Published on Jul 28, 2023 Updated 0 Hours ago

ये सवाल ज़रूर पूछा जाना चाहिए कि अगर हम साल में नेट-ज़ीरो (Net-zero) से जुड़े इकलौते कार्यक्रम का आयोजन नहीं कर सकते तो दुनिया के मुल्कों के नेट ज़ीरो में बदल जाने की कल्पना कैसे की जा सकती है?

#COP27 कथनी को करनी में बदलने की क़वायद: COP बैठकों को नेट ज़ीरो बनाकर हो शुभ शुरुआत
#COP27 कथनी को करनी में बदलने की क़वायद: COP बैठकों को नेट ज़ीरो बनाकर हो शुभ शुरुआत

कुछ अर्सा पहले तक मैं यूनाइटेड नेशंस फ़्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (UNFCCC) की बैठकों में इज़राइल (Israel) की ओर से जलवायु वित्त वार्ताकार की भूमिका निभा रही थी. इस किरदार में मैं ज़्यादातर वक़्त चर्चाओं या परामर्श में बिताया करती थी. लिहाज़ा मुझे परिसर की टोह लेने कावक़्तही नहीं मिलता था और ना ही उसमें मेरी कोई ख़ास दिलचस्पी रहती थी. मैं COP की ओर से लगाए गए पैवेलियनों, केंद्रों, खंडों, प्रदर्शनियों, समानांतर चलने वाले कार्यक्रमों और बाक़ी तमाम आयोजनों की पड़ताल नहीं कर पाती थी. वैसे तो मेरी सोच ये है कि एक मज़बूत अंतरराष्ट्रीय इकाई की ग़ैर-मौजूदगी में हमारी दुनिया का गर्त में जाना तय है. मेरा दृढ़ मत है कि ऐसी ही इकाई राष्ट्रीय राज्यसत्ताओं को अंतरराष्ट्रीय क़ानून (International Law) और समझौतों का पालन करने पर मजबूर कर सकती है. हालांकि अपने इस विचार के बावजूद मैंने जलवायु वित्त (Climate Finance) पर सार्थक कार्रवाई की दिशा में थोड़ी भी प्रगति हासिल करने के लिए हर संभव योगदान दिया है. 

COP में शामिल NGOs में निजी क्षेत्र, पर्यावरणीय समूहों, किसानों और स्थानीयआबादियों, स्थानीय सरकारों और नगरीय निकायों के अधिकारियों, शोध और शिक्षण संस्थानों, मज़दूर संघों के साथ-साथ महिलाओं, युवाओं और लैंगिक समूहों के नुमाइंदे शामिल होते हैं.

बहरहाल, ये बीते हुए कल की बात है. इस साल मैं एक पर्यवेक्षक संगठन के साथ 27वें कॉन्फ़्रेंस ऑफ़ द पार्टीज़ (COP27) के लिए शर्म अल-शेख़ के रिज़ॉर्ट टाउन पहुंची. पर्यवेक्षक संगठनUNFCCC ढांचे का अहम हिस्सा हैं क्योंकि ये ग़ैर-सरकारी किरदारों के विचारों और हितों की नुमाइंदगी करते हैं. इनमें यूनाइटेड नेशंस सिस्टम और उसकी विशेषज्ञ एजेंसियां, अंतर-सरकारी संस्थाएं और ग़ैर-सरकारी संगठन (NGOs) शामिल हैंCOP में शामिल NGOs में निजी क्षेत्र, पर्यावरणीय समूहों, किसानों और स्थानीयआबादियों, स्थानीय सरकारों और नगरीय निकायों के अधिकारियों, शोध और शिक्षण संस्थानों, मज़दूर संघों के साथ-साथ महिलाओं, युवाओं और लैंगिक समूहों के नुमाइंदे शामिल होते हैं. कार्यकर्ताओं, पर्यावरण के मसले पर सक्रिय लोगों, वैश्विक प्रतिनिधियों और जलवायु से जुड़ी सोच को प्रभावित करने वाले लोगों के साथ-साथ इन पर्यवेक्षकों के पास एक हद तक इन वार्ताओं के परिणामों को प्रभावित करने की ताक़त होती है. 

