Author : Trisha Ray

Expert Speak Digital Frontiers
Published on Jan 18, 2024 Updated 0 Hours ago

जलवायु परिवर्तन, डेटा सेंटर्स पर असर डाल रहा है, जो देश के डिजिटल विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं. इसीलिए, डेटा सेंटर की रणनीतियां बनाते वक़्त, भविष्य में जलवायु में होने वाले बदलावों का हिसाब किताब भी शामिल किया जाना चाहिए

डेटा की संप्रभुता को नष्ट कर सकता है जलवायु में परिवर्तन

डेटा सेंटर किसी भी देश की तकनीकी प्रगति के केंद्र होते हैं. वो सूचना के इस युग के नर्व सेंटर का काम करते हैं. संयुक्त राष्ट्र (UN) के स्थायी विकास के लक्ष्यों (SDGs) में भी डेटा सेंटर के मज़बूत और विश्वसनीय मूलभूत ढांचे की ज़रूरत को रेखांकित किया गया है. ये केंद्र ई-सरकार, इनोवेशन और उद्यमिता, अच्छे काम और आर्थिक प्रगति की बुनियादी ज़रूरत हैं. ऐसे में हैरानी की बात नहीं है कि पिछले एक दशक के दौरान डेटा की संप्रभुता, विशेष रूप से ग्लोबल साउथ के देशों में एक अहम मसला बन गई है. हालांकि, जलवायु परिवर्तन उसी मूलभूत ढांचे के लिए ख़तरा बन गया है, जो डिजिटल भविष्य का आधार है, और डेटा सेंटरों पर जलवायु परिवर्तन का असर बहुआयामी चुनौती है. आज जब विकासशील देश, डेटा केंद्रों को आकर्षित करने के लिए महत्वाकांक्षी रणनीतियां और प्रोत्साहन लागू कर रहे हैं, तो बढ़ते तापमान, भयंकर मौसम की घटनाएं और पर्यावरण के बदलते हालात डेटा केंद्रों की विश्वसनीयता और उनके स्थायित्व के लिए बड़े ख़तरे बन गए हैं.

ऐसा लग रहा है कि कम बिजली की खपत के बावजूद, दुनिया के डेटा केंद्रों की बिजली की भूख शांत करने के लिए पर्याप्त मात्रा में बिजली है ही नहीं. CBRE के ग्लोबल डेटा सेंटर ट्रेंड 2023 की रिपोर्ट में कहा गया है कि, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), स्ट्रीमिंग, स्वचालित कारों और अन्य नई और उभरते हुए तकनीकी उपयोगों की वजह से डेटा केंद्रों में जगह की उपलब्धता में रिकॉर्ड गिरावट दर्ज की गई है.

ऐसे बादल जिनसे बारिश नहीं होती

अगर हम भारत के डेटा सेंटर के सबसे बड़े केंद्र में किसी बहुमंज़िला इमारत की बराबरी करते डेटा केंद्र से गुज़रिए, तो दो चीज़ें स्पष्ट रूप से दिखाई देती हैं: पहला, दुनिया में हमारी जानकारी का प्रवाह और यहां तक कि पल में टूटने वाला ‘क्लाउड’ भी भौतिक मूलभूत ढांचे के भरोसे चलता है, जो प्रक्रियाओं का भंडारण करता है और डेटा को गति देता है. दूसरा, सर्वरों की एक के ऊपर एक बनी क़तारें बेहद गर्म हो जाती हैं.

अमेरिकन सोसाइटी ऑफ हीटिंग, रेफ्रिजरेटिंग ऐंड एयर कंडिशनिंग इंजीनियर्स (ASHRAE) के मुताबिक़ डेटा केंद्रों के संचालन का आदर्श तापमान 65* डिग्री से 80* फारेनहाइट(लगभग 18 से 27 डिग्री सेल्सियस) होना चाहिए. डेटा केंद्रों को माहौल में नमी जैसे पर्यावरण के अन्य पहलुओं को भी नियंत्रित करना पड़ता है. इसकी वजह से डेटा सेंटर भारी तादाद में बिजली और पानी इस्तेमाल करते हैं. 2020 में प्रकाशित एक लेख में डेटा सेंटर के कार्यभार में तेज़ी से हो रही वृद्धि के बारे में कहा गया था कि: केवल आठ वर्षों (2010-18) के बीच डेटा सेंटर का IP दस गुना बढ़ गया है, जो दुनिया की एक फ़ीसद बिजली की खपत का इस्तेमाल करता है- ये थाईलैंड की कुल बिजली की खपत से भी ज़्यादा है. हालांकि, पिछले आठ वर्षों में बिजली की खपत में सुधार आया है. लेकिन, डेटा केंद्रों में बिजली की भारी खपत से दुनिया में ऊर्जा की मांग में 25 प्रतिशत का ज़बरदस्त उछाल आया है. इसके अलावा, डेटा सेंटरों को ठंडा रखने में बहुत पानी और बिजली लगते हैं. इससे उन क्षेत्रों पर दबाव बढ़ता है, जहां जलवायु परिवर्तन के बढ़ते असर की वजह से सूखा पड़ने और पानी की क़िल्लत होने की आशंका बढ़ती जा रही है. अब, ऐसा लग रहा है कि कम बिजली की खपत के बावजूद, दुनिया के डेटा केंद्रों की बिजली की भूख शांत करने के लिए पर्याप्त मात्रा में बिजली है ही नहीं. CBRE के ग्लोबल डेटा सेंटर ट्रेंड 2023 की रिपोर्ट में कहा गया है कि, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), स्ट्रीमिंग, स्वचालित कारों और अन्य नई और उभरते हुए तकनीकी उपयोगों की वजह से डेटा केंद्रों में जगह की उपलब्धता में रिकॉर्ड गिरावट दर्ज की गई है.

