Author : Sujan R. Chinoy

Expert Speak Raisina Debates
Published on Jan 02, 2024 Updated 0 Hours ago

अपने इतिहास और स्वभाव को देखते हुए भारत को, सेना और असैन्य मिलाप, संयुक्तिकरण और एकीकरण के लिए अनूठी संरचनाएं बनाने पर ज़ोर देना चाहिए.

आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य की ओर एक मज़बूत कदम;  ‘सैनिक – नागरिक तालमेल’!

आज भारत अपने यहां चल रहे सैन्य सुधारों के बेहद निर्णायक मोड़ पर खड़ा है. ये सुधार भारत के सैन्य बलों के काम-काज का बेहतर एकीकरण करेंगे. सैन्य बलों के बीच सच्ची एकरूपता तभी हासिल की जा सकती है, जब हर स्तर पर बेहतर एकीकरण हो. फिर चाहे वो सैन्य बलों का अपना अंदरूनी तालमेल हो, उनके बीच आपसी समन्वय हो या फिर समाज के साथ उनका तालमेल. इससे जुड़ी पांच बुनियादी बातें हैं:

  1. तीनों सेनाओं के काम-काज और उनके संसाधनों का एकीकरण

  2. सैन्य बलों और सरहद की निगरानी करने वाले अर्धसैनिक बलों जैसे कि सीमा सुरक्षा बल (BSF), भारत तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) सशस्त्र सीमा बल (SSB) और असम राइफल्स के मक़सद समान हों और उनके बीच आपस में बिना किसी बाधा के तालमेल हो.

  3. सैन्य बलों और इनके अंतिम उपभोक्ता और भारत के रक्षा निर्माण उद्योग के बीच समरूपता हो. ख़ास तौर से रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) और डिपार्टमेंड ऑफ डिफेंस प्रोडक्शन के अंदर आने वाली, रक्षा क्षेत्र की अन्य सरकारी कंपनियां.

  4.  स्वदेश में बने रक्षा उपकरणों के अंतिम उपभोक्ता और इसे बनाने वाले उद्योग के साथ साथ इस पर रिसर्च करने वाले अकादेमिक क्षेत्र के बीच भी एक तालमेल होना चाहिए. क्योंकि अब रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर भारत का लक्ष्य हासिल करने की कोशिशों में अब ये सब भी बराबर के भागीदार बन रहे हैं.

  5. सैन्य और अर्धसैनिक बलों का एक साझा विज़न और उनके काम का असैन्य नौकरशाही के साथ भी तालमेल होना चाहिए, ताकि 2047 तक विकसित भारत (भारत को विकसित देश का दर्जा दिलाने) का लक्ष्य हासिल किया जा सके.

एक इंटीग्रेटेड या एकीकृत ढांचा बना पाना शायद ज़्यादा कठिन होता है, क्योंकि इसके लिए मौजूदा ढांचे की संरचना में बदलाव लाने की ज़रूरत होती है, ताकि एक दूसरे से मिली हुई और साझा चेन ऑफ कमांड बनाई जा सके, जिसके लिए थिएटर कमान बनाने का प्रस्ताव दिया गया है.

आज ज्वाइंटनेस और इंटीग्रेशन जैसे शब्दों का इस्तेमाल एक दूसरे की जगह भी किया जाता है. हालांकि, इन दोनों शब्दों के बीच फ़र्क़ है. ज्वाइंटनेस का मतलब शायद अलग अलग सेवाओं के ढांचों के बीच सहयोग और मिलकर काम करने से है, ताकि किसी ख़ास काम या अभियान में कुशलता लाकर उसे और प्रभावी बनाया जा सके. एक इंटीग्रेटेड या एकीकृत ढांचा बना पाना शायद ज़्यादा कठिन होता है, क्योंकि इसके लिए मौजूदा ढांचे की संरचना में बदलाव लाने की ज़रूरत होती है, ताकि एक दूसरे से मिली हुई और साझा चेन ऑफ कमांड बनाई जा सके, जिसके लिए थिएटर कमान बनाने का प्रस्ताव दिया गया है.

सैन्य बलों को थिएटर में बांटना

2019 में चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) को सैन्य बलों के एकीकरण की जो ज़िम्मेदारी दी गई थी, उसी से सुधारों की व्यापकता और दायरे का अंदाज़ा लगता है. ये ऐसा काम था, जिसमें कोई भी बड़ा बदलाव करने के लिए तीनों सेनाओं की सहमति हासिल करनी ज़रूरी थी. ये बात थिएटर कमान स्थापित करने पर ख़ास तौर से लागू होती थी.

