Author : Chetan Khanna

Published on Mar 20, 2019 Updated 0 Hours ago

आर्थिक मोर्चे पर चीन के अच्‍छे प्रदर्शन को लेकर कोई भी संशय होने पर दुनिया भर के प्रमुख वित्तीय केंद्रों पर जबरदस्‍त प्रतिकूल असर पड़ेगा।

चीन की ‘कर्ज भूख’ विश्व अर्थव्यवस्था के लिए खतरनाक!

ऐसा प्रतीत होता है कि चीनी अर्थव्यवस्था की समस्या एक ऐसे आर्थिक मॉडल से उत्‍पन्‍न हुई है जो अभी तक विकसित नहीं हो पाया है। फ़ोटो: Dan Kitwood/Getty

द चाइना क्रॉनिकल्ससीरीज में यह 75वां लेख है।


अर्जेंटीना से लेकर तुर्की तक और इंडोनेशिया से लेकर मेक्सिको तक, विकासशील अर्थव्यवस्थाएं एक बार फिर वित्तीय उथल-पुथल के कारण तगड़े झटके खाने लगी हैं। हालांकि‍, इस दृष्टि से जो सबसे बड़ी समस्‍या है उससे हमारा ध्‍यान बिल्‍कुल नहीं हटना चाहिए। दरअसल, एक ऐसा देश है जो वैश्विक विकास के लिए एक बड़ा जोखिम बनने के कगार पर है। वह देश कोई और नहीं, बल्कि चीन है।

कई विद्वानों का यह स्‍पष्‍ट मानना है कि पिछले कुछ दशकों के दौरान चीन में हुए विकास ने अर्थशास्त्र की कुछ मूलभूत बातों या कानूनों का खुला उल्लंघन किया है। स्टीन का सिद्धांत यही कहता है कि यदि कोई चीज सदैव नहीं चल सकती है, तो फि‍र अंतत: वह रुक या थम जाएगी। हालांकि, चीन द्वारा ऋण लेने का सिलसिला स्टीन के सिद्धांत का पालन करने में विफल रहता है। यही कारण है कि चीन पर कर्ज बोझ निरंतर बढ़ता ही जा रहा है।

ब्लूमबर्ग के अनुसार, चीन की सरकार द्वारा कर्ज अदायगी पर फोकस करने के बावजूद चीन के कॉरपोरेट, सरकारी एवं घरेलू ऋणों में महज एक दशक में 23 ट्रिलियन (लाख करोड़) डॉलर की भारी वृद्धि दर्ज की गई है और उसका ऋण-जीडीपी अनुपात लगभग 100 फीसदी बढ़ गया है। चिंता का विषय कुल ऋण बोझ नहीं है, बल्कि जिस तेज गति के साथ यह बढ़ा है, उसने सभी को भारी चिंता में डाल दिया है। इतिहास इस बात का गवाह है कि जब भी किसी देश पर बड़ी तेजी से इतना ज्‍यादा ऋण बोझ हो जाता है, तो जल्द ही गंभीर संकट का सामना करना पड़ता है। पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना के अनुसार, वर्ष 2008 के बाद महज एक दशक में ही चीन की अर्थव्यवस्था पर लगभग 12 ट्रिलियन डॉलर का ऋण बोझ बढ़ गया है।

स्टीन का सिद्धांत यही कहता है कि यदि कोई चीज सदैव नहीं चल सकती है, तो फि‍र अंतत: वह रुक या थम जाएगी। हालांकि, चीन द्वारा ऋण लेने का सिलसिला स्टीन के सिद्धांत का पालन करने में विफल रहता है। यही कारण है कि चीन पर कर्ज बोझ निरंतर बढ़ता ही जा रहा है।

