Published on Jan 29, 2020 Updated 0 Hours ago

अब जलवायु परिवर्तन की वजह से वो समय आ गया है कि ये देश विश्व राजनीति के हिसाब से ख़ुद में बदलाव लाने के प्रयास तेज़ करें. लंबे समय से इसकी ज़रूरत भी महसूस की जा रही है.

नई सदी में खाड़ी देशों के सामने चुनौती: सिर्फ़ कच्चे तेल के सहारे नहीं चल सकती है अर्थव्यवस्था

पिछले साल नवंबर महीने में संयुक्त अरब अमीरात ने छठवें वार्षिक नॉलेज शिखर सम्मेलन की मेज़बानी की थी. इस का शीर्षक था-नॉलेज: द पाथ टू सस्टेनेबल डेवेलपमेंट. ये एक ऐसा आयोजन है, जो विश्व स्तर के विशेषज्ञों और नीति निर्माताओं को एक मंच देता है. ताकि वो भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए, सबसे अच्छे तौर-तरीक़ों के बारे में आपस में चर्चा कर सकें. इस सम्मेलन के दौरान दुनिया भर के विशेषज्ञ सुरक्षा, हुनर आधारित तालीम, नई खोज और उद्यमिता से जुड़ी चुनौतियों और इन के सबसे अच्छे समाधान पर विचारों का आदान-प्रदान करते हैं. इस के अलावा सम्मेलन में शामिल होने आए दुनिया भर के जानकार जलवायु परिवर्तन और स्थायी विकास जैसे पहलुओं पर भी विचार-विमर्श करते हैं. इस आयोजन की मदद से तमाम समस्याओं के नए विचारों और नई खोजों पर आधारित समाधान तलाशे जाते हैं, ताकि विश्व के सामने एक नया विज़न रख सकें.

इस के अलावा खाड़ी देशों के कई अन्य देश भी हैं, जो अपनी अर्थव्यवस्था में विविधता लाने के लिए कई ऐसे ही क़दम उठा रहे हैं, ताकि वो स्थायी विकास के सफ़र पर आगे बढ़ सकें. ये इसलिए ज़रूरी है कि खाड़ी देश घरेलू मोर्चे के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने सामने कई परिवर्तन होते देख रहे हैं.

कच्चा तेल बेच कर कभी अमीर बने मुल्क को अगर ख़ुद को बचाए रखना है, तो उसे भी बदलते वक़्त के हिसाब से अपनी आर्थिक व्यवस्था और प्राथमिकताओं में बदलाव लाना ही होगा.

खाड़ी देशों के लिए ये असामान्य बात नहीं है कि अपने सामने खड़ी नई चुनौतियों को स्वीकार कर के वो अपनी आर्थिक संरचना में व्यापक बदलाव लाने का प्रयास कर रहे हैं. ये इसलिए ज़रूरी है, क्योंकि इन देशों की नई पीढ़ी की आकांक्षाओं और अपेक्षाओं में बहुत परिवर्तन आ गया है. नई पीढ़ी की आमद के साथ ही इन देशों की सामाजिक आर्थिक मांग भी बदल रही है. कोई खाड़ी देश, जो पहले तेल के कारोबार का बड़ा खिलाड़ी हुआ करता था. वो अब अपने इन क़ुदरती संसाधनों के ग़ुरूर में नहीं रह सकता. इसकी वजह ये है कि तेल ख़रीदने वाले देश अपने यहां तेल की मांग कम करने के लिए नई-नई तकनीकें ईजाद कर रहे हैं. इसकी वजह से वो जो तेल इनका कच्चे तेल के उत्पादक देशों से ख़रीद रहे थे, उस की मात्रा में भारी कमी आ गई है. ऐसे में, कच्चा तेल बेच कर कभी अमीर बने मुल्क को अगर ख़ुद को बचाए रखना है, तो उसे भी बदलते वक़्त के हिसाब से अपनी आर्थिक व्यवस्था और प्राथमिकताओं में बदलाव लाना ही होगा. इस के लिए उसे नए नए प्रयास करने होंगे. अपने अवाम के लिए संभावनाओं के नए द्वार खोलने होंगे, तभी वो अपनी तरक़्क़ी और समृद्धि को बचा सकेंगे.

