Author : Suchet Vir Singh

Published on Oct 11, 2023 Updated 20 Days ago

गलवान में 2020 की घटनाओं ने साफ तौर पर बाद की कई प्रतिक्रियाओं को शुरू किया है जिसने भारत की सीमा पर बुनियादी ढांचे की योजनाओं को आगे बढ़ाया है.

भारत की सीमा पर इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ावा देने में चीन की छाया

सितंबर 2023 की शुरुआत में भारत के रक्षा मंत्री ने देश के दूर-दराज के सीमावर्ती क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे की 90 से ज़्यादा परियोजनाओं का उद्घाटन किया. सरकारी क्षेत्र के सीमा सड़क संगठन (BRO) के द्वारा बनाई गई इन परियोजनाओं पर विचार करें तो पहली नज़र में लगेगा कि भारत जैसी एक तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के लिए ये एक स्वाभाविक प्रगति है और वो इन परियोजनाओं के ज़रिए अपने सरहदी इलाकों तक पहुंच आसान बना रहा है लेकिन अगर गंभीरता से देखें तो इन परियोजनाओं पर चीन की छाया मंडरा रही है. 

भारत के लिए देखें तो सीमा पर इंफ्रास्ट्रक्चर को इसलिए भी बढ़ाया जा रहा है ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि ताकत के इस्तेमाल या संघर्ष की स्थिति में उसके सशस्त्र बल इन इलाकों तक पहुंच सकें और इनकी रक्षा कर सकें.

भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में जारी गतिरोध, जिसकी शुरुआत 2020 में हुई थी और तवांग में दिसंबर 2022 में झड़प हुई थी, को देखते हुए भारत के द्वारा सीमावर्ती क्षेत्रों में इंफ्रास्ट्रक्चर पर ज़ोर दोनों देशों के बीच विवादित वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर चीन से बराबरी के लिए कठिन कोशिशों का प्रतीक है. भारत के लिए देखें तो सीमा पर इंफ्रास्ट्रक्चर को इसलिए भी बढ़ाया जा रहा है ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि ताकत के इस्तेमाल या संघर्ष की स्थिति में उसके सशस्त्र बल इन इलाकों तक पहुंच सकें और इनकी रक्षा कर सकें. 

सीमा पर हाईवे परियोजनाओं की स्थिति

पिछले दिनों जिन 90 परियोजनाओं का उद्घाटन किया गया है, उनकी अनुमानित लागत 2,900 करोड़ रुपये है और ये परियोजनाएं 11 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के सीमावर्ती क्षेत्रों में बनाई गई हैं. वास्तव में ये प्रोजेक्ट महत्वपूर्ण भौतिक बुनियादी ढांचा मुहैया कराते हैं जो अभी तक या तो इन सीमावर्ती क्षेत्रों में मौजूद नहीं था या अगर मौजूद था तो उन्हें अपग्रेड किया गया है. पूरी की गई परियोजनाएं उन सभी पहलुओं का ध्यान रखती हैं जो पुल से लेकर सड़क और सुरंग तक नागरिक और सैन्य गतिविधियों एवं आवश्यकताओं में मदद करती हैं. संक्षेप में कहें तो इन परियोजनाओं से सैन्य टुकड़ियों, सप्लाई चेन, भारी मशीनरी और आर्टिलरी को सशस्त्र बलों के लिए बेस से फॉरवर्ड लोकेशन तक तुरंत और आसानी से भेजा जा सकेगा. 

वैसे तो सीमा पर इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट की परिकल्पना सभी सरकारों ने की थी लेकिन 2020 में गलवान की घटना से पहले तक ये परियोजनाएं एक-के-बाद-एक और कथित रूप से धीमी रफ्तार से आगे बढ़ रही थीं. लेकिन पूर्वी लद्दाख में संघर्ष के कई बिंदुओं ने भारत की सीमावर्ती इंफ्रास्ट्रक्चर महत्वाकांक्षाओं के लिए बड़े बदलाव के तौर पर काम किया. सरकारी आंकड़ों के अनुसार हाल के वर्षों में इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं पर खर्च में चार गुना बढ़ोतरी हुई है. 

