Published on Jul 30, 2022 Updated 0 Hours ago

दुनिया भर में ईंधन के तौर पर कोयले के इस्तेमाल में इज़ाफ़ा हो रहा है. इससे भविष्य में पूरी दुनिया के सामने बड़ी चुनौतियां खड़ी होंगी.

बिजली और ईंधन के लिये दुनियाभर में कोयले का इस्तेमाल बढ़ने के संकेत; भविष्य की योजनाओं पर सवालिया निशान!

ये लेख हमारी सीरीज़- कॉम्प्रिहेंसिव एनर्जी मॉनिटर: इंडिया ऐंड द वर्ल्ड का एक हिस्सा है.


भारत और बाक़ी दुनिया आगे चलकर किस तरह अपना कार्बन उत्सर्जन कम करेंगे, इसकी राह दिखाने वाले कई सारे दस्तावेज़ मौजूद हैं. इनमें अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) द्वारा सुझाए गए 450 पार्ट्स पर मिलियन (ppm) कार्बन उत्सर्जन से लेकर 2050 ऊर्जा की सौ फ़ीसद ज़रूरत नवीनीकरण योग्य ऊर्जा (RE) से पूरी करने के पूर्वानुमान शामिल हैं. ऐसे ज़्यादातर पूर्वानुमानों में बिजली बनाने के लिए कोयले का इस्तेमाल पूरी तरह बंद करने से लेकर उसके इस्तेमाल में बड़ी मात्रा में कमी लाने के सुझाव दिए गए हैं. ऐसे ज़्यादातर आकलनों में कम अवधि में कोयले की जगह प्राकृतिक गैस के इस्तेमाल को बढ़ावा देने से लेकर दूरगामी अवधि में भंडारण की क्षमता बढ़ाकर नवीनीकरण योग्य ऊर्जा के इस्तेमाल को अपनाने की राह सुझायी गई है. प्राकृतिक गैस के दाम में पर्याप्त मात्रा में कमी और ऊर्जा के भंडारण की लागत और उसके भरोसेमंद होने की ख़ूबी में व्यापाक सुधार लाकर ही, अक्सर गुल हो जाने वाली नवीनीकरण योग्य ऊर्जा को घंटों नहीं, बल्कि दिनों महीनों और मौसमों में लगातार आपूर्ति सुनिश्चित करने से ही इन पूर्वानुमानों को हक़ीक़त में बदला जा सकता है. लेकिन, 2021 और साल 2022 के पहले हिस्से में ऊर्जा बाज़ार में आए बदलाव ने इन दोनों ही आकलनों को बड़ी चुनौती पेश की है.

महामारी के चलते लगाए गए लॉकडाउन हटने के बाद साल 2021 के आख़िर में ऊर्जा और ख़ास तौर से बिजली की मांग में ज़बरदस्त इज़ाफ़ा देखने को मिला. वर्ष 2021 में दुनिया में बिजली का उत्पादन, रिकॉर्ड 1577 टेरावाट घंटे (TWh) बढ़ गया, जो साल 2020 की तुलना में 6.2 प्रतिशत अधिक है.

महामारी के चलते लगाए गए लॉकडाउन हटने के बाद साल 2021 के आख़िर में ऊर्जा और ख़ास तौर से बिजली की मांग में ज़बरदस्त इज़ाफ़ा देखने को मिला. वर्ष 2021 में दुनिया में बिजली का उत्पादन, रिकॉर्ड 1577 टेरावाट घंटे (TWh) बढ़ गया, जो साल 2020 की तुलना में 6.2 प्रतिशत अधिक है. इसी तरह यूरोप और एशिया के बाज़ारों में बिजली बनाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली तरल प्राकृतिक गैस के दाम अभूतपूर्व रूप से बहुत बढ़ गए. वहीं, नवीनीकरण योग्य ऊर्जा के संसाधनों से बिजली बनाने की क्षमता में उम्मीद के मुताबिक़ इज़ाफ़ा नहीं हुआ. उसके बाद यूक्रेन और रूस के युद्ध के चलते 2022 की शुरुआत में ऊर्जा की आपूर्ति में पड़े खलल ने, तरल प्राकृतिक गैस (LNG) के दाम आसमान में पहुंचा दिए. इसका नतीजा ये हुआ कि बिजली बनाने के लिए सस्ते और आसानी से उपलब्ध ईंधन के विकल्प के तौर पर सिर्फ़ कोयला ही बच गया. यहां तक कि कोयले के इस्तेमाल के ख़िलाफ़ सख़्त रुख़ और नीतियां अपनाने वाले पश्चिमी यूरोप और उत्तरी अमेरिका जैसे इलाक़ों को भी दोबारा कोयले से बिजली बनाना शुरू करने को मजबूर होना पड़ा.

