ख़र्च बढ़ाएं; इससे इन देशों की सरकारों की क़र्ज़ चुकाने की क्षमता पर भी बुरा असर पड़ा है और वो बाहरी स्रोतों से पूंजी भी नहीं जुटा पा रही हैं. इन चुनौतियों के बावजूद, अर्थव्यवस्था को दोबारा गति देने के लिए केवल कमोडिटी के बाज़ार पर ज़ोर देना एक आसान विकल्प है. वैसे बेहतर ये होगा कि ये देश अर्थव्यवस्था में विविधता ले आएं, अपने उत्पादन को टिकाऊ बनाएं और अपने उत्पादों के बाज़ारों की प्राथमिकता बदलें, जिससे उनकी चीन पर निर्भरता घटे (हालांकि, 2020 में ब्राज़ील का चीन के साथ व्यापार 2019 से ज़्यादा बढ़ा था और इसके इस साल और अधिक बढ़ने की संभावना है). व्यापार के अलावा, लैटिन अमेरिकी देशों में राजनीतिक गतिविधियां भी सुर्ख़ियां बटोरती रही हैं, वो भी उस समय जब महामारी क़हर बरपा रही है और अर्थव्यवस्था में नई जान डालने की ज़रूरत अधिक है. बोलीविया के निष्कासित समाजवादी नेता एवो मोरालेस दोबारा देश के राष्ट्रपति बन गए हैं. चिली के नागरिकों ने नया संविधान बनाने के लिए मतदान दिया है. पेरू के राष्ट्रपति मार्टिन विज़कार्रा पर महाभियोग चलाकर हटा दिया गया है. उनकी जगह फ्रांसिस्को सगास्ती को नया अंतरिम राष्ट्रपति बनाया गया है. इस साल लैटिन अमेरिका के चार देशों में आम चुनाव होने वाले हैं और तीन देशों की संसदों के मध्यावधि चुनाव भी होंगे. वो ऐसे हालात में जब लैटिन अमेरिकी देशों की अर्थव्यवस्था, सुस्ती के दलदल में फंसी है और युवाओं के बीच बेरोज़गारी लगातार बढ़ती जा रही है.

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