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मालदीव की अर्थव्यवस्था पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का बारीक़ी से अध्ययन करने पर उसको बदलाव की ज़रूरतों का पता लगाने और भविष्य के अवसरों की पहचान करने में मदद मिलेगी.
जलवायु परिवर्तन की मौजूदा और भविष्य की चुनौतियों के कारण, छोटे द्वीपीय विकासशील देशों (SIDS) को ‘जलवायु परिवर्तन के हॉट स्पॉट’ कहा जाता है, और ये संकट उनके अस्तित्व के लिए चुनौती है. इंटरगवर्नमेंट पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) के मुताबिक़, जलवायु परिवर्तन का पहला और सबसे गहरा असर छोटे द्वीपीय देशों पर ही पड़ेगा. कहा जा रहा है कि समुद्र के बढ़ते जलस्तर के कारण इनमें से कई देश तो डूब जाएंगे. 2009 में मालदीव के राष्ट्रपति रहे मुहम्मद नशीद ने उस वक़्त, अपने संकट की ओर दुनिया का ध्यान खींचने की जज़्बाती अपील करने के लिए, अपने मंत्रिमंडल की बैठक पानी के नीचे की थी. मदद मांगने की मालदीव की इस प्रतीकात्मक मगर तेज़ और स्पष्ट अपील के लगभग डेढ़ दशक बाद भी छोटे द्वीपीय देश अभी अपनी क़िस्मत के प्रति दुनिया का ध्यान खींचने के लिए संघर्ष ही कर रहे हैं.
मालदीव के लोग अपनी रोज़ी रोटी के लिए पर्यटन और मत्स्य उद्योग जैसे उन क्षेत्रों पर बहुत अधिक निर्भर हैं, जिन पर जलवायु परिवर्तन का सीधा असर पड़ना है. ऐसे में जलवायु परिवर्तन के प्रति मालदीव बेहद कमज़ोर स्थिति में है. इसीलिए, मालदीव की अर्थव्यवस्था पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का अध्ययन करना बेहद ज़रूरी है.
संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) के पूर्वानुमानों के मुताबिक़, समुद्र के स्तर में 0.5 से 0.8 मीटर की बढ़ोत्तरी का मतलब ये होगा कि साल 2100 तक मालदीव की ज़्यादातर ज़मीन पानी के नीचे होगी. चूंकि मालदीव, दुनिया के सबसे निचले इलाक़े में स्थित देश है और इसकी मुख्य भूमि के क़रीब कोई और देश नहीं है. वहीं, इसकी आबादी बेहद घनी है और मालदीव के लोग अपनी रोज़ी रोटी के लिए पर्यटन और मत्स्य उद्योग जैसे उन क्षेत्रों पर बहुत अधिक निर्भर हैं, जिन पर जलवायु परिवर्तन का सीधा असर पड़ना है. ऐसे में जलवायु परिवर्तन के प्रति मालदीव बेहद कमज़ोर स्थिति में है. इसीलिए, मालदीव की अर्थव्यवस्था पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का अध्ययन करना बेहद ज़रूरी है. क्योंकि, इससे उसकी अर्थव्यवस्था के अलग अलग क्षेत्रों को बदली परिस्थितियों के हिसाब से तालमेल बिठाने की ज़रूरतों और मौजूदा उपायों की उपयोगिता का पता लगाने के साथ साथ भविष्य में उठाए जाने वाले क़दमों और अवसरों का पता लगेगा.
जलवायु परिवर्तन, मालदीव की अर्थव्यवस्था के प्राथमिक, द्वीतीय और तृतीय क्षेत्रों पर असर डाल रहा है, जिसके सामाजिक आर्थिक और सांस्कृतिक असर भी पड़ रहे हैं. पर्यटन और मत्स्य उद्योग मिलकर मालदीव की कुल GDP में 40 प्रतिशत का योगदान करते हैं, और इनमें देश की 70 फ़ीसद आबादी को रोज़गार मिला हुआ है. ये दोनों ही सेक्टर जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव के प्रति नाज़ुक स्थिति में हैं, क्योंकि मालदीव का 70 से 90 प्रतिशत पर्यटन और मछली पकड़ने का काम, तट से 100 मीटर के दायरे में होता है. तट के नज़दीक होने के कारण, व्यापार और परिवहन के मूलभूत ढांचों कोर भी समुद्र का स्तर बढ़ने, चक्रवातों और पानी भरने से ख़तरा है. इन मूलभूत ढांचों को होने वाली क्षति से GDP को तो नुक़सान होता ही है, इनके पुनर्निर्माण में भी भारी लागत आती है.
निचले इलाक़ों में पानी भरने, नमकीन पानी आ जाने, बेवक़्त बारिश होने और परिवहन एवं संचार के रास्तों को नुक़सान से खाद्य सुरक्षा पर भी बुरा असर पड़ता है, इसके अलावा, मालदीव में कुछ गिनी-चुनी फ़सलों की ही खेती होती है. इसी वजह से मालदीव अपने खान-पान के लिए आयात पर बहुत बुरी तरह निर्भर है. फ़सलों को नुक़सान से महिलाओं की रोज़ी-रोटी पर बुरा असर पड़ेगा, जिससे वो और ज़्यादा हाशिए पर चली जाएंगी. इसी तरह मालदीव की विदेशी मुद्रा आमदनी का एक बड़ा ज़रिया टूना मछली, उसके कुल मछली निर्यात का 90 प्रतिशत है. ये मछली भी तापमान में उतार-चढ़ाव के प्रति संवेदनशील है.
