द चाइना क्रॉनिकल्स सीरीज में ये 145वां लेख है.
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के हिस्से के रूप में चीन ने 2015 में डिजिटल सिल्क रोड (DSR) को लॉन्च किया. BRI के दो प्रमुख भागों- सिल्क रोड इकोनॉमिक बेल्ट और ट्वेंटी फर्स्ट सेंचुरी मेरिटाइम सिल्क रोड- में जहां इंफ्रास्ट्रक्चर एवं घर बनाने के प्रोजेक्ट, इकोनॉमिक कॉरिडोर, ऊर्जा की खोज से जुड़े कार्यक्रम और रिन्यूएबल एनर्जी उत्पादन के प्रोजेक्ट शामिल हैं, वहीं DSR उभरते बाजारों और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के साथ सूचनाओं के आदान-प्रदान और डिजिटल सहयोग के विस्तार वाले चीन के दृष्टिकोण की रूप-रेखा पेश करता है.
लॉन्च होने के आठ साल बाद डिजिटल सिल्क रोड विकासशील देशों में पश्चिमी देशों के तक़नीकी दबदबे को चुनौती दे रहा है. चीन की प्राइवेट और सरकारी स्वामित्व वाली कंपनियों, जिनको सरकारी बैंकों का समर्थन हासिल है, ने सस्ते तक़नीकी कॉन्ट्रैक्ट और तेज़ी से तैयार डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट की पेशकश की है. हाल के वर्षों में चीन की इस पहल ने रफ्तार पकड़ी है क्योंकि कई देश राष्ट्रीय स्तर पर बदलाव और आर्थिक विकास के लिए सूचना एवं संचार तक़नीकों का इस्तेमाल करना चाहते हैं. अभी तक इंडो-पैसिफिक के 27 देशों ने DSR के तहत डिजिटल सहयोग को मज़बूत करने के लिए चीन के साथ द्विपक्षीय समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं.
ये लेख DSR के तहत तीन बड़ी गतिविधियों- समुद्र में केबल बिछाने, हाई-टेक सुरक्षा कैमरे लगाने और 5G नेटवर्क तैयार करने- की पड़ताल करता है ताकि ये समझा जा सके कि किस तरह चीन ने इंडो-पैसिफिक के डिजिटल डोमेन (कार्य क्षेत्र) में अपनी पकड़ मजबूत कर ली है.
ये लेख DSR के तहत तीन बड़ी गतिविधियों- समुद्र में केबल बिछाने, हाई-टेक सुरक्षा कैमरे लगाने और 5G नेटवर्क तैयार करने- की पड़ताल करता है ताकि ये समझा जा सके कि किस तरह चीन ने इंडो-पैसिफिक के डिजिटल डोमेन (कार्य क्षेत्र) में अपनी पकड़ मजबूत कर ली है.
द्विपक्षीय भागीदारी के ज़रिये DSR को बढ़ावा
राष्ट्रीय विकास और सुधार आयोग (NDRC) के द्वारा मार्च 2015 में ज़ारी दस्तावेज़ “सिल्क रोड इकोनॉमिक बेल्ट और ट्वेंटी फर्स्ट सेंचुरी मेरिटाइम सिल्क रोड को साझा तौर पर बनाने के लिए दूरदर्शिता (विजन) और अभियान” में पहली बार DSR के विचार का जिक्र किया गया. इसमें कहा गया कि “इन्फॉर्मेशन सिल्क रोड” का निर्माण करने के लिए चीन को “द्विपक्षीय स्तर पर सीमा के पार ऑप्टिकल केबल नेटवर्क का निर्माण” एवं “दूसरे महादेशों तक समुद्री ऑप्टिकल केबल प्रोजेक्ट की योजना” बनानी चाहिए और “सैटेलाइट इन्फॉर्मेशन कॉरिडोर” को सुधारना चाहिए. इसके बाद चीन की कुछ सरकारी रिपोर्ट में इस पहल का हवाला “बेल्ट एंड रोड डिजिटल इकोनॉमी इंटरनेशनल कोऑपरेशन इनिशिएटिव” के तौर पर भी दिया गया जिसका मक़सद प्राचीन सिल्क रूट पर डिजिटल अवसरों का फायदा उठाना और कनेक्टिविटी को बढ़ाना था.