अब सुधार प्रक्रिया का एक मोटा मोटी खाका उभरकर सामने आने लगा है. इसमें ख़ास भौगोलिक इलाक़ों के लिए थिएटर कमान बनाने की संभावना भी शामिल है, जिससे भारत की विशाल समुद्री सीमा के साथ साथ, देश की उत्तरी और पश्चिमी सीमाओं पर ख़तरों से निपटना जा सके.

प्रक्रिया की जटिलताओं को देखते हुए ज़ाहिर है कि तीनों सेनाओं के नज़रिए में फ़र्क़ तो होगा ही. इस मामले पर हुई सार्वजनिक परिचर्चाओं ने इस काम को और भी मूल्यवान बना दिया है. इससे तमाम तरह के विचारों और राय को देखकर किसी नतीजे पर पहुंच पाने में मदद मिलती है.

सैन्य बलों के एकीकरण के मामले में मानवीय संसाधनों का पहलू वास्तविक भी है और प्रासंगिक भी. सैन्य बलों के पदाधिकारियों का ढांचा, तीनों ही सैन्य बलों के बीच सबसे गहरा पिरामिड वाला ढांचा है. सभी तीनों सेनाओं का अपना शानदार इतिहास और संस्कृति रही है. मिसाल के तौर पर वायुसेना एक सहयोगी शाखा होने के बजाय उतनी ही ताक़तवर लड़ाकू सेना है, जितने बाक़ी के दो सैन्य बल हैं. बहुत से लोगों ने ये सवाल उठाया है कि अगर 1962 में तत्कालीन सरकार ने चीन के साथ युद्ध में वायुसेना की हमले की क्षमता का इस्तेमाल किया होता, तो शायद नतीजा कुछ और होता. 

किसी भी संरचनात्मक बदलाव का असल इम्तिहान तो क़ुदरती तौर पर यही होगा कि क्या इससे चेन ऑफ कमांड को छोटा करके और निर्णय प्रक्रिया को तेज़ करके अभियान को अधिक असरदार बनाया जा सकता है.

सैन्य बलों के बेहद ख़राब ‘टूथ टू टेल’ अनुपात को बहुत से जानकारों ने रक्षा सुधारों के मामले में चिंता का एक बड़ा विषय बताया है. दिसंबर 2015 में INS विक्रमादित्य पर हुए कमांडर्स कांफ्रेंस में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि भारत, समरूपता को बढ़ावा देने के लिए सैन्य भलों के भीतर सुधार करने के मामले में काफ़ी धीमा साबित हुआ है. ‘टूथ टू टेल’ अनुपात कम करने की मांग भी काफ़ी ज़ोर-शोर से उठी थी. थलसेना अध्यक्ष के तौर पर जनरल बिपिन रावत ने सेना ‘सही आकार में लाने’ की ज़रूरत पर काफ़ी बल दिया था. जनरल रावत ने कहा था कि ‘हमारे ऊपर तनख्वाह देने का बोझ जितना ही कम होगा, उतना ही आधुनिकीकरण का बजट आवंटन बढ़ जाएगा.’ सैनिकों द्वारा मल्टीटास्किंग करने और तकनीकी आधुनिकीकरण के ज़रिए सैनिकों के युद्ध लड़ने की क्षमता को ‘अधिकतम स्तर तक’ ले जाने के विचार काफ़ी अहम हैं.

तकनीक़ में आ रहे तेज़ बदलावों की वजह से, हमारे सैन्य बलों की ज़िम्मेदारी लगातार चुनौतीपूर्ण होती जा रही है. इंटेलिजेंस, सर्विलांस और रिकॉन (ISR) की भूमिका आधुनिक युद्धों में इंटरनेट पर केंद्रित क्षमताएं बढ़ती जा रही हैं. इसी तरह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), बियोंड विज़ुअल रेंज हथियारों, ड्रोन और खलल डालने वाली तकनीकों की महत्ता भी बढ़ती जा रही है.

दिसंबर 2015 में INS विक्रमादित्य पर हुए कमांडर्स कांफ्रेंस में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि भारत, समरूपता को बढ़ावा देने के लिए सैन्य भलों के भीतर सुधार करने के मामले में काफ़ी धीमा साबित हुआ है.  