इस समय दुनिया की सबसे ज़्यादा डेटा सेंटर की क्षमता उत्तरी अमेरिका में है.[1] लेकिन, पूर्वानुमानों से संकेत मिलता है कि 2020-24 के दौरान एशिया-प्रशांत क्षेत्र का डेटा सेंटर बाज़ार 12.2 फ़ीसद की गति से बढ़ेगा और इसमें से भी दक्षिणी पूर्वी एशिया की डेटा सेंटर की विकास दर 12.9 प्रतिशत रहने वाली है. इसके बाद यूरोप, मध्य पूर्व औऱ अफ्रीका (EMEA) 11.1 प्रतिशत और उत्तरी अमेरिका में डेटा सेंटर की विकास दर 6.4 फ़ीसद रहने वाली है.

तांबे पर निर्मित डेटा संप्रभुता

एशिया प्रशांत क्षेत्र, ख़ास तौर से डेटा सेंटर के स्थापित बड़े केंद्रों जैसे कि सिंगापुर और टोक्यो से बाहर डेटा सेंटर की मांग में बढ़ोत्तरी की एक वजह डेटा की संप्रभुता से जुड़े नियम हैं. इसमें डेटा के स्थानीय स्तर पर भंडारण करने के आदेश- जो कुछ ख़ास सेक्टरों (भारतीय रिज़र्व बैंक का सर्कुलर DPSS.CO.OD.no 2785/06.08.005/2017-18) और कुछ संवेदनशील डेटा के विशेष उप-वर्गों (जैसे कि वियतनाम के साइबर सुरक्षा क़ानून के मुताबिक़ दूरसंचार सेवा देने वालों के डेटा) से जुड़े हैं.

देशों की डेटा सेंटर नीतियां कुछ साझा स्तंभों पर आधारित हैं: ई-गवर्नेंस की विश्वसनीय और मज़बूत सेवाएं; सरकार द्वारा डेटा जुटाने में भरोसा और उनकी सुरक्षा; और इनोवेशन और आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए क्षमता निर्माण एवं संसाधनों का साझा इस्तेमाल करना. बहुत से विकासशील देशों ने डेटा सेंटर की योजनाएं या तो लागू कर दी हैं या फिर वो उन पर विचार कर रहे हैं. इसके या तो वो अलग से नीतियां बना रहे हैं या फिर अपने डिजिटल मूलभूत ढांचे को स्थापित करने के व्यापक प्रोत्साहन के तहत डेटा सेंटरों को बढ़ावा दे रहे हैं.

देश डेटा सेंटर नीतियां और रणनीतियाँ
भारत मेघराज: क्लाउड कंप्यूटिंग पहल; डेटा सेंटर नीति 2020
वियतनाम राष्ट्रीय डेटा सेंटर परियोजना
चीन पूर्वी डेटा, पश्चिमी कंप्यूटिंग योजना (东数西算)2020 राष्ट्रीय एकीकृत बड़े डेटा केंद्र सहयोगी नवाचार प्रणाली के कंप्यूटिंग पावर हब के लिए कार्यान्वयन योजना (2021) नए डेटा केंद्रों के विकास के लिए तीन वर्षीय कार्य योजना (2021 – 2023)
ब्राज़िल डेटा केंद्रों को आकर्षित करने के लिए सार्वजनिक नीति कार्यान्वयन के लिए मसौदा रणनीति
दक्षिण अफ्रीका राष्ट्रीय डेटा और क्लाउड नीति का मसौदा
मलेशिया डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र त्वरण योजना (डीईएसएसी) 2022
मोरक्को डिजिटल विकास के लिए राष्ट्रीय रणनीति 2023
तुर्किये इलेक्ट्रॉनिक संचार क्षेत्र में व्यक्तिगत डेटा के प्रसंस्करण और गोपनीयता की सुरक्षा से संबंधित विनियमन

वैसे तो इनमें से कुछ रणनीतियों में डेटा सेंटरों को बिजली और पानी की अबाध आपूर्ति की ज़रूरत और सब्सिडी देने के प्रस्तावों का तो ज़िक्र है. मगर इनमें से बहुत कम ही ऐसी रणनीतियां होंगी, जो संसाधनों पर संभावित दबाव से निपटने की बातें करते हैं. यही नहीं, इनमें इस बात का भी कोई हवाला नहीं दिया गया है कि तेज़ी से हो रहा जलवायु परिवर्तन इन डेटा केंद्रों के संचालन पर किस तरह असर करेगा.

