Published on Oct 04, 2023 Updated 19 Days ago

भारत के खिलाफ़ खालिस्तानी आतंकवादियों को समर्थन देना कनाडा को पाकिस्तान की कतार में खड़ा कर देता है. सुरक्षा और रणनीतिक दृष्टिकोण से कनाडा का यह रवैया पूरी दुनिया के लिए घातक है. 

कनाडा का आतंकवाद को समर्थन देना उसके भविष्य की परेशानियों का सबब बनेगा!

जस्टिन ट्रूडो जब से कनाडा के प्रधानमंत्री बने हैं, तब से भारत और कनाडा के संबंध तनावपूर्ण रहे हैं. इन दिनों भारत और कनाडा के संबंध जिस तरह से बेहद खराब स्थित में पहुंच गए हैं, ऐसे में ज़्यादातर भारतीयों द्वारा कनाडा को नए पाकिस्तान के तौर पर देखा जाने लगा है और शायद प्रधानमंत्री ट्रूडो की यह ऐसी नकारात्मक उपलब्धि है, जो उन्हें संदेह के घेर में खड़ा करती है. नई दिल्ली में G20 शिखर सम्मेलन के इतर भारत और कनाडा के प्रधानमंत्रियों के बीच हुई द्विपक्षीय बैठक के बाद जो माहौल बना है और दोनों देशों के रिश्तों के बीच जो अनबन दिखाई दी है, उससे साफ ज़ाहिर होने लगा है कि कनाडा के साथ भारत के संबंध पाकिस्तान की राह पर जाना तय है. इतना ही नहीं इसके बाद कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की ओर से जो राजनयिक युद्ध शुरू किया गया और उसमें जिस प्रकार से भारत भी कूद पड़ा है, उसने दोनों देशों के बीच दिखावे वाले सामान्य संबंधों को भी समाप्त कर दिया है, साथ ही कनाडा को नए पाकिस्तान के रूप में स्थापित कर दिया है. 

नई दिल्ली में G20 शिखर सम्मेलन के इतर भारत और कनाडा के प्रधानमंत्रियों के बीच हुई द्विपक्षीय बैठक के बाद जो माहौल बना है और दोनों देशों के रिश्तों के बीच जो अनबन दिखाई दी है, उससे साफ ज़ाहिर होने लगा है कि कनाडा के साथ भारत के संबंध पाकिस्तान की राह पर जाना तय है.

चाहे कुछ भी हो लेकिन दोनों देशों के बीच संबंध इस स्तर तक नहीं बिगड़ने चाहिए थे. भारत और कनाडा, दोनों ही देशों के पास लोकतंत्र, प्रवासी नागरिक (नुक़सान पहुंचाने वाले प्रवासियों को छोड़कर) पारस्परिक रक्षा एवं सामरिक संबंध और ज़ाहिर तौर पर एक दूसरे को लाभ पहुंचाने वाले आर्थिक रिश्तों समेत ऐसा बहुत कुछ है, जो उन्हें एक सूत्र में बांधने का काम करता है. दोनों देशों के बीच इतने मज़बूत संबंध होने के बाद भी कनाडा में रहने वाले सिख समुदाय के बीच मौज़ूद एक छोटे से गुट को इन ऐतिहासिक रिश्तों को नुक़सान पहुंचाने का पूरा मौक़ा दिया गया.

