Published on Dec 14, 2022 Updated 0 Hours ago

सीमा पर चीनी फ़ौज की हरकतों की रोकथाम के लिए भारत को अपनी परमाणु क्षमताओं की तादाद और गुणवत्ता, दोनों में बढ़ोतरी करनी होगी.

#Tawang झड़प के बाद चीन की आक्रामक हरकतों पर लगाम ज़रूरी; भारत अपनी सामरिक नीति को बदले

देपसांग और डेमचोक से चीनी फ़ौज की वापसी सुनिश्चित करने के साथ-साथ पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) की विशाल महादेशीय आकार वाली सेना से निपटने के लिए भारत ने कई क़दम उठाए हैं. सड़क से जुड़े भारी-भरकम बुनियादी ढांचे का निर्माण इसी क़वायद का हिस्सा है. भूटान सीमा के नज़दीक अरुणाचल प्रदेश के सुदूर पूर्वी हिस्से तवांग से लेकर पूर्व में विजयनगर तक मैकमोहन रेखा के साथ-साथ अरुणाचल सीमांत राजमार्ग के नाम से ज़बरदस्त सड़क नेटवर्क का निर्माण चल रहा है. यक़ीनन, राजमार्ग से जुड़ी इस परियोजना की लंबे समय से ज़रूरत महसूस की जा रही थी. मोदी सरकार ने जिस तात्कालिकता और इरादे के साथ इसे चालू किया है, वो सचमुच सराहनीय है. हालांकि इस क़वायद को इसलिए अंजाम दिया जा रहा है क्योंकि इस वक़्त संकट सिर पर खड़ा है. इस हाईवे का निर्माण पूरा हो जाने पर भारतीय सेना की ओर से सैनिकों और साज़ोसामान की तेज़ रफ़्तार से तैनाती की क्षमता में निश्चित रूप से इज़ाफ़ा हो जाएगा.

यूपीए सरकार ने सड़क से जुड़ा ज़रूरी बुनियादी ढांचा तैयार किए बिना ही माउंटेन स्ट्राइक कोर खड़ा करने में निवेश करने का रास्ता चुना. हक़ीक़त ये है कि सड़क-आधारित रसद के बिना माउंटेन स्ट्राइक कोर (MSC) बेअसर साबित होगी.

पूर्व की कांग्रेस नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) सरकार ने भारत-चीन सीमा पर ज़मीनी बुनियादी ढांचा नहीं खड़ा कर बड़ी चूक की थी. यूपीए सरकार ने सड़क से जुड़ा ज़रूरी बुनियादी ढांचा तैयार किए बिना ही माउंटेन स्ट्राइक कोर खड़ा करने में निवेश करने का रास्ता चुना. हक़ीक़त ये है कि सड़क-आधारित रसद के बिना माउंटेन स्ट्राइक कोर (MSC) बेअसर साबित होगी. पहाड़ी इलाक़ों में कमज़ोर संचार और लचर तालमेल के चलते ये कोर बिखराव वाली हालत में रहेगी. बहरहाल, MSC (जिसे 17 कोर के नाम से भी जाना जाता है) को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है. 2018 के बाद से ये बेहद छोटे स्वरूप में वजूद में है. इसके एक या दो डिविज़न ही तैयार किए गए हैं, जो कोर की स्थापना के लिए ज़रूरी तादाद के महज़ आधे के बराबर है. यक़ीनन, चीन के साथ मौजूदा तनातनी का दौर शुरू होने के बाद से मोदी सरकार ने 17वीं कोर की ताक़त बढ़ाने के लिए कुछ अहम क़दम उठाए हैं. इसके बावजूद MSC के गठन से पीछे हटने के मोदी सरकार के फ़ैसले के पीछे जो वजह नज़र आती है वो है ज़रूरी कोष का अभाव. उधर, चीन ने अपनी ओर से भारत द्वारा तैयार किए जा रहे बुनियादी ढांचे पर एतराज़ जताया है. सीमा पर जारी मौजूदा तनावों और भारत के दावे वाले भू-क्षेत्रों पर उसके क़ब्ज़े के चलते चीन ने ये रुख़ दिखाया है. वैसे ताज़ा प्रमाणों से साफ़ है कि इस क़ब्ज़े का दायरा अब भी काफ़ी सीमित है. 