Figure 1:  चीन में डेटा केंद्रों के मौजूदा और प्रस्तावित समूह

स्रोत: चीन ब्रीफिंग

 

2023 रिकॉर्ड में दर्ज सबसे गर्म साल रहा था. पूरे साल के दौरान भयंकर मौसम की एक के बाद एक कई घटनाएं हुईं, जिन्होंने विश्व अर्थव्यवस्था पर अपनी छाप छोड़ी. चीन में बाढ़ की वजह से उसके अनाज उत्पादन में 2 से 5 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई. इसी दौरान, दक्षिणी अमेरिका को अब तक के रिकॉर्ड में दर्ज सबसे भयंकर सूखे का सामना करना पड़ा. उरुग्वे की राजधानी मोंटे वीडियो में तो पीने का पानी ही ख़त्म हो गया था.

चीन की ईस्टर्न डेटा, वेस्टर्न कंप्यूटिंग योजना का लक्ष्य, मांग में समृद्ध पूर्वी केंद्रों की ज़रूरतें पूरी करने के लिए कम बिजली की खपत वाले डेटा केंद्रों के क्लस्टर बनाए जाने हैं. चीन के डेटा केंद्रों के ये समूह, जिनमें प्रस्तावित डेटा केंद्र भी शामिल हैं, वो नदियों के आस-पास स्थित हैं. चीन की एकेडमी ऑफ साइंसेज़ द्वारा लगाए गए बाढ़ के पूर्वानुमानों के आधार पर कहा जा रहा है कि अगर आने वाले दशक में वैश्विक तापमान 1.5 से 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि वाली रफ़्तार से बढ़ना जारी रहता है, तो इनमें से बहुत से डेटा केंद्रों के बाढ़ का शिकार होने की आशंका है.

Figure 2: चीन में बाढ़ का जोखिम (RCP8.5 की परिस्थिति में ग्लोबल वार्मिंग 1.5 डिग्री सेल्सियस (a,c,e) और 2 डिग्री सेल्सियस (b,d,f) रहने के कारण भयंकर बाढ़ की आशंका (a-b), औसत बाढ़ (c-d) और कम बाढ़ (e-f) के मंज़र. स्रोत)

संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक़, ग्लोबल साउथ के विकासशील देश भी सूखे के शिकार हो सकते हैं. मिसाल के तौर पर, भारत के सूखे की आशंका वाले क्षेत्र, 1997 से 57 प्रतिशत बढ़ चुके हैं. भारत के डेटा केंद्रों का ज़्यादातर मूलभूत ढांचा मुंबई, नई दिल्ली, बैंगलोर, पुणे और चेन्नई में स्थित है, जो सूखे या बाढ़ के जोखिम वाले क्षेत्रों में आते हैं.

क्षितिज पर मंडरा रही बाधाओं को देखते हुए हरित डेटा केंद्रों पर रिसर्च, उठाए जाने वाले आवश्यक क़दमों का एक हिस्सा मात्र है. क्या इन केंद्रों के पास पानी का पर्याप्त भंडार होगा, जो डेटा केंद्रों और वहां रह रहे लोगों की बुनियादी मांग को पूरी कर सके?

ग्लोबल साउथ के देशों में डेटा केंद्रों के इन मूलभूत ढांचों का ज़्यादातर हिस्सा अगले दशकों में काम करना शुरू कर देगा. ऐसे में ये सारे केंद्र संसाधनों की कमी वाले इलाक़ों में काम कर रहे होंगे और उन इलाक़ों में भयंकर बाढ़, गर्मी और सूखे का ख़तरा बना रहेगा.

सुझाव

डेटा की रणनीतियां ये स्वीकार करती हैं कि अधिकार क्षेत्र, वैसे तो महत्वपूर्ण हैं, मगर डेटा की संप्रभुता सुरक्षित करने की ये इकलौती शर्त नहीं है. इसी वजह से बहुत से विकासशील देश, नियमन व्यवस्था को डेटा सेंटर के मूलभूत ढांचे के साथ मज़बूती दे रहे हैं. फिर भी ये नीतियां और रणनीतियां मौजूदा मांग पर कुछ ज़्यादा ही केंद्रित हैं. डेटा संप्रभुता की राजनीति को भविष्य के जलवायु परिवर्तनों के कड़वे सच का सामना करना ही होगा.

