Author : Sauradeep Bag

Published on Oct 26, 2023 Updated 0 Hours ago

CBDC के ज़रिए जुटाए गए आंकड़ों में ये संभावना है कि इन्हें सख़्ती के साथ कारोबारी बैंकों द्वारा रिज़र्व रखी जाने वाली रक़म से जोड़ा जा सकता है, जिससे महंगाई नियंत्रण की एक सैद्धांतिक रूप-रेखा तैयार हो सकती है.

केंद्रीय बैंकों की डिजिटल करेंसी (CBDC): डिजिटल युग में महंगाई पर नियंत्रण

दुनिया भर में भयंकर महंगाई के पीछे कई जटिल और लंबे समय से चली आ रही गतिविधियों को ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है, जिसकी शुरुआत 2020 में कोविड-19 महामारी से हुई थी और 2022 में शुरू हुए रूस-यूक्रेन युद्ध ने इस चुनौती को और बढ़ा दिया. महंगाई की ये चुनौती लगातार बनी हुई है. इस पूरे समय के दौरान, पूरी दुनिया के नीति निर्माता और केंद्रीय बैंकों को लगातार एक चुनौती का सामना करना पड़ रहा है: महंगाई को क़ाबू करना. इसके लिए मौजूदा रणनीति, तेज़ और निर्णायक गति से ब्याज दरें बढ़ाने की रही है, ताकि आर्थिक विकास की दर कम हो और क़ीमतों में उछाल पर क़ाबू पाया जा सके. ऐसे हालात में क्या केंद्रीय बैंकों द्वारा जारी डिजिटल करेंसियां (CBDC) कोई समाधान मुहैया करा सकती हैं?

सर्जियो मासा ने साफ़ कर दिया है कि अगर वो राष्ट्रपति चुनाव जीते, तो अर्जेंटीना की डिजिटल करेंसी लॉन्च करना उनकी सबसे बड़ी प्राथमिकता होगी.

अर्जेंटीना के चुनाव में भयंकर महंगाई से निपटने के लिए सरकारी डिजिटल करेंसी (CBDC) बनी मुद्दा

अर्जेंटीना में 22 अक्टूबर को हुए आम चुनावों का देश की आर्थिक स्थिति पर गहरा असर पड़ने वाला है. राष्ट्रपति चुनाव के एक उम्मीदवार सर्जियो मासा देश के अर्थव्यवस्था मंत्री भी हैं, जिन्हें यूनियन फॉर दि होमलैंड पार्टी ने अपना प्रत्याशी बनाया है. मासा ने वादा किया है कि चुनाव जीतने पर वो देश में आधिकारिक डिजिटल करेंसी (CBDC) लागू करेंगे. ये पहल ऐसे मौक़े पर की जा रही है, जब अर्जेंटीना लगातार भयंकर महंगाई से जूझ रहा है, जिसकी वजह से मौद्रिक नीतियां सबसे अहम चुनावी मुद्दा बन गई हैं.

सर्जियो मासा ने साफ़ कर दिया है कि अगर वो राष्ट्रपति चुनाव जीते, तो अर्जेंटीना की डिजिटल करेंसी लॉन्च करना उनकी सबसे बड़ी प्राथमिकता होगी. मासा ज़ोर देकर ये कहते हैं कि ये क़दम उनकी पार्टी के उस लक्ष्य से मेल खाता है, जिसमें आर्थिक लेन-देन को मोबाइल फोन या कार्ड से करने को बढ़ावा देने का वादा किया गया है, ताकि अर्जेंटीना के हर नागरिक को ये सुविधा मिल सके. मासा ने ये भी कहा है कि उनके देश की डिजिटल करेंसी के साथ ही एक क़ानून भी बनाया जाएगा, जिससे विदेश में रहने वाले लोग बिना अतिरिक्त टैक्स दिए रक़म को भेज सकेंगे या उसका इस्तेमाल कर सकेंगे. सर्जियो मासा ने ये वादा किया है कि अर्जेंटीना की डिजिटल करेंसी में लेन-देन करने वालों को टैक्स में भी रियायत दी जाएगी.

