चीन ने पिछले दिनों विदेश संबंध को लेकर एक नया कानून पारित किया है जिसका उद्देश्य ज़ाहिर तौर पर अपनी “संप्रभुता, राष्ट्रीय सुरक्षा और विकास से जुड़े हितों” की रक्षा करना है. विदेश संबंध से जुड़ा कानून चीन के राष्ट्रीय सुरक्षा आयोग के द्वारा बताई गई मौजूदा परिस्थितियों के अनुसार है. आयोग ने हाल ही में चेतावनी दी है कि चीन के सामने मौजूद “राष्ट्रीय सुरक्षा मुद्दों की जटिलता” कई गुना बढ़ गई है. चीन की राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले में सबसे बड़े इस संस्थान ने संकेत दिया है कि देश को ख़राब हालात के तहत “गंभीर टेस्ट” को सहने और सबसे मुश्किल परिस्थितियों से निपटने के लिए तैयार रहना चाहिए. ये चीन की सोच को लेकर एक बड़े बदलाव की तरफ इशारा करता है जिसके तहत विकास से पहले सुरक्षा को रखा गया है.
इस कदम से विदेश मामलों में पार्टी की सेंट्रल कमेटी के केंद्रीय नेतृत्व को मज़बूती मिलेगी और विदेशी रिश्तों के मामले में कानूनी प्रणाली की कमियां दुरुस्त होंगी. इस तरह सबसे पहले ये कानून दूसरे देशों से चीन के रिश्तों के मामले में अपनी पकड़ मज़बूत करने के कम्युनिस्ट पार्टी के इरादे को दिखाता है.
चीन में राजनीतिक बहस राष्ट्रीय सुरक्षा पर केंद्रित होने और अमेरिका के अधिकार क्षेत्र के “लंबे हाथ” का जवाब देने की ज़रूरत के साथ इस कानून से उम्मीद की जाती है कि वो विदेशी आर्थिक प्रतिबंधों के ख़िलाफ़ जवाबी कार्रवाई करने में कम्युनिस्ट पार्टी और सरकार को मदद मुहैया कराएगी. इस कानून को लेकर चीन के विदेश मंत्री वांग यी के द्वारा लिखे गए एक लेख, जो चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के जर्नल चूशी में प्रकाशित हुआ था, में कहा गया है कि इस कदम से विदेश मामलों में पार्टी की सेंट्रल कमेटी के केंद्रीय नेतृत्व को मज़बूती मिलेगी और विदेशी रिश्तों के मामले में कानूनी प्रणाली की कमियां दुरुस्त होंगी. इस तरह सबसे पहले ये कानून दूसरे देशों से चीन के रिश्तों के मामले में अपनी पकड़ मज़बूत करने के कम्युनिस्ट पार्टी के इरादे को दिखाता है. इसका सबूत कम्युनिस्ट पार्टी के 20वें सम्मेलन के बाद सेंट्रल फॉरेन अफेयर्स कमीशन के प्रमुख के रूप में वांग यी के प्रमोशन से भी मिलता है जबकि वो अनौपचारिक उम्र सीमा को पार कर चुके हैं. वैसे तो CPC के अलिखित कोड में बड़े पदों के लिए रिटायरमेंट की उम्र 68 साल तय की गई है लेकिन इसके बावजूद वांग के मामले में छूट दी गई जो पिछले साल 69 वर्ष के हो चुके हैं.
नए कानून को मंज़ूरी
चीन के द्वारा इस कानून को मंज़ूरी देना चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के कानूनी युद्ध के दृष्टिकोण के अनुसार भी है क्योंकि इसमें कानून का उपयोग सामरिक उद्देश्यों को आगे बढ़ाने के माध्यम के रूप में किया गया है. अमेरिका ने चीन के रक्षा मंत्री ली शांगफू और दूसरे चीनी अधिकारियों पर प्रतिबंध लगाए हैं. साथ ही हुआवेई जैसी तकनीकी कंपनियों पर भी रोक लगाई है. इसके जवाब में चीन ने 2021 में एक पाबंदी विरोधी कानून को पास किया जिसके तहत चीन को “अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन” करने वाले भेदभावपूर्ण कदम उठाने में शामिल विदेशी संस्थानों और व्यक्तियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने का अधिकार मिल गया.
