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भारत-थाईलैंड संबंधों की 75वीं सालगिरह विभिन्न मुद्दों पर संभावित सहभागिता के नए अवसर प्रस्तुत करती हैं.
सन् 1947 से, भारत ने थाईलैंड के साथ एक गतिशील द्विपक्षीय संबंध का आनंद लिया है. सन् 2022 दोनों देशों के बीच के कूटनैतिक संबंधों का 75वां साल मना रहा है. मज़े की बात ये है कि भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ और थाईलैंड की ‘पश्चिम की ओर देखो’ नीति ने परस्पर कूटनीतिक एवं सकारात्मक दिशा में आर्थिक सहभागिता को और मज़बूत बनाने हेतु एक स्पष्ट रूपरेखा प्रदान की है. दोनों देशों ने अपने दोस्ताना संबंधों की 75वीं सालगिरह मनाने की शुरुआत, जनवरी में लोगो डिज़ाइन प्रतियोगिता को लॉन्च करके किया, जिसमें दोनों देशों की ओर से 798 लोगो के डिज़ाइन जमा किए गए. इन ‘लोगो’ का इस्तेमाल सालों भर थाईलैंड और भारत द्वारा, विभिन्न सांस्कृतिक एवं कमर्शियल इवेंट के दौरान होने वाली स्मारक गतिविधियों में की जाएगी. इससे दोनों देशों के बीच की दृढ़ता और गर्मजोशी का पता चलता है.
75वें साल के अवलोकन के तौर पर, अप्रैल माह में, थाईलैंड के विदेश मंत्रालय के स्थायी सचिव स्थाई सचिव, श्री थानी थॉंगफाकड़ी एवं विदेश मंत्रालय (पूर्व) सचिव श्री. सौरभ कुमार ने, छठी थाईलैंड –भारत विदेश कार्यालय परामर्श का आयोजन किया ताकि दोनों देशों के बीच वर्तमान स्थिति और चिंतनीय विषयों का अवलोकन किया जा सके. इस महत्वपूर्ण अवसर पर, यह समझना ज़रूरी है कि इस द्विपक्षीय संबंध ने पिछले कई सालों में एक स्थिर और गतिशील विकास अर्जित किया है और कुछ क्षेत्रों में और तल्लीनता के साथ काम करना है, ताकि वहां भी समुचित विकास दर्ज की जा सके जो अपेक्षित है.
अगर हम व्यापार उद्योग की ओर एक नज़र देखें तो, भारत से थाईलैंड किया जाने वाला निर्यात 1991 से 2022 तक में अनुमानित अमेरिकी डॉलर 121.7 मिलियन हो चुका है. वो दिसंबर 2021 में अपने सबसे ऊंचे स्तर 5,532 मिलियन तक पहुँच गया था, जिससे वो थाइलैंड के साथ व्यापार करने वाला आसियान देशों के समूह का चौथा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बन गया.
भारत के साथ की कूटनीतिक संबंधों की शुरुआत करने वाले कुछ देशों में थाईलैंड भी एक है. सौभाग्यवश, इसकी ऐतिहासिक – जनता से जनता तक चलने वाले संबंध और आर्थिक गठजोड़, दोनों देशों के बीच के संबंधों को मज़बूती प्रदान करते हैं. वे कई प्रांतीय प्रोजेक्ट्स में साझीदार हैं. अगर हम व्यापार उद्योग की ओर एक नज़र देखें तो, भारत से थाईलैंड किया जाने वाला निर्यात 1991 से 2022 तक में अनुमानित अमेरिकी डॉलर 121.7 मिलियन हो चुका है. वो दिसंबर 2021 में अपने सबसे ऊंचे स्तर 5,532 मिलियन तक पहुँच गया था, जिससे वो थाइलैंड के साथ व्यापार करने वाला आसियान देशों के समूह का चौथा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बन गया.