देखा जाए तो इस सबके पीछे प्रधानमंत्री ट्रूडो की घरेलू राजनीतिक मज़बूरियां हैं. इन्हीं मज़बूरियों ने उन्हें कनाडा में रहने वाले सबसे ख़तरनाक लोगों यानी खालिस्तान आंदोलन के समर्थकों के साथ खड़े होने और उन्हें प्रश्रय देने के लिए विवश किया है. उल्लेखनीय है कि खालिस्तान आंदोलन के कई समर्थक ट्रूडो की पार्टी के सदस्य हैं, यहां तक कि उनके मंत्रिमंडल में भी शामिल हैं. पिछले आम चुनावों के बाद खालिस्तान समर्थकों को लेकर उनका रवैया एकदम से बदल गया है, क्योंकि उनकी सरकार खालिस्तानी नेता जगमीत धालीवाल की न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी के समर्थन पर टिकी हुई है. कनाडा में खालिस्तानी समर्थक फिलहाल न केवल अधिक मुखर और सक्रिय हो गए हैं, बल्कि उनकी भारत विरोधी ख़तरनाक गतिविधियां भी बढ़ गई हैं. इस पर ध्यान देने के बजाए ट्रूडो ने अपना फोकस उन मुद्दों की तरफ मोड़ दिया है, जो स्पष्ट रूप से भारत के आंतरिक मामलों में दख़ल है. जैसे कि वर्ष 2021 में उन्होंने कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ भारत में चल रहे विरोध-प्रदर्शनों का समर्थन किया था. हैरानी वाली बात यह है कि कनाडा और वहां रहने वाले खालिस्तान समर्थकों द्वारा आतंकवाद एवं अलगाववाद का समर्थन किया जा रहा और अपनी गतिविधियों के ज़रिए भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप किया जा रहा है. यहां तक कि खालिस्तानियों द्वारा भारत में संगठित तरीक़े से की गई हत्याओं की भी खुलकर ज़िम्मेदारी ली जा रही है. इस सबके बावज़ूद कनाडा की सरकार और वहां के प्रशासन द्वारा भारत पर कनाडा के अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप करने का आरोप लगाया गया है.

पहले पाकिस्तान हो या अब कनाडा, दोनों की चिकनी-चुपड़ी बातों के माध्यम से खुद को सही साबित करने की कोशिश करते हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि दोनों ही बेहद चालाक, धूर्त और कपटी मुल्क़ हैं.

ट्रूडो के बयानों की वजह से भारत के साथ संबंधों में तनाव आ गया है. उन्होंने अपने बयान में एक तरफ भारत पर कनाडा के मामलों में दख़ल देने का आरोप लगाया और कनाडा की संप्रभुता की रक्षा की बात कही है, वहीं दूसरी तरफ ट्रूडो ने भारत के अंदरूनी मसलों पर जिस प्रकार से बयानबाज़ी की है, वो उनके बेपरवाह, अपरिपक्व रवैये को प्रकट करता है. यह बहुत ही अजीब से बात है कि ट्रूडो को पास कोई ठोस सुबूत नहीं थे, इसके बावज़ूद उन्होंने सिर्फ संभावना के आधार पर भारत पर इतने गंभीर आरोप मढ़ दिए और फिर अपने बयानों से पलट भी गए. साथ ही हैरानी वाली बात यह भी है कि ट्रूडो की विदेश मंत्री ने भारत के एक राजनयिक को केवल यह आरोप लगाते हुए निष्कासित करने का ऐलान कर दिया कि “इस मामले में एक विदेशी सरकार का एक प्रतिनिधि शामिल हो सकता है.” लेकिन जिस तरह से अपने देश में ट्रूडो का राजनीतिक सितारा इन दिनों गर्दिश में है, ऐसे में इस सच्चाई से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि वे ऐसे बयान देकर अपनी राजनीतिक स्थिति को मज़बूत करने की कोशिश कर रहे हैं. चाहे कुछ भी हो, लेकिन यह एक दम बचकानी सी बात है कि कनाडा दुनिया की सबसे बड़ी समस्या, यानी आतंकवाद का समर्थन करने और उसे बढ़ावा देने की हर संभव कोशिश कर रहा है.

तनाव के केंद्र में आतंकवाद

निस्संदेह, भारत और पाकिस्तान की भांति भारत एवं कनाडा के बीच भी बुनियादी मसला आतंकवाद ही है. कनाडा ऐसे कट्टरपंथी तत्वों की गतिविधियों के प्रति चुप्पी साधे हुए है, जो कनाडा में रहकर भारत को अस्थिर करने और भारत में राजनीतिक हत्याओं एवं संगठित हत्याओं को अंजाम देने में जुटे हुए हैं. साथ ही भारत में अस्थिरता फैलाने वाले ख़तरनाक लोगों को फंडिंग करने तथा भारत में नशीले पदार्थों और मानव तस्करी के नेटवर्क की मदद के लिए कनाडा की धरती का इस्तेमाल कर रहे हैं. चाहे कुछ भी हो, लेकिन इसे कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता है. ये सब वो हरकतें हैं, जिनके लिए पहले पाकिस्तान बेहद बदनाम था. कनाडा इस मामले में पाकिस्तान के पदचिन्हों पर चल रहा है. इतना ही नहीं, कनाडा में रहकर भारत के विरुद्ध षड़यंत्र रचने वाले आतंकवादियों का समर्थन करना कहीं न कहीं आज ओटावा की राष्ट्रीय नीति बन गई है.

