Published on Jan 25, 2021 Updated 0 Hours ago

चीन की इस नई रक्षा नीति के तहत पीएलए की साझा सैन्य कार्रवाइयों के लिए सुस्पष्ट कार्य-योजनाएं तय की गई हैं और विभिन्न स्तरों पर काम करने वाली इकाइयों की ज़िम्मेदारियां भी स्पष्ट की गई हैं

चीन: बड़े टकराव की तैयारी में चीन की फौज पीपल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए)

चीन की सर्वोच्च सैन्य सत्ता सेंट्रल मिलिट्री कमीशन (सीएमसी) ने हाल ही में क़रीब दो दशकों के बाद पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) की संयुक्त सैनिक कार्रवाइयों के लिए नए दिशानिर्देश जारी किए हैं. फ़ौज में भर्तियों की देखरेख के लिए राष्ट्रीय स्तर पर अंतर-मंत्रालयी तंत्र या इंटरमिनेस्टेरियल विभाग की भी स्थापना की गई है. सीएमसी रणनीतिक स्तर पर चीन की सेना का मार्गदर्शन करता है. हाल ही में जारी दिशानिर्देश राष्ट्रपति शी जिनपिंग के “फ़ौज को मज़बूत बनाने के विचारों” के हिसाब से तय किए गए हैं. ग़ौरतलब हैं कि ये दिशानिर्देश ऐसे वक़्त पर जारी किए गए हैं जब भारत-चीन सरहद पर सेनाओं का भारी जमावड़ा है और ताइवान की खाड़ी में भी ज़बरदस्त तनाव का माहौल है.

चीन की इस नई रक्षा नीति के तहत पीएलए की साझा सैन्य कार्रवाइयों के लिए सुस्पष्ट कार्य-योजनाएं तय की गई हैं और विभिन्न स्तरों पर काम करने वाली इकाइयों की ज़िम्मेदारियां भी स्पष्ट की गई हैं. ये दिशानिर्देश नवंबर की शुरुआत से लागू भी हो गए हैं. उम्मीद है कि इनसे पीएलए में ढांचागत सुधारों को बल मिलेगा और मिलकर काम करने की विभिन्न सेनाओं की क्षमता बढ़ेगी. संयुक्त सैन्य कार्रवाइयों के लिए सटीक कार्ययोजना, सैन्य आपूर्ति और सैनिक जमावड़े के अत्याधुनिक प्रबंधन की आवश्यकता होती है. इसके लिए एकीकृत प्रक्रियाओं की ज़रूरत होती है जो फ़ौज की हरेक शाखा के लिए उपयुक्त हों.

राष्ट्रपति शी हमेशा से संयुक्त स्तर पर कार्रवाई करने की पीएलए की क्षमता को मज़बूत करने पर ज़ोर देते रहे हैं. अक्टूबर में जब वो गुआंगडोंग प्रांत के चाओझोउ स्थित पीएलए नेवी के मेरिन कॉर्प के मुख्यालय के दौरे पर पहुंचे थे तब भी उन्होंने इसी बात को दोहराया था. 

राष्ट्रपति शी हमेशा से संयुक्त स्तर पर कार्रवाई करने की पीएलए की क्षमता को मज़बूत करने पर ज़ोर देते रहे हैं. अक्टूबर में जब वो गुआंगडोंग प्रांत के चाओझोउ स्थित पीएलए नेवी के मेरिन कॉर्प के मुख्यालय के दौरे पर पहुंचे थे तब भी उन्होंने इसी बात को दोहराया था. अक्टूबर 2020 में नीतिगत मसलों पर चर्चा के लिए सीसीपी की सेंट्रल कमेटी का सालाना विस्तृत अधिवेशन हुआ था. ये अधिवेशन ख़ासतौर से रक्षा मामलों के लिए बेहद अहम था. इस अधिवेशन में युद्ध के लिए तैयार रहने की बात दोहराई गई. इस अधिवेशन में घोषित ‘विकास लक्ष्यों’ में सबसे अहम लक्ष्य पीएलए को लेकर था. इस अधिवेशन में ये घोषणा की गई कि 2027 में पीएलए की 100वीं वर्षगांठ तक उसे एक आधुनिक सेना के रूप में तैयार कर लिया जाए. अधिवेशन में ‘एक समृद्ध राष्ट्र और सशक्त सेना के लक्ष्य को हासिल करने के लिए राष्ट्रीय रक्षा के आधुनिकीकरण’ पर ज़ोर दिया गया.

