मानवीय इतिहास में कोविड -19 (COVID-19) वैक्सीन के विकास और व्यापक पैमाने पर उसके रोल-आउट अर्थात उपयोग की गति अभूतपूर्व रही है. लेकिन इस वैक्सीन की वज़ह से होने वाले हानिकारक प्रभाव भले ही बिरले ही दर्ज़ किए गए हो, परंतु इसकी वज़ह से वैक्सीन को लेकर लोगों की समझदारी प्रभावित हुई है. इसने बदले में वैक्सीन को लेकर हिचकिचाहट भी पैदा की है. ऐसे में वैक्सीन को लेकर उठने वाले विवाद इस मुश्किल को और भी बढ़ाने का काम करते हैं. COVID-19 को लेकर पूछे जाने वाले FAQs में अक्सर एक सवाल अपनी जगह बना ही लेता है. यह सवाल नोवल mRNA वैक्सीन से जुड़ी चिंता को लेकर होता है. यह चिंता यह है कि यह mRNA या इस वैक्सीन में शामिल कन्टैनिमेटिंग अर्थात मैलापन रखने वाले DNA क्या ह्यूमन जीनोम में प्रवेश करते हुए जीनोम को अल्टर अर्थात परिवर्तित कर देंगे.
कंटैमिनेट अर्थात संदूषित करने वाला DNA संभवत: mRNA वैक्सीन बनाने के लिए उपयोग की जाने वाली प्रक्रिया की वज़ह से ही आगे चला जाता है. लेकिन यह बात भी ध्यान रखने योग्य है कि mRNA वैक्सीन में रह जाने वाले इस DNA को बाहर निकालने के लिए शुद्धिकरण चरण मौजूद हैं.
क्या वैक्सीन की शीशी में मौजूद कुछ फॉरेन अर्थात बाहरी DNA (उदाहरण के लिए SARS-COV-2 के स्पाइक प्रोटीन के लिए कोड करने वाला जीन) - वैक्सीन बनाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली प्रक्रिया के कन्टैमिनन्ट अर्थात संदूषक के रूप में या mRNA स्वयं-मानव जीनोम में एकीकृत होता है? क्या यह कन्टैमिनन्ट एक व्यक्ति को (उन्हें शायद कैंसर से ग्रस्त कर देता है या म्युटेशन अर्थात उत्परिवर्तन का कारण बनता है) प्रभावित करता है? ऐसा होने के लिए आवश्यक कम संभावना वाली घटनाओं की संख्या को देखते हुए आणविक जीव विज्ञान के दृष्टिकोण से यह चिंता हैरान करने वाली है. आइए हम इस बात की DNA को कन्टैमिनेट करने वाले दो मामले और mRNA वैक्सीन में मौजूद mRNA को लेकर जांच करें.
कंटैमिनेट अर्थात संदूषित करने वाला DNA संभवत: mRNA वैक्सीन बनाने के लिए उपयोग की जाने वाली प्रक्रिया की वज़ह से ही आगे चला जाता है. लेकिन यह बात भी ध्यान रखने योग्य है कि mRNA वैक्सीन में रह जाने वाले इस DNA को बाहर निकालने के लिए शुद्धिकरण चरण मौजूद हैं. (एक सर्कुलर प्लाज्मिड जिससे mRNA सिंथेसाइज्ड अर्थात संश्लेषित किया जाता है) ऐसे में DNA के दूषित होने की मात्रा कम ही होने की संभावना है. एक हालिया प्रीप्रिंट अर्थात एक ऐसा अध्ययन जिसकी अभी तक सहकर्मी-समीक्षा नहीं की गई है) के अनुसार एक्स्पायर्ड अर्थात जिसकी समयावधि ख़त्म हो गई है, ऐसे mRNA वैक्सीन की शीशियों में DNA अपेक्षित स्तर से अधिक होने की जानकारी दी गई है. लेकिन ये परिणाम प्रारंभिक हैं और यह दावा करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली विधियों की उपयुक्तता विवादास्पद है. हालांकि, मुख्य बिंदु यह है कि कॉन्टैमिनेटिंग DNA की मौजूदगी, घटनाओं की लंबी श्रृंखला की पहली घटना है.
