Author : Prithvi Iyer

Published on Nov 20, 2020 Updated 0 Hours ago

दुनियाभर में सरकारों की कोशिशों में कमी भले ही न हो, लेकिन अधिकतर देश महामारी को रोकने में सफल नहीं रहे हैं, और इस महामारी से निपटने के अनपेक्षित और अथाह परिणामों से सरकारें औचक रह गई हैं.

कोविड-19: अनेपक्षित महामारी के दौर में मानवीय मदद की चुनौतियां

एक ऐसी महामारी जिसके खत्म होने के कोई आसार नहीं हैं, ने लोगों को अब कोरोनावायरस नाम के संकट के साथ जीने की वास्तविकता की ओर अग्रसर किया है. कोविड-19 की महामारी ने इस बात पर भी ज़ोर दिया है कि भविष्य में रोज़मर्रा जीवन में सुरक्षा प्रोटोकॉल को ज़िंदगी का हिस्सा बनाकर ही जीवन जीना होगा. दुनियाभर में सरकारों की कोशिशों में कमी भले ही न हो, लेकिन अधिकतर देश महामारी को रोकने में सफल नहीं रहे हैं, और इस महामारी से निपटने के अनपेक्षित और अथाह परिणामों से सरकारें औचक रह गई हैं. इसके साथ ही महामारी से निपटने की कार्रवाई ने कई ऐसे परिणामों को सामने रखा है, जिनके बारे में किसी को अनुमान नहीं था. कोविड-19 का ऐसा ही एक छिपा हुआ परिणाम है, अंतरराष्ट्रीय राहत और मानवीय सहायता से संबंधी बुनियादी ढांचे में व्यवधान पड़ना. आर्थिक और मानव पूंजी पर महामारी का व्यापक प्रभाव और संगठनों पर इसके प्रभाव के चलते, महत्वपूर्ण राहत और बचाव कार्यों में जुटे संगठनों और संस्थाओं के लिए कई तरह की मुश्किलें पैदा हुई हैं. यह राहत कार्य कोविड-19 से बचाव से जुड़े हैं और अन्य परिस्थितियों से जनित से भी हैं. ऐसे में विश्वभर के राहत संगठनों के सामने इस समय मौजूद संकट को समझने के लिए यह जानना बहुत ज़रूरी है कि वो किस तरह अपनी नीतियों पर नए सिरे से विचार-विमर्श कर रहे हैं और एक तरह के अस्तित्ववादी संकट से जूझ रहे हैं. पूरी दुनिया जब सामान्य तरीके से जीवन जीने की का रास्ता खोज रही है, तो ऐसे में यह समय राहत संगठनों के लिए विशेष रूप से एक कठिन समय है.

राहत कार्यों में जुटी संस्थाओं पर, कोविड-19 का सबसे विनाशकारी प्रभाव यह रहा है कि महामारी के चलते इन संस्थाओं को धन की भारी कटौती करनी पड़ी है. साथ ही संगठनों और संस्थाओं को मिलने वाली आर्थिक मदद पर भी खासा असर पड़ा है, जिसके चलते मानवीय मदद से जुड़ी कई महात्वपूर्ण परियोजनाओं को मिल रही आर्थिक मदद खत्म हुई है. 