हॉन्ग कॉन्ग स्थित सैन्य मामलों के विश्लेषक शोंग झोंगपिंग का कहना है कि- “इस बात की व्याख्या ऐसे भी की जा सकती है कि चीन पीएलए को दुनिया में बेहद शक्तिशाली फ़ौज के रूप में तब्दील करना चाहता है. उसे एक ऐसी सेना बनाना चाहता है जो अमेरिकी फौज के टक्कर की हो.”

आधुनिक और नए साजोसमान से लैस फौज

शी के नेतृत्व में पीएलए के आधुनिकीकरण के लिए दो मुख्य़ बातों पर ध्यान दिया जा रहा है- एक है “हार्डवेयर” और दूसरा “सॉफ़्टवेयर.” हार्डवेयर की बात करें तो सेना के क्षमता-वर्धन के कार्यक्रमों में चीन के भीतर ही सैन्य उपकरणों का निर्माण किए जाने पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है. जैसे पीएलए एयर फोर्स (पीएलएएएफ) आज भी अपने विमानों के लिए रूसी इंजन इस्तेमाल करता है लेकिन आगे चलकर इसमें बदलाव की पूरी गुंजाइश है. इस समय पीएलएएएफ के सैन्य परिवहन विमानों के लिए चीन में ही डिज़ाइन किए गए इंजनों का परीक्षण चल रहा है. अगर ये परीक्षण कामयाब रहते हैं तो रूसी इंजनों की जगह मूल रूप से चीन में ही बने इंजन इस्तेमाल किए जाने लगेंगे. इससे इन परिवहन विमानों की भार-क्षमता बढ़ाने में भी मदद मिलेगी. इन नए डब्ल्यूएस-20 इंजनों के डिज़ाइन शेनयांग एयरोइंजन रिसर्च इंस्टीट्यूट ने तैयार किए हैं. जुलाई 2020 से चीन ने जे-20बी स्टील्थ लड़ाकू विमानों का बड़े पैमाने पर निर्माण शुरू कर दिया है. हालांकि, फिलहाल पांचवीं पीढ़ी के इन विमानों में रूसी इंजन ही लगे हैं लेकिन इनकी जगह चीन में ही बने इंजन इस्तेमाल करने की कोशिशें भी जारी हैं.

इस समय पीएलएएएफ के सैन्य परिवहन विमानों के लिए चीन में ही डिज़ाइन किए गए इंजनों का परीक्षण चल रहा है. अगर ये परीक्षण कामयाब रहते हैं तो रूसी इंजनों की जगह मूल रूप से चीन में ही बने इंजन इस्तेमाल किए जाने लगेंगे.

2018 में हुए सीसीपी के तीसरे अधिवेशन में पीएलए के कमांड ढांचे में बदलाव का फैसला किया गया. इसके तहत सैनिकों की संख्या को “सही स्तर पर लाने” और विभिन्न सेनाओं में सैनिकों की ज़रूरतों को संतुलित करने का लक्ष्य रखा गया. चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने पीएलए को चुस्त-दुरुस्त और बेहतर साजोसामान से लैस बनाने के लिए उसके “सॉफ़्टवेयर को और आधुनिक बनाने” को अपनी हरी झंडी दे दी है. सितंबर 2015 में शी ने पीएलए से क़रीब तीन लाख जवानों को कम करने के उपायों की घोषणा की थी. तब ये कहा गया था कि सीएमसी की निगरानी में एक ‘संयुक्त ऑपरेशन कमांड’ ढांचा खड़ा किया जाएगा और एक ‘थिएटर ज्वाइंट ऑपरेशन कमांड सिस्टम’ की शुरुआत होगी. सीएमसी के प्रमुख के नाते राष्ट्रपति शी ने घोषणा की थी कि सीएमसी के पर्यवेक्षण में सैन्य कमांडों को नए-नए युद्ध क्षेत्रों में फिर से संगठित किया जाएगा. सैन्य मुख्यालयों को कमांड की प्रशासनिक श्रृंखला के ज़रिए विभिन्न इकाइयों से जोड़े जाने की योजना थी. ये बदलाव 2020 में पूरे कर लिए जाने थे. पीएलए में आमूलचूल बदलाव के लिए इसके चार विभागों- सामान्य राजनीतिक, सामान्य सैन्य आपूर्ति, सामान्य स्टाफ और सामान्य अस्त्र शस्त्र- को भंग कर उन्हें 15 ‘क्रियाशील इकाइयों’ में बदल दिया गया है.