इस DNA को इसके बाद इंजेक्शन की साइट अर्थात इंजेक्शन की जगह से कोशिकाओं तक जाना होता है. अत: इस प्रक्रिया में कम मात्रा में ही DNA के और अधिक पतला होने की संभावना होती है. इस प्रकार, यह संभावना नहीं है कि कोशिकाओं में बड़ी मात्रा में प्रवेश करने के लिए पर्याप्त कन्टैमिनेटिंग DNA उपलब्ध रहे अथवा बचा रहे.
इसके पश्चात DNA को कोशिका की झिल्ली को पार करना होता है. कोशिका की झिल्ली में भी उसे कोशिका/साइटोसोल में प्रवेश करने के बाद फिर कोशिका के साइटोसोल से न्यूक्लियस अर्थात केंद्र या नाभिक - डीएनए के लिए एक अलग कम्पार्टमेंट और निकट से जुड़े प्रोटीन - में जाना होता है. यह प्रक्रिया एक किले में प्रवेश करने जैसी ही होती है. ऐसा करने के लिए, जो किसी भी तरह से खराब नहीं हुआ हो ऐसा पर्याप्त DNA - (उदाहरण के लिए, प्लास्मिड का सर्कुलर DNA जो डबल-स्ट्रैंडेड हो और किसी तरह से संरक्षित हो - मौजूद अथवा उपलब्ध होना चाहिए. इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि ट्रान्जिट अर्थात पारगमन के बड़ी मात्रा में DNA के नष्ट होने की संभावना रहती है.
यह एक ऐसी चुनौती है, जिससे DNA वैक्सीन को पार पाना होगा. ऐसा माना जाता है कि mRNA वैक्सीन की तुलना में DNA वैक्सीन को साइटोसोल-टू-न्यूक्लियस को पार करने के लिए एक अतिरिक्त मेम्ब्रेन अर्थात झिल्ली से जुड़ा यह अतिरिक्त कदम ही DNA वैक्सीन में कम प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया उत्पन्न करने का कारण है.
एक बार न्यूक्लियस अर्थात केंद्र में पहुंचने के बाद DNA का यह टुकड़ा अक्षुण्ण होना चाहिए. इसके साथ ही उसमें अर्थात DNA के टूकड़े में एक सेल की मशीनरी को नष्ट करने के लिए आवश्यक विशेषताएं भी होनी चाहिए. यह विशेषता डिवाइडिंग सेल अर्थात विभाजित कोशाणु होना चाहिए (एक नॉन-डिवाइडिंग सेल अर्थात गैर-विभाजित कोशाणु एक समापन बिंदु समान होगा) जो सभी चेकप्वाइंट्स को बायपास करते हुए DNA को होने वाली क्षति को रोकते हुए DNA के साथ एकीकृत हो सके... यह वह तंत्र है जो ट्यूमर को हर बार एक कोशिका की प्रतिलिपि बनाने से रोकता है.
अत: DNA का जिनोम में ऐसा समावेश होने का मामला दुर्लभ रहे यह सुनिश्चित करने के लिए अनेक मॉलिक्यूलर अर्थात आणविक परीक्षण मौजूद हैं. इसके बावजूद कुछ DNA वायरस और HIV जैसे वायरस ऐसा करने में सक्षम हैं. अत: इसे पूरी तरह से असंभव नहीं कहा जा सकता है. एकीकरण हो सकता है, लेकिन यह संभावना बेहद कम ही है. और ऐसा करने अर्थात एकीकरण करने के लिए DNA के इस टुकड़े को एक और प्रक्रिया करनी होगी या कदम उठाना होगा. यह प्रक्रिया होगी मानव कोशिका के न्यूक्लियस अर्थात केंद्रक या नाभिक के भीतर स्वयं की प्रतियां बनाने की क्षमता का मौजूद होना अर्थात प्रतिकृति की क्षमता का मौजूद होना ज़रूरी है. COVID-19 के अधिकांश वैक्सीन नॉन-रेप्लिकेटिंग वेक्टर्स अर्थात गैर-प्रतिकृति वैक्टर पर आधारित हैं; इसका मतलब यह है कि भले ही वे मानव कोशिका में प्रवेश करने में सफ़ल हो भी जाएं, लेकिन उनके पास स्वयं की प्रतियां बनाने के लिए आवश्यक सीक्वेन्स अर्थात क्रम मौजूद नहीं है.
