Author : Lydia Powell

Published on Dec 27, 2022 Updated 0 Hours ago

सोलर फोटोवोल्टिक आपूर्ति श्रृंखला में विविधिता लाने से यह ज़रूर है कि चीन पर निर्भरता समाप्त हो सकती है, लेकिन यह एनर्जी सेक्टर के डीकार्बोनाइजेशन की लागत में बढ़ोतरी करने वाला होगा.

सोलर फोटोवोल्टिक वैल्यू चेन में चीन का दबदबा!
सोलर फोटोवोल्टिक वैल्यू चेन में चीन का दबदबा!

पृष्ठभूमि

नवीकरणीय ऊर्जा, विशेष तौर पर सौर ऊर्जा (Solar Energy), दुनिया के सभी हिस्सों में आसानी से उपलब्ध है, हालांकि कुछ क्षेत्र ऐसे हैं, जो सौर ऊर्जा से बिजली पैदा करने के मामले में दूसरे क्षेत्रों की तुलना में ज़्यादा अनुकूल हैं. हर जगह पर सौर ऊर्जा की उपलब्धता ने इस अपेक्षा को बल प्रदान किया है कि यह ऊर्जा उत्पादन और खपत को ना केवल विकेंद्रीकृत करेगी, बल्कि विश्व को भू-राजनीतिक पावर से भी आज़ादी दिलाएगी, जो कि तेल और गैस (Oil & Gas) जैसे पारंपरिक ऊर्जा स्वरूपों की भौगोलिक केंद्रीकरण में निहित है.चीन के पास मौज़ूद सौर फोटोवोल्टिक (पीवी) मैन्युफैक्चरिंग क्षमता के साथ-साथ चीन (China) के सौर पीवी मॉड्यूल के उत्पादन के लिए उपयोग किए जाने वाले ख़निजों पर नियंत्रण ने इस दृष्टिकोण को चुनौती दी है.भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) समेत बड़ी अर्थव्यवस्थाएं, इसके जवाब में सोलर पीवी मॉड्यूल की अपनी घरेलू विनिर्माण क्षमता में भारी निवेश कर रही हैं. यह सोलर पीवी मॉड्यूल के लिए चीन पर वैश्विक निर्भरता को कम कर सकता है, लेकिन यह वैश्विक ऊर्जा क्षेत्र के डीकार्बोनाइजेशन (Decarbonisation) यानी कार्बन उत्सर्जन कम करने की लागत को भी बढ़ा सकता है.

सोलर फोटोवोल्टिक वैल्यू चेन

सौर फोटोवोल्टिक वैल्यू चेन सिलिकॉन डाईऑक्साइड (SiO2) को सौर-ग्रेड पॉलीसिलिकॉन में परिष्कृत करने के साथ शुरू होती है. वैल्यू चेन के इस महत्त्वपूर्ण ऊपरी सेगमेंट में चीन की हिस्सेदारी 10 साल पहले के लगभग 30 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2022 में 80 प्रतिशत से ज़्यादा हो गई है. पॉलीसिलिकॉन का उत्पादन करने वाली चोटी की 10 कंपनियों में से सात कंपनियां चीन से हैं, जिनमें टॉप की तीन कंपनियांशामिल हैं. पॉलीसिलिकॉन को इनगोट्स यानी सिल्ली, वेफर्स, सेल और अंत में सौर पैनलों में बदलने वाली प्रक्रियाओं पर भी चीन का दबदबा है. इनमें से प्रत्येक में वैश्विक क्षमता की 80 प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी चीन की है. सोलर मैन्युफैक्चरिंग उपकरणों के शीर्ष 10 आपूर्तिकर्ता भी चीन के ही हैं.सोलर पीवी वैल्यू चेन के अन्य सेगमेंट का निर्माण, जैसे कि मॉड्यूल कंपोनेंट का बैलेंस (उदाहरण के लिए ग्लास का उपयोग करना) भी चीन में स्थित है. इनवर्टर का उत्पादन, जो कि डायरेक्ट करंट (DC) आउटपुट को अल्टरनेटिंग करंट (AC) में बदलते हैं, के साथ-साथ एल्यूमीनियम और स्टील फ्रेम, जो सौर पैनलों को माउंट करने के लिए उपयोग किया जाता है,इनका विनिर्माण भीचीन में ही केंद्रित हैं.

भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) समेत बड़ी अर्थव्यवस्थाएं, इसके जवाब में सोलर पीवी मॉड्यूल की अपनी घरेलू विनिर्माण क्षमता में भारी निवेश कर रही हैं. यह सोलर पीवी मॉड्यूल के लिए चीन पर वैश्विक निर्भरता को कम कर सकता है.