सऊदी अरब ने अपने लिए ‘सऊदी विज़न 2030’ तैयार किया है. तो बहरीन ने अपने इस अभियान को ‘विज़न 2030’ नाम दिया है. वहीं, कुवैत ने ‘स्टेट विज़न ऑफ़ कुवैत 2035’ के नाम से दूरदर्शी योजना तैयार की है.

इस मामले में खाड़ी देशों को ये अंदाज़ा हो रहा है कि उन के सामने जो नई चुनौतियां आ खड़ी हुई हैं, उन पर तुरंत ध्यान दिए जाने की ज़रूरत है. इसीलिए, इन देशों ने अपनी अर्थव्यवस्थाओं में विविधता लाने के प्रयास तेज़ कर दिए हैं. अब वो अपनी अलग-अलग ज़रूरतों के हिसाब से योजनाएं तैयार कर रहे हैं, ताकि आर्थिक तरक़्क़ी के नए विज़न को परवान चढ़ा सकें. विशेषज्ञ इसे इल्म आधारित अर्थव्यवस्था का नाम देते हैं. ऐसी अर्थव्यवस्था नई खोज, विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में नए शोध, उद्यमिता और निवेश पर आधारित होगी. साथ ही साथ आर्थिक विकास के लिए शिक्षा और प्रशिक्षण में भी ऐसे परिवर्तन किए जाएंगे ताकि तेज़ी से रोज़गार सृजन हो सके. इन प्रयासों की मदद से खाड़ी देश एक खुली और जनता की भागीदारी वाली अर्थव्यवस्था का निर्माण करना चाहते हैं. जिस में युवाओं समेत आबादी के एक बड़े हिस्से को इन नए अवसरों को भुनाने में आसानी हो. और ये अवसर अर्थव्यवस्था में बुनियादी बदलाव लाने के साथ साथ बुनियादी ढांचे के विकास की मदद से सृजित किए जाएंगे. सऊदी अरब ने अपने लिए ‘सऊदी विज़न 2030’ तैयार किया है. तो बहरीन ने अपने इस अभियान को ‘विज़न 2030’ नाम दिया है. वहीं, कुवैत ने ‘स्टेट विज़न ऑफ़ कुवैत 2035’ के नाम से दूरदर्शी योजना तैयार की है. इन सभी देशों ने स्थायी विकास की इन नई योजनाओं को अपनी अलग-अलग ज़रूरतों के हिसाब से तैयार किया है. जो इन देशों की विशिष्ठ आर्थिक और राजनीतिक परिस्थितियों पर आधारित हैं. गल्फ़ को-ऑपरेशन काउंसिल के अन्य सदस्य देशों ने भी इसी तरह से अपने अपने नए उपक्रम तैयार किए हैं. इन कार्यक्रमों में किस हद तक सफलता हासिल हुई है,  इसकी वार्षिक समीक्षा की जाती है. इसे नापने का पैमाना है कि हर देश कच्चे तेल को बेचने के अलावा अन्य तरीक़ों से हर साल कितनी कमाई कर रहा है. खाड़ी देश ऐसी कोशिशें भी कर रहे हैं जिनसे वो अपने अवाम की तालीम और उन्हें नए हुनर की ट्रेनिंग दे सकें. इस क्षेत्र में खाडी देशों के युवा अब तक बाक़ी दुनिया से काफ़ी पीछे रहे हैं. हाल ही में यूरोमनी सऊदी अरब कॉन्फ्रेंस में वित्त मंत्री मोहम्मद-अल जादेन ने कहा कि सऊदी अरब अन्य देशों के साथ मिल कर ‘वैश्विक आर्थिक समृद्धि’ का लक्ष्य हासिल करने के लिए प्रतिबद्ध है. सऊदी अरब के वित्त मंत्री ने ज़ोर दे कर ये भी बताया कि उनका देश शिक्षा और हुनर के प्रशिक्षण की मदद से श्रमिकों के बाज़ार में परिवर्तन लाने के लिए कौन-कौन से क़दम उठा रहा है. इस का मक़सद एक ऊर्जावान निवेश और बैंकिंग सेक्टर का विकास करना है. संयुक्त अरब अमीरात में हुई नॉलेज समिट का मक़सद भी युवाओं को सशक्त बनाने के लिए स्किल और एजुकेशन सेक्टर में बदलाव लाने के नए प्रयासों के बारे में परिचर्चा करना था. एडुरो लर्निंग के संस्थापक सीईओ ने इस शिखर सम्मेलन में कहा था कि, ‘हमारा ज़ोर इस बात पर है कि हम इल्म आधारित अर्थव्यवस्था में ज्ञान को नए सिरे से परिभाषित कर सकें. क्योंकि ज्ञान क्या है, इस विचार में क्रांतिकारी बदलाव आ चुका है.’ आज ज्ञान का मतलब सिर्फ़ डिग्रियां हासिल करना नहीं है. बल्कि व्यवहारिक प्रशिक्षण और नई खोज करने की क्षमता रखना है. जिसे व्यापक अवसरों को प्रदान कर के ही हासिल किया जा सकता है.