कम्युनिस्ट पार्टी के जर्नल क्यूशी में वांग के लेख में ये भी कहा गया है कि देश के विकास के ऊपर मंडराते जोखिम और अप्रत्याशित कारण इस कानून को लाने के पीछे वजह हैं. कानून के कुछ बाहरी प्रभाव हैं क्योंकि इसमें विशेष रूप से बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का ज़िक्र किया गया है और ये अनिवार्य बनाया गया है कि विदेश में चीन के नागरिकों और संगठनों के हितों की हर हाल में रक्षा की जानी चाहिए. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की प्रमुख परियोजना BRI की वजह से चीन को अपना आर्थिक प्रभाव पूरी दुनिया में फैलाने का मौका मिला है. लेकिन जैसे-जैसे इस प्रोजेक्ट का अंतर्राष्ट्रीय विस्तार हो रहा है, वैसे-वैसे चीन के सामने ये जोखिम भी है कि वो स्थानीय झगड़ों में शामिल होता जाएगा और चीन के हित दूसरे संस्थानों के हितों से टकरा सकते हैं. मिसाल के तौर पर सोलोमन आइलैंड्स में चीन के पैसे से संसदीय चुनाव को प्रभावित करने के दावों के बाद चीनी नागरिकों और व्यवसायों पर निशाना साधा गया. इस घटना से विदेशों में रहने वाले अपने नागरिकों की सुरक्षा को लेकर चीन में बहस छिड़ गई. चीन के समकालीन अंतर्राष्ट्रीय संबंध संस्थान के आर्म्स कंट्रोल स्टडीज़ सेंटर के गुओ शियाओबिंग ने दलील दी कि अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिए चीन के सामर्थ्य को बेहतर किया जाए क्योंकि ये चीन की आर्थिक सुरक्षा से भी जुड़ा हुआ है. चीन के विदेश मंत्रालय ने घोषणा की है कि सोलोमन आइलैंड्स उसके बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट और स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन के केंद्र में होगा.
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की प्रमुख परियोजना BRI की वजह से चीन को अपना आर्थिक प्रभाव पूरी दुनिया में फैलाने का मौका मिला है. लेकिन जैसे-जैसे इस प्रोजेक्ट का अंतर्राष्ट्रीय विस्तार हो रहा है, वैसे-वैसे चीन के सामने ये जोखिम भी है कि वो स्थानीय झगड़ों में शामिल होता जाएगा
कोई निवेश तभी व्यावहारिक होता है जब वो भविष्य में मुनाफा सुनिश्चित कर सकता है और ये राजनीतिक स्थिरता जैसे हालात पर निर्भर करता है. फॉरेन रिलेशंस लॉ ये सवाल पूछता है कि चीन विदेशों में अपने नागरिकों और आर्थिक हितों की रक्षा करने के लिए किस हद तक जाएगा? पाकिस्तान में अपने नागरिकों पर घातक हमलों के बाद चीन वहां अपनी सुरक्षा कंपनियों को इजाज़त देने के लिए पाकिस्तान पर निर्भर है. BRI को लेकर मर्केटर की एक रिपोर्ट के मुताबिक चीन में लगभग 5,000 निजी सुरक्षा कंपनियां रजिस्टर्ड हैं. सुरक्षा के क्षेत्र में और अपने सामरिक उद्देश्यों को पूरा करने के लिए प्राइवेट कंपनियों को नियंत्रण सौंपने का विनाशकारी परिणाम हमने रूस में देखा है. हमारे सामने इतिहास के उदाहरण भी हैं जब ब्रिटिश साम्राज्य के ‘व्यापार’ एवं व्यावसायिक और भू-राजनीतिक हितों की रक्षा के लिए ब्रिटेन की सशस्त्र सेना के साथ ‘झंडा’ फहराया गया था. इस तरह जो देश BRI के निवेश की मंज़िल हैं उन्हें चीन के नये फॉरेन रिलेशंस लॉ के नतीजों पर ध्यान देना चाहिए.
भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक फायदों के लिए विदेशों में कर्ज़ देने की अपनी नीति की वजह से चीन को आलोचना झेलनी पड़ी है. अब अपनी करतूतों पर पर्दा डालने के लिए नये कानून में दावा किया गया है कि चीन निवेश हासिल करने वाले देश की संप्रभुता का सम्मान करता है और वो अपनी वित्तीय सहायता के साथ राजनीतिक शर्तें नहीं जोड़ता है. लेकिन जो सबूत हैं वो इसके उलट हैं, ख़ास तौर पर युआन वांग 5 के मामले में जहां चीन ने आर्थिक रूप से कमज़ोर और कर्ज़ के जाल में फंसे श्रीलंका को सैटेलाइट और मिसाइल लॉन्च पर नज़र रखने वाले साजो-सामान से लैस अपने रिसर्च जहाज़ की तैनाती की मंज़ूरी देने के लिए मजबूर किया. ध्यान देने की बात है कि कनाडा ने चीन के नेतृत्व वाले एशियन इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक (AIIB) से संबंध ख़त्म कर लिए हैं और बैंक के एक पूर्व कर्मचारी के उन आरोपों की छानबीन कर रहा है कि इस वित्तीय संस्थान में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की घुसपैठ हो गई है.
नए कानून का महत्व
चीन के नये कानून का कई हितधारकों (स्टेकहोल्डर्स) में से व्यवसायों, सरकारों और असंतुष्टों परव्यापक असर पड़ने की संभावना है. चीन के असंतुष्टों को सरकार की आलोचना या फिर “चीन के हितों’ के लिए पर्याप्त समर्थन न देने की वजह से भी दंडित किया जा सकता है, भले ही वो चीन में रहते हों या विदेश में. व्यवसायों, ख़ास तौर पर विदेशी कंपनियों, को चीन की कंपनियों के साथ काम करते समय ज़रूरत से ज़्यादा सावधानी बरतनी होगी क्योंकि उनके सामने इस बात का डर बना रहेगा कि कहीं उन पर चीन के “विकास” या “सुरक्षा” के ख़िलाफ़ काम करने का आरोप न लग जाए. चीन का नया कानून ताइवान के कूटनीतिक कार्यक्षेत्र को भी “ख़त्म” कर सकता है क्योंकि अलग-अलग देश और कंपनियां चीन की कानूनी कार्रवाई और आर्थिक प्रतिबंधों के डर से चीन के ख़िलाफ़ ताइवान के मक़सद का समर्थन करने से पहले दो बार सोचेंगी. हाल के दिनों में ताइवान, जिस पर चीन अपनी संप्रभुता का दावा करता है, के साथ भारत की आर्थिक भागीदारी को मज़बूत करने की कोशिश की गई है. ताइवान अपने ‘चाइना प्लस वन’ के दृष्टिकोण पर भी काम कर रहा है और उसकी टेक्नोलॉजी कंपनियां अपना काम-काज चीन से समेटकर भारत शिफ्ट करने के बारे में सोच रही हैं. ऐसी योजनाएं भी हैं कि भारत की वित्तीय राजधानी मुंबई में एक ताइपे आर्थिक एवं सांस्क़तिक केंद्र (उसका वास्तविक कूटनीतिक कार्यालय) खोला जाए. भारत जैसे देशों के साथ ये कैसे होता है, ये देखा जाना बाकी है क्योंकि चीन इन कदमों को अपने विकास से जुड़े हितों और राष्ट्रीय संप्रभुता के उल्लंघन के तौर पर देख सकता है.
चीन का नया कानून ताइवान के कूटनीतिक कार्यक्षेत्र को भी “ख़त्म” कर सकता है क्योंकि अलग-अलग देश और कंपनियां चीन की कानूनी कार्रवाई और आर्थिक प्रतिबंधों के डर से चीन के ख़िलाफ़ ताइवान के मक़सद का समर्थन करने से पहले दो बार सोचेंगी.
अंत में, कानून में चीन की “राष्ट्रीय सुरक्षा और विकास से जुड़े हितों” के कार्यक्षेत्र या कानून का उल्लंघन करने वाले अधिनियमों के स्वरूप का ख़ास तौर पर ज़िक्र नहीं है. इसकी वजह से कानून के प्रावधान विशेष रूप से राजनीतिक अर्थ निकालने के मामले में असुरक्षित हैं. सैम ह्यूज़टन यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर डेनिस वेंग ने इसे “कानूनी प्रावधान कम” और “दुनिया के सामने राजनीतिक बयान अधिक” के तौर पर परिभाषित किया है. इस तरह फॉरेन रिलेशंस लॉ के ज़रिए चीन ने आर्थिक प्रतिबंधों के ख़िलाफ़ अपने हथियारों के भंडार में एक नया हथियार जोड़ा है और विदेश से भागीदारी के मामले में कम्युनिस्ट पार्टी की पकड़ को और मज़बूत किया है. इससे पश्चिमी देशों और दूसरे देशों के साथ चीन का मुक़ाबला और बढ़ेगा
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