अमेरिका के रणनीतिकार बिगनी ब्रेज़िंस्की ने मध्य एशिया को “एशियाई बाल्कन” कहा था. इस क्षेत्र को ये नाम देकर वो यहां की अस्थिर और विस्फोटक संभावना वाली प्रकृति की तरफ़ ध्यान दिला रहे थे. कज़ाख़स्तान, ताजिकिस्तान के गोरनो-बदख़्शां, उज़्बेकिस्तान के काराकलपक्सतान और किर्गिज़स्तान में हुई घटनाओं ने इस बात की पुष्टि की कि बाहरी ताक़तें अभी भी मध्य एशिया में अशांति के पीछे हैं. “एशियाई बाल्कन” की अस्थिरता की चिंगारी चीन के शिनजियांग समेत इस क्षेत्र के सभी देशों में फैली हुई है. ये वृहद मध्य एशिया की परियोजना के साथ परस्पर संबंधित है जिसमें अमेरिका के नेतृत्व में एक सिरों से जुड़ी हुई सुरक्षा प्रणाली का निर्माण और संसाधनों पर नियंत्रण करना शामिल है.
“एशियाई बाल्कन” की अस्थिरता की चिंगारी चीन के शिनजियांग समेत इस क्षेत्र के सभी देशों में फैली हुई है. ये वृहद मध्य एशिया की परियोजना के साथ परस्पर संबंधित है जिसमें अमेरिका के नेतृत्व में एक सिरों से जुड़ी हुई सुरक्षा प्रणाली का निर्माण और संसाधनों पर नियंत्रण करना शामिल है.
“सॉफ्ट पावर” के औज़ार का इस्तेमाल करते हुए अमेरिका और उसके पश्चिमी सहयोगी देश अपने लक्ष्य वाले देशों के महत्वपूर्ण क्षेत्रों तक प्रवेश कर गए हैं और “बहुआयामी” परिदृश्यों के माध्यम से वो इस क्षेत्र में प्रभुता हासिल करने के लिए प्रतियोगिता और मुक़ाबले में शामिल होते हैं. रूस विरोधी, यूरेशिया के ख़िलाफ़ और चीन के ख़िलाफ़ पूर्वाग्रह वाले राष्ट्रवाद को सक्रिय रूप से बढ़ावा दिया जाता है. क्षेत्रीयकरण की तरफ़ रुझानों, जो कि नये समूहों और पश्चिमी देशों के पेमेंट सिस्टम के विकल्प के गठन से बिल्कुल स्पष्ट है, को ध्यान में रखते हुए एक गंभीर चुनौती है अमेरिका और ब्रिटेन की पूंजी की गहरी पैठ वाले मध्य एशिया के गणराज्यों की अर्थव्यवस्था के मौजूदा कमोडिटी मॉडल को फिर से तैयार करना.
अफ़ग़ान फैक्टर
क्षेत्रीय सुरक्षा के सामने असली ख़तरा अफ़ग़ानिस्तान है. अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान के कब्ज़े के बाद से वहां अस्थिरता आसमान को छू रही है और इसमें और बढ़ोतरी हुई तो मध्य एशिया और रूस में इस्लामिक कट्टरपंथ, नशीले पदार्थों की तस्करी और शरणार्थियों के प्रवेश में बढ़ोतरी हो सकती है. यूक्रेन में रूस के विशेष सैन्य अभियान की शुरुआत के साथ ताजिकिस्तान पर आक्रमण करने के विचार में भी फिर से जान डाली गई थी. हाल के दिनों में “तहरीक-ए-तालिबान ताजिकिस्तान” नाम के एक गुट के गठन की भी ख़बर आई है.
पिछले दिनों संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ अफ़ग़ानिस्तान के दक्षिण और पूर्व में अल-क़ायदा की मौजूदगी है. काबुल में अयमन अल-ज़वाहिरी की मौत से इसकी पुष्टि भी हुई. CSTO (कलेक्टिव सिक्युरिटी ट्रीटी ऑर्गेनाइज़ेशन) के दक्षिणी किनारे पर रूस की सहभागिता के साथ मध्य एशिया में संघर्ष पश्चिमी देशों के रणनीतिकारों का एक पुराना सपना है. इस तरह, इस बात की भविष्यवाणी की जा सकती है कि पश्चिमी देशों की तर्ज पर मध्य एशिया पर दबाव जारी रहेगा.