सही तरीक़े से बनाई गई आधिकारिक डिजिटल करेंसी में इस बात की संभावना है कि वो भुगतान व्यवस्था की सुविधा बेहतर, लचीली और कुशल बना सकें, जिससे वित्तीय समावेश बढ़े, ख़ास तौर से लैटिन अमेरिका और कैरेबियाई  देशों में. हालांकि, डिजिटल करेंसी को लेकर अपने वादे के बावजूद सर्जेई मासा अगर चुनाव जीत जाते हैं, तो भी अर्जेंटीना में CBDC लागू करने की समय-सीमा अनिश्चित है. इस वक़्त अर्जेंटीना में केंद्रीय डिजिटल करेंसी को लेकर रिसर्च का दौर चल रहा है और चुनाव प्रचार के दौरान, इस मुद्दे पर सियासी वार्ता की रफ़्तार भी तेज़ हुई है.

महंगाई के वित्तीय दबाव पर पड़ने वाले असर के सांख्यिकीय मॉडल तैयार करने में बाधा आता है , क्योंकि इन उपलब्ध आंकड़ों में पारदर्शिता की काफ़ी कमी होती है.

इसके उलट, सर्जियो मासा के मुख्य प्रतिद्वंदी, लिबर्टेरियन  पार्टी के उम्मीदवार हेवियर मिलेई एक वैकल्पिक नज़रिए का समर्थन करते हैं. मिलेई, अर्जेंटीना में डॉलरीकरण की वकालत करते हैं- यानी केंद्रीय बैंक को ख़त्म करना, अर्जेंटीना की मुद्रा पेसो से किनारा करना और महंगाई से निपटने के लिए अमेरिकी डॉलर को हथियार बनाना. अर्जेंटीना के केंद्रीय बैंक में डॉलर के सीमित भंडार और अतीत में डॉलरीकरण की नाकाम कोशिशों को देखते हुए, आलोचक इस नज़रिए पर सवाल खड़े कर रहे हैं. हालांकि, हेवियर मिलेई की चुनावी टीम ये तर्क देती है कि अर्जेंटीना के पास पर्याप्त विदेशी बचत है, जिससे डॉलरीकरण में मदद मिलेगी. उनकी योजना में विदेश के लिए केंद्रीय बैंक की जगह मौद्रिक स्थिरता फंड की स्थापना करना भी शामिल है, जिससे क़र्ज़ की अदायगी आसान हो जाए. इससे दिवालिया घोषित किए बग़ैर अर्जेंटीना अपने क़र्ज़ में बड़े पैमाने पर कटौती कर सकेगा.

आर्थिक रणनीतियों में ये अंतर इस बात को रेखांकित करता है कि आने वाले चुनावों में अर्जेंटीना को अहम विकल्प चुनने होंगे. फिर भी, अर्जेंटीना में महंगाई की पहेली को सुलझाना, सबसे बड़ी चुनौती बना हुआ है. हालांकि, केंद्रीय बैंक की डिजिटल करेंसी (CBDC) एक दिलचस्प संभावना प्रस्तुत करती है. महंगाई पर क़ाबू पाने में CBDC की भूमिका की पड़ताल करना ज़रूरी है. ख़ास तौर से इसलिए भी क्योंकि ज़्यादातर केंद्रीय बैंक इस मामले में हवा में ही तीर चला रहे हैं.

आंकड़ों की ताक़त

इसका एक संभावित कारण ये है कि अधिक आंकड़े होने से बेहतर नीतिगत फ़ैसले लिए जा सकते हैं. आज जब दुनिया भर के केंद्रीय बैंक ब्याज दरें बढ़ाते जा रहे हैं, तो एक साथ तमाम देशों में आर्थिक सुस्ती आने का ख़तरा बढ़ गया है. महंगाई के इस दौर में केंद्रीय बैंकों के सामने जो साझा चुनौती रही है, वो है आंकड़ों की कमी. केंद्रीय बैंकों को अपनी अर्थव्यवस्थाओं का विश्लेषण करने में दिक़्क़तें पेश आती रही हैं, ख़ास तौर से जब बात महंगाई दर और ब्याज दरें बढ़ाने पर इसके वास्तविक अर्थव्यवस्था पर असर की बात हो तो. हालांकि, इस जोखिम से निपटने के लिए CBDC आंकड़े और नीतिगत औज़ार दोनों ही मुहैया करा सकते हैं.