इस साल की मेरी ज़िम्मेदारियों में मुझे बाहर घूमने-फिरने और COP27 के समानांतर आयोजित होने वाले कार्यक्रमों, प्रदर्शनियों और सामाजिक गतिविधियों की पड़ताल करने का मौक़ा मिल गया. वहां की अंतहीन और चहलपहल भरी गलियों से गुज़रते हुए मुझे ये एहसास हुआ कि वहां मौजूद ज़्यादातर लोगों की COP के प्राथमिक मक़सद से कोई अहमियत नहीं है. वहां की गतिविधियां किसी उत्सव या मेले जैसी दिखाई दे रही थीं. वहां वैसा ही नज़ारा था जैसा संबंधित उद्योगों में यूरोसैटोरी या ITB बर्लिन में देखने को मिलता है. COP“पार्टी ओवरफ़्लो” का बैज लगाए लोगों की भरमार इस बात को साफ़ ज़ाहिर करती है. COP में शामिल तमाम पक्ष इन लोगों को वहां भेजते हैं. हालांकि इनका वार्ताओं से कोई लेना-देना नहीं होता. इतना ही नहीं COP में होने वाले कार्यक्रमों और गतिविधियों की तादाद इतनी हास्यास्पद होती है कि विभिन्न क्षेत्रों में होने वाले कार्यक्रमों की सूचियां खंगालने में ही घंटों बीत जाते हैं. कार्यक्रम स्थल के विशाल इलाक़ों का चक्कर काटना बेहद तक़लीफ़देह और थका देने वाला अनुभव होता है. साथ ही सुबह-सुबह या देर शाम के वक़्त को छोड़कर ये इलाक़े लोगों से खचाखच भरे रहते हैं, जो ये ज़ाहिर करता है कि इन स्थानों पर कितने सारे लोग इकट्ठा हो जाते हैं. 

इस साल जून में मिस्र के पर्यावरण मंत्री डॉ. यास्मीन फ़वाद ने कॉन्फ़्रेंस की तैयारियों के लिए शर्म अल-शेख़ को हरित शहर में बदलने के मक़सद से 70 लाख अमेरिकी डॉलर के हस्तांतरण से जुड़े दस्तावेज़ पर दस्तख़त किए थे.

COP में इस तरह की अफ़रातफ़री और सामाजिक गतिविधियां एक छलावा हैं, जो लोगों केदिमाग़ से ये बात निकाल देती है कि दरअसल हम जलवायु परिवर्तन के मोर्चे पर एक बड़ी जंग लड़ रहे हैं. दरअसल ये युद्ध हम अपने आप से लड़ रहे हैं. सम्मेलन के शीर्ष स्तरीय उद्घाटन में संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरस ने कहा कि ग्लोबल वॉर्मिंग के ख़िलाफ़ लड़ाई में मानवता के सामने एक उलझा हुआ विकल्प है. मानव समाज या तो जलवायु सद्भाव संधि का चुनाव कर सकता है या फिर सामूहिक आत्महत्या क़रार का. उनके मुताबिक “हम उस हाईवे पर हैं जो जलवायु के मोर्चे पर नर्क की दिशा में जाता है और हमारे पैर अब भी एक्सेलेरेटर पर हैं.” इन हालातों में चकाचौंध से भरे समानांतर जलसों, कॉकटेल्स और सामाजिक कार्यक्रमों के आयोजन से वहां जुटे प्रतिनिधियों के ज़ेहन से हालात की गंभीरता ओझल हो जाती है. 