संभवतः राहत कार्यों में जुटी संस्थाओं पर, कोविड-19 का सबसे विनाशकारी प्रभाव यह रहा है कि महामारी के चलते इन संस्थाओं को धन की भारी कटौती करनी पड़ी है. साथ ही संगठनों और संस्थाओं को मिलने वाली आर्थिक मदद पर भी खासा असर पड़ा है, जिसके चलते मानवीय मदद से जुड़ी कई महात्वपूर्ण परियोजनाओं को मिल रही आर्थिक मदद खत्म हुई है. ऑक्सफैम, जो दुनियाभर में बीस अंतरराष्ट्रीय चैरिटी संगठनों का एक प्रमुख संगठन है, अफगानिस्तान, सूडान और हैती सहित 18 देशों में संचालन बंद कर चुका है. यह वो देश हैं जहां राहत कार्यक्रम वर्तमान समय की ज़रूरत हैं. कोविड-19 के चलते लागत यानी आर्थिक व्यय में हुई कटौती ने ऑक्सफैम को 48 देशों में अपनी ज़मीनी उपस्थिति को कम करने के लिए भी मजबूर किया. इस संगठन की ब्रिटिश शाखा, जो इसके लिए फंडिंग का एक प्रमुख स्रोत रही है, उसकी ओर से आने वाली आर्थिक मदद में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 434 मिलियन अमेरिकी डॉलर की कमी आई है. राहत संगठन अपने कार्यक्रमों को प्रभावी ढंग से पूरा करने के लिए काफी हद तक दान देने वाले देशों द्वारा प्रदान जाने वाले विप्रेषित धन यानी रेमिटेंस पर निर्भर होते हैं. यह दुर्भाग्य है कि कोविड-19 के कारण, विश्व बैंक की परियोजनाओं से होने वाले रेमिटेंस में भी इस वर्ष 110 बिलियन अमेरिकी डॉलर की कमी दर्ज की गई है.

इन संगठनों पर पड़ी दोहरी मार को लेकर यह तथ्य भी महत्वपूर्ण है कि लागत में कटौती और महत्वपूर्ण लक्षित कार्यों के लिए तय की गई राशी को, जिसे आमतौर पर खास परियोजनाओं को शुरु करने या विपरीत परिस्थितियों में रिज़र्व के तौर पर रखा जाता है, अब नए सिरे से कोविड-19 से निपटने की दिशा में खर्च किया जा रहा है. इसने अंतरराष्ट्रीय संगठनों और उनके साधनों को लेकर एक बेहद मुश्किल स्थिति पैदा की है. इसके चलते अंतरराष्ट्रीय संगठन एक बेहद गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं. इसके चलते इन संगठनों के पास अस्तित्व संबंधी खतरों से निपटने के लिए ज़रूरी, आर्थिक संसाधनों की भारी कमी भी हो रही है. इबोला वायरस को लेकर पश्चिमी अफ्रीका के अनुभव ने पहले ही दिखाया था कि इबोला की चिकित्सीय आपदा के चलते, अलग-अलग कामों के लिए जुटाए गए ज़रूरी राहत कोष को फिर इबोला से निपटने के लिए लगाया गया. यह दुर्लभ संसाधनों के इस्तेमाल को एक ऐसी स्थिति पर खर्च करने का मामला है, जो पूरी तरह अनपेक्षित और औचक थी. उदाहरण के लिए, इस गतिविधी से संबंधित शोध में पाया गया कि इबोला वायरस के कारण मलेरिया, एचआईवी और तपेदिक की नियमित देखभाल में आई कमी के चलते, गिनीया, लाइबेरिया और सिएरा लियोन में अनुमानित रूप से 10,600 अतिरिक्त मौतें हुईं. हालाँकि, ऐसा लगता है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे पर भारी पड़ने वाले कोविड-19 के मामले में पिछले अनुभवों से मिले नकारात्मक संकेतों को एक तरफ रख दिया गया है. इसकी एक वजह यह भी है कि कोविड-19 की महामारी ने विश्वभर की स्वास्थ्य व्यवस्थाओं पर विपरीत असर डाला है. कोविड-19 और इसकी चुनौतियों से निपटने के लिए, संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक आपातकालीन रिज़र्व फंड ने 95 मिलियन अमेरिकी डॉलर खर्च किए हैं, जबकि एड्स और तपेदिक से लड़ने के लिए वैश्विक कोष भी कोविड-19 से राहत की दिशा में अपने धन का उचित हिस्सा पुनर्निर्देशित करेगा. आर्थिक संसाधनों को इस तरह पुनर्निदेशित करने का वास्तविक परिणाम यह भी है, कि महामारी के चलते, अन्य महत्वपूर्ण स्वास्थ्य आवश्यकताओं की अनदेखी होगी. पहले ही महामारी ने कई संगठनों द्वारा चलाए जाने वाले टीकाकरण कार्यक्रमों में देरी के लिए मजबूर किया है, अब यह डर है कि टीकाकरण के प्रयासों के पटरी से उतरने के कारण खसरे जैसी वैक्सीन से रुकने वाली बीमारियां बढ़ेंगी. मेडिसिन्स सान्स फ्रंटियर्स यानी (MSF) ने इन चिंताओं का प्रतिध्वनित करते हुए कहा है कि अन्य स्वास्थ्य सेवाओं की उपेक्षा करने से “विनाशकारी स्थिति” पैदा हो सकती है. यूनिसेफ पहले ही यह स्पष्ट कर चुका है कि अप्रैल में लागू किए गए लॉकडाउन और वैश्विक रूप से पैदा हुई संकट की स्थिति के कारण टीकों को लाने ले जाने की प्रक्रिया बाधित हुई है. इस देरी के चलते यह अनुमान लगाया जा रहा है कि लगभग 117 मिलियन बच्चों को नियत समय के अनुसार खसरे के टीके नहीं लगाए जा सके हैं. ऐसी स्थिति में जब दुनियाभर में कोविड-19 की महामारी लगातार बढ़ रही है और वैश्विक रूप से देशों के गठबंधन इसका सामना करना चाहते हैं, तो सहायता संगठन और समूह अपने मददकर्ताओं से लगातार यह अपील कर रहे हैं कि वह अपने संसाधनों को अन्य राहत-कार्यों से हटाकर कोविड-19 की ओर पुनर्निदेशित न करें. इन संगठनों का मानना है कि मौजूदा राहत कार्यक्रमों को वापस लेने के बजाय महामारी की स्थिति में उन पर अधिक ध्यान दिए जाने की ज़रूरत है.

