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Published on Feb 25, 2025 Updated 0 Hours ago

ट्रंप की ओर से टैरिफ को लेकर दी जा रही चेतावनी पर चीनी प्रतिक्रिया तेज होती जा रही है. बीजिंग ने भी रणनीतिक उपायों का रास्ता अख़्तियार करते हुए जवाब दिया है. ऐसे में संकेत मिल रहे है कि वैश्विक सत्ता तथा आर्थिक तनावों में वृद्धि होगी.

ट्रंप के टैरिफ नीति को लेकर चीन की प्रतिक्रिया

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एक फरवरी को यूनाइटेड स्टेट्‌स (US) के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कनाडा, मैक्सिको तथा चीन के उत्पादों पर अतिरिक्त टैरिफ (शुल्क) लगाने वाले एक कार्यकारी आदेश पर हस्तारक्षर कर दिए. हालांकि कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिट ट्रुडो एवं मैक्सिको की राष्ट्रपति क्लाउडिया शेनबौम पार्डो से तीन फरवरी को बातचीत होने के बाद उन्होंने इन दोनों देशों के उत्पादों पर अतिरिक्त टैरिफ लगाने का फ़ैसला एक माह के लिए टालने पर ट्रंप ने सहमति जता दी. इस बात की उम्मीद की जा रही थी कि चीनी तथा अमेरिकी नेताओं के बीच इसी दिन बातचीत हो जाएगी. लेकिन यह बातचीत नहीं हो सकी. चार फरवरी को ट्रंप ने कहा कि वे जल्दबाजी में नहीं है और ‘सही वक्त’आने पर वे चीनी नेता से बात करेंगे. चीन ने इसी दिन जवाबी कदम उठाने की घोषणा करते हुए ट्रंप की ओर से लगाए गए टैरिफ पर अपनी प्रतिक्रया दे दी. पहले उसने US में निर्मित एवं निर्यात होने वाले 80 उत्पादों पर 10-15 प्रतिशत का अतिरिक्त टैरिफ लगाने की घोषणा की. इसके अलावा उसने PVH Corp. तथा Illumina Inc. (इल्यूमिनिया इंक.) जैसी US की कंपनियों को अनरिलायेबल एंटिटी अर्थात अविश्वसनीय इकाई वाली सूची में डाल दिया. इसके साथ ही चीन ने अहम खनिज जैसे टंगस्टन, टेलीरियम, बिसमुत, मोलीबेडेनम तथा इडियम के आयात पर नियंत्रण करने वाले नियमों को और भी कड़ा कर दिया. चीन ने Google Inc. (गुगल इंक) के ख़िलाफ़ चीन के एंटी मोनोपली कानून यानी एकाधिकार विरोधी कानून का उल्लंघन करने के मामले को लेकर जांच भी शुरू कर दी. इतना ही नहीं उसने वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइजेशन में US के ख़िलाफ़ आधिकारिक रूप से मुकदमा भी दायर कर दिया.

चार फरवरी को ट्रंप ने कहा कि वे जल्दबाजी में नहीं है और ‘सही वक्त’आने पर वे चीनी नेता से बात करेंगे. चीन ने इसी दिन जवाबी कदम उठाने की घोषणा करते हुए ट्रंप की ओर से लगाए गए टैरिफ पर अपनी प्रतिक्रया दे दी.


चीन के वर्चस्व को मानने के लिये बाध्य US

पिछले कुछ महीनों में चीन के नीति हलकों में 'काउंटर-सैंक्शन' अर्थात प्रतिबंध प्रतिकार एक आम तौर पर बोला जाने वाला शब्द बन गया है. दिसंबर 2024 में बाइडेन प्रशासन ने बड़े पैमाने पर चीन को निर्यात की जाने वाली चिप पर प्रतिबंध लगा दिया था. इसके जवाब में चीन ने भी US को निर्यात होने वाले अहम कच्चे माल जैसे गैलियम, जर्मेनियम, एंटीमोनी और ग्रेफाइट पर कड़े नियंत्रण लागू कर दिए थे. इसके अलावा उसने US की कंपनियों एनवीडिया, लॉकहीड मार्टिन मिसाइल्स और फायर कंट्रोल पर अलग अलग कारणों से कार्रवाई की थी. चीनी विद्वानों का मत है कि इस तरह के कड़े कदम उठा कर चीनी सरकार ने ट्रंप 2.0 के परिप्रेक्ष्य में अपने रुख़ को पुख़्ता रूप से तय कर दिया है.