वर्ष 2008 में गहराए वित्तीय संकट के बाद चीन ने नए आवासों, बुनियादी ढांचागत सुविधाओं और कारखानों के निर्माण के लिए अत्‍यंत बड़ी मात्रा में धन उधार देकर अपने आर्थिक मॉडल को निर्यात के बजाय विकास के आंतरिक स्रोतों की ओर उन्‍मुख कर दिया। इस तरह के पुनर्संतुलन ने धराशायी या पतन होने का जोखिम बढ़ा दिया, जिसके तहत और भी अधिक ऋण एवं निवेश की आवश्यकता महसूस की गई। इस वजह से सरकार अर्थव्यवस्था को बेहद मामूली प्रोत्साहन ही दे पाने पर विवश हो गई।

फिर भी, ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार द्वारा अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन देने का सिलसिला वास्तव में कभी भी थमा नहीं है। इसके बजाय, चीन में आर्थिक विकास के मूल में ऋण ही मुख्‍य वाहक बन गया है। अत: एक ऐसी स्थिति अवश्‍य आएगी जब स्टीन का सिद्धांत सही नजर आने लगेगा।

वैसे सच्‍चाई यही है कि अमेरिका भी कर्ज की समस्या से जूझ रहा है। यही हालत जापान की भी है। अमेरिका का ऋण-जीडीपी अनुपात 105.40% है। इसी तरह जापान का ऋण-जीडीपी अनुपात 250% है।

वैसे तो ये भारी-भरकम आंकड़ों को दर्शाते हैं, लेकिन ये आंकड़े बिल्‍कुल सटीक हैं और इनसे जुड़े तथ्‍यों को परखा जा सकता है। अत: दोनों ही देशों के बांडों के मूल्‍य और यील्‍ड उस जोखिम प्रीमियम को दर्शाती हैं जिसे निवेशकों को अपने पोर्टफोलियो में इन्‍हें रखने पर अवश्‍य ही समायोजित करना चाहिए।

हालांकि, चीन के बांडों के मामले में ठीक यही स्थिति नहीं है।

आधिकारिक तौर पर, यह आंकड़ा छोटा है: 47.60%। अनाधिकारिक तौर पर, यह पता लगाना मुश्किल है। वैसे, एक अच्‍छी बात यह है कि सरकार ऋणदाता और कर्जदार दोनों ही है। सरकार की एक शाखा सरकार की दूसरी शाखा को पैसा उधार देती है।

हालांकि, कुछ अनाधिकारिक अनुमान हैं। उदाहरणस्‍वरूप, अंतर्राष्ट्रीय वित्त संस्थान (आईआईएफ) ने पिछले वर्ष चीन के ऋण-जीडीपी अनुपात को काफी ज्‍यादा 300% बताया था!

इस बीच, क्रेडिट एजेंसियों और वित्तीय बाजारों ने अभी तक चीन की वित्तीय परिसंपत्तियों की कुल कीमत में अनाधिकारिक या अनौपचारिक ऋण अनुमानों को शामिल नहीं किया है। यही कारण है कि एसएंडपी और मूडीज द्वारा की गई चीन की डेट रेटिंग अमेरिका और जापान के बहुत करीब है।

क्रेडिट एजेंसियों और वित्तीय बाजारों ने अभी तक चीन की वित्तीय परिसंपत्तियों की कुल कीमत में अनाधिकारिक या अनौपचारिक ऋण अनुमानों को शामिल नहीं किया है। 

देश

एसएंडपी मूडीज 10-वर्षीय टीबांड पर यील्‍ड
चीन

A+

A1

3.37*

अमेरिका

AA+

Aaa

3.06

जापान

A+

A1

0.10

*7-वर्षीय

स्रोत: Tradineconomics.com (30 नवंबर 2018)

इससे भी बदतर बात यह है कि चीन की सरकार द्वारा ऋणदाता और कर्जदार दोनों की ही भूमिका निभाने के कारण वह जोखिम को हटाने के बजाय उसे बटोरना जारी रखता है। इसी वजह से पूरी व्‍यवस्‍था या सिस्‍टम के ढह जाने की आशंका को बल मिलता है।