सक्रिय रणनीति
मध्य एशिया में मौजूदा स्थिति के संदर्भ में चीन और रूस भले ही आंशिक रूप से वहां प्रतिस्पर्धा में हैं, लेकिन वो सहयोग के स्तर और गुणवत्ता में बढ़ोतरी कर रहे हैं. दूसरे किरदारों से अलग चीन और रूस के हित काफ़ी हद तक मिलते-जुलते हैं क्योंकि दोनों देश पूरब एवं पश्चिम और उत्तर एवं दक्षिण के इस जटिल “चौराहे” पर क्षेत्रीय एकजुटता में बढ़ोतरी के फ़ायदों को देख रहे हैं. जुलाई में रूस ने किर्गिज़स्तान के बजट में समर्थन के लिए 10 मिलियन अमेरिकी डॉलर का अनुदान देने का ऐलान किया. इसके अलावा स्थानीय आपात स्थिति के मंत्रालय के लिए अग्नि और बचाव के उपकरण ख़रीदने के उद्देश्य से 8 मिलियन और दिए जाएंगे. चीन भी किर्गिज़स्तान के रक्षा मंत्रालय को 7.5 मिलियन अमेरिकी डॉलर की मदद प्रदान करेगा.
क्षेत्रीय सुरक्षा के सामने असली ख़तरा अफ़ग़ानिस्तान है. अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान के कब्ज़े के बाद से वहां अस्थिरता आसमान को छू रही है और इसमें और बढ़ोतरी हुई तो मध्य एशिया और रूस में इस्लामिक कट्टरपंथ, नशीले पदार्थों की तस्करी और शरणार्थियों के प्रवेश में बढ़ोतरी हो सकती है.
किर्गिज़स्तान के राष्ट्रपति ने तुर्कीयाई भाषा बोलने वाले देशों की विशेष सेवा (TURKON) के 24वें सम्मेलन के प्रतिनिधियों की अगवानी की. उम्मीद के अनुसार इसका एजेंडा अफ़ग़ानिस्तान पर केंद्रित था. वहां के हालात को स्थिर करने के लिए किर्गिज़स्तान ने सक्रिय रूप से शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की व्यवस्था के इस्तेमाल की वक़ालत की. ये विचित्र बात है कि विदेश नीति में तटस्थता और किसी भी गुट से अलग रहने के बावजूद उज़्बेकिस्तान TURKON में मौजूद है. व्यापार और आर्थिक सहयोग पर किर्गिज़स्तान-चीन अंतर-सरकारी आयोग की 15वीं बैठक की रूप-रेखा के भीतर 2030 तक के लिए एक कार्यक्रम पर दस्तख़त किया गया. द्विपक्षीय सामरिक साझेदारी को विकसित करने के साथ-साथ वैश्विक और क्षेत्रीय सुरक्षा एवं स्थायित्व को सुनिश्चित करने से जुड़े मुद्दे किर्गिज़स्तान के राष्ट्रपति जपारोव और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीच बैठक के विषय थे.
किर्गिज़स्तान भारत के साथ भी पारस्परिक व्यापार को बढ़ाने के अलावा उत्तर-दक्षिण ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर को विकसित करने के लिए, ख़ास तौर पर भारत के द्वारा 2015 से सक्रिय तौर पर विकसित किए जा रहे ईरान के बंदरगाह चाबाहार के इस्तेमाल की कार्यकुशलता बढ़ाने के लिए, एशिया में परिवहन और साजो-सामान के नेटवर्क तक पहुंच का विश्वसनीय वैकल्पिक रास्ता मुहैया कराने को लेकर सहमत हुआ है. जून में किर्गिज़स्तान ने जल्द प्रभाव वाली सामाजिक विकास की परियोजनाओं को लागू करने के लिए भारत के साथ अनुदान सहायता के समझौता ज्ञापन को मंज़ूरी दी. अक्टूबर 2021 में हस्ताक्षरित ज्ञापन के अनुरूप भारत सरकार को अनुदान के रूप में किर्गिज़स्तान को 1.5 मिलियन अमेरिकी डॉलर का आवंटन करना है.