10 सितंबर 2023 को प्रधानमंत्री मोदी के साथ हुई द्विपक्षीय बैठक में ट्रूडो द्वारा दृढ़तापूर्वक इस बात को कहा गया था कि कनाडा की धरती पर आतंकवादियों का समर्थन करना वे किसी भी हाल में बंद नहीं करेंगे, यानी उनका समर्थन करते रहेंगे.

बिना किसी गंभीरता के साथ ट्रूडो बेपरवाह तरीक़े से खालिस्तानी आतंकवादियों के समर्थन को अभिव्यक्ति की आज़ादी और अंतरात्मा की आवाज़ की स्वतंत्रता की रक्षा के तौर पर सामने रखते हैं. ज़ाहिर है कि इस्लामाबाद भी हमेशा आतंकियों के आत्मनिर्णय के अधिकार का हवाला देकर ही आतंकवादियों को अपनी तरफ से दिए जा रहे समर्थन का बचाव करता आया है. पहले पाकिस्तान हो या अब कनाडा, दोनों की चिकनी-चुपड़ी बातों के माध्यम से खुद को सही साबित करने की कोशिश करते हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि दोनों ही बेहद चालाक, धूर्त और कपटी मुल्क़ हैं. ये दोनों, जिन कट्टरपंथियों की अभिव्यक्ति की आज़ादी और आत्मनिर्णय के अधिकार की रक्षा का दावा कर रहे हैं, वास्तविकता में, जब ऐसे कट्टर लोगों की बारी आती है, तो वे उनसे असहमति रखने वालों के इन्हीं बुनियादी अधिकारों की तनिक भी चिंता नहीं करते हैं.

कई मामलों में कनाडा इन दिनों पाकिस्तान के नक्शेक़दम पर चल रहा है. जिस प्रकार से पाकिस्तानी नेता पूरी दुनिया के सामने बदनीयती के साथ दोमुंही बात करते हैं और भरोसा देते हैं कि वे आतंकवाद पर लगाम लगाएंगे, ठीक उसी प्रकार से आज कनाडा में ट्रूडो प्रशासन भी कर रहा है. G20 समिट के लिए दिल्ली में रहते हुए, ट्रूडो ने दावा किया कि “हम हिंसा को रोकने और नफरत व अशांति फैलाने वालों पर लगाम लगाने के लिए हमेशा तत्पर हैं.” लेकिन, सच्चाई इसके उलट है. अभी तक कनाडा प्रशासन की ओर से खालिस्तानियों के विरुद्ध कोई भी कार्रवाई नहीं की गई है. जब यह जगजाहिर है कि ये खालिस्तानी खुलेआम भारतीय राजनयिकों पर हमला कर रहे हैं, “Kill India” (क्या यह हेट स्पीच नहीं है?) अभियान चला रहे हैं. इसके अलावा, यह भी किसी से छिपा नहीं है कि खालिस्तानियों द्वारा कनाडा में भारतीय वाणिज्य दूतावासों और उच्चायोग में तोड़फोड़ की गई है और हिंदू मंदिरों को भी निशाना बनाया गया है. इसके साथ ही खालिस्तानियों ने गैर-खालिस्तानी कनाडाई नागरिकों (सिखों और हिंदुओं) में भी डर पैदा किया है. ऐसे सभी वाकयों में कनाडा की सरकार ने कोई भी कार्रवाई करने के बजाए, चुप्पी साधना और इनसे नज़रें फेरने का रास्ता चुना है.

