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Published on Dec 27, 2024 Updated 0 Hours ago

सैन्य सरकार और विद्रोहियों दोनों के साथ संवाद करके चीन इस क्षेत्र में अपने हितों को साधने के साथ साथ स्थिरता बनाए रखने की कोशिश कर रहा है

संघर्ष को लेकर कभी गर्मी तो कभी नरमी: म्यांमार में चीन की बदलती भूमिका

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ऑपरेशन 1027 ने म्यांमार के भीतर सत्ता के समीकरण बहुत अधिक बदल डाले हैं. म्यांमार में सत्ता का पलड़ा नस्लीय हथियारबंद संगठनों (EAOs) के पक्ष में झुक गया है. क्योंकि इन विद्रोहियों ने कहीं ज़्यादा ज़मीन पर अपना क़ब्ज़ा जमा लिया है और अब वो म्यांमार के बेहद अहम इलाक़ों पर राज कर रहे हैं. इन संगठनों के नियंत्रण में अहम व्यापारिक क़स्बे और इन इलाक़ों में चल रही कनेक्टिविटी की अहम परियोजनाएं भी गई हैं. सबसे ताज़ा घटनाक्रम ये हुआ है कि अराकान आर्मी (AA) ने बांग्लादेश से लगने वाली सीमा पर बनी सभी चौकियों को अपने क़ब्ज़े में ले लिया है.

 

वैसे तो इन नाटकीय बदलावों की वजह से इन क्षेत्रों में लड़ रहे सैन्य बलों के लड़ाकों के बीच काफ़ी उथल-पुथल मच गई है और लगातार शिकस्त खाने की वजह से उनके हौसले पस्त हैं. म्यांमार के इन बदले हुए हालात ने उसके सबसे प्रभावशाली पड़ोसी देश चीन को भी हिला दिया है. चीन एक बड़ी क्षेत्रीय शक्ति है और उसने म्यांमार में भारी तादाद में निवेश किया हुआ है.

 

म्यांमार में चीन की परियोजनाएं

 

चीन से म्यांमार को जोड़ने वाला आर्थिक गलियारा (CMEC), म्यांमार में चीन के अहम सामरिक हित वाला है. दक्षिण पश्चिम के रखाइन राज्य से लेकर उत्तर पूर्व मे शान सूबे तक ये आर्थिक गलियारा और इसके समानांतर बिछाई गई तेल और गैस की पाइपलाइनें, उसकी मलक्का जलसंधि की दुविधा से निपटने की रणनीति का हिस्सा हैं. मलक्का जलसंधि, चीन की कमज़ोर नस है. क्योंकि, चीन का लगभग 80 फ़ीसद आयातित तेल इसी जलसंधि से होकर गुज़रता है. जिससे चीन को डर रहता है कि कहीं दुश्मन मलक्का की नौसैनिक नाकेबंदी करके उसकी ऊर्जा आपूर्ति को ठप कर दें.  

 मलक्का जलसंधि की दुविधा से निपटने की रणनीति का हिस्सा हैं. मलक्का जलसंधि, चीन की कमज़ोर नस है. क्योंकि, चीन का लगभग 80 फ़ीसद आयातित तेल इसी जलसंधि से होकर गुज़रता है. जिससे चीन को डर रहता है कि कहीं दुश्मन मलक्का की नौसैनिक नाकेबंदी करके उसकी ऊर्जा आपूर्ति को ठप न कर दें.

चीन की अगुवाई वाली परियोजनाओं के पर्यावरण और समाज पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों को लेकर सार्वजनिक रूप से आलोचना होती रही है. इसी वजह से म्यांमार में चीन के निवेश बाधित होते रहे हैं. 2011 में पारदर्शिता के अभावा और समुदायों पर विपरीत प्रभाव को लेकर विरोध के चलते माइत्सोन बांध परियोजना का निलंबन, इसका एक बड़ा उदाहरण है. 2015 के बाद एनएलडी की अगुवाई वाली सरकार के दौरान चीन के क़र्ज़ के जाल को लेकर आशंकाएं बढ़ती गईं. जिसकी वजह से कयाउफियु विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) जैसी परियोजनाओं के लिए नए सिरे से वार्ता करनी पड़ी, जिससे म्यांमार को अपने अनुकुल बेहतर शर्तों पर क़र्ज़ हासिल हो सका.

 

इस परियोजना की शर्तें बदलने से वैसे तो चीन-म्यांमार के आर्थिक गलियारे में लोगों का विश्वास तो बढ़ा है. लेकिन, रखाइन और कोकांग जैसे इलाक़ों में चल रहे सशस्त्र संघर्ष मूलभूत ढांचे की परियोजनाओं के लिए ख़तरा बन गए हैं. चीन ने अपने हितों की रक्षा के लिए जातिवादी हथियारबंद संगठनों से बात की है, ताकि इन ख़तरों को कम किया जा सके.