विशिष्ट आबादी पर विपरीत असर

कोविड-19 के पहले भी राहत कार्यों पर विपरीत प्रभाव पड़ रहे थे, हालांकि महामारी ने अब इन संगठनों पर विनाशकारी आर्थिक प्रभाव को बढ़ाते हुए, उन विशिष्ट समुदायों और आबादी को भी प्रभावित किया है जिनकी स्थिति पहले से ही संवेदनशील और कठिन थी और कोविड-19 ने उनकी दुर्दशा को और बढ़ाया है. विशेष रूप से, लिंग-आधारित हिंसा के लिए मिलने वाली मानवीय मदद जो पहले से ही मानवीय सहायता निधि का मात्र 0.01% हिस्सा रही है, अब और भी अधिक असुरक्षित है. ध्यान रहे कि कोविड-19 पर अंकुश लगाने के लिए लगाए गए लॉकडाउन ने घरेलू हिंसा के मामलों को तेज़ी से बढ़ाया है- विशेष रूप से घनी आबादी वाले क्षेत्रों में. ऐसे में चिंताजनक बात यह है कि लिंग आधारित हिंसा के मामलों से निपटने के लिए चलाए जा रहे दो तिहाई मानवीय राहत कार्यक्रमों को अब शून्य धनराशी प्राप्त हो रही है. इसके अलावा, इंटरनेशनल प्लान्ड पेरेंटहुड फेडरेशन (IPPF) के आंकड़ों से पता चला है कि प्रजनन स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करने वाले 5,600 से अधिक क्लीनिक बंद हो गए हैं, और सभी IPPF सदस्य संगठनों में से 40% ने अपनी सेवाओं में गंभीर रूप से आर्थिक कमी की सूचना दी है. यह स्थिति पूरी तरह से महामारी से जनित है. इस प्रकार, अंतरराष्ट्रीय संगठन अगर लगातार कोविड-19 से बढ़ने वाले स्वास्थ्य बोझ से निपटने के लिए उस दिशा में अधिक धनराशी देने पर ज़ोर देते रहेंगे तो इस बात की पूरी आशंका है कि लिंग-आधारित हिंसा जैसे मुद्दों से निपटने के लिए महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे के साथ समझौता करना पड़े. यह विशेष रूप से विवादास्पद और विडम्बनापूर्ण होगा क्योंकि लिंग आधारित हिंसा में कोविड-19 के चलते हर रूप में इजाफ़ा हुआ है.