इस बीच चीन ने तीसरे पक्षों (ख़ासतौर से अमेरिकी वार्ताकारों) को इस मसले में दख़ल ना देने की चेतावनी दी है. दरअसल, वो भारत और अमेरिका के बीच रिश्तों में और नज़दीकी आने से रोकना चाहता है. चीन के साथ विवादित सरहदी क्षेत्रों में ज़मीनी बुनियादी ढांचे के अभाव में भारत पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के साथ सैन्य टकराव की सूरत में अपने सैन्य बलों की तेज़ रफ़्तार तैनाती नहीं कर सकेगा. ज़ाहिर है भारत द्वारा बुनियादी ढांचा खड़ा किए जाने पर एतराज़ जताते वक़्त चीन अपनी सरहद में इंफ़्रास्ट्रक्टर खड़ा करने की क़वायद की अनदेखी कर रहा है. बहरहाल चीन सीमा पर भारतीय फ़ौज के संदर्भ में रसद से जुड़े और क्रियात्मक मसलों के साथ-साथ भारत के सामने और भी चुनौतियां हैं. ये चुनौतियां सामरिक दायरे से जुड़ी हैं, जो चीन को वास्तविक नियंत्रण रेखा (LaC) पर यथास्थिति बरक़रार रखने के लिए मजबूर करने में मददगार साबित हो सकती हैं. 

सामरिक बदलाव

इस सिलसिले में एक बात स्पष्ट दिखाई देती है. वो है अमेरिका जैसी किसी मज़बूत बाहरी ताक़त के साथ भारत के सैन्य रिश्तों में गहराई लाना, जिससे भारी-भरकम फ़ौजी जमावड़ा मुमकिन हो सकेगा. बहरहाल, इस नीति को धरातल पर उतारने के लिए भारत को रक्षा पर पहले से ज़्यादा ख़र्च करना होगा, ताकि परंपरागत बलों की ताक़त और बढ़ाई जा सके. अमेरिका के साथ रक्षा और फ़ौजी स्तर पर तालमेल भरी क़वायद रक्षा क्षमता जुटाने में तेज़ी लाने का एक तरीक़ा हो सकती है. इससे चीन को बिना लाग-लपेट के भारत की नाराज़गी और विरोध के संकेत मिल जाएंगे. चीन LaC पर यथास्थिति बहाल करने से लगातार इनकार करता आ रहा है. ऐसे में अमेरिका से भारत की नज़दीकी बढ़ने पर चीन से निपटने में काफ़ी मदद मिलेगी. बीते 9 दिसंबर को अरुणाचल प्रदेश में तवांग सेक्टर के यांग्त्से में चीनी सैनिकों ने नए सिरे से घुसपैठ की कोशिश की. वहां तैनात भारतीय गश्ती दल ने उन्हें रोका और दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने आ गईं. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने संसद को बताया कि हमारे सैनिकों ने बहुत बहादुरी से चीनी सैनिकों को ना सिर्फ़ मुंहतोड़ जवाब दिया बल्कि उन्हें उलटे पांव लौटने पर मजबूर भी कर दिया. झड़प के बाद दोनों पक्षों की ओर से फ़्लैग मीटिंग हुई और दोनों ओर के सैनिक अपने पूर्व स्थान पर वापस चले गए. ग़ौरतलब है कि मई 2020 से चीन LaC पर ऐसा ही बर्ताव कर रहा है.

चीन की ओर से पहला हमला झेलने के बाद जवाबी तौर पर भारत के पास जो बचे-खुचे हथियार होंगे, उनको चीन अपनी मिसाइल प्रतिरक्षा प्रणालियों से काफ़ी हद तक नाकाम करने में कामयाब हो जाएगा. भारत-चीन सीमा पर चीन की परंपरागत फ़ौज लगातार तेवर दिखा रही है

अमेरिका के साथ मज़बूत फ़ौजी रिश्तों के पूरक के तौर पर भारत अपनी परमाणु क्षमता बढ़ाने पर भी ज़ोर दे सकता है या ज़रूरत पड़ने पर परमाणु तैयारियों को एकाकी उपाय के तौर पर भी अपना सकता है. इस सिलसिले में अतिरिक्त परमाणु परीक्षण किए जा सकते हैं. भारत की ओर से नए सिरे से परमाणु परीक्षण किए जाने की संभावनाओं में उभार से जुड़ी चर्चा पिछले दिनों अंतरराष्ट्रीय सुर्ख़ियों और विश्लेषण का हिस्सा बन चुकी हैं. मिसाल के तौर पर परमाणु परीक्षण से थर्मोन्यूक्लियर हथियारों के क्षेत्र में भारत की कमज़ोरियों को पाटने में भारी मदद मिल सकती है. वैसे तो 1998 के परमाणु परीक्षणों में भी थर्मोन्यूक्लियर उपकरणों का परीक्षण किया गया था, लेकिन व्यापक तौर पर ऐसा माना जाता है कि आगे चलकर ये क़वायद “ठप” पड़ गई या नाकाम साबित हुई. ऐसे में परमाणु परीक्षण की सुनियोजित क़वायद भारत के लिए चीन के ख़िलाफ़ अपनी मौजूदा तैयारियों में एक प्रमुख कमज़ोरी से पार पाने के लिहाज़ से भारी मददगार साबित होगी. इससे भारत की थर्मोन्यूक्लियर क्षमता का विश्वसनीय रूप से निर्माण और तस्दीक़ हो सकेगी.