राष्ट्रपति का पद संभालने के बाद से ही प्रशासनिक कामकाज को लेकर शी की रणनीति ‘छोटे अगुआ समूहों’ के हाथों में सत्ता को केंद्रीकृत करने की रही है. इन समूहों का नेतृत्व वो खुद करते हैं. नए ‘सीएमसी चेयरमैन रिसपॉन्सिबिलिटी सिस्टम’ के तहत ज़िम्मेदारियों का साफ़ तौर पर बंटवारा कर दिया गया है. इसी कड़ी में युद्ध छेड़ने की ज़िम्मेदारी पुनर्गठित युद्ध क्षेत्र कमांडों के हवाले की गई है और सेनाओं पर अपने लड़ाकों की देखरेख का दायित्व सौंपा गया है. हालांकि, एक-दूसरे से अलग ये दोनों ही तंत्र शी के नेतृत्व वाली सीएमसी के प्रति जवाबदेह हैं. सेना के शीर्ष कमांड ढांचे को कारगर बनाने के साथ-साथ पीएलए के इस समूचे बदलाव के पीछे का मकसद फ़ौज पर सीसीपी का नियंत्रण और मज़बूत करना है. शी की पसंदीदा परियोजना ‘चाइना ड्रीम’ देश को महाशक्ति बनाने के लक्ष्य को ध्यान में रखकर तय की गई है. इसके तहत एक शक्तिशाली सेना के निर्माण पर काफी ज़ोर दिया गया है. चीन के पुनर्निर्माण के पक्ष में शी के इन विचारों के पीछे पीएलए के रिटायर्ड कर्नल लियु मिंगफु की लिखी किताब को माना जाता है. इस किताब में कहा गया है कि “हरेक महाशक्ति के प्रभाव की एक निश्चित मियाद होती है और अमेरिका तेज़ी से अपने उतार की ओर बढ़ रहा है. ऐसे में चीन के लिए ये अहम हो जाता है कि 2049 तक वो अमेरिका को पछाड़कर आगे निकल जाए.” इस किताब में तर्क दिया गया है कि दुनिया की दूसरी आर्थिक महाशक्ति बन चुके चीन के लिए समान रूप से ताक़तवर फौज का निर्माण और घरेलू तौर पर नई-नई खोजों की क्षमता को बढ़ाना बेहद ज़रूरी है.

‘टेक्नोक्रैट’ शी जिनपिंग

चीन की सेना में आमूलचूल बदलाव लाने में शी की दिलचस्पी के पीछे उनकी पृष्ठभूमि का बड़ा हाथ है. आधुनिक चीन की पहली और दूसरी पीढ़ी के नेताओं की बात करें तो उनकी या तो युद्ध में इस्तेमाल होने वाली गुरिल्ला तकनीकों वाली पृष्ठभूमि रही थी या फिर सैनिक मसलों पर शुरू से ही उनकी अच्छी समझ थी. इसके बाद चीन में जो तीसरी पीढ़ी का नेतृत्व आया वो मूल रूप से टेक्नोक्रैट था. चाहे वो जियांग ज़ेमिन हों या शी के पद संभालने से ठीक पहले चीनी राष्ट्रपति रहे हु जिंताओ- दोनों ही इंजीनियर के रूप में प्रशिक्षित हुए थे. अपने पूर्ववर्ती दो राष्ट्रपतियों के मुकाबले चीनी सेना के साथ शुरू से ही राष्ट्रपित शी का बड़ा गहरा नाता रहा है. शी की पत्नी पेंग लियान पीएलए की एकेडमी ऑफ़ आर्ट के मुखिया के तौर पर काम कर चुकी हैं. इस नाते पीएलए में उनका दर्जा मेजर जनरल के समकक्ष का रहा है.

अपने पूर्ववर्ती दो राष्ट्रपतियों के मुकाबले चीनी सेना के साथ शुरू से ही राष्ट्रपित शी का बड़ा गहरा नाता रहा है. शी की पत्नी पेंग लियान पीएलए की एकेडमी ऑफ़ आर्ट के मुखिया के तौर पर काम कर चुकी हैं. 