ध्यान रहे कि कोविड-19 पर अंकुश लगाने के लिए लगाए गए लॉकडाउन ने घरेलू हिंसा के मामलों को तेज़ी से बढ़ाया है- विशेष रूप से घनी आबादी वाले क्षेत्रों में. ऐसे में चिंताजनक बात यह है कि लिंग आधारित हिंसा के मामलों से निपटने के लिए चलाए जा रहे दो तिहाई मानवीय राहत कार्यक्रमों को अब शून्य धनराशी प्राप्त हो रही है. 

धन की कमी और संसाधनों के पुनर्वितरण के अलावा, कोविड-19 ने यात्रा प्रतिबंधों और अनिवार्य रूप से समाजिक दूरी बनाए रखने के रूप में, ज़मीनी कामकाज और राहत कार्यों के पूरा होने को लेकर अंतरराष्ट्रीय संगठनों के लिए कई बाधाएं खड़ी की हैं. इसका सकारात्मक पक्ष यह है कि इन लॉजिस्टिक संबंधी चुनौतियों ने कुछ सकारात्मक बदलाव भी किए हैं. साथ ही कुछ घटनाक्रमों ने काम करने के नए तरीके सुझाए हैं. यह मुख्य़ रूप से राहत कार्यक्रमों को लागू करने, विशेष रूप से स्थानीय संगठनों, समुदायों व समूहों के ज़रिए मानवीय सहायता प्राप्त करने और वितरित करने से जुड़े हैं. कोविड-19 ने दिखाया है कि अधिकांश राहत कार्य, अब दूरस्थ (remote) तरीके से किए जाएंगे और मानवीय सहायता से जुड़े संगठनों के लिए अब सबसे बड़ी संपत्ति और सहायक, स्वयं प्रभावित समुदाय होंगे. अनौपचारिक नेटवर्क, शिक्षा कार्यक्रमों और स्वास्थ्य सेवाओं के माध्यम से शरणार्थियों के नेतृत्व वाले हस्तक्षेपों ने शरणार्थी शिविरों के अस्तित्व को सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

स्थानीय समाज की अंतरराष्ट्रीय स्वीकार्यता

अपने सार्वभौमिक महत्व के बावजूद, संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठन अब तक स्थानीय नागरिक-समाज और अन्य समूहों को उचित श्रेय देने में विफल रहे हैं. आशा है कि कोविड-19 के व्यापाक प्रभाव के चलते अंतरराष्ट्रीय संगठन अब स्थानीय समुदायों को समान रूप से भागीदार के रूप में स्वीकार करने के लिए मजबूर हों. भले ही बयानबाज़ी के स्तर पर, ‘यूएन ग्लोबल रिफ्यूजी फोरम’ और ‘विश्व मानवतावादी शिखर सम्मेलन’ जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों ने “स्थानीय घटकों” के महत्व को उजागर किया हो, लेकिन नीतिगत स्तर पर यह अबतक अमल में नहीं आ सका है. मानवीय सहायता के मुख्य़ मॉडल के रूप में राहत कार्यों और राहत सामग्री के वितरण में हमेशा अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों को महत्व दिया गया है, जो अक्सर स्थानीय संदर्भों से दूर होते हैं. यह विशेष रूप से चिंताजनक है क्योंकि कीनिया और युगांडा में हुए एक अनुसंधान में यह सामने आया है, कि 90 फीसदी शरणार्थी यह मानते हैं कि आपात स्थिति में वे अंतरराष्ट्रीय संगठनों के बजाय सामुदायिक स्तर पर उपलब्ध कराई जाने वाली स्थानीय मदद को स्वीकार करेंगे

भले ही बयानबाज़ी के स्तर पर, ‘यूएन ग्लोबल रिफ्यूजी फोरम’ और ‘विश्व मानवतावादी शिखर सम्मेलन’ जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों ने “स्थानीय घटकों” के महत्व को उजागर किया हो, लेकिन नीतिगत स्तर पर यह अबतक अमल में नहीं आ सका है. 