आज भी खाड़ी के तमाम देश आपस में मेल-जोल को लेकर क़तई ख़्वाहिशमंद नज़र नहीं आते. इन देशों की हठधर्मी का ये आलम है कि ये आपस में कोई राजनीतिक सहमति बनाने की सोच तक नहीं विकसित कर पाए हैं.

हालांकि, इस ख़्वाब की ताबीर के लिए योजनाएं तो तैयार कर ली गई हैं. मगर अभी खाड़ी देशों को अपनी मंज़िल तक पहुंचने के लिए लंबा सफ़र तय करना है. आज भी ये इलाक़ा राजनीतिक अस्थिरता का शिकार है. तमाम देश आपस में छद्म युद्ध में उलझे हुए हैं.  इसकी वजह से पूरे इलाक़े में अनिश्चितता का माहौल बना हुआ है. आज भी खाड़ी के तमाम देश आपस में मेल-जोल को लेकर क़तई ख़्वाहिशमंद नज़र नहीं आते. इन देशों की हठधर्मी का ये आलम है कि ये आपस में कोई राजनीतिक सहमति बनाने की सोच तक नहीं विकसित कर पाए हैं. सऊदी अरब और ईरान आज भी पूरे इलाक़े में दादागीरी स्थापित करने के लिए छद्म युद्ध में  शामिल हैं. यमन में ईरान हूथी बाग़ियों को हथियार और पैसे से मदद कर रहा है. जबकि, सऊदी अरब इन बाग़ियों को कुचलने के लिए संघर्ष कर रहा है. यमन में सऊदी अरब और ईरान के बीच चल रहे इस संघर्ष का मक़सद इलाक़े में अपना अपना प्रभुत्व क़ायम करना है. यहां तक कि खाड़ी सहयोग परिषद् (GCC) भी सियासी गुटबंदी की शिकार है. इस के सदस्य देश एक-दूसरे पर भरोसा नहीं करते. इस के अलावा हाल ही में कई देशों में मौजूदा हुक्मरानों के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शनों ने भी हालात बिगाड़ दिए हैं. कई खाड़ी देशों की जनता अपने यहां के निज़ाम में भ्रष्टाचार और आर्थिक सुस्ती की वजह से नाख़ुश है. खाड़ी देशों में इस अस्थिरता को युवाओं के कट्टरपंथ की तरफ़ झुकाव बढ़ने और इस्लामिक स्टेट व अल-क़ायदा जैसे आतंकवादी संगठनों की मौजूदगी से भी बढ़ावा मिल रहा है. ऐसे में सऊदी अरब के वित्त मंत्री के जिस बयान का हम ने पहले ज़िक्र किया, वो बेमानी साबित हो जाता है. ख़ास तौर से सऊदी अरब की विशाल तेल कंपनी अरामको के तेल संयंत्रों पर पिछले साल सितंबर में हुए आतंकी हमलों की वजह से. इस हमले की वजह से भारत जैसे तेल के आयात पर निर्भर देश भी सहम गए थे. राजनीतिक अस्थिरता से पैदा हुई ये विकराल चुनौतियां लंबे समय के आर्थिक विकास की इन योजनाओं के सामने बहुत बड़ी बाधा बन कर खड़ी हैं. सामरिक होड़ की वजह से खाड़ी देश आज तालीम और रोज़गार के बजाय मिसाइल और नए-नए तैयारे ख़रीदने पर ज़्यादा रक़म ख़र्च कर रही हैं. खाड़ी सहयोग परिषद् के ज़्यादातर सदस्य देशों की शिक्षा व्यवस्था ऐसी नहीं है, जो आज के दौर की ज़रूरत के हिसाब से हुनरमंद कामगारों की पौध तैयार कर सके. इस के अलावा अर्थव्यवस्था (ख़ास तौर से तेल के कारोबार ) पर हुक़ूमत  यानी सियासी और व्यापारिक कुलीन वर्ग का ज़रूरत से ज़्यादा नियंत्रण होना भी एक बड़ी चुनौती है.  इसकी वजह से आबादी का एक बड़ा हिस्सा अर्थव्यवस्था की मुख्यधारा में शामिल नहीं हो पाता और हाशिए पर ही पड़ा रहता है. वो अपनी उद्यमिता की क्षमताओं का इस्तेमाल कर के अपने देशों की अर्थव्यवस्थाओं में संस्थागत रूप से भागीदार नहीं बन पाते. अगर खाड़ी का इलाक़ा वाक़ई चाहता है कि वो शोध और नई खोज का पावरहाउस बने, तो उसे अर्थव्यवस्था को अमीरों के शिकंजे से आज़ाद कराना होगा.