वैसे तो शी ने भी किंगहुआ यूनिवर्सिटी से केमिकल इंजीनियरिंग की डिग्री ली थी लेकिन इसके बाद उन्हें 1979 में सीएमसी में तत्कालीन रक्षा मंत्री गेंग बियो के सहयोगी के तौर पर एक अहम ज़िम्मेदारी निभाने का मौका मिला था. उसी साल चीन और वियतनाम का युद्ध हुआ था. इस जंग के वक़्त चीन एक परमाणु ताक़त था और उसके पास दुनिया की सबसे बड़ी फ़ौज थी. वहीं दूसरी ओर वियतनाम भी 1975 में अमेरिका जैसी महाशक्ति को पराजित कर चुका था. इस जीत के बाद वियतनाम की फ़ौज के पास बड़ी लड़ाइयां लड़ने और जीतने का ताज़ा ताज़ा अनुभव था. वियतनाम के साथ इस जंग में पीएलए को हुई क्षति के बारे में कोई आधिकारिक आंकड़ा तो नहीं है लेकिन ऐसा माना जाता है कि 2 लाख सैनिकों की क्षमता वाले पीएलए के करीब 6500 सैनिक मारे गए थे और क़रीब 31 हज़ार जवान ज़ख़्मी हुए थे.

पीएलए को लगे इस तगड़े झटके ने उसके सैनिकों और सैन्य साजोसामान के प्रभावों पर कई प्रश्नचिन्ह खड़े कर दिए. ऐसा लगता है कि वियतनाम युद्ध के अनुभव ने चीन और वहां की सत्ता की सोच पर एक गहरी छाप छोड़ दी. वैसे चीन के सैन्य इतिहास में झांकें तो 1950 के दशक में हुए कोरियाई युद्ध में चीनी पीपुल्स वोलंटियर आर्मी की ‘जांबाज़ी’ के कई उदाहरण मिलते हैं. ऐसे में वियतनाम युद्ध के कड़वे अनुभवों को चीन ने अपनी यादों से निकाल बाहर किया है. अक्टूबर 2020 में “अमेरिकी आक्रामकता के प्रतिरोध और कोरिया की सहायता के लिए लड़ी गई जंग” की 70वीं सालगिरह बड़े धूमधाम से मनाई गई थी. इस अवसर पर अपने संबोधन में शी ने कहा था कि “चीन की पीपुल्स वोलंटियर आर्मी ने खुद से बेहतर हथियारों से लैस सेना को पस्त कर अमेरिकी फौज के अजेय होने के मिथक को तोड़ दिया था.”

शी के पास सैन्य-प्रशासन से जुड़ी अफ़सरशाही में काम करने का अनुभव है. इसके साथ ही पीएलए की दुखती रग यानी वियतनाम युद्ध के भी वो साक्षात गवाह हैं लिहाजा पीएलए में आमूलचूल बदलाव लाने के लिए वो बेहतर स्थिति में हैं. 

शी के पास सैन्य-प्रशासन से जुड़ी अफ़सरशाही में काम करने का अनुभव है. इसके साथ ही पीएलए की दुखती रग यानी वियतनाम युद्ध के भी वो साक्षात गवाह हैं लिहाजा पीएलए में आमूलचूल बदलाव लाने के लिए वो बेहतर स्थिति में हैं. उन्हें पता है कि कि सेना पर सीसीपी का नियंत्रण बरकरार रखते हुए उसे आधुनिक समय में लड़ी जाने वाली लड़ाइयों के लिए हर तरह से तैयार करना कितना ज़रूरी है. पीएलए और उसकी युद्ध नीति में बदलाव लाने की शी की रणनीतियों ने भारत के रक्षा रणनीतिकारों को कई वजहों से चौकन्ना कर दिया है. 1979 के बाद से छोटी-मोटी झड़पों के अलावा चीनी फ़ौज ने कोई बड़ी लड़ाई नहीं लड़ी है. उस समय जंग लड़ चुके ज़्यादातर सैनिक आज रिटायर हो चुके हैं. ऐसे में आज की चीनी फ़ौज के पास वास्तविक युद्ध का काफी कम अनुभव है. 15 जून 2020 को गलवान घाटी में हुई झड़प में 20 भारतीय सैनिक और अज्ञात संख्या में चीनी फ़ौजी शहीद हुए थे. अमेरिकी संसद को सौंपी गई रिपोर्ट में अमेरिका की चाइना इकोनॉमिक एंड सिक्योरिटी रिव्यू कमीशन ने बताया है कि चीन के रक्षा मंत्री वेई फेंगही ने “अपने चारों ओर स्थिरता लाने के लिए सैनिक ताक़त के इस्तेमाल” की नीति को अपनी मंज़ूरी दे दी है. चीन और जापान के बीच भी तनाव भरे हालात रहे हैं. हो सकता है कि गलवान जैसी झड़पों के ज़रिए राष्ट्रपति शी बड़ी जंगों के लिए अपनी नातजुर्बेकार पीएलए को तैयार कर रहे हैं.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.