2021 में दुनिया भर में, प्राकृतिक गैस या फिर तेल के इस्तेमाल की तुलना में कोयले की खपत में 6.3 प्रतिशत अधिक का इज़ाफ़ा हुआ. 2021 में दुनिया भर में बिजली की 51 फ़ीसद मांग कोयले से पूरी की गई, जो सभी तरह के ईंधनों में सबसे ज़्यादा है. चीन में कोयले से बिजली बनाने में 3.7 एक्साजोउल (EJ) का इज़ाफ़ा हुआ. वहीं, भारत की हिस्सेदारी 2.7 एक्साजोउल (EJ) थी. साल 2021 में कोयले के इन दो पारंपरिक उपभोक्ताओं ने मिलकर, दुनिया भर में कोयले की खपत में 70 फ़ीसद बढ़ोत्तरी करने का योगदान दिया. जबकि इसी दौरान, नवीनीकरण योग्य ऊर्जा के इस्तेमाल में केवल 15 प्रतिशत यानी 5.1 एक्साजोउल (EJ) की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई. पिछले दस सालों से लगातार गिरावट के बाद 2021 में उत्तरी अमेरिका और यूरोप, दोनों ही जगह कोयले की खपत में इज़ाफ़ा देखा गया. जबकि वर्ष 2021 में बिजली बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाले कोयले की क़ीमत साल 2008 के बाद सबसे ज़्यादा यानी 121 डॉलर प्रति टन थी. कोयले की खपत में ये बढ़ोत्तरी भले ही कम अवधि के लिए हो. लेकिन, इसकी वजह से भविष्य में ऊर्जा के इस्तेमाल को बदलकर नवीनीकरण योग्य ऊर्जा अपनाने की राह में आने वाली चुनौतियां खुलकर सामने आ गई हैं.

चूंकि विदेश से मंगाए जाने वाले कोयले की क़ीमत, स्वदेशी कोयले की तुलना में तीन गुना अधिक है. इसलिए सरकार ने इस बढ़ी हुई क़ीमत का बोझ ग्राहकों पर डाल दिया. भारत ने कोयले की आपूर्ति बढ़ाने के लिए पर्यावरण संबंधी नियमों में भी ढील दे दी.

