इंडो-पैसिफिक में तनाव का एक नया बिंदु अगस्त 2024 के आख़िर में उभरा जब चीन का इलेक्ट्रॉनिक खुफिया जानकारी इकट्ठा करने वाला सैन्य विमान PLA Y-9DZ नागासाकी प्रीफेक्चर (प्रांत) के नज़दीक जापान के हवाई क्षेत्र में देखा गया. वैसे तो चीन के जहाज़ अक्सर जापान के इर्द-गिर्द अंतर्राष्ट्रीय एयरस्पेस में नज़र आते हैं लेकिन जापान के रक्षा मंत्रालय ने इस उल्लंघन को जापान के भीतर हवाई क्षेत्र में चीन की सेना के द्वारा घुसपैठ के पहले ज्ञात मामले के रूप में बताया.
चीन और जापान ओकिनावा के दक्षिण-पश्चिम में निर्जन द्वीपों की श्रृंखला को लेकर लंबे समय से विवाद में उलझे हुए हैं. पूर्वी चीन सागर में इन द्वीपों, जिन्हें जापान में सेनकाकू और चीन में दियायू के रूप में जाना जाता है, पर 1895 से जापान का कब्ज़ा है.
पिछले दो दशकों के दौरान जापान को कई बार विदेशी एयरक्राफ्ट के अतिक्रमण का सामना करना पड़ा है. जापान के रक्षा मंत्रालय के अनुसार 2023 में जापान के सेल्फ-डिफेंस फोर्स (आत्मरक्षा बल) को 669 अवसरों पर विदेशी एयरक्राफ्ट को रोकने के लिए लड़ाकू विमानों का इस्तेमाल करना पड़ा. इनमें से 479 मौकों पर चीन का विमान नज़र आने के जवाब में लड़ाकू विमानों को तैयार करना पड़ा. अगस्त 2024 के ताज़ा मामले में जापान के रक्षा मंत्रालय की तरफ से जारी एक नक्शे में दिखाया गया है कि चीन का टोही विमान Y-9 डैंजो द्वीप के पूर्वी हिस्से में आयताकार सर्किट के पैटर्न में उड़ रहा था. उस समय विमान कुछ देर के लिए पश्चिम की तरफ गया और द्वीप के भीतर के हवाई क्षेत्र में 2 मिनट के लिए दाखिल हो गया जो कि द्वीप के तट से 12 नॉटिकल मील दूर तक फैला हुआ है.
जापान-चीन विवाद
चीन और जापान ओकिनावा के दक्षिण-पश्चिम में निर्जन द्वीपों की श्रृंखला को लेकर लंबे समय से विवाद में उलझे हुए हैं. पूर्वी चीन सागर में इन द्वीपों, जिन्हें जापान में सेनकाकू और चीन में दियायू के रूप में जाना जाता है, पर 1895 से जापान का कब्ज़ा है. लेकिन इसके बावजूद चीन भी मिंग और किंग वंशों के ऐतिहासिक रिकॉर्ड के आधार पर इन द्वीपों पर अपना दावा करता है. वैसे तो अगस्त की घटना चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी एयरफोर्स के किसी एयरक्राफ्ट के द्वारा जापान के हवाई क्षेत्र के उल्लंघन की पहली घटना थी लेकिन सेनकाकू द्वीप के नज़दीक इसी तरह की दो घटनाएं हो चुकी हैं. जापान की सरकार के अनुसार 2012 में चीन का एक समुद्री निगरानी विमान सेनकाकू के इर्द-गिर्द एयरस्पेस में दाखिल हो गया और 2017 में चीन के कोस्ट गार्ड जहाज़ से छोड़े गए एक ड्रोन ने भी ऐसा ही किया. 2012 में उस समय तनाव बढ़ गया जब जापान की सरकार ने एक जापानी मालिक से कुछ द्वीप ख़रीदे. चीन ने इसे अपनी संप्रभुता के दावे को सीधी चुनौती के रूप में लिया. इस साल की शुरुआत में चीन ने अपने दावों को मज़बूती से जताने के लिए द्वीप के इर्द-गिर्द के समुद्र में अपने कोस्ट गार्ड और अन्य सरकारी जहाज़ों को बार-बार भेजा. जापान की सरकार के अनुसार इनमें रिकॉर्ड 158 दिनों के लिए द्वीप के नज़दीक चीन की मौजूदगी शामिल है.