सुव्यवस्थीकरण के औज़ार के रूप में साजो-सामान
परिवहन और साजो-सामान के क्षेत्र में संयुक्त उपक्रम मध्य एशियाई देशों की एकजुटता के स्तर को बढ़ाने में योगदान देते हैं. कोविड-19 महामारी और बेलारूस एवं रूस के ख़िलाफ़ पश्चिमी देशों के आर्थिक प्रतिबंधों की वजह से वैश्विक और क्षेत्रीय सप्लाई चेन में रुकावट के बाद इनका महत्व काफ़ी बढ़ गया है. इसलिए मध्य एशियाई देशों ने कई पहल की है. कज़ाख़स्तान रेलवे और बंदरगाहों के आधुनिकीकरण के साथ-साथ टैंकर का बेड़ा बनाकर ट्रांस-कैस्पियन रूट के ढांचे के भीतर संयुक्त निवेश परियोजनाओं में दिलचस्पी रखता है. इसी तरह उज़्बेकिस्तान सक्रिय रूप से मज़ार-ए-शरीफ़-काबुल-पेशावर रेल रूट के निर्माण को बढ़ावा दे रहा है. किर्गिज़स्तान में चीन-किर्गिज़स्तान-उज़्बेकिस्तान रेलवे, जो कि चीन को उज़्बेकिस्तान से जोड़ेगा और अफ़ग़ानिस्तान एवं ईरान के रास्ते तुर्की तक जाएगा, को राष्ट्रीय और प्राथमिक परियोजना का दर्जा दिया गया है. समरकंद में SCO शिखर वार्ता के दौरान 15 सितंबर को इससे जुड़े दस्तावेज़ों पर दस्तख़त किए गए.
जून में किर्गिज़स्तान ने जल्द प्रभाव वाली सामाजिक विकास की परियोजनाओं को लागू करने के लिए भारत के साथ अनुदान सहायता के समझौता ज्ञापन को मंज़ूरी दी. अक्टूबर 2021 में हस्ताक्षरित ज्ञापन के अनुरूप भारत सरकार को अनुदान के रूप में किर्गिज़स्तान को 1.5 मिलियन अमेरिकी डॉलर का आवंटन करना है.
इस कॉरिडोर का कॉकेशिया के पार केंद्रों के साथ संपर्क एक अंतरक्षेत्रीय ट्रांसपोर्ट नेटवर्क का निर्माण करेगा. यही वजह है कि उज़्बेकिस्तान ज़ैंगेज़ुर कॉरिडोर की बहाली में दिलचस्पी रखता है जो एशिया से यूरोप के बीच सबसे छोटा ज़मीनी रास्ता मुहैया करा सकता है. उज़्बेकिस्तान बाकू-तिब्लिसी-कार्स रेलवे के साथ-साथ उत्तर-दक्षिण एवं पूर्व-पश्चिम अंतर्राष्ट्रीय ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर के बराबर स्थित तुर्की और अज़रबैजान के बंदरगाहों की ट्रांज़िट संभावना में भी दिलचस्पी दिखा रहा है. इन बंदरगाहों में उत्पादन, साजो-सामान और मार्केटिंग के इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित किए जा रहे हैं.