इस बीच, सरकार की दोहरी भूमिका एक नियामक अथवा कर्जदाताओं और कर्जदारों के लिए नियम बनाने की तीसरी भूमिका के ठीक विपरीत होती है। ऐसे में वित्तीय संकट गहराने पर ऋणदाता को संकट से उबारना काफी जटिल हो जाता है।

इसका मतलब यही है कि इस वजह से होने वाला आर्थिक नुकसान एक सरकारी शाखा से दूसरी सरकारी शाखा में स्थानांतरित हो जाता है और ऐसे में नुकसान को कवर करने के लिए नया ऋण लेना आवश्यक हो जाता है।

अत: चीन के लिए स्थिति और भी अधिक गंभीर हो सकती है।

सरकार एक साथ बैंकों, पेंशन फंडों और निगमों तीनों की ही मालिक है। सरकार के स्वामित्व वाले बैंक सीधे सरकार के स्वामित्व वाले निगमों को पैसा उधार देते हैं। वे आम तौर पर कल्याणकारी एजेंसियों के रूप में कार्य करते हैं। बैंक इसके साथ ही भूमि डेवलपर्स को भी धनराशि उधार देते हैं। इन्‍हीं की बदौलत देश में ‘निवेश’ के बुलबुले बने हैं – ये चीनी अर्थव्यवस्था के इंजनों में से एक हैं।

यह आश्चर्य की बात है कि वर्ष 2008 में वित्तीय संकट गहराने के पश्‍चात दुनिया भर की अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की ही भांति चीन द्वारा बड़े पैमाने पर आर्थिक प्रोत्‍साहन देने के बाद भी उस समय से लेकर अब तक वहां की बैंकिंग प्रणाली पर कोई आंच नहीं आई है। हालांकि, सच्‍चाई यही है कि जहां एक ओर अन्य देशों ने सरकारी व्‍यय के जरिए अपने यहां दिए गए आर्थिक प्रोत्‍साहनों का वित्त पोषण किया, वहीं दूसरी ओर चीन में ठीक यही काम उसके बैंकों द्वारा किया गया (ऊपर दिया गया चार्ट देखें)।

हालांकि, चीन इस संबंध में मुमकिन प्रतीत होने वाले इस एकमात्र वक्‍तव्‍य पर अब भी टिका हुआ है कि वह किसी भी तरह के वित्तीय संकट से निपटने के लिए घरेलू बचत और विशाल विदेशी मुद्रा भंडार (3 ट्रिलियन डॉलर से भी अधिक) के बड़े पूल का उपयोग करने का क्रम जारी रखे हुए है।

यह आश्चर्य की बात है कि वर्ष 2008 में वित्तीय संकट गहराने के पश्‍चात दुनिया भर की अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की ही भांति चीन द्वारा बड़े पैमाने पर आर्थिक प्रोत्‍साहन देने के बाद भी उस समय से लेकर अब तक वहां की बैंकिंग प्रणाली पर कोई आंच नहीं आई है। हालांकि, सच्‍चाई यही है कि जहां एक ओर अन्य देशों ने सरकारी व्‍यय के जरिए अपने यहां दिए गए आर्थिक प्रोत्‍साहनों का वित्त पोषण किया, वहीं दूसरी ओर चीन में ठीक यही काम उसके बैंकों द्वारा किया गया।

ऐसा प्रतीत होता है कि चीनी अर्थव्यवस्था की समस्या एक ऐसे आर्थिक मॉडल से उत्‍पन्‍न हुई है जो अभी तक विकसित नहीं हो पाया है। कारण यह है कि वहां सुधारों को वास्तव में कभी भी उस तरह से लागू नहीं किया गया है जैसा कि होना चाहिए। यही नहीं, कई तरह की सरकारी खामियों जैसे कि अर्थव्यवस्था पर इसकी मजबूत पकड़ बने रहने के कारण आर्थिक मॉडल से चीनी और वैश्विक दोनों ही अर्थव्यवस्थाओं पर खतरा मंडराने लगा है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने अनुमान लगाया है कि चीन की आर्थिक विकास दर गिरकर 6% के स्‍तर पर आ सकती है, जो तीन दशकों में सबसे कम विकास दर है।