वैसे तो COP की बैठकें पूरी जलवायु बिरादरी के लिए एक जगह इकट्ठा होने, विचारों का आदान-प्रदान करने, नई प्रौद्योगिकियों की नुमाइश करने और नई रणनीतियां और बेहतरीन तौर-तरीक़े पेश करने का माकूल अवसर होती हैं. एक ही दिन में तमाम प्रतिभागी दर्ज़न भर देशों के लोगों के साथ आमने-सामने दर्ज़न भर बैठकें कर सकते हैं. निश्चित रूप से COP के मौजूदा स्वरूप के कई सकारात्मक बिंदु हैं और मैं ख़ुद उनकी तस्दीक़ कर सकती हैं. यहां जुटे कार्यकर्ता COP की ओर से प्रचारित नुमाइशों और विरोध-प्रदर्शनोंकी अगुवाई भी कर सकते हैं, जिनकी गूंज दूर तक सुनाई दे सकती है. हालांकि ये सवाल भी पूछा जाना चाहिए कि COP के समानांतर आयोजित होने वाले इन उत्सवों की लागत, उनसे हासिल होने वाले फ़ायदों से आगे तो नहीं निकल जा रही हैं. इन लागतों में पर्यावरणीय लागत और कार्बन उत्सर्जन शामिल हैं. 

नेट ज़ीरो उस अवस्था को कहते हैं जब वातावरण में उत्सर्जित ग्रीनहाउस गैसों को वातावरण से हटाए गए गैसों से संतुलित कर दिया जाता है. 

इस साल जून में मिस्र के पर्यावरण मंत्री डॉ. यास्मीन फ़वाद ने कॉन्फ़्रेंस की तैयारियों के लिए शर्म अल-शेख़ को हरित शहर में बदलने के मक़सद से 70 लाख अमेरिकी डॉलर के हस्तांतरण से जुड़े दस्तावेज़ पर दस्तख़त किए थे. ख़बरों के मुताबिक हज़ारों प्रतिभागियों के आवागमन से जुड़ी ज़रूरतें पूरी करने और सम्मेलन स्थल पर बिजली आपूर्ति के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों और सोलर पैनल्स की खेप शर्म अल-शेख़ मंगवाई गईं. इसके अलावा होटलों ने भी हरित तौर-तरीक़े अपना लिए, जिनमें अपशिष्ट जल का समुचित प्रबंधन, रिसायक्लिंग, नवीकरणीय साधनों के प्रयोग और ऊर्जा का कुशलतापूर्ण इस्तेमाल करने से जुड़े उपाय शामिल हैं. 

ख़ुद COP को नेट ज़ीरो बनाने की क़वायद

ऊपर की सारी क़वायदें बेहतरीन हैं. हालांकि मैं UNFCCC, द पार्टीज़ टू द कन्वेंशन और उनकी जलवायु प्रतिबद्धताओं और कार्रवाइयों को चुनौती देना चाहती हूं. क्लाइमेट एक्शन ट्रैकर के मुताबिक नवंबर 2022 तक तक़रीबन 140 देशों ने या तो नेट ज़ीरो लक्ष्यों का एलान कर दिया है या उनपर गंभीरता से विचार कर रहे हैं. वैश्विक उत्सर्जनों का 90 फ़ीसदी हिस्सा इसके दायरे में आ गया है. नेट ज़ीरो उस अवस्था को कहते हैं जब वातावरण में उत्सर्जित ग्रीनहाउस गैसों को वातावरण से हटाए गए गैसों से संतुलित कर दिया जाता है. नेट ज़ीरो कार्बन उत्सर्जन तक पहुंचने के लिए देशों को नवीकरणीय ऊर्जा का इस्तेमाल बढ़ाना होगा और जलवायु के प्राकृतिक समाधानों का प्रयोग करना होगा. इसके अलावा उत्सर्जन के उच्च स्तरों वाली ग्रीनहाउस गैस प्रौद्योगिकियों को निम्न, शून्य और नकारात्मक (यानी कार्बन हटाने वाली) उत्सर्जन करने वाली प्रौद्योगिकियों से बदलने पर ध्यान देना होगा. नेट-ज़ीरो परिकल्पना के मुताबिक रोकथाम से जुड़ी इन तमाम कार्रवाइयों पर अमल करने के बाद ही समायोजनों (offsets) यानी अपने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जनों को घटाने के लिए किसी दूसरे को भुगतान करने की व्यवस्था इस्तेमाल में लाई जा सकती है. 

