Author : Sauradeep Bag

Published on Apr 12, 2023 Updated 0 Hours ago

क्या चीन और रूस मिलकर डॉलर को उसके सिंहासन से उतार सकते हैं?
वैसे तो डॉलर अभी भी दुनिया में सबसे ज़्यादा इस्तेमाल होने वाली मुद्रा बना हुआ है. लेकिन चीन और रूस उसके दबदबे को चोट पहुंचा सकते हैं.

क्या चीन और रूस मिलकर डॉलर को उसके सिंहासन से उतार सकते हैं?

दुनिया के वित्तीय नेटवर्क से अलग थलग किए जाने के बाद, रूस को कुछ सामरिक फ़ेरबदल करने ही थे. पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों से रूस को बहुत नुक़सान हो रहा था. इसीलिए, उसने इन प्रतिबंधों के बाद विकल्प तलाशने शुरू किए. इन बदलावों के कारण, चीन एक महत्वपूर्ण सहयोगी बन गया और चीन की मुद्रा युआन ने और बड़ी भूमिका अपना ली है. ये जानकर अचरज होगा कि रूस में व्यापार के मामले में युआन ने डॉलर को पीछे छोड़ दिया है. उसने ये उपलब्धि यूक्रेन युद्ध के एक साल बाद हासिल की है, जिसके कारण रूस पर सिलसिलेवार ढंग से प्रतिबंध लगाए गए थे. आज जब रूस और चीन एकजुट हो रहे हैं, तो मन में ये सवाल उठ रहे हैं कि दुनिया में और क्या बदलाव आएंगे और इन बदलावों से आने वाला कल कैसा स्वरूप धारण करेगा.

फरवरी महीना ऐतिहासिक साबित हुआ जब रूस में मासिक कारोबार के स्तर पर युआन ने पहली बार डॉलर को पीछे छोड़ दिया. मार्च में भी यही सिलसिला जारी रहा और दोनों मुद्राओं के बीच का फ़ासला और बढ़ गया.

बदलाव हो रहे हैं और रूस का बाज़ार इसकी गवाही देता है. फरवरी महीना ऐतिहासिक साबित हुआ जब रूस में मासिक कारोबार के स्तर पर युआन ने पहली बार डॉलर को पीछे छोड़ दिया. मार्च में भी यही सिलसिला जारी रहा और दोनों मुद्राओं के बीच का फ़ासला और बढ़ गया. इससे युआन के बढ़ते दबदबे का सबूत मिलता है. ये एक प्रभावशाली उपलब्धि है, क्योंकि एक वक़्त में रूस के बाज़ार में बहुत मामूली लेन-देन ही युआन में होता था.

रूस के बाज़ार में बदलाव की ये बयार पिछले साल से ही बहनी शुरू हुई थी और जैसे जैसे साल बीता, वैसे वैसे परिवर्तन की हवा भी तेज़ होती गई. अतिरिक्त प्रतिबंधों ने उन बचे हुए गिने चुने बैंकों पर भी असर डालना शुरू कर दिया था, जिनके पास उन देशों की मुद्रा में सीमा के आर-पार लेन-देन करने की क्षमता थी, जिन्हें रूस ने ‘ग़ैर दोस्ताना’ करार दिया था. ऐसा ही एक बैंक था रैफिसेन बैंक इंटरनेशनल एजी. इस बैंक की रूसी शाखा ने रूस के भीतर अंतरराष्ट्रीय लेन-देन को सुविधाजनक बनाने में काफ़ी अहम भूमिका निभाई थी. हालांकि, इस बैंक पर भी यूरोप और अमेरिकी अधिकारियों की कड़ी नज़र थी, इसलिए उस पर दबाव और बढ़ता गया. इन घटनाओं ने रूस की सरकार और वहां की कंपनियो को इस बात के लिए बाध्य किया कि वो विदेशी व्यापार के अपने लेन-देन उन देशों की मुद्राओं में करें, जिन्होंने रूस पर प्रतिबंध नहीं लगाए थे.

आपस में मेल खाते हितों का गठबंधन

रूस और चीन के रिश्ते लगातार मज़बूत हो रहे हैं और दोनों ही देश विश्व स्तर पर अपनी हैसियत और बेहतर बनाने की कोशिश कर रहे हैं. दोनों देशों का गठबंधन आज तमाम क्षेत्रों में फैल चुका है. फिर चाहे वो सैन्य क्षेत्र हो, आर्थिक या फिर राजनीतिक.

उधर, रूस और पश्चिमी देशों के रिश्ते लगातार ख़राब होते जा रहे हैं. ऐसे में चीन, रूस का एक अहम साझीदार बनकर उभरा है, और उसे आर्थिक और राजनीतिक दबाव से निपटने में ज़रूरी मदद मुहैया करा रहा है. वहीं दूसरी ओर, चीन अपनी वैश्विक पहुंच और ख़ास तौर से यूरेशियाई क्षेत्र में अपना दबदबा बढ़ाना चाह रहा है, और इस मामले में वो रूस को एक प्रमुख सहयोगी के तौर पर देखता है. हाल ही में राष्ट्रपति शी जिनपिंग के मॉस्को दौरे और सहयोग बढ़ाने के उनके वादे के बाद, इस साझेदारी के नई ऊंचाइयां छूने की संभावनाएं हैं. व्यापार और निवेश के रिश्ते और मज़बूत होंगे, क्योंकि दोनों ही देश पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं पर अपनी निर्भरता कम करना चाह रहे हैं. रूस द्वारा मूलभूत ढांचे के विकास और बड़ी परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित करने में उसे इन क्षेत्रों में चीन की विशेषज्ञता का लाभ मिलेगा.