भारत

भारत में कोयले की मांग में अप्रत्याशित ढंग से बढ़ोत्तरी होने के चलते सरकार को ऐसे दिशा निर्देश जारी करने पड़े हैं, जो पहले घोषित किए गए उसके अपने नीतिगत लक्ष्यों के ठीक उलट हैं. मिसाल के तौर पर फरवरी 2020 में सरकार चाहती थी कि बिजलीघर, आयातित कोयले की जगह स्वदेशी कोयले का इस्तेमाल करें. सरकार का तर्क था कि आत्मनिर्भरता के अपने सामरिक लक्ष्य को हासिल करने के लिए भारत, साल 2023 तक कोयले का आयात बंद करना चाहता है. जब ये बात साफ़ हो गई कि कोयले का घरेलू उत्पादन, तेज़ी से बढ़ रही मांग पूरी कर पाने में समर्थ नहीं है, तो सरकार ने मई 2022 में एक आदेश जारी किया कि कोयले से बिजली बनाने वाली कंपनियों (जिनमें घरेलू कोयले से बिजली बनाने वाले पावर प्लांट शामिल हैं) को अपनी ज़रूरत का 15 प्रतिशत कोयला विदेश से आयात करना पड़ेगा, ताकि अपनी मांग पूरी कर सकें. सरकार ने चेतावनी दी कि जो बिजलीघर जून 2022 के मध्य तक आयातित कोयले का इस्तेमाल शुरू नहीं करेंगे, उनको स्वदेशी कोयले की आपूर्ति में व्यापक स्तर पर कटौती की जाएगी. कोयले से चलने वाले बिजलीघर खोलने के लिए ज़रूरी पूंजी उपलब्ध न कराने के रिज़र्व बैंक के दिशा निर्देशों के ख़िलाफ़ जाते हुए, सरकार ने ऊर्जा वित्त निगम (PFC) और ग्रामीण विद्युतीकरण निगम (REC) को आदेश दिया कि वो कोयले से चलने वाले बिजलीघरों को कम अवधि के लिए पूंजी उपलब्ध कराए, भले ही इन बिजलीघरों के ख़िलाफ़ दिवालिया होने की प्रक्रिया चल रही हो या फिर उनका मामला राष्ट्रीय कंपनी ला ट्राइब्यूनल (NCLT) में ही क्यों न हो. चूंकि विदेश से मंगाए जाने वाले कोयले की क़ीमत, स्वदेशी कोयले की तुलना में तीन गुना अधिक है. इसलिए सरकार ने इस बढ़ी हुई क़ीमत का बोझ ग्राहकों पर डाल दिया. भारत ने कोयले की आपूर्ति बढ़ाने के लिए पर्यावरण संबंधी नियमों में भी ढील दे दी. 2020 में भारत में कुल बिजली उत्पादन में कोयले की हिस्सेदारी 72 प्रतिशत थी जो 2021 में बढ़कर 74 फ़ीसद पहुंच गई. अब फ़ौरी तौर पर कोयले की आपूर्ति बढ़ाने के लिए उठाए गए इन क़दमों का दूरगामी असर क्या होगा, ये तो स्पष्ट नहीं है. लेकिन ये तय है कि इन उपायों से भविष्य में भारत की ऊर्जा सुरक्षा और कार्बन उत्सर्जन कम करने की योजनाओं पर गहरा असर पड़ने जा रहा है.

चीन

वर्ष 2021 में चीन में बिजली की मांग दस प्रतिशत से भी ज़्यादा बढ़ गई. इससे ठीक उस वक़्त चीन में भी बिजली का भयंकर संकट पैदा हो गया था, जब भारत कोयले की क़िल्लत से जूझ रहा था. कई कई दिनों तक बिजली आपूर्ति ठप रही. उद्योगों और घरों को कहा गया कि वो बिजली का इस्तेमाल कम करें. चीन में आपूर्ति की इन दिक़्क़तों के चलते दुनिया भर की आपूर्ति श्रृंखलाएं बाधित हुईं. महामारी के बाद अर्थव्यवस्था के दोबारा रफ़्तार पकड़ने, ऑस्ट्रेलिया और इंडोनेशिया से कोयले के आयात में कमी और चीन के अपने कोयला उत्पादक इलाक़ों मे कोरोना की महामारी के बने रहने के चलते, कहा ये जा रहा है कि जलवायु परिवर्तन से निपटने का जो वादा चीन ने किया था, उसकी तय समयसीमा से वो काफ़ी पीछे हो गया है. चीन का ये हाल तब हुआ जब वहां कच्चे कोयले (थर्मल और कोकिंग कोयला) का उत्पाद साल 2021 में 4 अरब टन से भी अधिक हो गया है. वर्ष 2021 में चीन का बिजली बनाने के लिए कोयले का इस्तेमाल 86.19 एक्साजोउल (EJ) या 2.9 अऱब टन था, जो 2013 में उसकी अधिकतम खपत 82.43 एक्साजोउल (2.8 अरब टन) से भी अधिक था. हालांकि 2020 में चीन में कुल बिजली उत्पादन में कोयले की हिस्सेदारी जहां 63 फ़ीसद थी, वहीं 2021 में वो घटकर 62.5 प्रतिशत रह गई. इसकी वजह कोयले की आपूर्ति मे कमी थी. ये इस बात का सुबूत है कि ऊर्जा की क़िल्लत ने ऊर्जा सुरक्षा को लेकर चीन के नज़रिए में बदलाव आया है. पहले जहां चीन अधिक बिजली उत्पादन और कम कार्बन उत्सर्जन वाली कोयले से बिजली बनाने पर ज़ोर दे रहा था, ताकि कम कार्बन उत्सर्जन वाली ऊर्जा व्यवस्था विकसित कर सके. लेकिन, अब कहा ये जा रहा है कि चीन दुनिया में सबसे ज़्यादा कोयले से चलने वाले बिजलीघर बनाने जा रहा है. जनवरी 2022 तक चीन ने 158 गीगावाट (GW) बिजली उत्पादन कर सकने वाले कोयला आधारित नए बिजलीघरों को मंज़ूरी देने का एलान किया था, जो दुनिया भर में बन रहे कोयला आधारित बिजलीघरों का 57 प्रतिशत है.