DSR इनिशिएटिव के तहत चीन ने इस्तेमाल करने वाले देशों में सक्रिय रूप से अपनी तक़नीकी और संचार कंपनियों को सहयोग और बाजार के हिस्से का विस्तार करने के लिए बढ़ावा दिया है. इस पर खरा उतरते हुए कई सरकारी कंपनियों जैसे कि चाइना टेलीकॉम एवं यूनिकॉम के साथ-साथ प्राइवेट कंपनियों जैसे कि चाइना मोबाइल, हुआवे, बायदू, हेंगतोंग, अलीबाबा, टेनसेंट, हिकविजन, दहुआ और अन्य ने इंडो-पैसिफिक के उभरते बाजारों और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में अपनी मौजूदगी को मजबूत किया है. चीन जहां DSR के ज़रिये घरेलू तक़नीकी क्षमता का निर्माण करना चाहता है, वहीं उसने खुद को एक जोड़ने वाले प्रमुख देश के तौर पर पेश करने की भी कोशिश की है. इस तरह चीन ने अपनी तक़नीकी कंपनियों के विस्तार को आसान बनाया है, बड़े डेटा पूल तक उसकी पहुंच हुई है और एक नया स्टैंडर्ड (मानक) इकोसिस्टम विकसित किया है.
DSR के विस्तार में बड़ा योगदान द्विपक्षीय डिजिटल सहयोग समझौतों का है जो चीन ने इंडो-पैसिफिक के 27 देशों के साथ किया है. इन समझौतों के तहत चीन ने इंडो-पैसिफिक के भीतर कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिए इन्फॉर्मेशन एंड कम्युनिकेशंस टेक्नोलॉजी (ICT) इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण किया है, समुद्री केबल नेटवर्क बिछाए हैं और 4G एवं 5G कनेक्टिविटी को मजबूत किया है.
2013 से 2018 के बीच चीन ने इन देशों में कर्ज़ (रियायती और गैर-रियायती), लाइन ऑफ क्रेडिट और ग्रांट (अनुदान) के ज़रिए ICT इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण करने के लिए लगभग 55 अरब अमेरिकी डॉलर का निवेश किया. हुआवे और अलीबाबा जैसी कंपनियों ने इस भागीदारी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. उदाहरण के लिए, इंडो-पैसिफिक के भीतर 5G से संबंधित किसी भी तक़नीकी विकास के लिए हुआवे प्राथमिक विक्रेता (वेंडर) के तौर पर उभरी है.
समुद्र के भीतर केबल का चीनी जाल
तालिका 1: HMN टेक्नोलॉजीज के द्वारा बनाए गए समुद्र के भीतर बड़े केबल प्रोजेक्ट
स्रोत: सबमरीन केबल अलमनक 2023
जैसे कि ऊपर के डेटा से पता चलता है चीन की HMN टेक्नोलॉजीज (पुराना नाम हुआवे मरीन नेटवर्क) ने 16 समुद्री केबल प्रोजेक्ट को पूरा किया है जो इंडो-पैसिफिक के 27 देशों में फैले हुए हैं. इन परियोजनाओं की कुल लागत 1.6 अरब अमेरिकी डॉलर है. सबसे ज़्यादा ध्यान देने वाली बात ये है कि इन परियोजनाओं को चीन की सरकार का काफी ज़्यादा संरक्षण हासिल है जिसकी वजह से HMN टेक्नोलॉजीज को लगातार अपना दायरा बढ़ाने में आसानी हुई. 2012 में HMN टेक्नोलॉजीज़ का कुल समुद्री केबल प्रोजेक्ट में महज़ 7 प्रतिशत हिस्सा था जो 2019 में बढ़कर 20 प्रतिशत हो गया. 2020 में चीन की सबसे बड़ी पावर और ऑप्टिकल फाइबर केबल बनाने वाली कंपनी हेंगतोंग ने HMN टेक्नोलॉजीज में 81 प्रतिशत हिस्सा हासिल कर लिया. हाल के दिनों में उसकी एक महत्वाकांक्षी परियोजना है पीस (PEACE) समुद्री केबल प्रोजेक्ट जो पाकिस्तान से शुरू होकर फ्रांस तक जाता है और इस तरह यूरोप, अफ्रीका और एशिया को जोड़ता है. ये भारत से होकर नहीं गुजरता है.