पाकिस्तान और कनाडा में समानताएं 

यह सब कुछ बिलकुल वैसा ही है, जैसा कि हमेशा से पाकिस्तान में होता आया है. क्या कनाडा के अधिकारियों की नज़र में पाकिस्तानी दूतावास के लोगों का खालिस्तानियों के साथ सार्वजनिक तौर पर मिलना और उनके साथ बातचीत करना, सामान्य राजनयिक गतिविधि है? अगर यह सामान्य राजनयिक गतिविधि है, तो कनाडा को वहां रहने वाले खालिस्तानियों एवं पाकिस्तानियों के बीच उस सांठ-गांठ के बारे में बताने की ज़रूरत है, जिसने 1980 और 1990 के दशक में पंजाब में ज़बरदस्त तबाही मचाई थी. आम तौर पर, अगर खालिस्तानी भड़काने वाली छोटी-मोटी हरकतें कर रहे होते, तो भारत उसकी अनदेखी कर देता और ऐसा करने लाज़िमी भी है. लेकिन खालिस्तानियों के बर्बर इतिहास पर नज़र डालें तो ऐसा कतई नहीं है. एआई182 पर बमबारी, टोक्यो के नारिता एयरपोर्ट पर बम धमाका, भारत में अलगवावादियों एवं उग्रवादियों व राजनीतिक आंदोलन को फंडिंग और भारत के ख़िलाफ़ हमेशा ज़हरीली भाषा का इस्तेमाल करना, यह सब ऐसी हरकतें हैं, जिन्हें खालिस्तान समर्थक चरमपंथी कनाडा की धरती पर रहकर बेख़ौफ़ तरीक़े से अंजाम दे रहे हैं. ज़ाहिर है कि भारत यह सब किसी भी सूरत में नज़रंदाज नहीं कर सकता है.

संभावित रूप से दिल्ली में G20 समिट के इतर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं प्रधानमंत्री ट्रूडो के बीच द्विपक्षीय मीटिंग के दौरान ही मौज़ूदा विवाद (कनाडा के एक राजनेता द्वारा की गई भविष्यवाणी) की भूमिका तैयार हो गई थी. 10 सितंबर 2023 को प्रधानमंत्री मोदी के साथ हुई द्विपक्षीय बैठक में ट्रूडो द्वारा दृढ़तापूर्वक इस बात को कहा गया था कि कनाडा की धरती पर आतंकवादियों का समर्थन करना वे किसी भी हाल में बंद नहीं करेंगे, यानी उनका समर्थन करते रहेंगे. सच्चाई यह है कि दोनों पक्षों की ओर से उस बैठक का जो संक्षिप्त विवरण जारी किया गया था, वो एकदम से अलग था.

द्विपक्षीय बैठक के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने “कनाडा में कट्टरपंथियों” की भारत विरोधी गतिविधियों के बारे में चिंता ज़ाहिर की थी. पीएम मोदी ने कहा था ये कट्टरपंथी “भारत में अलगाववाद को बढ़ावा दे रहे हैं और भारतीय राजनयिकों के विरुद्ध हिंसक वारदातों को अंज़ाम दे रहे हैं, भारत के राजनयिक परिसरों को नुक़सान पहुंचा रहे हैं और कनाडा में रह रहे भारतीय समुदाय के लोगों एवं उनके मंदिरों को निशाना बना रहे हैं”. साथ ही उन्होंने कहा था कि “संगठित अपराध, ड्रग सिंडिकेट और मानव तस्करी के साथ ऐसी कट्टरपंथी ताक़तों का संबंध कनाडा के लिए भी चिंता का विषय होना चाहिए. ऐसे चुनौतियों से निपटने में दोनों देशों का अपसी सहयोग बहुत ज़रूरी है.” बैठक के दौरान पीएम मोदी ने यह भी कहा कि भारत-कनाडा संबंधों की प्रगति के लिए पारस्परिक सम्मान और विश्वास बेहद आवश्यक है.

इसी बैठक के बारे में प्रधानमंत्री ट्रूडो की तरफ जो बातें कहीं गईं , इनसे यह लगता है कि दोनों नेताओं के बीच उपरोक्त किसी मुद्दे पर कोई वार्ता ही नहीं हुई. ट्रूडो पक्ष की ओर से बताया गया कि भारत के साथ द्विपक्षीय बैठक में समावेशी आर्थिक विकास, सतत विकास के लिए रियायती आर्थिक मदद, G20 के सदस्य के रूप में अफ्रीकी यूनियन का स्वागत और क़ानून के शासन, लोकतांत्रिक सिद्धांतों व राष्ट्रीय संप्रभुता का सम्मान करने के महत्व, जैसे मुद्दों पर चर्चा की गई.