सालाना जलवायु परिवर्तन COPs में हिस्सा लेने वाले सभी प्रतिभागियों, मेज़बान देशों और संयुक्त राष्ट्र के लिए ये एक उपयोगी क़वायद होगी कि ऐसा सालाना सम्मेलन, नेट-ज़ीरो कार्यक्रम बन जाए. इस सिलसिले में तीनों कार्यक्षेत्रों का निपटारा ज़रूरी है. कार्यक्षेत्र 1 ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (प्रत्यक्ष उत्सर्जन), कार्यक्षेत्र 2 (ख़रीदी हुई बिजली या हीटिंग/कूलिंग से अप्रत्यक्ष उत्सर्जन) और कार्यक्षेत्र 3 (नीचे की ओर प्रवाह वाला अप्रत्यक्ष या ऊपर की ओर प्रवाह वाला उत्सर्जन). वैसे इसके लिए सभी किरदारों को अपने कार्बन उत्सर्जनों पर ध्यान देना होगा. साथ ही ग्रीनहाउस गैसों के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष उत्सर्जनों की पहचान, आकलन और माप करनी होगी. असल में इसके लिए समूची मूल्य और आपूर्ति श्रृंखलाओं में सभी गतिविधियों के लिए कार्बन उत्सर्जनों के माप की ज़रूरत पड़ेगी और आगे चलकर उन्हें घटाकर शून्य तक लाना होगा. सम्मेलन से जुड़े सभी पक्षों और संयुक्त राष्ट्र को GHG प्रोटोकॉल को क्रियाशील बनाना होगा. निजी और सार्वजनिक क्षेत्र की गतिविधियों, मूल्य श्रृंखलाओं और रोकथाम से जुड़ी कार्रवाइयों से ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन की माप और प्रबंधन करने वाला सबसे स्वीकार्य वैश्विक मानकीकृत ढांचा बन गया है. 

प्रतिभागियों को COP में अपनी हिस्सेदारी के संदर्भ में प्रमाणित और संयुक्त राष्ट्र द्वारा सत्यापित प्रदाता के पास अपने कार्बन फ़ुटप्रिंट का ख़ुलासा और समायोजन करना होगा. इस तरह हरित तौर-तरीक़े अपनाए जाने से जुड़ी धोखाधड़ियों (greenwashing) से बचा जा सकेगा. आपूर्तिकर्ताओं के लिए नेट-ज़ीरो कार्बन के निचले स्तर तक पहुंचकर कार्बन बाज़ार में प्रवेश करना भी ज़रूरी होगा. हालांकि ये जटिलता कई किरदारों को इस कार्यक्रम का हिस्सा बनने से हतोत्साहित कर सकती है. COP27 के आधिकारिक प्रायोजकोंमें से एक कोका कोला जैसी कंपनी (दुनिया में प्लास्टिक प्रदूषण फैलाने में सबसे आगे) को निकट भविष्य में ऐसे फ़ैसले पर तामील करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है. इतना ही नहीं, आयोजकों को कार्बन अकाउंटिंग में हरित प्रयोगों से जुड़ी धोखाधड़ी और समायोजन उद्योग में भी हरित प्रयोगों से जुड़े झूठे दावों से बचने के लिए जांच पड़ताल की अनेक प्रक्रियाएं चलानी होंगी. हक़ीक़त में नेट-ज़ीरो बनने की इच्छा रखने वाली तमाम इकाइयों की तरह ही ऐसी क़वायदों को अंजाम देना होगा. 

आख़िरकार शर्म अल-शेख़ में मिस्र की अध्यक्षता में COP27 के आयोजन ने “पेरिस में किए गए वादों के क्रियान्वयन” को केंद्र में ला दिया है, साथ ही “वादों से हटकर तामील की ओर बढ़ने” की ज़रूरत जता दी है.