 

2021 के तख़्तापलट के बाद से म्यांमार में राजनीतिक अस्थिरता ने हालात ख़राब कर दिए हैं. लेकिन, सैन्य सरकार की राज्य प्रशासनिक परिषद (SAC) ने आर्थिक गलियारे (CMEC) से जुड़ी कई परियोजनाओं को मंज़ूरी देकर ये संकेत दिया है कि बढ़ती राजनीतिक उथल-पुथल के बावजूद, चीन को लेकर निरंतरता बनी हुई है. हालांकि, लोगों को लगता है कि चीन राज्य प्रशासनिक परिषद के हक़ में खड़ा है. इसलिए, म्यांमार के आम लोगों के बीच चीन के प्रति नाराज़गी बढ़ती जा रही है और इसी वजह से चीन के निवेशों पर हमले हो रहे हैं. राष्ट्रीय एकता सरकार (NUG) द्वाराजनता की रक्षा का युद्धलड़ने के एलान ने आर्थिक गलियारे से जुड़ी परियोजनाओं के लिए जोखिम और बढ़ा दिया है. चीन ने चोंगचिंग- लिनकांग- मांडले और गुआंगशी- यांगून के वैकल्पिक रास्ते तलाशने की कोशिश की है, लेकिन, मौजूदा संघर्ष की वजह से उसकी इन कोशिशों का भी विरोध हो रहा है.

 राजनीतिक उथल-पुथल के बावजूद, चीन को लेकर निरंतरता बनी हुई है. हालांकि, लोगों को लगता है कि चीन राज्य प्रशासनिक परिषद के हक़ में खड़ा है. इसलिए, म्यांमार के आम लोगों के बीच चीन के प्रति नाराज़गी बढ़ती जा रही है और इसी वजह से चीन के निवेशों पर हमले हो रहे हैं. 

सेना के नियंत्रण वाली सीमाओं पर बढ़ते साइबर अपराधों और इनके प्रति सैन्य सरकार की अनदेखी ने चीन को विद्रोही संगठनों (EAOs) और विशेष रूप से म्यांमार नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस आर्मी (MNDAA) से संवाद करने के लिए मजबूर किया है, जो कि ऑपरेशन 1027 की एक अहम कड़ी है. अक्टूबर 2023 में ऑपरेशन 1027 का एक प्रमुख लक्ष्य राज्य प्रशासनिक परिषद को चुनौती देने के साथ साथ, ऑनलाइन घोटालों, आपराधिक नेटवर्कों और सैन्य सरकार से जुड़े हथियारबंद संगठनों को निशाना बनाना भी है.

 

वैसे तो ऑपरेशन 1027 में चीन की भूमिका स्पष्ट नहीं है. लेकिन, विश्लेषकों का कहना है कि घोटाले के संदिग्धों को सौंपने के एवज़ में चीन, विद्रोहियों को अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग दे रहा है. हालांकि, कोकांग क्षेत्र में क्यार फियांट (ऑनलाइन घोटाले) के अभियानों के ख़ात्मे से EAO के प्रति चीन के समर्थन में बदलाव आया है. जून के बाद दूसरे दौर में चीन की मध्यस्थता से कुछ समय के लिए युद्धविराम के बाद से थ्री ब्रदरहुड एलायंस ने सैन्य सरकार के नियंत्रण वाले कई इलाक़ों पर क़ब्ज़ा जमा लिया था. इनमें लाशियो में उत्तरी पूर्वी कमान और उत्तरी सूबे शान के अहम क़स्बे शामिल थे. इस वजह से इन सामरिक परियोजनाओं पर सैन्य सरकार का नियंत्रण काफ़ी कमज़ोर हो गया था.

 

इन सबके बीच, अप्रैल से ही म्यांमार की सेना चीन को लुभाने की कोशिश करती रही है, ताकि हाथ से निकले इलाक़ों को दोबारा अपने नियंत्रण में लेने में उसकी मदद हासिल की जा सके. इन कोशिशों में लंबे समय से अटकी माइत्सोन बांध परियोजना को दोबारा शुरू करना, चीन के नए वर्ष को म्यांमार एक सार्वजनिक अवकाश घोषित करना और चीन के शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पंचशील सिद्धांत के 70 साल पूरे होने के अवसर पर पूर्व राष्ट्रपति थिएन सिएन को बीजिंग के दौरे पर भेजना शामिल है, जिससे चीन के मीडिया में म्यांमार के पक्ष में कवरेज हुई थी. म्यांमार की जुंता के ये संकेत और ख़ुद चीन की अपनी भू-राजनीतिक प्राथमिकताओं ने उसे अपने रुख़ में बदलाव लाने को प्रेरित किया है, जिसकी वजह से चीन ने राज्य प्रशासनिक परिषद (SAC) के साथ कूटनीतिक संवाद काफ़ी तेज़ कर दिए. नवंबर 2024 में मिन ऑन्ग हलाइंग का ग्रेटर मीकॉन्ग उप-क्षेत्र (GMS) के दो दिनों के शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए युन्नान का दौरा करना, इस मामले में एक अहम क़दम था. ख़बरों से संकेत मिलता है कि इस दौरे के दौरान सैन्य सरकार ने न्यू यांगून सिटी परियोजना को दोबारा चालू करने और चीन के प्रस्ताव के मुताबिक़ मूसे मांडले रेलवे लाइन परियोजना पर काम शुरू करने पर सहमति जताई.