एक स्वस्थ सेल अर्थात कोशिका में, फ्री-फ्लोटिंग फॉरेन अर्थात बाहरी RNA और DNA का प्रवेश होने पर उसके ख़िलाफ़ तत्काल ही सेलुलर रक्षा की प्रक्रिया आरंभ हो जाएगा, जो mRNA वैक्सीन के मामले में रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन को मिलने वाली सफ़लता को बेहद दुर्लभ बना देगी.
तो, यदि बेहद लो फ्रीक्वेन्सी अर्थात कम आवृत्ति या बारंबारता में यह इंटीग्रेशन/म्युटेशन अर्थात एकीकरण/उत्परिवर्तन होता है तो भी यह पर्याप्त नहीं है. इसके विघटनकारी होने के लिए यह आवश्यक है कि यह एकीकरण अथवा उत्परिवर्तन उन क्षेत्रों में हो, जहां फंक्शन प्रोटीन अर्थात कार्यात्मक प्रोटीन को कोड करने का काम किया जाता है. जिनोम का एक व्यापक हिस्सा किसी भी चीज के लिए कोड नहीं करता हैं; इसका काम ही हजारों वर्षों के इवोल्यूशन अर्थात मानवीय विकास के दौरान जिनोम पर होने वाले इस तरह के फॉरेन अर्थात बाहरी DNA के हमलों के ख़िलाफ़ एक बफर के रूप में कार्य करने का है. यदि फॉरेन अर्थात बाहरी DNA का एक टुकड़े जिनोम के सेल तक पहुंचने में सफ़ल भी हो जाता है तो भी यह मॉडिफिकेशन अर्थात संशोधन संभवत: सेल के साथ ही मर जाएगा अथवा नष्ट हो जाएगा. शरीर में अधिकांश सेल अर्थात कोशिकाएं विभेदित कोशिकाएं होती हैं और उनका जीवनकाल छोटा होता है. दरअसल, वास्तविक क्षति करने के लिए, ऐसे DNA को एक स्टेम सेल के जीन के भीतर एकीकृत होना पड़ता है, जो शरीर में अपेक्षाकृत यथोचित संरक्षित स्थानों में रहने वाला होता है.
अत: कुल मिलाकर, मानव जीनोम को प्रभावित करने वाले वैक्सीन में मौजूद कॉन्टैमिनेटिंग DNA की संभावना बेहद कम ही है.
वैक्सीन में मौजूद mRNA की उच्च मात्रा के बारे में क्या किया जाए?