ये एक बेहद जटिल और नाकाम होने वाला सबक़ मालूम होता है; ख़ासतौर से तब, जब साज़ोसामान, परिवहन, खाद्य और पेय पदार्थों, रिहाइश और बाक़ी तमाम क्षेत्रों के किरदारों को नेट-ज़ीरो तक बदलाव कर पाने में अभी दशकों लगने की आशंका है. भविष्य में COPs की मेज़बानी की इच्छा दिखाने वाले या ख़ुद को संभावित मेज़बान समझने वाले देश भी ऐसा करने से हिचकेंगे. नेट-ज़ीरो से जुड़ी घटना के अनोखेपन के चलते ऐसा देखा जा रहा है. हालांकि ये सवाल ज़रूर पूछा जाना चाहिए कि अगर हम साल में नेट-ज़ीरो से जुड़े एक कार्यक्रम का आयोजन नहीं कर सकते तो दुनिया के मुल्कों के नेट ज़ीरो में बदल जाने की कल्पना कैसे की जा सकती है? बहुत हद तक शुरुआती वर्षों में कार्यक्रम से उत्सर्जित कार्बन में होने वाली कुल गिरावट में समायोजन (offsetting) का हिस्सा ऊंचा रह सकता है. इसके बावजूद दुनिया के देशों की तरह ही UNFCC भी COP में बदलाव को लेकर अपना ख़ुद का नेट-ज़ीरो प्लान तैयार कर सकती है. इस क़वायद में भावी बैठकों के लिए विशिष्ट लक्ष्य तैयार किए जा सकते हैं. 

वैसे इस प्रक्रिया के फ़ायदों की सराहना भी ज़रूरी है. आने वाले सालों में COP के लिए नेट-ज़ीरो रणनीति अपनाए जाने से समूचा इकोसिस्टम पूरी रफ़्तार में आ जाएगा. ये हरित परिवर्तन से जुड़े तौर-तरीक़ों को एकीकृत करने में मदद करेगा. इससे कार्बन अकाउंटिंग मानकों को स्वीकारने की प्रक्रिया गति पकड़ेगी. साथ ही अपने कार्बन उत्सर्जनों को ख़त्म करने की ज़रूरत समझने वाले संगठनों और व्यक्तियों के लिए बाज़ार समाधान बनाने में मदद मिलेगी. इस क़वायद से कार्बन हटाने की प्रौद्योगिकियों में ज़्यादा निवेश जुड़ेगा, जिससे इस लेख में प्रयोग हुई सभी शब्दावलियां मुख्य धारा में आ जाएंगी. समाज के दूसरे समूहों, जो अबतक शब्दों के इस मकड़जाल से परिचित नहीं हैं, उनके लिए ये प्रक्रिया काफी मददगार होगी. 

वैसे तो नेट-ज़ीरो कार्यक्रमों की परिकल्पना ने वैसी कंपनियों के निर्माण का रास्ता खोल दिया है जो इनकी आस लगाने वाली इकाइयों की मदद कर रहे हैं. ऐसे में UNFCCC को हर तरीक़े से ऐसी प्रक्रिया से गुज़रने वाली कतार में पहले क्रम पर होना चाहिए. जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की रोकथाम या उसके अनुरूप ढलने की दिशा में फ़ैसले लेने वाले या काम करने वालों के सालाना कार्यक्रम को पूरी क्रांति की अगुवाई करनी चाहिए. ग्लोबल वॉर्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के रास्ते पर बरक़रार रखने के लिए ये निहायत ज़रूरी है. ऐसी क़वायद की शुरुआत करते वक़्त निर्णयकर्ता को नेट-ज़ीरो पर अमल करने से जुड़ी दुश्वारियों और तमाम पेचीदगियों का एहसास हो जाएगा. आख़िरकार शर्म अल-शेख़ में मिस्र की अध्यक्षता में COP27 के आयोजन ने “पेरिस में किए गए वादों के क्रियान्वयन” को केंद्र में ला दिया है, साथ ही “वादों से हटकर तामील की ओर बढ़ने” की ज़रूरत जता दी है. ऐसे में जो विचार सबसे अहम है वो है कथनी की बजाए करनी पर अमल.

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