Author : Alexis A. Crow

Published on Mar 11, 2020 Updated 0 Hours ago

कोरोना वायरस का प्रकोप फैलने के साथ ही बहुत सी कंपनियां सीमित समय के लिए अपनी इन आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए वायरस प्रभावित क्षेत्रों के बजाय अन्य देशों की तरफ़ रुख़ कर रही हैं. ताकि वो अपने उत्पादनों की मांग पूरी कर सकें.

कोविड-19 और विश्व अर्थव्यवस्था

जब साल 2020 की शुरुआत हुई थी, उस वक़्त अमेरिका की अर्थव्यवस्था अपने निरंतर विस्तार के 126वें महीने में प्रवेश कर रही थी. ये अमेरिका के इतिहास में आर्थिक प्रगति का सबसे लंबा दौर था. उस समय कई निवेशक और बड़ी कंपनियों के अधिकारी गुपचुप तरीक़े से ये सवाल उठा रहे थे कि, ‘अमेरिका की आर्थिक प्रगति का ये दौर कब तक चलने वाला है? आख़िर, वो कौन सी वजह होगी जो हमें अंतत: एक बार फिर आर्थिक सुस्ती के गर्त में धकेल देगी? और सुस्ती का ये दौर कितना गहरा और व्यापक होगा? इसकी वजह क्या होगी? ये कहां से आएगी?’ अब जबकि कोरोना वायरस का प्रकोप पूरी दुनिया में फैल चुका है. वित्तीय बाज़ारों में क़त्ल-ए-आम मचा हुआ है. निवेशकों को हर हफ़्ते ख़रबों डॉलर की क्षति हो रही है. आज दस वर्ष के अमेरिकी बॉन्‍ड पर रिटर्न एक प्रतिशत से भी कम रह गया है, तो बहुत से लोग ख़ुद को आर्थिक सुस्ती के लिए मानसिक तौर पर तैयार कर रहे हैं.

चलिए, कुछ समय के लिए हम वित्तीय बाज़ारों के हाल को छोड़ कर इसके इतर सोचते हैं. और अन्य आर्थिक गतिविधियों के बारे में विचार करते हैं. कोरोना वायरस का संक्रमण फैलने से पहले, दुनिया के कई बड़े निर्यातक देशों में उत्पादन सेक्टर का आउटपुट (PMI) 2019 में लगातार गिरावट की ओर बढ़ रहा था. व्यापारिक संघर्ष के तनावों की वजह से जो अनिश्चितता उत्पन्न हुई थी, उस कारण से जापान, जर्मनी और दक्षिणी कोरिया जैसे कई देशों में मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर का आउटपुट क्षीण हो रहा था. और मैन्यूफ़ैक्चरिग का वैश्विक पीएमआई 50 प्रतिशत से भी नीचे चला गया था. जिसका मतलब था कि वर्ष 2019 में विश्व की अर्थव्यवस्था आधिकारिक रूप से सिमट रही थी. ‘पुराने औद्योगिक’ और सामान के उत्पादन की इस गिरावट के दौरान, सेवा क्षेत्र और उपभोक्ता बाज़ार के विस्तार के चलते विश्व अर्थव्यवस्था की गतिविधियों में प्रगति हो रही थी. दुनिया में रोज़गार के जो नए अवसर उत्पन्न हो रहे थे, फिर दुनिया के विकासशील देश हों या विकसित देश, दोनों ही में सेवा क्षेत्र और उपभोक्ता बाज़ार में ही रोज़गार के अधिकतर अवसर उत्पन्न हो रहे थे. इन्हीं के कारण वित्तीय बाज़ारों में उछाल आ रहा था और निवेश पर अच्छा रिटर्न मिल रहा था.