सुरक्षा साझेदारी के संबंध में, दोनों ही देश एक मज़बूत साझेदारी साझा करते हैं. दोनों ही देश संयुक्त सुरक्षा उत्पादन के क्षेत्र में भी शामिल हुए हैं. दोनों के बीच एक गतिशील भारत-थाई संयुक्त आयोग है, जो नियमित अंतराल के बाद एक मीटिंग का आयोजन करती है, ताकि विभिन्न क्षेत्रों में द्विपक्षीय जुड़ाव के लिये काम करने वाले प्रोजेक्ट आदि में विकास का अवलोकन किया जा सके. इस संदर्भ में 9वीं मीटिंग का आयोजन इस साल होने वाला है. चूंकि विश्वभर में सभी राष्ट्र धीरे-धीरे कोविड-19 के दुष्प्रभाव से उबर रहे हैं, भारत और थाईलैंड के लिए संयुक्त जुड़ाव में शामिल होने का ये सही समय है. इन दोनों के बीच चंद महत्वपूर्ण सेक्टर में भी क्षमता के विश्लेषण और विस्तार की आवश्यकता है.
अगर हम एक भौतिक कनेक्टिविटी के पहलू पर विचार करें तो अपेक्षित है कि, बहुप्रतीक्षित भारत-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय हाइवे, उत्तर पूर्व और दक्षिणपूर्व एशिया तक अपनी लैंड कनेक्टिविटी को विस्तारित कर रहा है. भारत के उत्तर पूर्व के विकास के मद्देनज़र, त्रिपक्षीय हाइवे आसियान के लिए एक महत्वपूर्ण एंट्री पॉइंट है, जिससे व्यापार-उद्योग के साथ-साथ लोगों का लोगों से जुड़ाव मज़बूत होगा. भारत और म्यांमार के साथ मल्टी-मॉडल कनेक्टिविटी के परिप्रेक्ष्य में इस प्रोजेक्ट का पूर्ण होना रानोंग बंदरगाह के लिए एक महत्वपूर्ण विकास होगा. भारत उम्मीद करता है कि वो इस हाइवे निर्माण को और आगे कंबोडिया, लाओस, और वियतनाम तक ले जाए. सन् 2020 से इस बात की भी चर्चा चल रही है कि बांग्लादेश भी इस प्रोजेक्ट में शामिल हो जाए, चूंकि- ये त्रिपक्षीय हाइवे उम्मीद करती है कि इसकी मदद से राष्ट्रों के बीच के जुड़ाव और व्यापार में बढ़ोत्तरी हो.
1360 किमी का त्रिपक्षीय हाइवे, जिसका भारत भी एक अंग हैं, भारत इसमें दो भागों में बंटा है. जो ज्य़ादातर म्यांमार के अंदर पड़ता है, और जो कि फरवरी 2021 के तख्त़ापलट के बाद से विरोध और हिंसा से जूझ रहा है. चिन राज्य, जहां एक बड़ा काम चालू है, वहां सौ से भी अधिक नागरिकों की मौत के कारण युद्धभूमि में तब्दील हो चुका है. यहां लगातार सेना को कमज़ोर करने के लिए, जातीय समूहों के बीच, आंदोलन खड़े हो रहे हैं, जिसकी वजह से ये जगह युद्धस्थल बन चुका है. ये अंदाज़ लगा पाना काफी मुश्किल है कि कब इन अत्याचारों का अंत होगा और हाईवे पर काम पुनः शुरू होगा.
थाई लोगों के लिए भी भारत एक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल है. दोनों राष्ट्रों के बीच बौद्ध धर्म एक आम सूत्र है. थाई-बौद्ध भारत में लुंबिनी, बोधगया, सारनाथ और कुशीनगर जैसे स्थानों पर धार्मिक यात्रा करते हैं.