जनता से मदद या सब्सिडी की मांग बढ़ी तो सरकार की कर राजस्व से आमदनी कम होगी और उसके ख़ज़ाने को भी चोट पहुंचेगी, जिससे रोज़गार पैदा करने में मुश्किलें आएंगी. मालदीव के बीच में स्थित नमकीन पानी के लगून वाले अंगूठी के छल्ले जैसे द्वीप या एटॉल, पर्यटन के बड़े केंद्र हैं, जो मालदीव की ज़्यादातर आबादी को रोज़गार मुहैया कराते हैं और देश के लगभग 40 प्रतिशत ग़रीब लोग वहीं रहते हैं. इसके बाद, रोज़गार में संभावित कमी से देश के संसाधनों पर दबाव और बढ़ जाएगा. जबकि मालदीव पहले से ही दूसरों पर बुरी तरह निर्भर आबादी के बोझ का शिकार है और ये बाद कोविड-19 महामारी के दौरान साफ़ दिखी थी. इसके अतिरिक्त, सेकेंडरी स्तर की पढ़ाई पूरी करने वालों की बेहद कम संख्या होने के कारण, बहुआयामी ग़रीबी और सीमित संसाधानों पर बोझ और बढ़ जाएगा.
इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन ने विदेशी मदद से बनाई जा रही मूलभूत ढांचे की प्रमुख परियोजनाओं जैसे कि ग्रेटर माले कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट (GMCP), सिनामले ब्रिज, हानिमाधू इंटरनेशन एयरपोर्ट और फिनोलहु द्वीप पर रिज़ॉर्ट के विकास वग़ैरह से होने वाली आमदनी के लिए भी ख़तरा पैदा कर दिया है. इन परियोजनाओं से नुक़सान हुआ, तो मालदीव ने इनकी वजह से जो क़र्ज़ लिया है, वो लोन चुकाने में भी उसको दिक़्क़त होगी और फिर भविष्य में निवेश पर भी बुरा असर पड़ेगा. मूलभूत ढांचे के विकास की इन परियोजनाओं से होने वाली आमदनी को लेकर जो सवाल उठे हैं, उससे जोखिम भरे इलाक़ों में निवेश के बीमा कराने में भी मुश्किलें पेश आएंगी. हालांकि, इन नकारात्मक प्रभावों के बावजूद, अगर हालात से तालमेल बिठाने और दुष्प्रभाव कम करने के लिए उपाय किए जाएं, तो मालदीव पर जलवायु परिवर्तन के बुरे असर को कम किया जा सकता है.
मालदीव का पर्यटन उद्योग जलवायु परिवर्तन के हिसाब से ख़ुद को ढालने के लिए कड़े क़दम भी उठा रहा है और कुछ नरम भी. 2011 में संयुक्त राष्ट्र के शैक्षणिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) ने मालदीव के बा एटॉल को जैविक संरक्षित क्षेत्र घोषित कर दिया था, ताकि वहां की मूंगे की चट्टानों और जैव विविधता की रक्षा की जा सके. इसके बाद, मालदीव के पर्यटन उद्योग में काफ़ी उछाल आया था. जलवायु परिवर्तन के ख़िलाफ़ लड़ाई में तालमेल बिठाने के उपायों की बात करें या फिर लचीलापन बढ़ाने का मामला हो, मालदीव में नीति और ज़मीनी हक़ीक़त में बहुत बड़ा अंतर देखने को मिलता है. इसे पाटने के लिए मालदीव को औद्योगिक क्षेत्रों के साथ साथ विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF), विश्व व्यापार संगठन (WTO), संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) और वैश्विक पर्यावरण सुविधा (GEF) जैसे बहुपक्षीय संगठनों वित्तीय सहयोग की ज़रूरत है, मगर इससे उस पर अंतरराष्ट्रीय क़र्ज़ बढ़ जाएगा.
इसी तरह, मालदीव ने मछली पकड़ने के उद्योग के लिए, ‘जाल, रॉड या लाइनों’ के इस्तेमाल को रोकने की नीति लागू की है और हर दिन पकड़ी जा सकने वाली मछलियों की तादाद भी तय कर दी है. मालदीव ने आस-पास के समुद्री इलाक़े में मछलियों की तादाद टिकाऊ स्तर पर लाने के लिए इंडियन ओशन टूना कमीशन की सदस्यता भी ली है और उसने समुद्र में लगातार घट रही स्किपजैक टूना मछलियों की मात्रा को संरक्षित करने और उनके प्रबंधन के लिए एक प्रस्ताव भी अपनाया है. मछली पकड़ने वाले जहाज़ों को मछलियों की तलाश करने और परेशानी में पड़े जहाज़ों का पता लगाने के लिए विश्व बैंक तकनीकी सहायता देने में पूंजी लगा रहा है. इसी तरह किसान अब ऑर्गेनिक फार्मिंग, बारिश की मदद से खेती, जलवायु परिवर्तन से निपटने वाली फ़सलों, साया करने वाले जालों और बर्तन में उगाई जा सकने वाली फ़सलों जैसे उपाय अपना रहे हैं.