दूसरी और चीन की सरकारी मीडिया इस बात को लेकर ढिंढोरा पीटने में लगी हुई है कि चीन ने विभिन्न डिस्रप्टिव टेक्नोलॉजीज यानी क्रांतिकारी तकनीकों में अहम सफ़लता हासिल कर ली है. इसमें सिक्स्थ जेनरेशन फाइटर जेट्स, टाइप 076 अंफीबियस असॉल्ट शिप, द KJ-3000 अर्ली वार्निंग एयरक्राफ्ट, होंगकी - 19 मिसाइल डिफेंस सिस्टम तथा एक नई लेसर आधारित रडार तकनीक का समावेश है जो 1,000 मीटर की गहराई में भी पनडुब्बी की शिनाख़्त कर सकती हैं. सरकारी मीडिया इसे चीन के बढ़ते वैज्ञानिक और तकनीकी रसूख के रूप में पेश कर रहा है. बीजिंग से निकल कर आने वाला संदेश एकदम साफ़ है. फ़ुडन विश्विद्यालय में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के एक प्रोफेसर झांग वेईवेई के अनुसार ये संदेश है कि, "चीन ने प्रगति कर ली है और अब उसने अनेक क्षेत्रों में  US को पीछे छोड़ दिया है. अब चीन के पास काफ़ी मजबूती है जिसमें उपकरण उत्पादन और औद्योगिक श्रृंखला का भी समावेश है, जिसके दम पर US को चीन के उदय या उसकी ताकत का लोहा मनाने के लिए बाध्य किया जा सकता है. आखिरकार चीन एकमात्र ऐसा देश है जिसके पास सारे औद्योगिक क्षेत्र उपलब्ध हैं. इसके अलावा उसके पास एक ऐसी सर्वाधिक संपूर्ण औद्योगिक श्रृंखला मौजूद है जो दुनिया को चौथी औद्योगिक क्रांति के लिए ज़रूरी प्रत्येक उत्पाद मुहैया करवा सकती है. किसी भी देश अथवा देशों को चीन से अलग नहीं किया जा सकता और यही बात चीन के बढ़ते आत्मविश्वास का अहम कारण है."

ट्रंप के टैरिफ का भार किसके उपर? चीनी कंपनियां या अमेरिकी ग्राहक?

बड़े-बड़े दावों के बावजूद कुछ चिंताएं अब भी मौजूद हैं. इसमें प्रमुख चिंता यह है कि ट्रंप की ओर से लगाए गए नवीनतम टैरिफ का बोझ कौन उठाएगा? US के उपभोक्ता या उपकरणों का इस्तेमाल करने वाले लोग? या फिर चीनी कंपनियों पर इसका बोझ पड़ेगा? चीनी पक्ष को लगता है कि उसके व्यापारी अमेरिकी ग्राहकों पर इसका बोझ डालेंगे. इस वजह से अमेरिका में मुद्रास्फीति बढ़ेगी और वहां असंतोष पैदा होगा. मुद्रास्फीति बढ़ने और असंतोष की वजह से ट्रंप को अपने टैरिफ संबंधी फ़ैसले पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा.

दूसरी ओर चीन अपने यहां की चीनी मैन्यूफैक्चरिंग इंडस्ट्री यानी उत्पादन उद्योग के भीतर में तेजी से चिंता का कारण बन रहे 

"इन्वॉल्यूशनरी" (内卷) यानी अनैच्छिक प्रतिस्पर्धा को लेकर भी सजग है. प्रतिस्पर्धा को अक्सर सकारात्मक माना जाता है, क्योंकि इस वजह से जहां नवाचार को बढ़ावा मिलता है, वही सृजनशीलता भी बढ़ती है. चीनी उत्पाद इकाईयों के बीच इस अनैच्छिक प्रतिस्पर्धा की वजह से घटी कीमतों के कारण निर्यात करने वाली कंपनियों के लिए स्थितियां बेहतर हुई हैं. इसके चलते इन कंपनियों को अंतरराष्ट्रीय व्यापार व्यवस्था में खुद को स्थापित करने का मौका मिला है. हालांकि ताजा घटनाक्रम जिसमें चीन - US के बीच व्यापार को लेकर तनातनी में इज़ाफ़ा हुआ है और चीनी अर्थव्यवस्था में लगातार बढ़ रही गिरावट के कारण दबाव बढ़ता हुआ देखा जा सकता है. इसके साथ ही चीनी  कंपनियों के बीच अनैच्छिक प्रतिस्पर्धा का विपरीत प्रभाव पड़ रहा है.