भारत द्वारा उठाए गए मुद्दों पर ट्रूडो ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हवाला दिया. कनाडा की भूमि पर खालिस्तानी आतंकवादियों की मौज़ूदगी और उनकी भारत विरोधी गतिविधियों को उचित ठहराते हुए ट्रूडो ने कहा कि “निस्संदेह, कनाडा हमेशा अभिव्यक्ति की आज़ादी, शांतिपूर्ण विरोध-प्रदर्शन की स्वतंत्रता की रक्षा करेगा. यह हमारे लिए बेहद महत्वपूर्ण बात है.” उन्होंने आगे कहा कि “इसके साथ ही हम नफ़रत फैलाने वाले विचारों पर लगाम लगाने एवं हिंसक वारदातों को रोकने के लिए हमेशा तत्पर हैं. मुझे लगता है कि जहां तक समुदाय के मसले की बात है, तो यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि कुछ लोगों की हरकतें पूरे समुदाय या कनाडा का प्रतिनिधित्व नहीं करती हैं.”

उल्लेखनीय है कि कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं कह रहा है कि कनाडा में रहने वाला हर सिख आतंकवादी है. लेकिन ट्रूडो ने जिस प्रकार से “कुछ” शब्द का इस्तेमाल किया है और इसकी आड़ में चालाकी के साथ अपनी मंशा को छिपाने की कोशिश की है, वो उनके द्वारा की गई कार्रवाइयों को कहीं न कहीं आतंकवाद के ख़िलाफ़ पाकिस्तानी सेना द्वारा अपनाए जाने वाले ढोंग के बराबर ला देती है. आतंकवाद की समस्या का समाधान करने के लिए ट्रूडो द्वारा या फिर उनकी सरकार द्वारा कुछ भी नहीं किया गया है. 6 जुलाई 2023 को भारत की ओर से आधिकारिक प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा था, “यह बेहद चिंता का विषय है कि कनाडा और अन्य जगहों पर स्थित भारत विरोधी तत्वों द्वारा अभिव्यक्ति की आज़ादी का एक बार फिर से दुरुपयोग किया जा रहा है.” उन्होंने आगे कहा कि “…मुद्दा अभिव्यक्ति की आज़ादी का नहीं है, बल्कि हिंसा की पैरोकारी करने, अलगाववाद के लिए षड़यंत्र रचने और आतंकवाद को तर्कसंगत ठहराने के लिए अभिव्यक्ति की आज़ादी के दुरुपयोग और उसकी आड़ लेने का है.”

पाकिस्तान की राह पर..

भारतीय प्रवक्ता अरिंदम बागची ने यह भी कहा कि लंदन में भारतीय उच्चायोग पर हुए हमलों की तरह ही कनाडा में इंडियन हाई कमीशन पर हुए हमलों का मूल्यांकन इस आधार पर किया जाएगा कि “ज़मीनी स्तर पर क्या होता है. अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर हमें उन लोगों को प्रश्रय नहीं देना चाहिए, जो हिंसा की बात करते हैं या फिर अलगाववाद के लिए षड़यंत्र रचते हैं और आतंकवाद को सही ठहराते हैं.” उदाहरण के तौर पर अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में भारतीय वाणिज्य दूतावास पर आगजनी की कोशिश पर वहां के प्रशासन ने तत्काल काबू पा लिया था. लेकिन कनाडा में ऐसी कोई कार्रवाई देखने को नहीं मिली है. इससे साफ पता चलता है कि कनाडा द्वारा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ जो भी उदारवादी बातें कही जा रही हैं, वो सिर्फ ध्यान भटकाने वाली उसकी रणनीति का ही हिस्सा हैं.

देखा जाए तो अभी तक सरकारी स्तर पर आतंकवाद को समर्थन देने के मामले में पाकिस्तान ही एक मात्र देश था और पूरी दुनिया में यहीं से टेररिज़्म की आपूर्ति होती थी. अफ़सोसजनक बात यह है कि अब कनाडा भी इसी ओर तेज़ी से अग्रसर है.

