Author : Kanchan Gupta

Published on Jul 26, 2019 Updated 0 Hours ago

अंतरिक्ष में आज जिस तरह से सैन्यीकरण बढ़ रहा है, वह हर किसी के लिए चिंता की बात है. इससे भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए जो चुनौतियां खड़ी हो सकती हैं, वह हम उसकी ओर से अपनी आंखें बंद नहीं कर सकते.

चंद्रयान 2: अंतरिक्ष में दबदबे की दौड़ में दुनिया के चुनिंदा देशों के नज़दीक पहुंचा भारत!

ऋग्वेद में लिखा है कि चंद्रमा की चांदनी असल में सूर्य से प्रतिबिंबित रोशनी है. दूसरे ग्रंथों में भी हमारे रोजमर्रा की जिंदगी में चांद की अहमियत बताई गई है. संस्कृत के सबसे विस्तृत पर्यायवाची शब्दों के संग्रह अमरकोश में चांद के 20 नाम बताए गए हैं. इसके करीब 85 रूपों का इस्तेमाल पुरुषों और स्त्रियों के नाम के तौर पर होता है. इसके बावजूद सोमवार यानी 22 जुलाई 2019 तक चंद्रमा इस सभ्यता के लिए एक सपने की तरह था, जिसे बहुत लंबे समय से ग्रहों और उपग्रहों का व्यापक जानकारी थी. अभी तक इस सभ्यता के पास वह आधुनिक तकनीक नहीं थी, जिससे नश्वर धरती और स्वर्गीय सितारों के बीच की दूरी खत्म की जा सके.

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) के चंद्रयान 2 के सफल लॉन्च से अंतरिक्ष में दबदबे की रेस में भारत के बड़ी ताकत बनने पर मुहर लगी है. अंतरिक्ष में वर्चस्व के लिए चीन ने तो एक अलग फोर्स बना रखी है. वह इसमें अमेरिका को पीछे छोड़ना चाहता है और इसके लिए भारी निवेश कर रहा है. अमेरिका भी खाली हाथ नहीं बैठा है. उसने अगले पांच साल में चांद के लिए तीसरे मानवयुक्त मिशन की योजना भी बनाई है.

इसरो के ज़रिये भारत अंतरिक्ष की सीमाओं को धकेलने की अपनी क्षमता और योग्यता साबित कर चुका है. देश की बैलेस्टिक मिसाइल टेक्नोलॉजी और एंटी सैटेलाइट टेक्नोलॉजी इसकी मिसाल है. इसी वजह से भारत आज दुनिया के कई देशों के लिए अंतरिक्ष में उपग्रहों को भेजने का पसंदीदा ठिकाना बन चुका है.

चंद्रयान 2 महत्वाकांक्षी अभियान है. यह अपने साथ एक रोवर लेकर गया है, जिसे चांद के दक्षिणी ध्रुव या उसके करीब उतारा जाएगा. आधी सदी पहले दुनिया ने रेडियो और टेलीविजन पर नील आर्मस्ट्रॉन्ग को कहते सुना था, ‘यह एक इंसान के लिए छोटा कदम, लेकिन मानवता के लिए लंबी छलांग है.’ चंद्रमा पर पांव रखते हुए अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री ने यह बात कही थी और इसके बाद हर देश ने ‘मूनवॉक’ का सपना देखा था. भारत इस सपने को सच करने के करीब पहुंच गया है. अगर सब कुछ योजना के मुताबिक हुआ तो 7 सितंबर को सुबह 2 बजकर 58 मिनट पर वह यह करिश्मा करने वाले दुनिया के गिने-चुने देशों में शामिल हो जाएगा. इससे पहले भारत 2014 में मंगलयान और इस साल मार्च में एंटी-सैटेलाइट मिसाइल टेस्ट से इस क्षेत्र में अपना जौहर दिखा चुका है. बेशक, अगले 48 दिनों में किसी अनहोनी के कारण चंद्रयान 2 की असफलता से इनकार नहीं किया जा सकता. इज़रायलका अंतरिक्षयान चांद पर उतरने के करीब पहुंच गया था, लेकिन आखिरी लम्हे में वह मिशन फेल हो गया. अमेरिका और चीन के भी कई अभियान इसी तरह फेल हो चुके हैं और रूस के साथ भी ऐसा हो चुका है. हालांकि अगर चंद्रयान 2 फेल भी होता है तो वह भारत के लिए एक मामूली बाधा से अधिक कुछ नहीं होगा. इसरो के ज़रिये भारत अंतरिक्ष की सीमाओं को धकेलने की अपनी क्षमता और योग्यता साबित कर चुका है. देश की बैलेस्टिक मिसाइल टेक्नोलॉजी और एंटी सैटेलाइट टेक्नोलॉजी इसकी मिसाल है. इसी वजह से भारत आज दुनिया के कई देशों के लिए अंतरिक्ष में उपग्रहों को भेजने का पसंदीदा ठिकाना बन चुका है.