पहले जहां चीन अधिक बिजली उत्पादन और कम कार्बन उत्सर्जन वाली कोयले से बिजली बनाने पर ज़ोर दे रहा था, ताकि कम कार्बन उत्सर्जन वाली ऊर्जा व्यवस्था विकसित कर सके. लेकिन, अब कहा ये जा रहा है कि चीन दुनिया में सबसे ज़्यादा कोयले से चलने वाले बिजलीघर बनाने जा रहा है.

यूरोप

दो साल पहले (जुलाई 2020) में यूरोप में कोयले की क़ीमत लगभग 50 डॉलर प्रति टन थी, जो कोयला उद्योग के मुताबिक़ वाजिब थी. लेकिन, प्राकृतिक गैस के दाम में तेज़ी से बढ़ोत्तरी, यूरोपीय संघ द्वारा तय कार्बन उत्सर्जन पर टैक्स 26 यूरो प्रति टन और कच्चे तेल के दाम में ज़बरदस्त उछाल के चलते, यूरोप में कोयला बहुत महंगा हो गया. जुलाई 2022 में समुद्र के रास्ते यूरोप पहुंचने वाले कोयले का दाम 365 डॉलर प्रति टन था, जिसने जून 2022 में 425 डॉलर प्रति टन के स्तर को भी छू लिया था. कोयले के दाम में ज़बरदस्त बढ़ोत्तरी के बावजूद, ये प्राकृतिक गैस की तुलना में सस्ता पड़ रहा था और सबसे बड़ी बात तो ये थी कि ये बाज़ार में उपलब्ध था. वर्ष 2021 में पूरे यूरोप में कोयले की खपत में 5.9 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई थी. जबकि 2011 से 2021 के दौरान, यूरोप में कोयले की खपत में सालाना 4.6 फ़ीसद कमी आ रही थी. जर्मनी में कोयले की खपत साल 2021 में 17.5 प्रतिशत बढ़ गई, तो फ्रांस में इसमें 20.5 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हो गई. अनुमान लगाया जा रहा है कि अक्टूबर 2022 तक जर्मनी कोयले से 10 गीगावाट बिजली उत्पादन वाले बिजलीघरों को दोबारा चलाने लगेगा. इसका मतलब है कि जर्मनी द्वारा आयात किए जाने वाले कोयले में 100 प्रतिशत का इज़ाफ़ा होगा. हालांकि ये चीन में एक दिन खप जाने वाले कोयले के बराबर होगा. महामारी के दौरान साल 2020 में यूरोपीय संघ ने इस बात का जश्न मनाया था कि पहली बार कुल बिजली उत्पादन में नवीनीकरण योग्य ऊर्जा (RE) की हिस्सेदारी 38 प्रतिशत थी, जो जीवाश्म ईंधन के ज़रिए बनी 37 फ़ीसद बिजली की हिस्सेदारी से ज़्यादा थी. लेकिन 2021 में नवीनीकरण योग्य स्रोत और जीवाश्म ईंधन दोनों से बिजली बनाने की कुल बिजली उत्पादन में हिस्सेदारी बराबर यानी 37 फ़ीसद हो गई थी. यूरोपीय संघ और ख़ास तौर से जर्मनी द्वारा फिर से कोयले से बिजली बनाने ने इस हक़ीक़त को उजागर कर दिया जिसे रॉबर्ट ब्राइस ने ‘बिजली के लौह सिद्धांत’ का नाम दिया है. यानी ज़्यादातर देश हर क़ीमत पर बिजली चाहते हैं. भले ही इससे कार्बन उत्सर्जन की उनकी योजना पर पानी ही क्यों न फिर जाए.

यूरोपीय संघ और ख़ास तौर से जर्मनी द्वारा फिर से कोयले से बिजली बनाने ने इस हक़ीक़त को उजागर कर दिया जिसे रॉबर्ट ब्राइस ने ‘बिजली के लौह सिद्धांत’ का नाम दिया है. यानी ज़्यादातर देश हर क़ीमत पर बिजली चाहते हैं. भले ही इससे कार्बन उत्सर्जन की उनकी योजना पर पानी ही क्यों न फिर जाए.