चीनी सोलर इंडस्ट्री की चल रही सभी विस्तार योजनाएं जब पूरी हो जाएंगी, तो मूल्य श्रृंखला के सभी सेगमेंट में चीन की बाज़ार हिस्सेदारी 90 से 95 प्रतिशत तक बढ़ने का अनुमान है. पिछले दशक में विशाल पूंजी निवेश 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक होने का अनुमान है. ऊर्जा-गहन उत्पादन के लिए सस्ती बिजली द्वारा पॉलीसिलिकॉन और इनगोट्स के कम लागत वाले निर्माण में महारत, निजी निवेशकों के लिए ऋण की गारंटी, और रणनीतिक दूरदर्शिता को चीनी सोलर विनिर्माण उद्योग को संचालित करने वाले अहम फैक्टर के रूप में जाना जाता है. आपूर्ति पक्ष के ये सभी फैक्टर एक हिसाब से पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं की डिमांड से जुड़ी अहम नीतियों के पूरक थे और ये सभी परिस्थितियां जाने-अनजाने में चीन में सोलर पैनल के उत्पादन के मुताबिक़ थीं और उसका समर्थन करती थीं.

ज़ाहिर है कि 1990 के दशक में जीवाश्म ईंधन के उपयोग और इसके फलस्वरूप होने वाले कार्बन डाईऑक्साइड के उत्सर्जन को जलवायु परिवर्तन की वजह के रूप में पहचाना गया था.पश्चिमी देशों की सरकारों, विशेष रूप से तेल-आयात करने वाली अमेरिका, जर्मनी और जापान की बड़ी औद्योगिक अर्थव्यवस्थाओं ने सौर ऊर्जा पर अनुसंधान और विकास (आर एंड डी) पर फिर से ज़ोर दिया, उल्लेखनीय है कि इस रिसर्च को 1970 के दशक में तेल संकट के बाद शुरू किया गया था. अमेरिका, जापान और जर्मनी में सोलर पैनलों के निर्माण की लागत बहुत ज़्यादा थी, लेकिन अमेरिका में सरकारी सब्सिडी और जापान, जर्मन, इटली और स्पेन की सरकारों द्वारा प्रस्तावित आकर्षक फीड-इन-टैरिफ (FiT) ने लोगों के बीच अपने घरों पर लगाने के लिए सौर पैनलों की मांग पैदा की.उस दौरान चीन में एक छोटा सोलर पीवी मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर था, जो चीन में पावर ग्रिड से नहीं जुड़े ग्रामीण परिवारों की मांग को पूरा करने के लिए वैश्विक विनिर्माण क्षमता का लगभग 3 प्रतिशत ही था. सोलर मॉड्यूल की बढ़ती मांग और उसे पूरा करने में पश्चिमी उत्पादकों की अक्षमता के मद्देनज़र चीन ने तेज़ी के साथ अपनी निर्माण क्षमताओं का विस्तार किया और देखते ही देखते औद्योगिक अर्थव्यवस्थाओं से आयातित सोलर पैनलों के मार्केट पर अपना दबदबा कायम कर लिया.

चीन सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MOST) ने सोलर पीवी अनुसंधान एवं विकास गतिविधियों का ना सिर्फ़ समर्थन किया, बल्कि अपनी पंचवर्षीय योजनाओं के मुताबिक़ सरकारी लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए उद्यमों को हर संभव मदद उपलब्ध कराई. चीन की 10वीं पंचवर्षीय योजना (2000-05) में अक्षय ऊर्जा की पहचान चीनी एनर्जी बास्केट की आवश्यकताओं को पूरा करने वाले एक महत्त्वपूर्ण विकल्प के तौर पर की गई. 11वीं पंचवर्षीय योजना (2006-10) ने सोलर पीवी आर एंड डी के लिए वार्षिक वित्त पोषण के रूप में 6 मिलियन अमेरिकी डॉलर प्रदान किए और 12वीं पंचवर्षीय योजना (2011-15) ने इसे 12 गुना बढ़ाकर 75 मिलियन अमेरिकी डॉलरकर दिया, ताकि सोलर पीवी वैल्यू चेन के सभी क्षेत्रों को अच्छी तरह से कवर किया जा सके. इसके साथ ही “चीन के राष्ट्रीय बुनियादी अनुसंधान कार्यक्रम” (973 प्रोग्राम) और “चीन के राष्ट्रीय उच्च प्रौद्योगिकी अनुसंधान एवं विकास कार्यक्रम” (863 कार्यक्रम) और “राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी प्लान” ने नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के विकास की सुविधा प्रदान की, उसमें भी खासतौर से सोलर पीवी टेक्नोलॉजी के विकास की सुविधा. वर्ष 2004 से चीन में सोलर पीवी प्रोडक्शन भी “निर्यात के लिए चीनी उच्च प्रौद्योगिकी उत्पादों की कैटेलॉग” कार्यक्रम के माध्यम से दी जाने वाली सहायता से लाभान्वित हुआ. जिसमें टैक्स में छूट, फैक्ट्री स्थापित करने के लिए मुफ़्त ज़मीन और कम ब्याज वाले सरकारी ऋण जैसी कई सहायताएं शामिल थीं. चीन की 13वीं पंचवर्षीय योजना (2016-20) में सोलर पीवी प्रौद्योगिकी इनोवेशन के लिए विशेष प्रकार के लक्ष्य शामिल किए गए थे. इसमें कम से कम 23 प्रतिशत की कार्यक्षमता के साथ मोनोक्रिस्टलाइन सिलिकॉन सेल का व्यावसायीकरण और 20 प्रतिशत की कार्यक्षमता के साथ मल्टी-क्रिस्टलाइन सिलिकॉन सेल के व्यावसायीकरण का लक्ष्य शामिल था.