चीनी कंपनियों के बीच अनैच्छिक प्रतिस्पर्धा की वजह से एक कभी ख़त्म नहीं होने वाली कीमतों में कटौती की गला काट होड़ शुरू हो गई है. इस होड़ की वजह से चीनी कंपनियों में वेतन कटौती, कर्मचारियों की छटनी हो रही है और रिसर्च एंड डेवलपमेंट अर्थात ख़ोज एवं अनुसंधान पर होने वाले ख़र्च पर कैंची चलाई जा रही है. घरेलू स्तर पर इसके कारण वस्तुओं की कीमतों में तेज गिरावट दर्ज़ हुई है. कीमतों में कटौती के कारण कंपनियों का मुनाफ़ा कम हुआ है. परिणामस्वरूप वेतन कटौती के साथ रोज़गार में कमी आ रही है. इन सभी बातों के चलते चीनी नागरिकों की उपभोग शक्ति में कमी आई है. अनेक चीनी विश्लेषकों का मानना है कि यदि वर्तमान में विभिन्न उद्योगों में चल रही अनियंत्रित कीमत कटौती को नहीं रोका गया तो यह स्थिति चीन को एक डिस्रप्टिव टेक्नोलॉजिकल इनोवेशंस के बजाय एक, "कटिंग कॉर्नर्स यानी काम चलाऊ, काउंटरफिटिंग यानी जालसाजी और शॉडी प्रोडक्ट्स अर्थात घटिया उत्पादों" वाले युग में ढकेल देगी.

इसके अलावा विदेशी बाज़ार में कीमतों को लेकर अत्यधिक प्रतिस्पर्धा भी चीनी कंपनियों के लिए बर्दाश्त से बाहर हो रही है. विदेशों में राजस्व में वृद्धि और मांग में तेजी के बावजूद चीनी कंपनियों को, विशेष रूप से सोलर पैनल्स तथा ऑटोमोबाइल क्षेत्र में, कीमतों में भारी गिरावट के कारण भारी नुक़सान उठाना पड़ रहा है. इसी कारण कीमतों में फ़ायदे के दम पर तेजी से विकसित हुए चीनी निर्यात क्षेत्र को अब व्यापार विवादों तथा एंटी-डंपिंग संबंधी जांच का सामना करना पड़ रहा है. ये जांच चीन के करीबी समझे जाने वाले देशों जैसे कि यूरोपियन यूनियन, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका में भी हो रही है.

 विदेशों में राजस्व में वृद्धि और मांग में तेजी के बावजूद चीनी कंपनियों को, विशेष रूप से सोलर पैनल्स तथा ऑटोमोबाइल क्षेत्र में, कीमतों में भारी गिरावट के कारण भारी नुक़सान उठाना पड़ रहा है.


उदाहरण के लिए चीन के ऑटोमोबाइल उद्योग में सबसे ज़्यादा अनैच्छिक प्रतिस्पर्धा देखी जा रही है. वहां वाहन निर्माता "कीमतों को दांव पर लगाकर मात्रा को बढ़ाते हुए" अपनी बिक्री में इज़ाफ़ा करने में जुटे हुए हैं. चीनी अनुमानों के अनुसार जनवरी से दिसंबर 2024 में चीन के ऑटो मार्केट में कीमतों में कटौती 227 मॉडल्स तक पहुंच गई थी. यह आंकड़ा 2022 (95) तथा 2023 (148) की तुलना में काफ़ी अधिक है. इस वजह से न्यू एनर्जी व्हीकल सेक्टर सबसे ज़्यादा प्रभावित हुआ है. इस क्षेत्र में नई कर की कीमत में औसतन 18,000 युआन (लगभग 9.2 फीसदी की कटौती) की गिरावट आई है. इसके अलावा उपलब्ध जानकारी से पता चलता है कि चीनी ऑटोमोबाइल उद्योग ने जनवरी और नवंबर 2024 के बीच 7.3 फीसदी की साल दर साल गिरावट दर्ज़ की है. इन्हीं दस्तावेज़ों से पता चलता है कि डाउनस्ट्रीम इंडस्ट्रियल एंटरप्राइजेज का प्रॉफिट मार्जिन यानी मुनाफ़ा औसतन 6.1 से घटकर 4.4 फीसदी पर आ गया है. नवंबर 2024 में ऑटोमोबाइल उद्योग का मुनाफ़ा साल दर साल 35 फीसदी गिर गया जबकि प्रॉफिट मार्जिन सिर्फ 3.3 फीसदी रह गया.