 

कभी नरमी, तो कभी सख़्ती वाला रवैया

 

पश्चिमी देशों द्वारा म्यांमार पर औपचारिक रूप से प्रतिबंध लगाने की नीति के उलट, चीन ने गुपचुप उपायों को तरज़ीह दी है, ताकि अपने हितों की रक्षा के लिए आर्थिक दबाव डालने के साथ साथ, स्थायी विकास करने वाले देश की छवि को बनाए रख सके. चीन के प्रतिबंध अक्सर पांच कटौतियोंके रूप में लागू होते हैं. इनका मतलब बिजली, पानी, इंटरनेट, आपूर्ति श्रृंखलाओं और कर्मियों की आपूर्ति में कटौती करना है. व्यापार और आवाजाही पर पाबंदियों का मक़सद, निशाने पर आए देशों या समूहों को चीन के सामरिक हितों के साथ विशेष रूप से उस समय बाध्य करना होता है, जब चीन को लगता है कि उसकी संप्रभुता ख़तरे में है

 

चीन ने सीमा चौकियों को बंद करने और आर्थिक प्रतिबंधों को ख़ास तौर से लाशियो में कोकांग बलों और अन्य जातीय हथियारबंद संगठनों (EAOs) जैसे कि काचिन इंडिपेंडेंस आर्मी (KIA) को निशाना बनाने के लिए किया है. इन उपायों का मक़सद मुख्य रूप से ऑपरेशन 1027 की वजह से इन संगठनों के बढ़ते जा रहे सैन्य दबदबे से जुड़ी चिंताओं को दूर करना है. म्यांमार और चीन की सीमा से गुज़रने वाले अहम व्यापारिक मार्गों पर अपने बढ़ते नियंत्रण की वजह से इन संगठनों ने अपनी भू-राजनीतिक मोलभाव की क्षमता काफ़ी बढ़ा ली है. इन इलाक़ों पर क़ब्ज़े से हथियारबंद संगठनों को सामरिक क्षेत्र हासिल हो गए हैं, जिनसे उनको सिर्फ़ दूरगामी सैन्य लाभ हासिल होते हैं, बल्कि आर्थिक लाभ और इस क्षेत्र में अपना भू-राजनीतिक प्रबाव बढ़ाने का मौक़ा भी मिलता है.

 म्यांमार के सुरक्षा के समीकरणों में चीन की भूमिका से ये बात साफ़ हो जाती है कि हथियारबंद विद्रोही गुटों को एकजुट होने की ज़रूरत है, क्योंकि चीन पर उनकी निर्भरता से अहम फ़ैसलों में उनकी स्वायत्तता को चोट पहुंचने का डर है.

मिसाल के तौर पर उत्तर के शान सूबे और मध्य म्यांमार में चीन के निवेश वाली दस मौजूदा और प्रस्तावित परियोजनाएं अब इन संगठनों (EAOs) और पीपुल्स डिफेंस फोर्सेज (PDFs) के क़ब्ज़े में है. KIA ने चिपवी, पांग वार और फिमाव जैसे अहम सीमावर्ती क़स्बों पर भी अपना नियंत्रण बना लिया है. इन इलाक़ों में बेहद महत्वपूर्ण अहम दुर्लभ खनिज मिलते हैं. इस बदली हुई परिस्थिति से चीन के इलेक्ट्रॉनिक्स और इलेक्ट्रिक गाड़ियों के उद्योगों के लिए अहम दुर्लभ खनिजों की आपूर्ति में खलल पड़ा है. चूंकि खनन और खनिजों का परिवहन बाधित हुआ है, तो इसकी वजह से दुर्लभ खनिजों की क़ीमत आसामान छूने लगी है, जिससे चीन की आपूर्ति श्रृंखलाओं पर दबाव और बढ़ गया है.