चीनी सोलर इंडस्ट्री की चल रही सभी विस्तार योजनाएं जब पूरी हो जाएंगी, तो मूल्य श्रृंखला के सभी सेगमेंट में चीन की बाज़ार हिस्सेदारी 90 से 95 प्रतिशत तक बढ़ने का अनुमान है. पिछले दशक में विशाल पूंजी निवेश 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक होने का अनुमान है.

वैश्विक स्तर पर वर्ष 1980 से 2012 के दौरान सोलर मॉड्यूल की लागत में लगभग 97 प्रतिशत की गिरावट दर्ज़ की गई है.लागत में कमी के पीछे के फैक्टरों को लेकरविस्तार से किए गए विश्लेषण के मुताबिक़ सोलर मॉड्यूल कीसमग्र लागत में 60 प्रतिशत की गिरावटके लिए बाज़ार वृद्धि को प्रोत्साहित करने वाली नीतियां ज़िम्मेदार हैं, जबकि बाक़ी 40 प्रतिशत की गिरावट के लिए सरकार द्वारा वित्त पोषित रिसर्च एंड डेवलपमेंट का योगदान है. प्रारंभिक वर्षों में विकसित अर्थव्यवस्थाओं में अनुसंधान एवं विकास बेहद अहम था, लेकिन पिछले दशक में लागत में दर्शनीय कमी मैन्युफैक्चरिंग में बड़ीअर्थव्यवस्थाओं की वजह से थी, जिसके लिए निश्चित तौर पर चीन को श्रेय दिया जाना चाहिए.

आपूर्ति श्रृंखला की संप्रभुता

वेफर्स, सेल और अंत में सोलर पैनलों के निर्माण की वैश्विक क्षमता चीन में मौज़ूद ज़्यादातर अतिरिक्त क्षमता के साथ कम से कम 100 प्रतिशत की मांग से अधिक है.लेकिन पॉलीसिलिकॉन का उत्पादन बार-बार सामने आने वाली समस्याहै, जिसका प्रभाव पॉलीसिलिकॉन की क़ीमत में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है.सोलर पीवी पैनलों के निर्माण के लिए पॉलीसिलिकॉन वो पहली सामग्री है, जिसकी ज़रूरत पड़ती है और यह सिलिका (SiO2) को मेटलर्जिकल-ग्रेड सिलिकॉन (MG-Si) में परिष्कृत करने से शुरू होती है. इसके लिए कच्चे माल पर नज़र डालें तो सिलिका या क्वार्ट्ज़ ऑक्सीजन के बाद दूसरा सबसे ज़रूरी ख़निज है, लेकिन इसे मेटलर्जिकल-ग्रेड सिलिकॉन में बदलने की शोधन प्रक्रिया काफ़ी ख़र्चीली, अत्यधिक ऊर्जा की खपत वाली होती है, साथ ही इसके लिए बहुत ही विशेषज्ञता की भी आवश्यकता होती है. यह सब पॉलीसिलिकॉन मूल्य को निर्धारित करने में बहुत बड़ी भूमिका निभाता है, क्योंकि मैन्युफैक्चरिंग क्षमता वृद्धि में इससे निवेश बहुत बढ़ जाता है.