CBDC के मामले में उधार दी गई रक़म के 100 फ़ीसद बराबर CBDC रिज़र्व रखने की शर्त जोड़कर केंद्रीय बैंक कारोबारी बैंकों द्वारा CBDC को कई गुणा बढ़ाने की क्षमता को नियंत्रित कर सकते हैं.

पूरी दुनिया में कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (CPI) की रपटें उन आंकड़ों पर आधारित होती हैं, जिनमें संपत्ति और देनदारी की जानकारी बाज़ार के भागीदार केंद्रीय बैंक के नियामक अधिकारियों को मुहैया कराते हैं. बदक़िस्मती से ये आंकड़ा अक्सर पुराना पड़ चुका होता है. कई बार इसमें संपूर्ण जानकारी नहीं होती और अफ़सोस की बात ये है कि ये आंकड़े सटीक भी नहीं होते. इस सूचना को क़ीमतों में महंगाई के अर्थपूर्ण सूचकांक या वित्तीय जोखिम में तब्दील करने के लिए केंद्रीय बैंक अक्सर बड़े पैमाने पर अनुमान लगाते हैं. महंगाई के वित्तीय दबाव पर पड़ने वाले असर के सांख्यिकीय मॉडल तैयार करने में बाधा आता है , क्योंकि इन उपलब्ध आंकड़ों में पारदर्शिता की काफ़ी कमी होती है.

CBDC का ढांचा, इसके लिए एक नया और वैकल्पिक तरीक़ा उपलब्ध कराता है. इससे केंद्रीय बैंकों, अर्थशास्त्रियों और नियामकों को वित्तीय संस्थानों के पास मौजूद डिजिटल करेंसी के बैलेंस की लगभग वास्तविक सूचना मिल जाती है. इसमें वो मेटाडेटा भी शामिल होता है जिससे पता चलता है कि CBDC का हर लेन-देन किस उद्योग के खाते से जुड़ा है. इससे वास्तविक समय में कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स मापने और महंगाई पर अधिक असरदार नियंत्रण में मदद मिलती है. इसके साथ साथ हर यूज़र के लेन-देन की निजता भी सुरक्षित रहती है. इस व्यवस्था में केंद्रीय बैंकों को अपनी CBDC में संपत्तियों और देनदारियों की रिपोर्ट देने की ज़रूरत नहीं होती; इसके बजाय, केंद्रीय बैंक के कर्मचारी ख़ुद ही CBDC के बैलेंस का पता लगा सकते हैं.

रिज़र्व भंडार की ज़रूरतों का फ़ायदा उठाना

धन की आपूर्ति और अर्थव्यवस्था पर CBDC के संभावित असर के आयाम की पड़ताल करना एक जटिल कोशिश है. महंगाई और क़र्ज़ से प्रभावी तरीक़े से निपटने के लिए यूरोप में केंद्रीय बैंकों की डिजिटल करेंसियों का इस्तेमाल करने की दिलचस्प योजनाओं के प्रस्ताव रखे गए हैं.

CBDC में अनूठी ख़ूबियां होती हैं, जिनकी मदद से महंगाई पर क़ाबू पाने के साथ साथ धन को बढ़ाने की प्रक्रिया पर भी असर डाला जा सकता है. पारंपरिक असली मुद्राओं की जगह, CBDC डिजिटल होती हैं और उन्हें केंद्रीय बैंक द्वारा रिज़र्व के लिए निर्धारित शर्तों को पूरा करने के लिए ढाला जा सकता है. इस समय जिस एक उल्लेखनीय शर्त पर विचार किया जा रहा है वो 100 प्रतिशत मूल्य के बराबर रिज़र्व करेंसी रखने का है. इस आदेश के तहत कारोबारी बैंकों को उधार दी गई रक़म के बराबर CBDC का रिज़र्व भंडार रखना होगा.