आज कोरोना वायरस के संक्रमण ने सीधे उपभोक्ता केंद्रों यानी चीन और एशिया की अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं पर प्रहार किया है. इसका नतीजा ये हुआ है कि विकास के इन दो क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियां ठहर गई हैं. यहां तक कि शेयर बाज़ारों और निवेशकों का हौसला बढ़ाने वाले कई बयानों का असर देखने को नहीं मिल रहा है

लेकिन, आज कोरोना वायरस के संक्रमण ने सीधे उपभोक्ता केंद्रों यानी चीन और एशिया की अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं पर प्रहार किया है. इसका नतीजा ये हुआ है कि विकास के इन दो क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियां ठहर गई हैं. यहां तक कि शेयर बाज़ारों और निवेशकों का हौसला बढ़ाने वाले कई बयानों का असर देखने को नहीं मिल रहा है. जबकि बहुत से जानकार ये कह कर निवेशकों को आश्वस्त कर रहे हैं कि कोरोना वायरस से प्रभावित देशों में बहुत जल्द आर्थिक गतिविधियां तेज़ होंगी. लेकिन, इस बात की संभावना अधिक है कि इन देशों में उत्पादकता के पूर्व स्तर तक दोबारा पहुंचने की प्रक्रिया बेहद तकलीफ़देह और धीमी गति वाली होगी. और इसी कारण से उपभोक्ताओं की क्रय क्षमता विकसित होने एवं बाज़ार की चमक दोबारा वापस आने में भी समय अधिक लगेगा.

कुछ लोग ये तर्क दे सकते हैं कि भूमंडलीकरण के जो दावे पहले किए जा रहे थे, उन्हें बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया गया था. ऐसे बयानों की पोल कोरोना वायरस के प्रकोप से खुल गई है. पहली बात तो ये कि जहां तक सप्लाई चेन की बात है चीन ने न केवल इनके क्षेत्रीय व्यापारिक सरप्लस के संग्राहक की भूमिका (जापान और दक्षिण कोरिया जैसे अन्य देशों से इनपुट जुटा कर फिर इन उत्पादों का मूल्य बढ़ा कर इन्हें निर्यात करके ) निभाई है, बल्कि वो इन तैयार उत्पादों के कच्चे माल और प्रबंधन एवं नियमन में भी योगदान दे रहा है. यहां तक कि व्यापार युद्ध के बावजूद अमेरिका और अन्य देशों की बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपने उत्पादों के कल-पुर्ज़ों के लिए चीन पर निर्भर हैं. इसका नतीजा ये हुआ है कि कोरोना वायरस का प्रकोप फैलने के साथ ही बहुत सी कंपनियां सीमित समय के लिए अपनी इन आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए वायरस प्रभावित क्षेत्रों के बजाय अन्य देशों की तरफ़ रुख़ कर रही हैं. ताकि वो अपने उत्पादनों की मांग पूरी कर सकें. कोरोना वायरस के प्रभाव से तमाम कच्चे माल और तैयार माल की सप्लाई चेन में आ रही ये विविधता बेहद महत्वपूर्ण है. 2007-2008 के वैश्विक आर्थिक संकट के बाद की दुनिया में बहुत सी कंपनियां अपने उत्पादनों के मूल्य का निर्धारण करने की क्षमता खो चुकीं हैं. अब उनका निर्धारण ग्राहकों के हाथ में चला गया है. इसी वजह से वो टैरिफ़ बढ़ने से बढ़ी लागत के बावजूद अपने उत्पादनों का मूल्य बढ़ाने में असमर्थ साबित हो रही हैं. लेकिन, आज बहुत सी ऐसी कंपनियों के पास अपने सामान की क़ीमतें बढ़ाने के सिवा कोई चारा नहीं बचा है. इसीलिए ऐसी बहुत सी कंपनियों को ये भय है कि उनके ग्राहक हाथ से निकल जाएंगे.