निष्कर्ष


चीनी मीडिया ने दावा किया है कि देश की 71 पैसेंजर कार कंपनियों में से सिर्फ तीन ही मुनाफ़ा कमा सकी और ये भी केवल लगातार तीन वर्षो तक ही संभव हो सका. इतना ही नहीं चीन की अग्रणी ऑटो निर्माता कंपनी BYD ऑटो को भी अपने ग्रॉस प्रॉफिट मार्जिन में तेज गिरावट देखनी पड़ी. यह गिरावट बावजूद इसके हुई थी कि उसके न्यू एनर्जी व्हीकल की बिक्री वैश्विक स्तर पर बढ़ी थी. उद्योग विशेषज्ञों का मानना है कि कीमतों में होड़ के भारी दबाव के कारण चीनी न्यू एनर्जी व्हीकल क्षेत्र में तकनीकी नवाचार से जुड़ी क्षमता प्रभावित होगी. ऐसा हुआ तो एक जैसे उत्पाद लोगों को पसंद नहीं आएंगे.

 भारत को इस बात पर पैनी नज़र रखनी होगी. अगर वह इस स्थिति का लाभ उठाना चाहता है तो उसे US - चीन टैरिफ वॉर किस दिशा में जा रहा है इसका सही आकलन करना होगा और स्थितियों को अपने हक में करने के कदम उठाने होंगे.

चीनी रणनीतिक समुदाय के समक्ष अनैच्छिक प्रतिस्पर्धा के नकारात्मक प्रभाव का मुकाबला करना और चीनी अर्थव्यवस्था को डिफ्लेशन यानी अपस्फीति से बाहर निकालने की चुनौती महत्वपूर्ण सवाल खड़े कर रही है. चीनी रणनीतिक समुदाय "चीनी कंपनियों से नए US टैरिफ्स का भार उठाने के लिए कीमतों में कटौती से बचने की सलाह दे रहा है. उसका मानना है कि विदेशी व्यापार में चीनी निर्माताओं को अपने मुनाफ़े की बॉटम लाइन को बनाए रखना चाहिए और भयावह कीमत कटौती की होड़ में शामिल नहीं होना चाहिए. इसके बदले उन्हें अपनी मूल क्षमताओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए."

त्यानफेंग सिक्योरिटीज के चीफ मैक्रो एनालिस्ट जुताओ सॉन्ग का कहना है कि चीन और US के बीच टैरिफ वॉर/व्यापार युद्ध  दरअसल US उपभोक्ताओं की मुद्रास्फीति को झेलने की क्षमता और चीनी निर्यात उत्पाद उद्योग की प्रॉफिट मार्जिन को बरकरार रखने की सीमा से जुड़ा हुआ सवाल है. भारत को इस बात पर पैनी नज़र रखनी होगी. अगर वह इस स्थिति का लाभ उठाना चाहता है तो उसे US - चीन टैरिफ वॉर किस दिशा में जा रहा है इसका सही आकलन करना होगा और स्थितियों को अपने हक में करने के कदम उठाने होंगे.


(अंतरा घोषाल सिंह, ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रेटेजिक स्ट्डीज प्रोग्राम में फैलो हैं).

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Author

Antara Ghosal Singh

Antara Ghosal Singh

Antara Ghosal Singh is a Fellow at the Strategic Studies Programme at Observer Research Foundation, New Delhi. Her area of research includes China-India relations, China-India-US ...

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