यहां तक कि चीन के आधिकारिक आंकड़ों में भी यह बताया जा रहा है कि चीन में छाई आर्थिक सुस्‍ती ने औद्योगिक उत्पादन और कारखानों को मिलने वाले ऑर्डर को प्रभावित करना शुरू कर दिया है। अब उपभोक्ताओं ने भी कम खर्च करना शुरू कर दिया है और निजी कारोबार से जुड़ा माहौल निराशाजनक हो गया है।

चीन के डेवलपर्स पर भारी-भरकम कर्ज बोझ को लेकर बढ़ती आशंकाओं की वजह से चीन में संपत्ति की बढ़ती कीमतें अब घटने लगी हैं। वर्तमान में चीन के डेवलपर्स परिपक्व हो चले 55 अरब डॉलर के ऑनशोर या घरेलू ऋण बोझ (2019) से जूझ रहे हैं, जिससे आर्थिक सुस्‍ती और तरलता (लिक्विडिटी) की किल्‍लत के दौर में डिफॉल्‍ट किए जाने की आशंकाएं बढ़ गई हैं। इसके अलावा, प्रॉपर्टी डेवलपर्स को वर्ष 2018 में नए बांड जारी करने और परिपक्व होने वाले बांडों के लिए पुनर्वित्त उपलब्‍ध कराने में कड़ी मशक्‍कत करनी पड़ी है क्‍योंकि चीन की सरकार ने ऋणों के भरोसे तेजी से हो रहे बेलगाम विकास को नियंत्रित करने का प्रयास किया है जिसने हाल के वर्षों में इस सेक्‍टर को नई गति प्रदान करने में काफी मदद की है।

यह समस्या जितनी नजर आ रही है उससे भी कहीं अधिक गंभीर है क्‍योंकि चीन की 134 अरब डॉलर की बांड परिपक्वता को देखते हुए आगामी वर्ष में इसकी अदायगी में और भी अधिक डिफॉल्‍ट हो सकते हैं। कुल मिलाकर चीन की अर्थव्यवस्था इस स्थिति का सामना कैसे करती है, यह देखना अभी बाकी है।

कटु सच्‍चाई यही है कि आर्थिक मोर्चे पर चीन के अच्‍छे प्रदर्शन को लेकर कोई भी संशय होने पर दुनिया भर के प्रमुख वित्तीय केंद्रों पर जबरदस्‍त प्रतिकूल असर पड़ेगा क्योंकि इस वजह से उसकी मुद्रा ‘रेनमिनबी’ काफी कमजोर पड़ जाएगी। दरअसल, चीन अपने निर्यात को बढ़ावा देने और घरेलू मांग विशेषकर इसके निवेश घटक में अपरिहार्य कमी से बचने के लिए खुद ही अपनी मुद्रा का अवमूल्‍यन कर सकता है।

इस तरह के परिदृश्य का वैश्विक मुद्राओं पर ‘सुनामी’ जैसा व्‍यापक प्रतिकूल असर पड़ेगा। वैसी स्थिति में अन्य प्रमुख एशियाई देश भी अपनी प्रतिस्पर्धी क्षमता को बनाए रखने के लिए स्वयं ही अपनी-अपनी मुद्राओं का अवमूल्यन करने पर विवश हो जाएंगे। उधर, यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका को अत्‍यंत तेज अथवा भयावह ‘अपस्फीति’ का सामना करना पड़ेगा, क्योंकि उनकी मुद्राएं कुल मात्रा या रकम की दृष्टि से मजबूत हो जाएंगी।

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