क्षितिज पर मंडरा रही बाधाओं को देखते हुए हरित डेटा केंद्रों पर रिसर्च, उठाए जाने वाले आवश्यक क़दमों का एक हिस्सा मात्र है. क्या इन केंद्रों के पास पानी का पर्याप्त भंडार होगा, जो डेटा केंद्रों और वहां रह रहे लोगों की बुनियादी मांग को पूरी कर सके? बहुत से डेटा केंद्र, तुलनात्मक नमी और तापमान को, अमेरिकन सोसाइटी ऑफ हीटिंग, रेफ्रिजरेटिंग ऐंड एयर कंडीशनिंग इंजीनियर्स (ASHRAE) द्वारा दिए गए सुझावों से भी बहुत कम स्तर पर रखते हैं और मेटा द्वारा किए गए अध्ययनों के मुताबिक़, अगर इन मानकों के अनुरूप बदलाव किए जाएं, तो डेटा सेंटर पानी के मामले में 80 प्रतिशत तक कुशलता हासिल कर सकते हैं. माइक्रोसॉफ्ट ने एक डेटा सेंटर को पानी के भीतर चलाने का प्रयोग दो साल तक किया था. इसके नतीजे काफ़ी उत्साहवर्धक रहे थे. लेकिन, इन दोनों ही समाधानों की राह में अपनी चुनौतियां हैं: बिजली-पानी की खपत में कमी, डेटा सेंटर की भारी मांग को कम करने में कोई ख़ास प्रभाव नहीं डाल सकेगी, और पानी के भीतर डेटा सेंटर चलाने पर रख-रखाव और संचालन में बाधा को लेकर अपनी अलग तरह की चुनौतियां हैं. पानी के भीतर स्थित डेटा केंद्रों के सामने किसी दुश्मन देश, नॉन स्टेट एक्टर्स के हमले या फिर प्राकृतिक आपदाओं की वजह से ठप होने के ख़तरे बने रहेंगे.

डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर (DPI) को लेकर विश्व में चल रही मौजूदा परिचर्चाओं में भी स्थायित्व की चिंताओं को सामिल किए जाने का अवसर है. इससे पहले हमने जिन राष्ट्रीय डेटा केंद्रों की नीतियों की ज़रूरत का ज़िक्र किया था, उनके लिए DPI पहला स्तंभ बन सकते हैं, यानी वो डेटा के बेकार के दोहराव को कम करके ई-गवर्नमेंट सेवाओं को विश्वसनीयता और मज़बूती दे सकते हैं. मिसाल के तौर पर भारत की G20 अध्यक्षता में ग्लोबल डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर रिपॉज़िटरी शुरू की गई थी. ये G20 के सदस्य देशों और पर्यवेक्षकों को टिकाऊ तरीक़े से अपने DPI बनाने में मदद का एक खुला स्रोत है. ब्राज़ील की अध्यक्षता में, सूत्र वाक्य, ‘एक न्यायोचित विश्व और टिकाऊ धरती का निर्माण’ के अंतर्गत G20 DPI, स्थायित्व और डेटा की संप्रभुता को आपस में जोड़कर पिरो सकता है.

अंत में, कंपनियों और सरकारों को चाहिए कि वो डेटा सेंटर के पारंपरिक केंद्रों के दायरे से बाहर निकलकर डेटा केंद्रों की क्षमता में निवेश करें, ताकि पर्यावरण की वजह से पैदा होने वाले ख़तरों को वितरित किया जा सके. सब्सिडी जैसे राष्ट्रीय सरकारी प्रोत्साहन, ग़ैर पारंपरिक क्षेत्रों में डेटा सेंटर आकर्षित करने का एक तरीक़ा हो सकते हैं. इस काम को पानी की मांग और भयंकर मौसम की घटनाओं के पूर्वानुमान के साथ पूरा किया जाना चाहिए, ताकि ये नए केंद्र टिकाऊ बन सकें.

डेटा संप्रभुता को मज़बूती देने की नई पहलों पर जलवायु परिवर्तन का गहरा असर पड़ने वाला है, क्योंकि मौसम का उतार-चढ़ाव डेटा सेंटर पर असर डालेगा, जो किसी भी देश के डिजिटल विकास के लिए ज़रूरी हैं. ऐसे में ये महत्वपूर्ण हो जाता है कि डेटा केंद्र की रणनीतियां बनाने में उसके संचालन पर पर्यावरण के असर का भी ध्यान रखा जाए, क्योंकि वो आने वाले दशकों में आज से बिल्कुल अलग होगा.


[1] Northern Virginia is the single largest data center market in the world.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.