पर्यटन भी एक हिस्सा है जिसे प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. महामारी के आने से पहले और उस वजह से यात्रा पर प्रतिबंध लागू किये जाने से पहले, थाईलैंड की यात्रा करने वाले भारतीयों से कुल 24.9 अमेरिकी डॉलर का मुनाफ़ा अर्जित हुआ. थाई लोगों के लिए भी भारत एक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल है. दोनों राष्ट्रों के बीच बौद्ध धर्म एक आम सूत्र है. थाई-बौद्ध भारत में लुंबिनी, बोधगया, सारनाथ और कुशीनगर जैसे स्थानों पर धार्मिक यात्रा करते हैं. इसके साथ ही नई दिल्ली, पर्यटन को बढ़ावा देने के मक़सद से हिमालय पर्यटन यात्रा, जो अपनी प्राकृतिक खूबसूरती और छटा, बर्फ़, एवं स्कीइंग के अवसरों को प्रोत्साहित करती है. हाल ही में, थाई प्रधानमंत्री ने भारतीयों को उनके देश की यात्रा के लिए के लिए एयर ट्रैवल बबल स्कीम को प्रोत्साहित किया है. एयर ट्रैवल बबल विभिन्न देशों में पर्यटकों के उस परिस्थिति में यात्रा करने के लिए एक वैकल्पिक व्यवस्था है, जो किसी वजह से हवाई यात्रा के प्रतिबंधित होने पर, इस्तेमाल किया जा सकता है. भारत सरकार ने मार्च के अंत में अपनी अंतरराष्ट्रीय फ्लाइट सेवा शुरू कर दी थी.
इसके अलावे भी, भारत और थाईलैंड के बीच व्यापार में बढ़ोत्तरी के बेहतर आसार हैं. इसे अर्जित करने के लिए, टैरीफ लाइन और संभावित व्यापारिक बाधाएं जैसे मुद्दों को संबोधित किया जाना काफी महत्वपूर्ण होगा. इस परिप्रेक्ष्य में, व्यापार और निवेश में वृद्धि के लिए, द्विपक्षीय जुड़ाव के ज़रिए इंपोर्ट ड्यूटी शुल्क में कमी काफ़ी ज़रूरी होगी. दोनों देशों के बीच आगे बढ़ने की असीम संभावनाएं हैं.
भारत के स्टार्ट अप के अभूतपूर्व विकास, जिनमें से बहुतों ने यूनिकॉर्न स्टेट्स भी प्राप्त किया है, काफी बड़े पैमाने पर थाईलैंड के साथ साझेदारी के अवसर प्रदान करती है.
थाईलैंड 4.0 यानी, नया इकॉनमिक मॉडल और हाल ही में लॉन्च किए गए, समग्र और सतत् वृद्धि के लिए, बायो सर्क्युलर इकोनॉमिक मॉडल पहले से ही स्थापित साझेदारी को और भी ज्य़ादा वजन प्रदान करती है. भारती उद्योग परिसंघ (सीआईआई) कॉन्फ्रेंस, समिट, और बिज़नस मीटिंग आदि का लगातार आयोजन करती आ रही है, ताकि भारत और थाईलैंड के व्यापारिक जुड़ाव में वृद्धि हो. बैंकॉक में स्थापित भारत-थाई चेम्बर ऑफ कॉमर्स अपने सदस्यों के लिये व्यापार की बेहतरी के उद्देश्य से, सरकारी और ग़ैर-सरकारी संस्थानों के साथ काम करने का अवसर प्रदान करता है.
भारत के स्टार्ट अप के अभूतपूर्व विकास, जिनमें से बहुतों ने यूनिकॉर्न स्टेट्स भी प्राप्त किया है, काफी बड़े पैमाने पर थाईलैंड के साथ साझेदारी के अवसर प्रदान करती है. ‘आत्मनिर्भर भारत’ का अभ्युदय काफ़ी महत्वपूर्ण है, ताकि सप्लाई चेन में व्याप्त खालीपन को भारत में निवेश करके कम किया जा सके. भारत में निर्मित प्रॉडक्ट आदि को थाईलैंड द्वारा भारतीय प्रवासियों और दुनिया को बेचा जा सके. चूंकि 75वीं वर्षगांठ का मनाया जाना जारी है, चर्चा के अनुसार, नई दिल्ली और बैंकॉक के बीच की साझेदारी को प्रचारित करना रह गया है. अतः ये नीति, सुरक्षा और आर्थिक सहयोगिता को संवाद के चैनल और दोनों देशों की एकजुटता को और भी विस्तृत रूप देने का बहुत ही अच्छा मौका है.
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Sreeparna Banerjee is an Associate Fellow in the Strategic Studies Programme. Her work focuses on the geopolitical and strategic affairs concerning two Southeast Asian countries, namely ...
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