देखा जाए तो अभी तक सरकारी स्तर पर आतंकवाद को समर्थन देने के मामले में पाकिस्तान ही एक मात्र देश था और पूरी दुनिया में यहीं से टेररिज़्म की आपूर्ति होती थी. अफ़सोसजनक बात यह है कि अब कनाडा भी इसी ओर तेज़ी से अग्रसर है. आर्थिक रूप से एक समृद्ध G7 राष्ट्र, जिसकी प्रति व्यक्ति आय 55,000 अमेरिकी डॉलर है, वो पाकिस्तान की तर्ज़ पर न सिर्फ़ आतंकवाद का समर्थन करता हुआ प्रतीत हो रहा है, बल्कि उसी की तरह दुनिया में आतंक का निर्यात करने की रणनीति पर चलता हुए दिखाई दे रहा है. दोनों देशों में आतंक की फ़ैक्टरियों का संचालन देखा जाए तो मज़हबी कट्टरपंथियों द्वारा ही किया जाता है. इन लोगों की करतूतें पूरे समुदायों को कलंकित करने का काम करती हैं, जबकि सच्चाई है कि इनमें से ज़्यादातर को इनसे कोई लेना-देना नहीं होता है. एक और समानता यह है कि दोनों ही देशों में ऐसी लोगों को नेताओं और संस्थानों द्वारा संरक्षण प्रदान किया जाता है. जैसे कि इस्लामाबाद में वहां की सेना और सरकारें आतंकियों को पालती-पोषती है, वहीं ओटावा में प्रधानमंत्री ट्रूडो की सरकार ऐसा कर रही है. लेकिन यह भी एक सच्चाई है कि जिस प्रकार से अपनी हरकतों के कारण पाकिस्तान आज दिक़्क़त महसूस कर रहा है, ज़ल्द ही कनाडा को भी यह सब झेलना पड़ेगा. ज़ाहिर है कि आतंकवादियों का काम आतंक फैलाना है, क्या पता कब समय बदल जाए और ये आतंकी उन्हीं के लिए घातक साबित होने लगें, जिन्होंने इन्हें पाला है.

फिलहाल स्थिति यह है कि ओटावा और इस्लामाबाद के बीच पूरी तरह से आतंकी गठजोड़ हो चुका है.

जहां तक भारत की बात है, उसे पांच बातों पर तेज़ी से अमल करना होगा या ध्यान देना होगा. सबसे पहले, उसे कनाडा की तरफ से होने वाली आतंकी फंडिंग के विरुद्ध FATF (फाइनेंशियल एक्शन टॉस्क फोर्स) की कार्यवाही शुरू करनी चाहिए. दूसरा, इसे कनाडा में बसे भारतीयों को दिए गए OCI (ओवरसीज़ सिटीजन ऑफ इंडिया) स्टेटस पर कड़ी नज़र रखनी चाहिए, ज़ाहिर है कि यह एक विशेषाधिकार है, कोई पात्रता नहीं है. तीसरा, भारत को कनाडा की यात्रा करने वाले भारतीय नागरिकों के लिए ट्रैवल एडवाइज़री जारी करनी चाहिए और कनाडा से भारत आने वालों पर रोक लगाना चाहिए. चौथा, किसी न किसी स्तर पर कनाडा के राजनयिक महत्व को कम करने पर भी विचार करना चाहिए. और आख़िरी बात यह है कि भारत-कनाडा FTA (मुक्त व्यापार समझौता) फिलहाल खटाई में पड़ चुका है, क्योंकि ट्रूडो का आज का कनाडा यह सोचता है कि भारत की गंभीर और जायज़ चिंताओं का समाधान करने के बजाए चीन-पाकिस्तान आतंकी गठजोड़ के साथ गलबहियां करना ज़्यादा मुफ़ीद है.


सुशांत सरीन ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में सीनियर फेलो हैं.

गौतम चिकरमने ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में वाइस प्रेसिडेंट हैं.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.

Authors

Sushant Sareen

Sushant Sareen

Sushant Sareen is Senior Fellow at Observer Research Foundation. His published works include: Balochistan: Forgotten War, Forsaken People (Monograph, 2017) Corridor Calculus: China-Pakistan Economic Corridor & China’s comprador   ...

Read More +
Gautam Chikermane

Gautam Chikermane

Gautam Chikermane is Vice President at Observer Research Foundation, New Delhi. His areas of research are grand strategy, economics, and foreign policy. He speaks to ...

Read More +