ग्रीन स्मार्ट आईलैंड पायलट प्रोजेक्ट जैसी परियोजनाएं, ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा देती हैं और ऑर्गेनिक खाद इस्तेमाल करने को लेकर जनता के बीच जानकारी और जागरूकता को बढ़ाती हैं. मत्स्य उद्योग और कृषि क्षेत्रों कीबदली परिस्थितियों के हिसाब से ढालने की क्षमता का मूल्यांकन करने पर पता चला है कि कम जानकारी और जागरूकता से मछली पकड़ने वालों और किसानों की बदलाव अपनाने की क्षमता सीमित हो जाती है. इसीलिए, बहुत से समुदाय अस्थायी और मौसमी के साथ साथ बार बार अप्रवास जैसे उपायों से ख़ुद को ढाल रहे हैं. मगर ये उपाय अपनाना सबके लिए मुमकिन नहीं है.
मालदीव की बड़ी परेशानियों में सरकार की पूंजी लगाने की सीमित क्षमता, भागीदारी को लेकर निजी क्षेत्र में दिलचस्पी की कमी, प्रतिबद्धता का अभाव और अंतरराष्ट्रीय पूंजी जुटाने की कम क्षमता है.
इसके अतिरिक्त मालदीव ने पहले और दूसरे राष्ट्रीय संचार (SNC) जैसे उपाय अपनाए हैं, जिन्हें जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र की रूप-रेखा संधि (UNFCCC) को 2001 में सौंपा गया था. और, 2016 में ये उपाय नेशनल एडैप्टेशन प्रोग्राम ऑफ़ एक्शन (NAPA और मालदीव क्लाइमेट चेंज पॉलिसी फ्रेमवर्क (MCCPF) के सामने रखे गए थे. कोरल रीफ रिसर्च प्रोग्राम, एटॉल इकोसिस्टम कंज़र्वेशन प्रोजेक्ट, मरीन रिसर्च सेंटर और नेशनल डिज़ास्टर मैनेजमेंट सेंटर (NDMC) भी जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों के समाधान पर काम कर रहे हैं. हालांकि, मालदीव की बड़ी परेशानियों में सरकार की पूंजी लगाने की सीमित क्षमता, भागीदारी को लेकर निजी क्षेत्र में दिलचस्पी की कमी, प्रतिबद्धता का अभाव और अंतरराष्ट्रीय पूंजी जुटाने की कम क्षमता है.
बदलाव के हिसाब से ढालने की कोशिशों को कारगर बनाने के लिए मालदीव, एकीकृत राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय नज़रिया अपनाकर इन कमियों को दूर कर सकता है
मौजूदा नीतियों और परिवर्तन के हिसाब से ढालने की कोशिशों के बीच की खाई पाटने के लिए जो एकीकृत नज़रिया अपनाया जाए, उसमें ये बातें भी शामिल होनी चाहिए:
-वित्तीय और तकनीकी क्षमता बढ़ाने के लिए अन्य देशों के साथ और संस्थाओं के बीच सहयोग को बढ़ावा देना. मिसाल के तौर पर, जापान, UNDP और मालदीव के बीच टिकाऊ खेती के मामले मे सहयोग ने मालदीव में ऑर्गेनिक खेती की संभावनाओं में काफ़ी सुधार आया है.
राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सहयोग और बेहतरीन उदाहरणों का इस्तेमाल करने वाले एकीकृत दृष्टिकोण को अपनाने से जलवायु परिवर्तन के प्रभाव कम करने और नए हालात के हिसाब से तालमेल बिठाने के बेहतर समाधान निकल सकेंगे. मौजूदा आर्थिक जोखिमों, तालमेल बिठाने के उपायों और छोटे द्वीपीय देशों की नीतिगत पहलों के प्रभावी होने का मूल्यांकन, आगे की दशा दिशा तय करने में मार्गदर्शन दे सकता है. संयुक्त राष्ट्र द्वारा हाल ही में अपनाए गए ‘ऐतिहासिक प्रस्ताव’ में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) से कहा गया है कि वो जलवायु परिवर्तन पर एडवाइज़री जारी करे. ये ऐतिहासिक क़दम विकासशील देशों की पर्यावरण कूटनीति की सफलता का सकारात्मक संकेत है. ICJ की एडवाइज़री एक मिसाल बनेगी, और जलवायु परिवर्तन के प्रति दुनिया का ध्यान खींचने और सहयोग जुटाने की कोशिश कर रहे छोटे द्वीपीय देशों (SIDS) देशों के लिए एक नई उम्मीद साबित होगी.
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