जैसे-जैसे तकनीक की दुनिया रोज-ब-रोज बदल और आधुनिक हो रही है, वैसे-वैसे अंतरिक्ष में हमारी संपत्तियों और लिहाज़ा राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा बढ़ रहा है.

चंद्रयान 2 की वैज्ञानिक उपलब्धियों पर चर्चा करना टेक्निकल एक्सपर्ट्स का काम है और अंतरिक्ष मामलों के विशेषज्ञ बताएंगे कि इस क्षेत्र में भारत के आधा सफर तय करने का उसके रणनीतिक हितों पर क्या असर होगा? हालांकि, चंद्रमा के सतह और वातावरण के अध्ययन और उसे समझने के अपने फायदे हैं. आख़िर, चंद्रमा के संसाधनों पर किसी एक देश का एकाधिकार नहीं होना चाहिए या यूं कहें कि ‘बेल्ट एंड रोड’ दोनों से चांद की दूरी होनी चाहिए. भारत अंटार्कटिका की रेस में पीछे छूट गया था, लेकिन दूसरे देश चांद को उपनिवेश बना लें, वह इसे गवारा नहीं कर सकता. इसके अलावा, अंतरिक्ष में आज जिस तरह से सैन्यीकरण बढ़ रहा है, वह हर किसी के लिए चिंता की बात है. इससे भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए जो चुनौतियां खड़ी हो सकती हैं, वह हम उसकी ओर से अपनी आंखें बंद नहीं कर सकते. साथ ही, अंतरिक्ष में जो हजारों सैटेलाइट चक्कर लगा रहे हैं, वे नेविगेशन, दूरसंचार, बैंकिंग लेनदेन, मौसम की भविष्यवाणी के साथ राष्ट्रहित और व्यावसायिक हितों के लिए भी काफी महत्वपूर्ण हैं. हमें इन ‘संपत्तियों’ को एंटी-सैटेलाइट मिसाइल टेक्नोलॉजी जैसे आक्रामक हथियारों से बचाना होगा. जैसे-जैसे तकनीक की दुनिया रोज-ब-रोज बदल और आधुनिक हो रही है, वैसे-वैसे अंतरिक्ष में हमारी संपत्तियों और लिहाज़ा राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा बढ़ रहा है. 1967 की अंतरिक्ष संधि अब प्रासंगिक नहीं रह गई है. आज खतरा सिर्फ अंतरिक्ष स्थित जनसंहार के हथियारों तक सीमित नहीं रह गया है. अंतरिक्ष में होड़ की वजह रोमांटिक या दिलेरी दिखाने वाली सोच से प्रभावित नहीं है. इसकी वजह रणनीतिक हित यानी राष्ट्रीय सुरक्षा है. शीत युद्ध के दौरान अमेरिका ने अंतरिक्ष की रेस जीती थी, लेकिन उसका मकसद कहीं बड़ा था. हालांकि, शीत युद्ध के बाद प्रोपगेंडा की वजह दुनिया की इस पर नजर नहीं पड़ी और हाल के दशकों में वह पूरी तरह से इसकी सचाई समझ पाई है. अमेरिका बहुत अधिक गूगल सर्च किए गए शब्द ‘मून स्टोन’ के पीछे भागते हुए अंतरिक्ष में नहीं पहुंचा था, न ही रूस की अंतरिक्ष अभियान का मकसद यह पता लगाना था कि यात्रा के दौरान कुत्ता जीवित रहता है या नहीं. इसलिए अगर आज भारत अपने हिस्से का चांद मांग रहा है तो ऐसा वह ऋग्वेद को सही साबित करने के लिए नहीं कर रहा.

इसरो ने 19 अप्रैल 1975 में सोवियत संघ के कापुस्तिन यार से महान भारतीय खगोलशास्त्री आर्यभट्ट के नाम पर देश के पहले सैटेलाइट को अंतरिक्ष में भेजा था. तब से भारत इस क्षेत्र में काफी लंबा सफर तय कर चुका है. इस उभरती हुई ताकत की नजर अब चांद पर है.

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