महत्वपूर्ण बात ये है कि तवांग सेक्टर के यांग्स्ते में दिसंबर 2022 में भारत और चीन के सैनिकों के बीच आख़िरी खूनी झड़प हुई थी. सरकार ने अरुणाचल में नागरिक और सैन्य उद्देश्यों से 44,000 करोड़ के हाइवे प्रोजेक्ट को भी मंज़ूरी दी है. 

2020 में गलवान में हिंसा के समय से भारत ने पूर्वी लद्दाख में LAC के पश्चिमी सेक्टर और अरुणाचल प्रदेश में LAC के पूर्वी सेक्टर- दोनों में कई महत्वपूर्ण सीमावर्ती इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट को तेज़ किया है. इसके लिए सरकार ने एक उच्च-स्तरीय समिति का गठन किया जो इन परियोजनाओं की प्रगति पर निगरानी रखे. बुनियादी ढांचे की इन परियोजनाओं को समय पर पूरा करने और इनके लिए निवेश बढ़ाने की संगठित कोशिश की गई है. इन परियोजनाओं ने LAC पर चीन की तुलना में क्षमता और इंफ्रास्ट्रक्चर में भारी अंतर को पाटने की कोशिश के माध्यम के तौर पर भी काम किया है. 

थल सेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे ने सेना के लिए क्षमता और इंफ्रास्ट्रक्चर में बढ़ोतरी को दर्शाते हुए बताया कि 2020 से लद्दाख में लगभग 55,000 सैनिकों के रहने और 400 गन के लिए स्टोरेज फैसिलिटी का निर्माण किया गया है. ये लद्दाख में सेना के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ाने के उद्देश्य से लगभग 1,300 करोड़ रुपये के निवेश का हिस्सा है. 

2021 में BRO ने 2,229 करोड़ की 102 इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं की शुरुआत की. ये परियोजनाएं LAC के पश्चिमी एवं पूर्वी सेक्टर और देश के दूसरे सीमावर्ती क्षेत्रों में बनाई गई हैं. इन परियोजनाओं में विशेष रूप से 22 सड़क, 63 पुल, दो हेलीपैड, दो एयरफील्ड और अरुणाचल प्रदेश में नेचिफू सुरंग शामिल थे. चीन के साथ सीमा और LAC के हिसाब से देखें तो 102 परियोजनाओं में से 26 लद्दाख, 36 अरुणाचल प्रदेश, तीन हिमाचल प्रदेश, दो सिक्किम और दो उत्तराखंड में हैं. वास्तव में इन परियोजनाओं ने LAC के पश्चिमी, मध्य और पूर्वी सेक्टर का ध्यान रखा है. 

सीमा पर इंफ्रास्ट्रक्चर की महत्वाकांक्षा के मामले में एक नया दृष्टिकोण भारत को राह दिखा रहा है.

इसके अलावा, 2021 में इन परियोजनाओं में दुनिया की सबसे ऊंची मोटरेबल सड़क- चिसूमल-देमचोक रोड- का उद्घाटन शामिल है जो उमलिंग ला पास के ज़रिए गुज़रती है. ये सड़क पूर्वी लद्दाख के चूमार सेक्टर के शहरों को जोड़ती है. इस तरह चिसूमल और देमचोक के बीच रास्ता मुहैया करती है. देमचोक गांव भारत और चीन के बीच संघर्ष का एक प्रमुख बिंदु है. 2016 में यहां दोनों देशों के बीच आमने-सामने की स्थिति भी बनी थी और ये मौजूदा गतिरोध में बचा हुआ मुद्दा है. गतिरोध की दूसरी जगहों पर जहां डिसइंगेजमेंट में कामयाबी मिली है, वहीं देमचोक और देपसांग में अभी तक बातचीत सुलझी नहीं है. 

