ये हमारी दि चाइना क्रॉनिकल्स सीरीज़ का 153 लेख है.
फरवरी 2023 में अमेरिकी वायुसेना के एक लड़ाकू विमान ने अमेरिका के साउथ कैरोलिना के तट पर चीन के एक जासूसी गुब्बारे को मार गिराया था. ये चीन के गोपनीय जानकारियां इकट्ठा करने के तौर–तरीक़ों में एक नया मोड़ था. हालांकि, अमेरिका की ख़ुफ़िया एजेंसियों ने ये नतीजा निकाला था कि चीन के इस ग़ुब्बारे ने पूरे अमेरिकी महाद्वीप या फिर अमेरिका की मुख्य भूमि से कोई अहम गोपनीय या सैन्य ठिकानों की जानकारी नहीं जुटाई थी. फिर भी, जासूसी ग़ुब्बारों, मानवरहित विमानों (UAVs) और हवा में उड़ान भर सकने वाले तमाम तकनीकी औज़ार, चीन के रुकॉनसेंस स्ट्राइक कॉम्प्लेक्स (RSC) का एक हिस्सा हैं. RSC का मक़सद पूरा करने के लिए चीन की सेना (PLA) को ‘दुश्मन का पता लगाकर उस पर हमला करके उसका ख़ात्मा’ करना होगा.
चीन की अन्तरिक्ष नीति
चीन के रुकॉनसेंस स्ट्राइक कॉम्प्लेक्स (RSC) में सिग्नल इंटेलिजेंस (SIGINT), इमेजरी इंटेलिजेंस (IMINT), कम्युनिकेशन इंटेलिजेंस (COMINT) और इलेक्ट्रॉनिक इंटेलिजेंस (ELINT) की क्षमताएं आती हैं, जिनके दायरे में अंतरिक्ष से मिलने वाली, हवा में तैर रही और ज़मीन से मिलने वाली गोपनीय जानकारियां जुटाना और दुश्मन की निगरानी करना (ISR) शामिल है. निकट अंतरिक्ष में उड़ान भर सकने वाले संसाधन (NSFV) या फिर निकट अंतरिक्ष की तकनीकें (NST) अब काफ़ी अहम होती जा रही हैं, ख़ास तौर से चीन के लिए और मोटे तौर पर पूरी दुनिया के लिए. चीन के दुश्मनों के ख़िलाफ़ पारंपरिक युद्ध के दौरान, NST से युद्ध के हालात की सटीक जानकारी मिल सकेगी. युद्ध क्षेत्र में बिखरी हुई लड़ाकू सैनिक टुकड़ियों के बीच आपसी संचार में सुधार होगा. सेंसर के ज़रिए पता लगाकर निशाना साधने की क्षमता बेहतर होगी और जंग के मैदान में अगुवाई कर रहे जनरलों को फ़ैसले लेने में ज़्यादा आसानी होगी. चीन के सामने खड़ी व्यापक सैन्य चुनौतियों को देखें, तो NSFV में चीन का निवेश हैरान करने वाला बिल्कुल नहीं है. अब ये विडम्बना ही है कि चीन ने अपनी आक्रामक करतूतों से ख़ुद ही इन चुनौतियों को खड़ा किया है. फिर चाहे वो भारत के ख़िलाफ़ हो, ताइवान और फिलीपींस के ख़िलाफ़ या फिर अमेरिका के विरुद्ध. हवा में उड़ान भर सकने वाली निकट अंतरिक्ष की तकनीक वाले औज़ारों का विकास, उनका सेनाओं के साथ एकीकरण और उनका इस्तेमाल, चीन की सेना के सूचना बढ़ाने की रणनीति का हिस्सा है, जिसमें NST के सैन्य अभियान में प्रभावी इस्तेमाल और मदद करने वाले उपयोग के ज़रिए साइबर, अंतरिक्ष और इलेक्ट्रोमैग्नेटिक क्षेत्र में दबदबा क़ायम किया जा सके.
निकट अंतरिक्ष में उड़ान भर सकने वाले संसाधन (NSFV) या फिर निकट अंतरिक्ष की तकनीकें (NST) अब काफ़ी अहम होती जा रही हैं, ख़ास तौर से चीन के लिए और मोटे तौर पर पूरी दुनिया के लिए.