तुर्कमेनिस्तान और ईरान के बीच परिवहन और ट्रांज़िट के क्षेत्र में सहयोग में भी नई तेज़ी आई है. जून में कज़ाख़स्तान से तुर्की के लिए सल्फर लेकर चली पहली कंटेनर ट्रेन तुर्कमेनिस्तान और ईरान के रास्ते गई. ये मई में मध्य एशिया-तुर्की-यूरोप कॉरिडोर की शुरुआत के मौक़े पर ईरान और कज़ाख़स्तान के बीच एक समझौता ज्ञापन पर दस्तख़त के बाद संभव हो पाया. SCO में शामिल होने के बाद ईरान कॉरिडोर के रूप में किर्गिज़स्तान का इस्तेमाल करने में सक्षम हो सकेगा जबकि किर्गिज़स्तान ईरान के ज़रिए पूर्व और दक्षिण-पूर्व के देशों तक पहुंच बना सकेगा. मई 2022 के अंत में ईरान और ताज़िकिस्तान के राष्ट्रपतियों के बीच बैठक ने ईरान-अफ़ग़ानिस्तान-ताज़िकिस्तान-किर्गिज़स्तान ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर के विकास को बल दिया. ताज़िकिस्तान की दिलचस्पी अपने सामानों के परिवहन के लिए ईरान के बंदरगाहों- चाबाहार और बंदर अब्बास तक पहुंच में है. उज़्बेकिस्तान और कज़ाख़स्तान भी ईरान के इन दोनों बंदरगाहों को हिंद महासागर के रास्ते के रूप में देखते हैं.
ज़बरदस्ती की एकजुटता
बढ़ते बाहरी दबाव और मध्य एशिया को अस्थिर करने के संदर्भ में सैन्य और राजनीतिक “छतरी” प्रदान करने वाले और नये आर्थिक अवसर खोलने वाले यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन (EAEU), SCO और कलेक्टिव सिक्युरिटी ट्रीटी ऑर्गेनाइज़ेशन (सीएसटीओ) का आकर्षण और भूमिका बढ़ती जा रही है. इस मामले में आने वाले दिनों में ईरान को शामिल करने के साथ-साथ मिस्र, क़तर, सऊदी अरब, बहरीन और मालदीव को डायलॉग पार्टनर का दर्जा देकर SCO का विस्तार स्वाभाविक है. संयुक्त अरब अमीरात, सीरिया, म्यांमार, कंबोडिया, नेपाल, अज़रबैजान और आर्मिनिया भी सदस्य देश बनना चाहते हैं.
वर्तमान भू-राजनीतिक वास्तविकताओं के प्रकाश में केवल बहुपक्षीय व्यवस्था ही असल में क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था की बहाली में मदद करने के साथ-साथ सुरक्षा की बात आने पर एक भरोसेमंद ढाल बना सकती है.
बेलारूस की भूमिका
ग्रेटर यूरेशिया में परिवर्तन की श्रृंखला की पृष्ठभूमि में समरकंद में SCO के शिखर सम्मेलन के दौरान बेलारूस को सदस्यता देने की आधिकारिक प्रक्रिया की शुरुआत एक स्वाभाविक घटना की तरह लगती है. लेकिन इस तरह के सम्मानित संगठन में सदस्यता एक गंभीर ज़िम्मेदारी भी थोपती है. इसका मुख्य काम राष्ट्रीय हित में SCO के संसाधनों का प्रभावशाली ढंग से इस्तेमाल करना है. ये स्पष्ट है कि मध्य एशिया में एक नया सक्रिय केंद्र बनने की संभावना है जिसको लेकर बेलारूस को पर्याप्त ढंग से जवाब देना होगा. इसके लिए एशिया को गहराई से समझने वाले जानकारों की मौजूदगी की आवश्यकता है जो स्थानीय विशिष्ट वर्ग को जानते हैं, कारोबार करने की संरचना और बारीक का जिन्हें पता है, जो लोगों की भावनाओं को समझते हैं, जो ख़तरों एवं चुनौतियों को पूरी तरह देख सकते हैं, और जिनकी राय पर देश का नेतृत्व कोई ख़ास फ़ैसला लेते वक़्त भरोसा कर सकता है.
इस मामले में बेलारूस को SCO परिवार का सदस्य होने के नाते और पिछले दिनों दिल्ली में संपन्न द्विपक्षीय राजनीतिक सलाह-मशविरे के सातवें चरण के नतीजों की भावना के अनुरूप भारत से समर्थन की उम्मीद है.
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