सैन्य विश्लेषकों का कहना है कि सेनकाकू के नज़दीक चीन और जापान को शामिल करने वाली कोई भी घटना अमेरिका के साथ जापान की पारस्परिक रक्षा संधि की वजह से एक व्यापक संघर्ष में बदलने का ख़तरा बढ़ाती है क्योंकि अमेरिका ने कई मौकों पर साफ किया है कि वो सेनकाकू को रक्षा संधि के तहत आने वाला इलाका मानता है. वैसे तो हवाई क्षेत्र में घुसपैठ चीन के द्वारा इसे गैर-इरादतन बताकर विरोध और इनकार के बावजूद रणनीतिक तौर पर सोच-समझकर उठाया गया कदम हो सकता है लेकिन चीन के चालक दल ने घटना के दौरान जापान के प्रशासन की तरफ से नज़दीक न आने की चेतावनी को नज़रअंदाज़ कर दिया. चीन के विमान कई घंटों तक जापान के एयरस्पेस के ठीक बाहर निगरानी करते रहे.
चीन की घुसपैठ रणनीतिक रूप से सोच-समझकर उठाया गया कदम हो सकता है जिसका उद्देश्य इस क्षेत्र में अमेरिका के गठबंधन को कमज़ोर करना और जापान की सैन्य प्रतिक्रिया की क्षमताओं की परख करना हो सकता है.
सितंबर के आख़िर में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान जापान के मुख्य कैबिनेट सचिव योशिमासा हायाशी ने कहा कि जापान के आसपास चीन की सैन्य गतिविधियां अधिक सक्रिय हो गई हैं. हायाशी ने कहा कि हवाई क्षेत्र का अतिक्रमण “न केवल जापान की संप्रभुता का एक गंभीर उल्लंघन था बल्कि ये हमारी सुरक्षा को भी ख़तरे में डालता है.” उन्होंने ये भी कहा कि सरकार जापान के नज़दीक चीन की बढ़ती सैन्य गतिविधि की निगरानी जारी रखेगी और आगे इस तरह की घटनाओं के लिए पूरी तरह से तैयार है. चीन की घुसपैठ रणनीतिक रूप से सोच-समझकर उठाया गया कदम हो सकता है जिसका उद्देश्य इस क्षेत्र में अमेरिका के गठबंधन को कमज़ोर करना और जापान की सैन्य प्रतिक्रिया की क्षमताओं की परख करना हो सकता है. इसका एक मतलब आने वाले चुनाव से पहले जापान को धमकी देना या नेटो के यूरोपीय सदस्यों को इंडो-पैसिफिक में अपनी बढ़ी हुई गतिविधियों को कम करने के लिए चेतावनी देना भी हो सकता है. इसके अलावा चीन का एयरक्राफ्ट नागासाकी प्रांत के सासेबो में बड़े अमेरिकी और जापानी नौसैनिक केंद्र की निगरानी के मिशन के लिए भी तैनात किया गया हो सकता है जिसके ज़रिए जापान की पता लगाने की क्षमता और उसके लड़ाकू विमानों के जवाब देने के समय का अंदाज़ा लगाया गया होगा. ये भी हो सकता है कि चीन के एयरक्राफ्ट ने दक्षिण कोरिया और ब्रिटिश सेना के साथ साझा सैन्य अभ्यास में शामिल अमेरिकी नौसेना और हवाई यूनिट के बारे में खुफिया जानकारी इकट्ठा की होगी. जापान के विदेश मामलों के मंत्रालय के मुताबिक जापान के उप विदेश मंत्री मसाकाता ओकानो ने 26 अगस्त को चीन के कार्यवाहक राजदूत को समन किया और अपना “तीखा विरोध जताया”. उन्होंने चीन से ये सुनिश्चित करने को भी कहा कि ऐसी हरकत दोबारा न हो. इसके बाद जापान ने उस समय औपचारिक आपत्ति जताई जब 31 अगस्त को चीन का नौसैनिक सर्वेक्षण जहाज़ जापान के समुद्र में दाखिल हुआ. ये जापान के भौगोलिक क्षेत्र में एक हफ्ते से भी कम समय के भीतर चीन की सेना की तरफ से दूसरी बार घुसपैठ की घटना थी.