चीन जिस तरह निकट अंतरिक्ष की तकनीकों (NST) के विकास में आक्रामक तरीक़े से जुटा हुआ है, उसमें अंतरिक्ष में चल सकने वाले और हवा में उड़ान भर सकने वाले संसाधन शामिल हैं. चीन का इन तकनीकों के विकास का अभियान लगातार नई नई तकनीकों के साथ उभर रहा है और विविधताओं से भरा है. धरती की निचली कक्षा (LEO) में अंतरिक्ष यान भेजना, चीन के RSC के अंतरिक्ष वाले हिस्से में आता है. अंतरिक्ष में चल सकने वाली NST की अपर्याप्तता ने पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की स्ट्रैटेजिक सपोर्ट फ़ोर्स (PLASSF) को मजबूर किया है कि वो जासूसी ग़ुब्बारे, एयरोस्टेट और UAV विकसित करे. निश्चित रूप से चीन की तलाश या फिर मक़सद बहुतायत में संसाधन विकसित करना है. ऐसा करके चीन ये चाहता है कि अगर युद्ध के दौरान उसकी सामरिक फोर्स (PLASSF) के निकट अंतरिक्ष के संसाधन दुश्मन के हाथों नष्ट हो जाएं, या फिर नाकाम कर दिए जाएं, तो भी वो दूसरे विकल्पों का इस्तेमाल कर सके. चीन के कई दुश्मनों के पास अंतरिक्ष में पलटवार करने की क्षमताएं हैं जिससे चीन की अंतरिक्ष पर आधारित निगरानी और जासूसी करने (ISR) की क्षमता सीमित हो जाती है. जंग के मैदान में NSFVs बेहद असरदार साबित हो सकते हैं, क्योंकि, फ़ुर्तीले, चलाने में आसान, लचीले और दुश्मन की नज़रों से बचने की क्षमता जैसी ख़ूबियों के कारण ये बहुत फ़ायदेमंद हो सकते हैं.
NST की हर हवाई क्षमता जो चीन इस्तेमाल कर रहा है, उनमें अलग अलग स्तर की तकनीकी तरक़्क़ी देखने को मिलती है. निश्चित रूप से इसकी सूची बहुत लंबी है और हम उन NSFV पर ही अपना ध्यान केंद्रित करेंगे, जो जिन्हें चीन ने विकसित कर लिया है और अब उसका इस्तेमाल कर रहा है. सबसे निचले स्तर की तकनीक तो जासूसी ग़ुब्बारे और मानवरहित जासूसी विमान हैं वहीं, उच्च तकनीक के हथियारों की बात करें, तो इसमें हाइपरसोनिक मिसाइल शामिल है. निम्न स्तर के हवा में चलाए जा सकने वाली निगरानी और जासूसी की तकनीकें, लंबे समय तक इस्तेमाल किया जा सकने वाला सौर ऊर्जा से संचालित ड्रोन Venus 50 है. चीन ने इस UAV की पहली परीक्षण उड़ान सितंबर 2022 में की थी. इस ड्रोन को एविएशन इंस्टीट्यूट के फर्स्ट फ्लाइट रिसर्च इंस्टीट्यूट ने बनाया है. अपनी पहली ही उड़ान में इस ड्रोन को ‘पूरी तरह कामयाब’ घोषित किया गया था. दोहरे फ्यूज़लेज की वजह से इस ड्रोन को लंबे समय तक उड़ने में सक्षम बताया गया था और ये सिर्फ़ सौर ऊर्जा से संचालित होता है. इसका विकास करने वालों के मुताबिक़ Venus-50 निगरानी करने, नक़्शे बनाने, संचार के लिए और मौसम के पैटर्न पर नज़र रखने जैसे कई काम कर सकता है. ऐसा लग रहा है कि Venus-50 की कामयाबी के बाद चीन अब लंबी उड़ान भर सकने वाले ड्रोन बनाने को लेकर काफ़ी उत्साहित है. चीन इसे लेकर जिन मामलों में और प्रगति करने की उम्मीद जता रहा है, उनमें ऊर्जा का नए स्रोत, मिले जुले पदार्थ और फ्लाइट कंट्रोल शामिल है.
चीन इसे लेकर जिन मामलों में और प्रगति करने की उम्मीद जता रहा है, उनमें ऊर्जा का नए स्रोत, मिले जुले पदार्थ और फ्लाइट कंट्रोल शामिल है.