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि सहायता की प्रणाली का स्थानीयकरण और अंतरराष्ट्रीय समर्थन द्वारा उसे मज़बूत बनाना कोई एकल विकल्प नहीं है, जहां किसी एक को चुनने की बाध्यता हो. यह एक ऐसी स्थिति है जहां मिलकर सोचना ज़रूरी है. ‘होप फॉर चिल्ड्रन एंड वूमेन विक्टिम्स ऑफ वायलेंस’ (HOCW) का उदाहरण इस मायने में महत्वपूर्ण है, जो कांगो के शरणार्थी बोलिंगो एनथ्रिया द्वारा शुरू किया गया एक स्थानीय स्वयं सहायता समूह है. साल 2008 में एक छोटे से अनौपचारिक समुदाय के रूप में शुरू हुआ यह संगठन अंतरराष्ट्रीय फंडिंग और संस्थागत समर्थन की मदद से, युगांडा के स्थानीय लोगों और शरणार्थियों के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण, शिक्षा और मानसिक-सामाजिक सहायता प्राप्त करने का सबसे महत्वपूर्ण ज़रिया बन गया है. यह अंतरराष्ट्रीय सहायता और स्थानीय समूहों के गठजोड़ और इससे मिली सफलता का एक बड़ा उदाहरण है, जिसमें दोनों पक्षों ने एक साथ काम कर, जरूरतमंद लोगों के लिए सबसे बेहतर बुनियादी ढांचा प्रदान करने को लेकर, एक-दूसरे की ताकत का लाभ उठाया है

यह महत्वपूर्ण है कि कोविड-19 को देखते हुए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नीति-र्निमाता अंतरराष्ट्रीय राहत और उसके तौर-तरीकों को लेकर रणनीतिक रूप से कुछ नियम बनाएं. यह एक तरह की ‘बेस्ट-प्रैक्टिस गाइडलाइन’ हो सकती है, जो स्थानीय घटकों की महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए यह सुझाए कि आर्थिक संसाधनों और आर्थिक मदद का रुख क्या होना चाहिए. 

यह महत्वपूर्ण है कि कोविड-19 को देखते हुए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नीति-र्निमाता अंतरराष्ट्रीय राहत और उसके तौर-तरीकों को लेकर रणनीतिक रूप से कुछ नियम बनाएं. यह एक तरह की ‘बेस्ट-प्रैक्टिस गाइडलाइन’ हो सकती है, जो स्थानीय घटकों की महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए यह सुझाए कि आर्थिक संसाधनों और आर्थिक मदद का रुख क्या होना चाहिए. यहां तक कि संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों में भी कोविड-19 से हुई तबाही से निपटने में भी स्थानीय समूहों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, फिर वह वायरस को लेकर फैलाई गई गलत जानकारी के ख़िलाफ़ मुहिम चलाना हो या स्थानीय स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली को ज़मीनी समर्थन प्रदान करना हो या फिर संक्रमण के प्रसार को जांचने के लिए लोगों की पहचान से जुड़ा तंत्र विकसित करना हो, जिसके लिए अंतरराष्ट्रीय संगठनों की सहायता से ऐप्स बनाए गए हैं. इस प्रकार, कोविड-19 से निपटने का मामला हो या फिर उसके चलते पैदा हुए अन्य ख़तरों व अस्तित्व के संकट से निपटने की कार्रवाई, दुनियाभर में इसे लेकर एक ऐसा मॉडल सामने आया है जहां अंतरराष्ट्रीय सहायता संगठन, स्थानीय समूहों के सराहनीय काम को पहचानते हैं, और उनकी मदद के ज़रिए उनके साथ काम करने के लिए आगे आते हैं. जैसे कि युगांडा में HOCW का मामले जो इस बात ज़ोर देता है कि कोविड-19 के मद्देनज़र, स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय गठजोड़ की आवश्यकता बढ़ गयी है, और इस विपरीत स्थिति से निपटने के लिए संगठनों का मिलकर काम करना बेहद महत्वपूर्ण है.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.