इस केबल ने अमेरिका में यूजर की प्राइवेसी और डेटा सुरक्षा के संबंध में चिंताएं बढ़ा दी हैं. इन चिंताओं का कारण है चीन का राष्ट्रीय खुफिया कानून 2017 जिसके तहत चीन के संगठनों और नागरिकों के लिए “सरकारी खुफिया एजेंसियों का समर्थन, सहायता और सहयोग” करना जरूरी है. इसमें यूजर का डेटा और राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित कोई अन्य जानकारी या चीन की तक़नीकी कंपनियों के द्वारा भेजा गया कोई दूसरा डेटा सौंपना या वहां तक पहुंच प्रदान करना शामिल है. इसकी वजह से चीन के आदेश पर डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर में चीन की कंपनियों की ‘खुफिया’ मौजूदगी की अटकलें लगनी लगी हैं.
CCTV कैमरे और जासूसी का जोख़िम
चीन की कंपनियों ने धीरे-धीरे CCTV बाजार में भी अपनी मौजूदगी बढ़ाई है. दुनिया की दो सबसे बड़ी CCTV कंपनियां चीन की हैं- हिकविजन और दहुआ. इन दोनों कंपनियों ने चीन के बाहर 63 लाख से ज़्यादा CCTV कैमरे लगाए हैं जिनमें से 25 प्रतिशत अमेरिका और वियतनाम में हैं.
तालिका 2: दहुआ और हिकविजन के द्वारा इंडो-पैसिफिक में लगाए गए CCTV कैमरे
स्रोत: Top10VPN
इनमें से ज़्यादातर CCTV कैमरे चीन के द्वारा BRI के तहत पेश ‘स्मार्ट सिटी’ सॉल्यूशंस के हिस्से के रूप में सरकारी कंपनियों के द्वारा लगाए गए हैं. ध्यान देने की बात ये है कि इन दोनों कंपनियों ने भारत के अलग-अलग शहरों में भी 2.14 लाख CCTV कैमरे लगाए हैं. इन शहरों में मुंबई (32,563), चेन्नई (9,795), बेंगलुरु (8,616) और दिल्ली (7,006) शामिल हैं.
समुद्री केबल की तरह इन CCTV कैमरों ने भी जासूसी से जुड़ी चिंताएं बढ़ाई हैं. इसको देखते हुए ऑस्ट्रेलिया ने हिकविजन और दहुआ कैमरों को हटाना शुरू कर दिया है. ये कदम सरकार की तरफ से एक जांच के दौरान सरकारी इमारतों में इन कैमरों के पाए जाने के बाद उठाया गया है.
समुद्री केबल की तरह इन CCTV कैमरों ने भी जासूसी से जुड़ी चिंताएं बढ़ाई हैं. इसको देखते हुए ऑस्ट्रेलिया ने हिकविजन और दहुआ कैमरों को हटाना शुरू कर दिया है. ये कदम सरकार की तरफ से एक जांच के दौरान सरकारी इमारतों में इन कैमरों के पाए जाने के बाद उठाया गया है. अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया ने इन दोनों कंपनियों को अशांत शिनजियांग प्रांत में चीन की सरकार के द्वारा जासूसी से सीधे तौर पर भी जोड़ा है. संयोग की बात है कि 2020 में हिकविजन ने अपनी छमाही रिपोर्ट में बताया कि वो शिनजियांग पुलिस के लिए 145 मिलियन अमेरिकी डॉलर की कीमत के उपकरणों का इंतजाम कर रही है. दूसरी रिपोर्टों में बताया गया है कि हिकविजन कैमरे में रिमोट हाइजैकिंग की कमज़ोरी है जिसकी वजह से बिना इजाज़त के ही इन्हें एक्सेस किया जा सकता है. इस वजह से भी सीमा के पार चीन के सर्वर तक डेटा ट्रांसमिशन के बारे में चिंताएं बढ़ गई हैं. इन चिंताओं की वजह से अमेरिकी सरकार ने 2022 में अमेरिका के भीतर दहुआ और हिकविजन के कैमरों की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया. साथ ही सरकारी स्तर पर जासूसी की तकनीकों के इस्तेमाल के बारे में अमेरिका ने फिर से छानबीन की है.