सीमावर्ती क्षेत्रों में विकास की पहल  

LAC के दूसरे छोर पर अरुणाचल प्रदेश में सरकार ने अरुणाचल फ्रंटियर हाइवे पर शुरुआती काम आरंभ किया है. ये हाइवे 2,000 किमी का है जो LAC के पूर्वी सेक्टर तक कनेक्टिविटी और पहुंच को बेहतर करेगा. इसके अलावा, अरुणाचल में सुरंग बनाने की कई परियोजनाओं को भी शुरू किया गया है. इनमें महत्वपूर्ण सेला टनल शामिल है जो अहम तवांग सेक्टर की फॉरवर्ड लोकेशन तक सेना को तेज़ी से पहुंचाने में मदद करेगी. ये सुरंग सर्दियों में इस सेक्टर तक आवाजाही के लिए ज़रूरी है क्योंकि ख़राब मौसम की वजह से सेना के लिए सप्लाई चेन और साजो-सामान को ले जाना काफी मुश्किल हो जाता है. महत्वपूर्ण बात ये है कि तवांग सेक्टर के यांग्स्ते में दिसंबर 2022 में भारत और चीन के सैनिकों के बीच आख़िरी खूनी झड़प हुई थी. सरकार ने अरुणाचल में नागरिक और सैन्य उद्देश्यों से 44,000 करोड़ के हाइवे प्रोजेक्ट को भी मंज़ूरी दी है.  

वास्तव में, सीमावर्ती क्षेत्रों में ये विकास LAC के दोनों छोर- पश्चिमी और पूर्वी सेक्टर- में हो रहा है. मध्य सेक्टर में भी कई परियोजनाओं की शुरुआत की गई है. ये अतीत में सीमावर्ती क्षेत्रों को लेकर सरकार के नज़रिए में दबदबा रखने वाले बयान और दलील से पूरी तरह हटकर है. वर्षों तक इन पहाड़ी, जंगली और उबड़-खाबड़ इलाकों में परियोजनाओं को नज़रअंदाज़ किया गया था. इसके पीछे ये दलील दी जाती थी कि पुराने नॉर्थ-ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी और लद्दाख का भू-भाग चीन के विस्तारवाद के ख़िलाफ़ एक कुदरती दीवार के रूप में काम करेगा और बुनियादी ढांचे की कमी के कारण चीन के सैनिकों को भारत की तरफ आने से रोकेगा. परियोजनाओं को इसलिए भी शुरू नहीं किया जाता था ताकि चीन की तरफ से किसी जवाबी प्रतिक्रिया से परहेज किया जा सके. 

इन घटनाक्रमों को देखते हुए ये कहना उचित होगा कि सीमा पर इंफ्रास्ट्रक्चर की महत्वाकांक्षा के मामले में एक नया दृष्टिकोण भारत को राह दिखा रहा है. सबसे कटी और अलग-थलग LAC की फॉरवर्ड लोकेशन तक हर मौसम में पहुंच होने से ये सुनिश्चित किया जा सकता है कि सेना इन इलाकों की गश्त और रक्षा करने में बिना किसी बाधा के पहुंच सकती है. सड़कों, पुलों और सुरंग के नेटवर्क का विस्तार किसी संभावित तनाव और झड़प की स्थिति में भी ज़रूरी होगा. हालांकि चीन के बराबर इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने के लिए कई और परियोजनाओं को LAC पर पूरा करना होगा. 

भारत का बॉर्डर इंफ्रास्ट्रक्चर सरकार और व्यापक सामरिक समुदाय का जो ध्यान और महत्व हासिल कर रहा है, वो अहम है लेकिन ये साफ है कि गलवान में 2020 में हुए संघर्ष ने प्रतिक्रियाओं की शुरुआत की जिसका नतीजा इंफ्रास्ट्रक्चर को लेकर इस फोकस और ज़ोर के रूप में सामने आया है. चीन की साज़िश भारत के द्वारा सीमा पर बुनियादी ढांचे के विस्तार की महत्वाकांक्षा के मामले में बेहद महत्वपूर्ण रही.  


सुचेत वीर सिंह ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में एसोसिएट फेलो हैं.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.