जापान की रणनीति
जापान अपनी निगरानी और टोही क्षमताओं को बढ़ाने के लिए एक व्यापक रक्षात्मक सैटेलाइट नेटवर्क को विकसित करने पर 2 अरब अमेरिकी डॉलर का निवेश करने वाला है. इस नेटवर्क में आधुनिक उपग्रहों का एक समूह शामिल होगा जो निगरानी और जवाब देने की क्षमताओं में सुधार करने के लिए रियल-टाइम डेटा और तस्वीरें मुहैया कराएगा. रक्षा मंत्रालय ने देश की पंचवर्षीय रक्षा योजना, जिसके तहत मार्च 2028 तक रक्षा तैयारियों पर 43 ट्रिलियन येन खर्च होना है, के हिस्से के रूप में अगले वित्तीय वर्ष के लिए 8.5 ट्रिलियन येन (59 अरब अमेरिकी डॉलर) की मांग भी की है जो उसका अभी तक का सबसे बड़ा शुरुआती बजट अनुरोध है. रक्षा मंत्रालय के अनुरोध में मिसाइल और ड्रोन के ज़रिए दूर के लक्ष्यों पर हमला करने के उद्देश्य से क्षमताओं को बढ़ाने के लिए फंडिंग शामिल है. ये पिछले वर्ष मंत्रालय की तरफ से 7.7 ट्रिलियन येन के शुरुआती अनुरोध से अधिक है लेकिन वर्तमान वित्तीय वर्ष के लिए मंज़ूर 9.4 ट्रिलियन येन के वास्तविक बजट की तुलना में कम है.
जापान अपनी निगरानी और टोही क्षमताओं को बढ़ाने के लिए एक व्यापक रक्षात्मक सैटेलाइट नेटवर्क को विकसित करने पर 2 अरब अमेरिकी डॉलर का निवेश करने वाला है.
जापान के हवाई क्षेत्र में चीन की घुसपैठ की ये घटना निर्विवाद रूप से अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन करती है और इस क्षेत्र में चीन की हठधर्मिता में महत्वपूर्ण बढ़ोतरी को दिखाती है. अभी तक चीन ने सीधे तौर पर जापान के हवाई क्षेत्र में दाखिल होने से काफी हद तक परहेज़ किया है जिसकी वजह से ये चिंताजनक घटना बन गई है जो उसके और अधिक टकराव वाले रवैये का संकेत देती है. घुसपैठ का समय विशेष रूप से उल्लेखनीय है क्योंकि ये घटना अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन के द्वारा ताइवान के मुद्दे पर चीन के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ चर्चा के लिए उनके बीजिंग रवाना होने से ठीक एक दिन पहले हुई. इससे पता चलता है कि ये घुसपैठ अमेरिका को लेकर चीन के बढ़ते असंतोष और ताइवान संकट को लेकर जापान की बढ़ती मुखरता और मज़बूत रवैये के बारे में अमेरिका और जापान के लिए जान-बूझकर दिया गया एक इशारा हो सकता है.
प्रत्नाश्री बासु ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में एसोसिएट फेलो, इंडो-पैसिफिक हैं.
राका बर्मन ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च इंटर्न हैं.
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