आज कोरोना वायरस को लेकर जिस तेज़ी से भय फैल रहा है, तो ज़मीनी हक़ीक़तों से वाबस्ता रहना बेहद महत्वपूर्ण है. और जहां तक संभव हो, वहीं तक भविष्य को लेकर दूरंदेशी रखना ठीक होगा. हो सकता है कि कोविड-19 के कारण मध्यम और छोटे दौर के लिए बाज़ारों में उठा-पटक देखने को मिलती रहेगी

और इसी वजह से हमें विश्व अर्थव्यवस्था के भविष्य के सबसे स्याह चेहरे की ओर देखने को मजबूर होना पड़ रहा है. जहां बहुत से विश्लेषक, कोरोना वायरस के बाद विश्व अर्थव्यवस्था में वी (V) के आकार की प्रगति के पथ पर वापसी की संभावना दिखा रहे हैं. ये विश्लेषक ये मानते हैं कि कोरोना वायरस का विश्व अर्थव्यवस्था पर सीमित रूप से ही प्रभाव पड़ेगा. लेकिन, अगर ये वायरस एक महामारी के तौर पर दुनिया में फैलता है, तो इसे मांग को तगड़ा झटका लग सकता है. यहां तक कि दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों की तरफ़ से उदार मौद्रिक नीतियों और कम आक्रमक नीतियां अपनाने की प्रतिबद्धता जताने के बावजूद लोगों को आर्थिक गतिविधियों में फिर से शामिल करने का हौसला नहीं मिल पा रहा है. ऐसा लग रहा है कि वायरस के संक्रमण की आशंका और भय के कारण सेवा क्षेत्र और हॉस्पिटैलिटी सेक्टर की गतिविधियों में दोबारा सक्रियता लौटने में काफ़ी समय लगने वाला है. और यहां इस बात पर और ध्यान देने की आवश्यकता है कि अमेरिका भले ही ख़ुद को वायरस के संक्रमण के केंद्रों से दूर देख रहा है, लेकिन, वहां की एस ऐंड पी 500 कंपनियों का 43 प्रतिशत राजस्व दूसरे देशों से आता है. इनमें भी एशियाई देश उनके सबसे ज़्यादा तेज़ी से विकसित हो रहे बाज़ार हैं. जिनकी विकास दर क़रीब 8 प्रतिशत वार्षिक है. अमेरिकी कंपनियों के तेज़ी से विकसित हो रहे बाज़ारों में यूरोपीय देश इससे थोड़ी ही कम विकास दर के साथ दूसरे नंबर पर आते हैं. ऐसे में आज कोई भी देश या कंपनी बाक़ी दुनिया से अलग द्वीप नहीं रह गया है. और अमेरिका की बहुत सी कंपनियां अपनी सेवाओं और विस्तार लिए वायरस के प्रकोप से प्रभावित क्षेत्रों पर निर्भर हैं.

आज कोरोना वायरस को लेकर जिस तेज़ी से भय फैल रहा है, तो ज़मीनी हक़ीक़तों से वाबस्ता रहना बेहद महत्वपूर्ण है. और जहां तक संभव हो, वहीं तक भविष्य को लेकर दूरंदेशी रखना ठीक होगा. हो सकता है कि कोविड-19 के कारण मध्यम और छोटे दौर के लिए बाज़ारों में उठा-पटक देखने को मिलती रहेगी. लेकिन, बड़ी कंपनियों के कार्यकारी अधिकारी कोरोना वायरस का लंबे समय की प्रगति पर कैसा असर देखते हैं? लंबे समय की प्रगति के लिए कौन से विचार अधिक प्रभावी होंगे और पूंजी वितरण के लिए किन सिद्धांतों पर अमल करना अधिक असरदार होगा? और मंदी के इस दौर में किस तरह से लाभ कमाया जा सकता है? सेवा क्षेत्र और उपभोक्ता कंपनियों की बात करें, तो आर्थिक सुस्ती के इस दौर में उनके कौन से उत्पाद और सेवाओं को नए सिरे से ग्राहकों को लुभाने के लिए परिवर्तित किया जा सकता है? वैकल्पिक पूंजी निवेशकों के लिए स्थानीय पूंजी बाज़ार को कहां स्थानांतरित करने से प्रगति के नए अवसर प्राप्त हो सकते हैं? आज ये देखना बेहद महत्वपूर्ण होगा.

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