ऊर्जा दोनों देशों के बीच सहयोग का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है, क्योंकि जहां रूस तेल और गैस का बड़ा निर्यातक है, तो चीन दुनिया में इन संसाधनों का सबसे बड़ा ख़रीदार है. तकनीक भी एक ज़रूरी मोर्चा है और दोनों ही देश वैश्विक अर्थव्यवस्था में मुक़ाबला करने लायक़ बने रहने के लिए रिसर्च और विकास में भारी निवेश कर रहे हैं. वैसे तो चीन और रूस के इस गठबंधन के दूरगामी भू-राजनीतिक नतीजे देखने को मिल सकते हैं. लेकिन, दोनों देशों का रिश्ता जटिल है और भले ही दोनों ही देश एक साझा लक्ष्य हासिल करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, मगर रूस और चीन अपने अपने हित साधने की ही कोशिश कर रहे हैं. 

चीन अपनी वैश्विक पहुंच और ख़ास तौर से यूरेशियाई क्षेत्र में अपना दबदबा बढ़ाना चाह रहा है, और इस मामले में वो रूस को एक प्रमुख सहयोगी के तौर पर देखता है.

पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के कारण रूस ने अपना विदेशी व्यापार का लेन-देन डॉलर और यूरो के बजाय, ग़ैर प्रतिबंधित देशों की मुद्राओं में करना शुरू कर दिया है. ऐसा करके रूस की सरकार और वहां की कंपनियां, पश्चिमी वित्तीय व्यवस्था पर अपनी निर्भरता कम करने और अपने व्यापार एवं आर्थिक गतिविधियों के नए अवसर तलाशने की कोशिश कर रही हैं. रणनीति में ये बदलाव दिखाता है कि वैश्विक वित्तीय व्यवस्था तक पहुंच सीमित होने के बाद भी रूस, अपनी आर्थिक स्थिरता को बनाए रखने के लिए किस क़दर प्रतिबद्ध है. इससे ये बात भी रेखांकित होती है कि आज जब बहुत से देश प्रतिबंधों का असर सीमित रखने और अपने आर्थिक हितों की रक्षा करने की कोशिश कर रहे हैं, तो वैश्विक व्यापार में वैकल्पि मुद्राओं की अहमियत बढ़ती जा रही है.

संरचनात्मक मरम्मत

रूस का वित्त मंत्रालय भी बदलाव की इन बयारों से अछूता नहीं है. इसी साल की शुरुआत में, उसने बाज़ार संबंधी अपनी गतिविधियां डॉलर से बदलकर युआन में शुरू कर दी थीं. बल्कि, रूस के वित्त मंत्रालय ने तो एक क़दम और आगे बढ़ाते हुए राष्ट्रीय संपत्ति फंड के लिए एक नई संरचना तैयार की और अपनी 60 प्रतिशत परिसंपत्तियां युआन में परिवर्तित करने का फ़ैसला किया. बैंक ऑफ रशिया ने भी इस बदलाव से क़दमताल मिलाया और अपने देश के नागरिकों और कारोबारियों से अपील की कि वो अपनी परिसंपत्तियां रूबल या फिर ‘दोस्ताना’ मुद्राओं में तब्दील करें. इससे उन्हें अपनी संपत्तियों के ज़ब्त किए जाने या रोके जाने का ख़तरा नहीं रहेगा. आज जब दुनिया में बड़े पैमाने पर भू-राजनीतिक बदलाव हो रहे हैं, तो ऐसा लग रहा है कि रूस भी उससे क़दमताल करते हुए चल रहा है, और अपने आर्थिक भविष्य को सुरक्षित बनाने के तरीक़े तलाश रहा है.

रणनीति में ये बदलाव दिखाता है कि वैश्विक वित्तीय व्यवस्था तक पहुंच सीमित होने के बाद भी रूस, अपनी आर्थिक स्थिरता को बनाए रखने के लिए किस क़दर प्रतिबद्ध है.

हालांकि, अभी भी रूस के बाज़ार में डॉलर का ही दबदबा है. इन तमाम बदलावों के बाद भी, डॉलर सबसे ज़्यादा इस्तेमाल की जाने वाली मुद्रा है और इस मामले में वो कभी कभार ही युआन से पिछड़ता है, जिसने पिछले कई वर्षों के दौरान रूस के वित्तीय क्षेत्र में बड़ी भूमिका निभाई है. हालांकि, आज जब दुनिया में नए बदलाव उभर रहे हैं, तो उसमें ये सवाल ज़रूर उठता है कि डॉलर अपना ताज कब तक संभालकर रख पाएगा.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.

Author

Sauradeep Bag

Sauradeep Bag

Sauradeep is an Associate Fellow at the Centre for Security, Strategy, and Technology at the Observer Research Foundation. His experience spans the startup ecosystem, impact ...

Read More +