निगरानी और जासूसी के लिए निचले दर्जे की तकनीकों जैसे कि UAV या NSFV के अलावा, चीन के पास आला दर्ज़े के हथियार भी मौजूद हैं. ये ड्रोन, ऊंचाई पर ले जा कर गुब्बारे से छोड़े जाने वाले हाइपरसोनिक ग्लाइड बूस्ट व्हीकल हैं, जिन्हें अभी भी विकसित किया जा रहा है. मगर ये काम पूरा होने के क़रीब है. वहीं, दूसरे तरह के NSFV या फिर उच्च स्तर के ड्रोन (UAV) में वुझेन-8 (WZ-8) शामिल है. इसको एविएशन इंडस्ट्री कॉर्पोरेशन ऑफ चाइना (AVICS) नाम की कंपनी बना रही है. ये UAV निगरानी के मिशन करने में सक्षम बताया जा रहा है. चीन ने पहली बार इसे 2019 में सार्वजनिक रूप से प्रस्तुत किया था. WZ-8 ड्रोन उन्नत किस्म के इलेक्ट्रो ऑप्टिकल कैमरों और सेंसर्स से लैस हैं. इसमें सिंथेटिक एपर्चर रडार लगा हुआ है, जिससे घने बादलों और कोहरे के बावजूद ऊपर से नीचे के इलाक़ों की मैपिंग की जा सकती है. इस ड्रोन को दक्षिण कोरिया और जापान के ख़िलाफ़ पहले ही जानकारी जुटाने के लिए तैनात किया जा चुका है और सटीक हमलों की तैयारी के लिए इस ड्रोन को दक्षिण कोरिया और जापान के ख़िलाफ़ तैनात किया जा चुका है. चीन ने तो खुलकर कहा है कि WZ-8 इस्तेमाल के लायक़ है और उसे तैनात किया जा चुका है. वुझेन सीरीज़ के कम उन्नत ड्रोन WZ-7 फिर भी ज़्यादा ऊंचाई पर लंबे समय तक रहकर निगरानी करने वाला ड्रोन HALE (UAV) को अरुणाचल प्रदेश में चीन से लगने वाली सीमा में स्थित निंगची मेनलिंग के चीनी सैनिक अड्डे पर तैनात किया जा चुका है. WZ-7 को चीन की वायुसेना के शिगास्ते हवाई अड्डे पर भी तैनात किया गया है, जो सिक्किम की राजधानी गंगटोक से केवल 150 किलोमीटर क दूरी पर है.
चीन ने जिन हाइपरसोनिक मिसाइलों को विकसित कर लिया है और अभी जिनका विकास वो कर रहा है, उन्हें देखते हुए भारत को चीन से मुक़ाबले के लिए तैयारी करनी होगी.
आगे की संभावना
आने वाले वर्षों में न केवल चीन, बल्कि दुनिया भर के तमाम देशों जैसे कि भारत को ये समझना पड़ेगा कि भविष्य के युद्धों में मुक़ाबले के लिए नियर स्पेस फ्लाइट व्हीकल्स (NSFVs) में निवेश की ज़रूरत पड़ेगी. क्योंकि ये नया युद्ध ड्रोन या फिर UAV के प्रति काफ़ी संवेदनशील रहेगा. यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध हो, इज़राइल और हमास का टकराव हो या फिर आर्मेनिया और अज़रबैजान के बीच की लड़ाई. ये सबके सब दिखाते हैं कि निगरानी हो या फिर जासूसी या फिर सटीक निशाना लगाने की ज़रूरत, ड्रोन में निवेश की ज़रूरत बढ़ती जाएगी. UAV के अलावा, एयरोस्टेट और एयरशिप में भी काफ़ी निवेश की ज़रूरत पड़ेगी. निकट अंतरिक्ष की इन तीनों तकनीकें मिलाकर निगरानी और जासूसी की उन कमियों को दूर करेंगे, जिनको उपग्रह पूरा नहीं कर पाते. इसके अलावा, सटीक निशाना लगा सकने वाले ड्रोन के मामले में भी काफ़ी बढ़ोत्तरी होगी. चीन ने जिन हाइपरसोनिक मिसाइलों को विकसित कर लिया है और अभी जिनका विकास वो कर रहा है, उन्हें देखते हुए भारत को चीन से मुक़ाबले के लिए तैयारी करनी होगी.
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