रिज़र्व मुद्रा रखने की ऐसी शर्त लगाने का मनी मल्टीप्लायर  इफेक्ट पर गहरा असर पड़ सकता है. फ्रैक्शनल रिजर्व बैंकिंग व्यवस्था में जहां बैंक अपने यहां जमा रक़म का एक हिस्सा  दोबारा क़र्ज़ के तौर पर देकर अतिरिक्त कमाई कर सकते हैं, वहां मनी मल्टीप्लायर  एक से अधिक गुणा होता है. हालांकि, CBDC के मामले में उधार दी गई रक़म के 100 फ़ीसद बराबर CBDC रिज़र्व रखने की शर्त जोड़कर केंद्रीय बैंक कारोबारी बैंकों द्वारा CBDC को कई गुणा बढ़ाने की क्षमता को नियंत्रित कर सकते हैं. इस तरह से वो अर्थव्यवस्था पर महंगाई के दबाव को भी काबू में रख सकते हैं. इस लक्ष्य को हासिल करने का एक तरीक़ा, पारंपरिक मुद्रा के चलन को कम करना भी हो सकता है. इसके साथ साथ केंद्रीय बैंकों द्वारा जारी डिजिटल करेंसी लागू करने से धन की आपूर्ति बढ़ जाती है. इस सामरिक बदलाव से मनी मल्टीप्लायर , फ्रैक्शनल रिज़र्व सिस्टम की अपनी पारंपरिक अवस्था यानी एक से अधिक से बदलकर एक के बराबर एक के स्तर पर पहुंच जाता है.

यहां इस बात पर विचार करना भी ज़रूरी है कि इन दोनों के बीच का रास्ता भी उपलब्ध है, जैसे कि प्रस्तावित व्यवस्था के कुछ लाभ उठाने के लिए रिज़र्व करेंसी रखने की शर्तों में कुछ ढील देना. इसके अतिरिक्त, CBDC की तरफ़ आगे बढ़ने के साथ साथ, आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए GDP विस्तार और महंगाई दर को ध्यान में रखते हुए, कारोबारी बैंकों द्वारा रिज़र्व मुद्रा रखने की शर्त में धीरे धीरे रियायत दी जा सकती है.

इनोवेशन पर काम हो रहा है?

CBDC के ज़रिए एकत्र किए गए आंकड़ों में इस बात की संभावना है कि इन्हें कारोबारी बैंकों द्वारा रिज़र्व मुद्रा रखने की सख़्त ज़रूरत से जोड़ा जा सकता है, जिससे महंगाई पर क़ाबू पाने की एक सैद्धांतिक रूप-रेखा तैयार की जा सकती है. हालांकि, इस बात का ख़याल रखना भी ज़रूरी है कि ऐसा कोई ढांचा इससे पहले कभी भी लागू नहीं किया गया है. केंद्रीय बैंकों की  डिजिटल मुद्रा (CBDC) अभी भी वैश्विक स्तर पर एक नई परिकल्पना है. अर्जेंटीना के राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी सर्जियो मासा ने CBDC के वादे की मदद से चुनाव के पहले दौर में हैवियर मिलेई पर बढ़त हासिल कर ली है. चुनाव जीतने पर वो महंगाई पर क़ाबू पाने के लिए केंद्रीय डिजिटल करेंसी को एक असरदार औज़ार के तौर पर इस्तेमाल करने का इरादा रखते हैं. CBDC की वास्तविक उपयोगिता अभी धीरे धीरे सामने आ रही है और, आने वाला समय ही बता पाएगा कि वैश्विक वित्तीय व्यवस्था पर उनका वास्तविक असर क्या होगा.

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