mRNA के मामले में, जबकि कॉन्टैमिनेटिंग DNA की तुलना में mRNA बड़ी मात्रा में मौजूद होता है, लेकिन अनेक संशोधन यह सुनिश्चित करते हैं कि यह सेल साइटोप्लाज्म में ही रहें और न्यूक्लियस अर्थात नाभिक में प्रवेश न करें. mRNA को DNA में एकीकृत होने के लिए, इस RNA को रिवर्स ट्रांसक्रिपटेस नामक विशेष एंजाइम द्वारा DNA में परिवर्तित होना होगा. अर्थात इस पूरे मॉलिक्यूलर पाथवे यानी आणविक मार्ग का mRNA के डिग्रेडेड होने से पहले ही सक्रिय और क्रियाशील होना आवश्यक है. कृत्रिम रूप से संवर्धित लिवर सेल्स अर्थात कोशिकाओं (जो किसी व्यक्ति के भीतर मौजूद कोशिकाओं से काफ़ी अलग हैं) के मामले में, शोधकतार्ओं ने पाया है कि mRNA वैक्सीन में से एक के mRNA को DNA में रिवर्स ट्रांसक्राइब करना संभव है. लेकिन इस प्रक्रिया से ये परिणाम इन विट्रो सेल कल्चर सिस्टम में ही हासिल करना संभव है, जहां शरीर के भीतर मौजूद सेल तक पहुंचने के लिए बाधाएं और सुरक्षा नहीं होती है. इसके अलावा एक स्वस्थ सेल अर्थात कोशिका में, फ्री-फ्लोटिंग फॉरेन अर्थात बाहरी RNA और DNA का प्रवेश होने पर उसके ख़िलाफ़ तत्काल ही सेलुलर रक्षा की प्रक्रिया आरंभ हो जाएगा, जो mRNA वैक्सीन के मामले में रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन को मिलने वाली सफ़लता को बेहद दुर्लभ बना देगी. इसके अलावा कॉन्टैमिनेटिंग DNA को लेकर ऊपर वर्णित प्रक्रिया की तरह, कोशिका की स्वाभाविक मृत्यु होने की संभावना भी है. या फिर इस सेल को इम्युन सिस्टम अर्थात प्रतिरक्षा प्रणाली के हमले का (जैसा कि यह सेल mRNA वैक्सीन द्वारा SARS-COV-2 स्पाइक जैसा अभिव्यक्त होगा) सामना करना होगा और उसे एकीकरण घटना के घटित होने या प्रकट होने का अवसर प्रदान किए बिना शरीर से निकाल दिया जाएगा. ऐसे में इस बात की बहुत कम ही संभावना है कि mRNA वैक्सीन में मौजूद mRNA किसी व्यक्ति के डीएनए को बदलने में सफ़ल हो सकेगा.
इस कंमेटरी अर्थात टिप्पणी ने ‘‘अनलाइकली अर्थात अविश्वसनीय’’ के बजाय ‘‘कम संभावना’’ और ‘‘असंभव’’ शब्दों का इस्तेमाल किया है, क्योंकि वायरस जैसे जीवों ने इवोल्यूशनरी रेस अर्थात विकासवादी दौड़ में आगे बढ़ने के लिए अपने मेज़बान सेल अर्थात कोशिका की पुस्तक में लिखे गए प्रत्येक नियम का तोड़ निकालना सीख लिया है. यही कारण है कि इस प्रक्रिया के विभिन्न पहलुओं को देखने वाले अध्ययन - चाहे वह वैक्सीन की शीशी में कितना कॉन्टैमिनेटिंग अर्थात दूषित प्लास्मिड मौजूद है; कोशिकाओं तक पहुंचने के लिए पर्याप्त लोड अर्थात भार मौजूद है अथवा नहीं; DNA कितनी कोशिकाएं तक पहुंच सकेगा; क्या वह न्यूक्लियस तक पहुंच सकेगा; क्या वह वहां बना रहेगा; क्या वैक्सीन से मिला mRNA शरीर के भीतर ही DNA में परिवर्तित होगा; वह विभिन्न प्रकार के सेल अर्थात कोशिकाओं से कितनी जल्दी साफ़ हो सकेगा, आदि पर काम किया जाना ज़रूरी है. यह अध्ययन सख़्ती के साथ अनेक प्रणालियों के माध्यम से होना चाहिए. विशेषत: जब हम वैक्सीन से जुड़ी इस तकनीक का उपयोग ज़्यादा से ज़्यादा बीमारियों का मुकाबला करने के लिए करने की योजना बना रहे है. वर्तमान में, COVID-19 वैक्सीन के ‘‘एकीकरण’’ और कॉन्टैमिनेटिंग DNA को लेकर हमें सचेत करने वाले अध्ययन इन सभी पहलुओं को गंभीरता से लेने के लिए पर्याप्त सबूत प्रदान नहीं करते हैं.
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