भारत में सोलर बिजली की शुल्कदरों में कमी की वजह से सोलर प्रतिष्ठान संचालित हो रहे हैं, यह एक सच्चाई है. वर्ष 2010 के बाद सेमुख्य रूप से चीन से आयात होने वाले कम लागत के सोलर पीवी मॉड्यूल के कारण सोलर बिजली टैरिफ में 82 प्रतिशत की गिरावट आई है.

वर्ष 1990 में पॉलीसिलिकॉन का हाज़िर भाव57 अमेरिकी डॉलर/किलोग्राम (kg) था और वर्ष 2000 के दशक के अंत तक उस स्तर के आसपास ही रहा. वर्ष 2008 मेंचीन में इनगोट्स, वेफर्स और सेल के निर्माण की क्षमता में वृद्धि की वजह से पॉलीसिलिकॉन की मांग में भारी वृद्धि हो गई और इसके कारण पॉलीसिलिकॉन का हाज़िर भाव 362 अमेरिकी डॉलर/किलोग्राम के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया था. वर्ष 2012 तकपश्चिमी देशों द्वारा चीनी उत्पादकों पर लगाए गए एंटी-डंपिंग शुल्क के परिणामस्वरूप पॉलीसिलिकॉन की कीमत 22 अमेरिकी डॉलर/किलोग्राम तक गिर गई. बाद में चीन में कम लागत वाले पॉलीसिलिकॉन उत्पादन की अधिक क्षमता ने इसके दामों को बुरी तरह प्रभावित किया और वर्ष 2019 में क़ीमतों को 10 अमेरिकी डॉलर/किलोग्राम से कम कर दिया. वर्ष 2020 के बाद से कोरोना महामारी के पश्चात मांग में सुधार के कारण पॉलीसिलिकॉन की दामों ने एक बार फिर उड़ान भरी और सितंबर, 2022 में 40 अमेरिका डॉलर/किलोग्राम को छूते हुए, उससे भी ऊपर की ओर निकल गए. सोलर पीवी मॉड्यूल के उत्पादन में उपयोग किए जाने वाले पॉलीसिलिकॉन और दूसरे महत्वपूर्ण ख़निजों एवं धातुओं की क़ीमत में बढ़ोतरी का साफ मतलब है कि इससे निश्चित तौर पर ऊर्जा सेक्टर को डीकार्बोनाइज करने की लागत में वृद्धि होगी. आपूर्ति श्रृंखला संप्रभुता प्राप्त करने के लक्ष्य की दिशा में घरेलू सोलर पीवी मैन्युफैक्चरिंग क्षमता में निवेश इन सभी ख़र्चों को जोड़ देगा. भारत में विकास इसका एक उदाहरण है.

भारत में सोलर बिजली की शुल्कदरों में कमी की वजह से सोलर प्रतिष्ठान संचालित हो रहे हैं, यह एक सच्चाई है. वर्ष 2010 के बाद सेमुख्य रूप से चीन से आयात होने वाले कम लागत के सोलर पीवी मॉड्यूल के कारण सोलर बिजली टैरिफ में 82 प्रतिशत की गिरावट आई है. जनवरी, 2021 से भारत में सोलर बिजली शुल्क में 25 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, क्योंकि देश के भीतर नई पीवी मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री की रक्षा के लिए अप्रैल, 2022 से सोलर सेल आयात पर 25 प्रतिशत की बेसिक कस्टम ड्यूटी (बीसीडी) और सोलर पीवी मॉड्यूल के आयात पर 40 प्रतिशत की बेसिक कस्टम ड्यूटी लगाई जाने लगी है. पॉलीसिलिकॉन की क़ीमतों में बढ़ोतरी से संचालित और आयात होने वाले सोलर मॉड्यूल में 40 प्रतिशत की वृद्धि टैरिफ बैरियर्स की लागत में वृद्धि करती है. ज़ाहिर है कि सोलर पीवी सिस्टमों के उपयोग की लागत में समग्र रूप से वृद्धि ऊर्जा प्रणालियों के डीकार्बोनाइजेशन को धीमा कर देगी, विशेष तौर से विकासशील देशों में, जो कि लागत को लेकर बेहद संवेदनशील हैं. आर्थिक राष्ट्रवाद और आपूर्ति श्रृंखला संप्रभुता के फिर से उठने से यह स्पष्ट है कि व्यापार और सुरक्षा संबंधी चिंताएं, जलवायु परिवर्तन की चिंताओं पर हावी होती जा रही हैं. हो सकता है कि भविष्य में क्लाइमेंट साइंस बदला लेकर या नुकसान पहुंचाने के लिए सजा देकर यह स्पष्ट करे कि वह इस सबसे सहमत नहीं है.

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