इक्कीसवीं सदी की लंबी छलांग लगाने के लिए खाड़ी देशों को ख़ुद को तैयार करने के लिए ये ज़रूरी आर्थिक बदलाव लाने ही होंगे. तभी वो ख़ुद की सुरक्षा कर सकेंगे और आगे बढ़ने में कामयाब हो सकेंगे. युद्ध से थके-मांदे इलाक़ के महत्वाकांक्षी युवाओं को आज स्थिर और शांतिपूर्ण व्यवस्था की तलब है. जहां उग्रवाद और धमकियों के लिए कोई स्थान न हो. ऐसा माहौल तभी तैयार किया जा सकता है, जब इलाक़े के तमाम देश आपस में बेहतर रिश्ते बनाएं. फिर चाहे वो खाड़ी सहयोग परिषद के भीतर हों या बाहरी देशों से संबंध हों. अर्थव्यवस्था में विविधता लाने के लिए उठाए जा रहे नए प्रयास इन देशों को क़रीब लाने में अहम भूमिका निभा सकते हैं. व्यापार की राह के रोड़े हटा कर और दूसरे सामान और सेवाओं का निर्यात कर के ये मुल्क, कच्चे तेल के अलावा दूसरे सामान के निर्यातक देशों में भी अव्वल बन सकते हैं. इस से इलाक़े के तमाम देशों की जनता के बीच आपसी संवाद बढ़ेगा. उन के आर्थिक और सांस्कृतिक संबंध भी प्रगाढ़ होंगे. ऐसा तभी मुमकिन होगा, जब इन देशों के शासक, तेल पर आधारित अर्थव्यवस्था पर अपना शिकंजा ढीला करेंगे और अपने अपने देशों में कारोबार व उद्यमिता के बेहतर अवसर सृजित करेंगे. अर्थव्यवस्था में विविधता से किसी भी समाज में व्यापक आर्थिक और सामाजिक बदलाव लाने की संभावना होती है. इतिहास में ऐसा कई बार साबित भी हो चुका है. इस क्षेत्र के नेताओं को ये समझना होगा कि उन्हें ख़ुद को बचाना है, तो तेल पर अपनी निर्भरता कम करने के सिवा कोई और विकल्प है नहीं. भले ही पिछले कई दशकों से कच्चे तेल ने उन के पेट भरे हैं. लेकिन अब जलवायु परिवर्तन की वजह से वो समय आ गया है कि ये देश विश्व राजनीति के हिसाब से ख़ुद में बदलाव लाने के प्रयास तेज़ करें. लंबे समय से इसकी ज़रूरत भी महसूस की जा रही है.

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