युद्ध लड़ने के आधुनिक तौर-तरीक़ों में तकनीक़ के बहुत व्यापक असर को देखते हुए, ज़्यादातर बड़ी सेनाएं, अपने सैन्य बलों का आकार कम कर रही हैं. भारत के मामले में मानव संसाधनों और तकनीकों के बीच बहुत सावधानी से संतुलन बनाने की ज़रूरत है. हमें इस बात का ख़ास तौर से ध्यान रखना होगा कि भविष्य में किस तरह के मोर्चे पर युद्ध लड़े जाएंगे. इसके अलावा दुश्मन देश द्वारा ग्रे-ज़ोन की गतिविधियां चलाने का भी ध्यान रखना होगा. हमारे सैन्य बलों को चाहिए कि वो अपने सदस्यों के बीच पोस्टिंग की लंबी अवधि के ज़रिए उच्च तकनीक़ के मोर्चे पर विशेषज्ञता हासिल करने को बढ़ावा दें. ख़ास तौर से साइबर, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डीप टेक के मामले में.

सुधारों के ज़रिये एकीकरण

आज सैन्य बलो के बीच मौजूदा तालमेल से आगे बढ़कर और अधिक सिनर्जी क़ायम करने की प्रक्रिया चल रही है. इंटीग्रेटेड डिफेंस स्टाफ मुख्यालय के तहत तीनों सेनाओं के कई प्रशिक्षण केंद्रों को मिलाकर एक किया जा रहा है. अब इसके साथ साथ लॉजिस्टिक के भी कई केंद्रों का एकीकरण किया जा रहा है. इसके समानांतर भारत सरकार ने सैन्य बलों में महिलाओं की भूमिका को भी काफ़ी बढ़ा दिया है.

हाल ही में सैन्य बलों ने भर्ती के लिए अग्निवीर योजना की भी शुरुआत की है. इस पहल से तीनों सेनाओं को गुणवत्ता के मामले में बढ़त हासिल होगी. इसके साथ साथ, सेना में अपनी सेवा पूरी कर चुके लोगों के ज़रिए, भारत के सैन्य बलों की पहचान बन चुके सैन्य व्यवहार, अनुशासन और ‘स्वयं से पहले सेवा’ के सूत्र वाक्य, समाज का भी हिस्सा बनेंगे. इस तरह सामाजिक ताना-बाना भी मज़बूत होगा. ये भी एक तरह की संयुक्तता ही है, जो सैन्य बलों और नागरिकों के बीच मिलाप कराएंगे.

इसी तरह नेशनल कैडेट कोर (NCC) भी सेना और नागरिकों के बीच जुड़ाव को बढ़ाने में योगदान देता है. ख़ास तौर से कमज़ोर सरहदी इलाक़ों में NCC का विस्तार सुरक्षा को बढ़ावा देगा.

भारत के संदर्भ में सीमा की सुरक्षा में लगे बल महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. BSF और ITBP को कई बार सेना के साथ भी तैनात किया जाता है. कई इलाक़ों में ये अर्धसैनिक बल एकीकृत कमान संरचना के अंतर्गत काम करते हैं, जैसे कि नियंत्रण रेखा पर तैनात BSF की टुकड़ियां. सेना और ITBP लद्दाख में मिलकर गश्त लगाते हैं. हमारी कोशिश होनी चाहिए कि एक सीमा विशेष पर तैनात तमाम बलों और उनके कर्मचारियों के बीच सूचना के प्रवाह, प्रशिक्षण और संसाधनों के मामले में समरूपता को मज़बूत किया जाए. भारतीय नौसेना और तट रक्षक बल के बीच, अभियान चलाने के मामले में बहुत आला दर्ज़े का तालमेल होता है. दोनों बल आपस में संसाधन भी साझा करते हैं, जैसे कि एयर स्टेशन, डॉकयार्ड, जेटी और मानव संसाधन का आपस में मिलककर इस्तेमाल करते हैं. उन्होंने अपनी अलग अलग भूमिकाओं और ज़िम्मेदारियों के बावजूद तालमेल की व्यवस्थाएं स्थापित की हैं.

रक्षा उत्पादन के मामले में संयुक्तता

संयुक्तता लाने और भारत के संदर्भ में नए तरह का एकीकरण लाने की ज़रूरत का एक और क्षेत्र रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भर बनने का लक्ष्य भी है. हाल ही में भारत सरकार ने DRDO की कुशलता बढ़ाने के लिए एक समीक्षा समिति का गठन किया है. इस संगठन ने पिछले कई दशको में बहुत शानदार काम किया है. लेकिन, संसाधनों के अंतिम उपभोक्ताओं की संतुष्टि वाले हथियार बनाने, उद्योग और अकादेमिक क्षेत्र के बीच तालमेल में सुधार लाने की गुंजाइश बनी हुई है.

रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भर भारत बनने का मतलन, ख़ुद से सारी ज़रूरतें पूरी करना नहीं है. ये कोई तार्किक क़दम नहीं होगा कि हम विदेशी साझीदारों के साथ तालमेले के लिए अपने दरवाज़े बंद कर लें इसका मतलब ये है कि भारत रक्षा संसाधनों के मामले में कुछ आत्मनिर्भरता हासिल कर ले. ख़ास तौर से उन मामलों में, जिनमें भारत विदेश से उन रक्षा उपकरणों के आयात पर बहुत अधिक निर्भर है, जो ख़ासे महंगे हैं और जिनकी आपूर्ति श्रृंखला पर किसी एक देश का दबदबा होने का डर है, जिससे वो देश इसमें हेरा-फेरी करके भारत को आपूर्ति को बाधित कर सकने की स्थिति में है.

भारत के रक्षा क्षेत्र के निर्यात को सालाना पांच अरब डॉलर करने का लक्ष्य निर्धारित किया है. जबकि अभी ये दो अरब ड़ॉलर सालाना से भी कम है. एक अहम बिंदु इस बात की ज़रूरत है कि हमारे सैन्य बल भारत में बने हथियारों पर अधिक विश्वास जताएं. 

रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भर बनने का मतलब, ऐसी आत्मनिर्भरता है, जो हमारी सामरिक स्वायतत्ता को बढ़ावा देती है. एक ऐसी आत्मनिर्भरता जो हमारे रक्षा उद्योग का मूल्य बढ़ाती है, हमारी रक्षा ज़रूरतों को तेज़ी के साथ पर्याप्त मात्रा में पूरा करती है और भारत को वैश्विक रक्षा आपूर्ति श्रृंखलाओं में अधिक प्रतिद्वंदी बनाती है, जिसमें भारत का हथियारों का निर्यातक बनना भी शामिल है. भारत के रक्षा क्षेत्र के निर्यात को सालाना पांच अरब डॉलर करने का लक्ष्य निर्धारित किया है. जबकि अभी ये दो अरब ड़ॉलर सालाना से भी कम है. एक अहम बिंदु इस बात की ज़रूरत है कि हमारे सैन्य बल भारत में बने हथियारों पर अधिक विश्वास जताएं. इससे भारत का रक्षा उत्पादन वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में तेज़ी से शामिल हो सकेगा.

भारत को एक नई तरह की आत्म निर्भरता की भी ज़रूरत है, जिसमें हमारे रक्षा अनुसंधान की प्रयोगशालाएं और उद्योग ख़ुद अपनी बौद्धिक संपदा (IP) का विकास करें जिसमें दोहरे इस्तेमाल वाली तकनीकों के विकास के ज़रिए छोटे, मध्यम और लभु उद्योगों ही नहीं, बड़े उद्योगों और अकादेमिक क्षेत्र को भी फ़ायदा होगा. बौद्धिक संपदा के साधा विकास या मालिकाना हक़ के बग़ैर, उत्पादन के लिए तकनीक़ मिलने के लाभ बेहद सीमित हैं.

निष्कर्ष

भारत के सामने अनूठी चुनौतियां हैं. जैसे कि सीमा के अनसुलझे विवाद, सीमा पार से आतंकवाद, कमज़ोर सीमाओं से घुसपैठ और इंसानों, हथियारों और ड्रग्स की अवैध तस्करी. हमारे सैन्य बल हमारी महाद्वीपीय सीमा, वायु सीमा और बेहद विशाल समुद्री सरहद की रक्षा करने और उसे चुनौतियों और ख़तरों से मुक्त रखने के लिए प्रशिक्षित हैं. उन्हें अधिकतम कुशलता, पर्याप्त संसाधनों और अभियान की ठोस संरचना के साथ काम करने की ज़रूरत है. जिसके लिए उन्हें अर्धसैनिक बलों और सिविलियन ब्यूरोक्रेसी के साथ मिलकर काम करने की आवश्यकता है.

अपने इतिहास और स्वभाव को देखते हुए भारत को, सेना और असैन्य मिलाप, संयुक्तिकरण और एकीकरण के लिए अनूठी संरचनाएं बनाने पर ज़ोर देना चाहिए.

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