चीन की चौतरफ़ा ‘चुनौती’

चीन के ख़िलाफ़ भारत फ़िलहाल महादेशीय स्तर पर अनेक चुनौतियों का सामना कर रहा है. चीन अपनी परमाणु क्षमताओं का भी ख़तरनाक रफ़्तार से विस्तार कर रहा है. ऐसे में भारत के लिए परमाणु क्षमताओं में आगे बढ़ना बेहद तात्कालिक और प्रासंगिक हो गया है. पेंटागन की ताज़ातरीन रिपोर्ट के मुताबिक अनुमान लगाया गया है कि चीन 2035 तक अपने पास 1500 परमाणु हथियारों का ज़ख़ीरा इकट्ठा कर सकता है. इस क्षेत्र में भारत के मौजूदा विस्तार दर को देखें तो 2035 तक उसके द्वारा तैनात परमाणु हथियारों के मुक़ाबले चीन की तादाद काफ़ी ज़्यादा होगी. अगर भारत परमाणु हथियारों के विशाल भंडार तैयार करने की क़वायद से लगातार गुरेज़ या परहेज़ करता रहा तो ये उसके लिए घाटे का सबब साबित हो सकता है. उसे अपने पड़ोस में 2 मोर्चे पर (चीन और पाकिस्तान) परमाणु ख़तरों का सामना करना पड़ेगा. यहां ये याद रखना ज़रूरी है कि पाकिस्तान का परमाणु हथियार भंडार भारत से आगे निकल गया है. परमाणु मोर्चे पर उभरती ऐसी ग़ैर-बराबरी को समय रहते दूर करना निहायत ज़रूरी है. अगर ऐसा नहीं किया गया तो अपने प्रमुख शत्रुओं के ख़िलाफ़ परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की गंभीर चेतावनी देने या उसको अंजाम में लाने की भारतीय क्षमता धीरे-धीरे कुंद होती चली जाएगी. 

ज़ाहिर है भारत को अपनी परमाणु क्षमताओं की मात्रा और गुणवत्ता, दोनों में बढ़ोतरी करनी होगी. भारत-चीन सरहद पर लगातार जारी तनातनी और धमकाने वाले अंदाज़ में चीन की ओर से जारी परमाणु तैयारियों का लाज़िमी तौर पर एक और नतीजा सामने है. दरअसल चीन अपनी मिसाइल प्रतिरक्षा प्रणाली का भी तेज़ी से विकास कर रहा है. मिसाइल प्रतिरक्षा से चीन को भारत को पहले ही चकमा देने की ताक़त मिल जाएगी. इस ताक़त की बदौलत वो भारत पर पहले ही परमाणु वार कर भारतीय तरकश के एक बड़े हिस्से को नाकाम कर सकता है. चीन की ओर से पहला हमला झेलने के बाद जवाबी तौर पर भारत के पास जो बचे-खुचे हथियार होंगे, उनको चीन अपनी मिसाइल प्रतिरक्षा प्रणालियों से काफ़ी हद तक नाकाम करने में कामयाब हो जाएगा. भारत-चीन सीमा पर चीन की परंपरागत फ़ौज लगातार तेवर दिखा रही है. वो अपनी परमाणु क्षमता भी बढ़ा रहा है. ऐसे में अक़्लमंदी यही है कि भारत टालमटोल छोड़कर चीन के साथ लगी सरहद पर उसके द्वारा यथास्थिति बहाल करने पर लगातार ज़ोर देता रहे. साथ ही दीर्घकाल में चीनी फ़ौजी ताक़त की आक्रामकता को रोकने और उसपर नकेल कसने के उपाय करने भी ज़रूरी हैं. सौ बात की एक बात यही है कि एशिया में चीन को दबदबा क़ायम करने से रोकने में ही भारत की भलाई है. 

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