5G नेटवर्क से उभरते खतरे
चीन 5G तक़नीक के इस्तेमाल, रिसर्च और इनोवेशन के मामले में एक प्रमुख भूमिका निभा रहा है. ZTE, हुआवे और चाइना यूनिकॉम जैसी चीन की कंपनियां तक़नीक के व्यवसायीकरण और अपनी प्रतिस्पर्धी कंपनियों की तुलना में सस्ती दरों पर तक़नीक की पेशकश करके आक्रामक ढंग से नये बाजारों में पैठ बना रही हैं. इन रणनीतियों के साथ आक्रामक ढंग से सरकारी बढ़ावे ने हुआवे और ZTE को दुनिया के 5G बाजार में क्रमश: 29 और 11 प्रतिशत हिस्सा हासिल करने में मदद की. इस विस्तार ने चिंताएं खड़ी की हैं कि चीन इन कंपनियों को नये बाजारों पर कब्ज़ा जमाने और एक जासूसी का नेटवर्क स्थापित करने के लिए रणनीतिक तौर पर बढ़ावा देगा.
डिजिटल सिल्क रोड के ज़रिये चीन पश्चिमी देशों के तक़नीकी वर्चस्व को चुनौती देने वाला एक समानांतर तक़नीकी साम्राज्य स्थापित करने में कामयाब हुआ है.
चीन का उद्देश्य 5G मानकों के विचार पर अमल के ज़रिये बाज़ार में इस दबदबे का विस्तार करना है. चीन की सोच है कि वो अगली औद्योगिक क्रांति (जिसमें 5G एक अहम हिस्सा है) के लिए विकासशील देशों को तक़नीकी रूप से लैस करना चाहता है. चीन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जो असर चाहता है और जो कमाई करना चाहता है, उसके लिए नये तक़नीकी मानकों को विकसित करना उसके लिए जरूरी है. कुछ मामलों में उसे पहले ही फायदा मिल चुका है. उदाहरण के तौर पर हुआवे अकेले ही 2019-2021 के बीच 3 अरब अमेरिकी डॉलर की लाइसेंसिंग रॉयल्टी हासिल कर चुकी है. मानकीकरण (स्टैंडर्डाइजेशन) की रेस का एक और महत्वपूर्ण पहलू है नया इंटरनेट प्रोटोकॉल जिसका प्रस्ताव 2021 में इंटरनेट वर्ल्ड कॉन्फ्रेंस में चीन ने हुआवे के प्रेजेंटेशन के ज़रिये दिया है. इसका उद्देश्य अमेरिका के द्वारा खोजे गए ट्रांसमिशन कंट्रोल प्रोटोकॉल/इंटरनेट प्रोटोकॉल (IP) की जगह लेना है. वैसे तो नया प्रस्तावित IP प्रोटोकॉल मौजूदा प्रोटोकॉल की तुलना में ज़्यादा तेज है लेकिन इसमें बिल्ट-इन सर्विलांस और एक “शट-अप कमांड” है जो किसी भी समय किसी भी IP एड्रेस से डेटा फ्लो को काट सकता है.
निष्कर्ष
डिजिटल सिल्क रोड के ज़रिये चीन पश्चिमी देशों के तक़नीकी वर्चस्व को चुनौती देने वाला एक समानांतर तक़नीकी साम्राज्य स्थापित करने में कामयाब हुआ है. इस पहल में इंडो-पैसिफिक की विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में डिजिटल कनेक्टिविटी बढ़ाने की संभावना तो है ही, साथ ही ये चीन को एक ऐसा हथियार मुहैया कराती है जिसका इस्तेमाल वो अपने भू-राजनीतिक (जियोपॉलिटिकल) उद्देश्यों को पूरा करने के लिए जासूसी और खुफिया तरीके के ज़रिये कर सकता है. डिजिटल सिल्क रोड के ज़रिये हथियार के रूप में तक़नीक के इस्तेमाल का इंडो-पैसिफिक के लोकतांत्रिक देशों पर सीधा असर है.
समीर पाटिल ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में सीनियर फेलो हैं.
पृथ्वी गुप्ता ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटजिक स्टडीज प्रोग्राम में रिसर्च असिस्टेंट हैं.
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