 

इन बदलावों को अपने मूलभूत ढांचे की ज़रूरतों, आर्थिक लाभों और स्थिरता के लिए ख़तरा मानते हुए चीन कभी नरम, तो कभी गरम वाली नीति को अपनाता है और वो राज्य प्रशासनिक परिषद को कूटनीतिक और सैन्य समर्थन देकर जातीय हथियारबंद संगठनों पर दबाव डालता है. चीन के इन क़दमों में सैन्य सरकार की चुनाव कराने की योजना का समर्थन करना भी शामिल है. चीन ने तांग नेशनल लिबरेशन आर्मी (TNLA), MNDAA और KIA को चेतावनी देने के लिए अपनी फाइव कट्स की नीति पर अमल करने के साथ साथ उन्हें बातचीत का न्यौता देकर उन पर दबाव भी बनाया है, ताकि उनसे अपनी बातें मनवाई जा सकें. चीन ने वा के नेताओं को धमकी भी दी है कि अगर वो उसके साथ सहयोग नहीं करेंगे, तो उन पर पाबंदियां लगा दी जाएंगी. चीन के ये क़दम दिखाते हैं कि वो हथियारबंद विद्रोही संगठनों की ताक़त को सीमित रखते हुए चीन के राजनीतिक मंज़र को इस तरह ढालना चाहता है, जिससे वो अपने सामरिक हितों की हिफ़ाज़त कर सके

 

बदलते हुए समीकरण

 

जातीय हथियारबंद संगठनों (EAOs) ने चीन के प्रतिबंधों और कूटनीतिक दांव-पेंचों के प्रति मिली-जुली प्रतिक्रिया दी है. नवंबर और दिसंबर शुरुआती दिनों में MNDAA और TNLA ने बहुत सावधानी बरतते हुए चीन की मध्यस्थता में बातचीत में शामिल होने के संकेत दिए थे. ख़बरों के मुताबिक़ MNDAA के एक नेता इन दिनों इलाज के नाम पर चीन में हैं. माना जा रहा है कि ये चीन का अपना दबदबा दिखाने का एक तरीक़ा है. सितंबर में MNDAA ने अपने आपको राष्ट्रीय एकता सरकार और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से अलग करके निरपेक्ष रुख़ अपनाने का एलान किया था, जिससे वो ख़ुद को चीन के हितों के साथ खड़ा दिखा सके. इसके बावजूद, म्यांमार नेशनल डेमोक्रेकिट एलायंस आर्मी (MNDAA) और तांग नेशनल लिबरेशन आर्मी (TNLA) लगातार अपने क़ब्ज़े वाले इलाक़ों पर दबदबा बनाए हुए हैं.

 

इसी तरह, महीनों तक चीन की युद्धविराम की अपील की अनदेखी करने के बाद काचिन इंडिपेंडेंस आर्मी (KIA) कुनमिंग में वार्ता में शामिल हुई थी. इस बैठक के बाद, 13 दिसंबर को सीमा के द्वार फिर से खुल गए थे, जो KIA और चीन के बीच तनाव की वजह से इस साल अक्टूबर से ही बंद चल रहे थे. हालांकि, दोनों के बीच समझौते की बारीक़ियां अभी सार्वजनिक नहीं की गई हैं. इसी बीच अराकान आर्मी ने अपने आक्रामक सैन्य अभियानों का सिलसिला जारी रखा है. इस वजह से रखाइन सूबे में क्याउकफियू बंदरगाह की चीन के लिए सामरिक अहमियत ने उसकी चिंताएं बढ़ा दी हैं.

 

म्यांमार के सुरक्षा के समीकरणों में चीन की भूमिका से ये बात साफ़ हो जाती है कि हथियारबंद विद्रोही गुटों को एकजुट होने की ज़रूरत है, क्योंकि चीन पर उनकी निर्भरता से अहम फ़ैसलों में उनकी स्वायत्तता को चोट पहुंचने का डर है.

 

म्यांमार के अंदरूनी संघर्ष में चीन की आक्रामक भूमिका, अपने हित साधने के लिए उसके दोहरे रवैये को रेखांकित करते हैं. सैन्य सरकार और हथियारबंद जातीय संगठनों, दोनों के साथ बातचीत करके चीन इस इलाक़े में स्थिरता बनाए रखने के साथ साथ अपने हितों की हिफ़ाज़त करने के प्रयास कर रहा है. हालांकि, जैसे जैसे हालात बदल रहे हैं, वैसे वैसे चीन की भूमिका की जटिलाएं भी परतदार होती जा रही हैं. आगे चलकर उसके गठजोड़ बनाने और अपनी सामरिक प्राथमिकताओं के बीच संतुलन बनाने की चुनौतियां बढ़ सकती हैं. जब तक म्यांमार अंदरूनी संघर्षों का शिकार बना रहेगा, तब तक उसके साथ चीन का संबंध भीसुविधा का गठजोड़बना रहेगा.

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