अमेरिका

अमेरिका में कोयले की खपत 2007 में उस वक़्त से ही लगातार घट रही है, जब वहां कोयले से बिजली उत्पादन अपने शीर्ष पर पहुंच गया था. साल 2007 से 2020 के दौरान अमेरिका में कोयले से बिजली उत्पादन 61 प्रतिशत कम हो गया था. लेकिन, 2021 में कोयले से बिजली बनाने में 15 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हो गई. कुल बिजली उत्पादन में कोयले की हिस्सेदारी 22 फ़ीसद हो गई, जो 2020 के 20 प्रतिशत से अधिक थी. अमेरिका में कोयले के इस बढ़े हुए इस्तेमाल की बड़ी वजह यूरोपीय संघ की तरह ही, प्राकृतिक गैस के दाम में हुई बढ़ोत्तरी थी. 2020 में बिजली उत्पादन में प्राकृतिक गैस की हिस्सेदारी 40 फ़ीसद थी, जो 2021 में घटकर 38 प्रतिशत ही रह गई. हालंकि ज़्यादातर लोग ये मानते हैं कि अमेरिका में कोयले की खपत में ये बढ़ोत्तरी वक़्ती है और जल्द ही इसमें गिरावट आएगी. लेकिन, सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फ़ैसले से हाल ही में बिजलीघरों से कार्बन उत्सर्जन पर केंद्रीय सरकार के नियंत्रण को सीमित कर दिया है. इससे कोयले के इस्तेमाल में कुछ इज़ाफ़ा देखने को मिल सकता है.

चुनौतियां

चीन, अमेरिका, यूरोप और भारत के ऊर्जा बाज़ार मिलकर साल 2021 की कुल उर्जा खपत में 61 फ़ीसद की हिस्सेदारी रखते थे अमेरिका और यूरोप में प्राकृतिक गैस के दाम में साल 2021-22 के दौरान पांच गुने का इज़ाफ़ा हो चुका है. इससे गैस के बजाय कोयले का इस्तेमाल बढ़ रहा है. ये सारे पके पकाए ऊर्जा बाज़ार हैं, जहां पर बिजली की खपत में बहुत उछाल आने की संभावना नहीं है और जीवाश्म ईंधन (गैस और कोयला) के बीच होड़ मुख्य रूप से बाज़ार की ताक़तों के चलते हैं. भारत और चीन ने ऊर्जा बाज़ार को नियंत्रित कर लिया है और उनके कोयले पर अधिक ज़ोर देने की वजह नीतिगत होने के साथ साथ घरेलू स्तर पर कोयले और बिजली की कमी रही है. तमाम देशों की आर्थिक हैसियत और अपने ऊर्जा बज़ारों के नियमन में अंतर के बावजूद, कोयले की तरफ़ झुकता संतुलन ये दिखाता है कि ऊर्जा सुरक्षा और सस्ती दर पर बिजली की उपलब्धता, सभी देशों के लिए महत्वपूर्ण है. जर्मनी की ग्रीन पार्टी के प्रतिनिधि का ये बयान उस कड़वी हक़ीक़त को बयां करता है कि कोयले का इस्तेमाल बढ़ाना ज़रूरी मगर मजबूरी है. कार्बन उत्सर्जन कम करने की राह में ऐसी कड़वी चुनौतियां आएंगी ही और तब जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता बढ़ेगी. मगर, राह के इन कांटों को दूर करने से ही कार्बन उत्सर्जन कम करने के लक्ष्य हासिल किए जा सकेंगे.

Source: BP; * First quarter of 2022
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.

Authors

Akhilesh Sati

Akhilesh Sati

Akhilesh Sati is a Programme Manager working under ORFs Energy Initiative for more than fifteen years. With Statistics as academic background his core area of ...

Read More +
Lydia Powell

Lydia Powell

Ms Powell has been with the ORF Centre for Resources Management for over eight years working on policy issues in Energy and Climate Change. Her ...

Read More +
Vinod Kumar Tomar

Vinod Kumar Tomar

Vinod Kumar, Assistant Manager, Energy and Climate Change Content Development of the Energy News Monitor Energy and Climate Change. Member of the Energy News Monitor production ...

Read More +