Published on Jun 16, 2023 Updated 0 Hours ago
लाख टके का सवाल: क्या भारत और यूरोपीय संघ टेक्नोलॉजी की राह में हमसफ़र बन सकेंगे?

भारत-यूरोपीय संघ (EU) व्यापार और प्रौद्योगिकी परिषद (TTC) की पहली बैठक 16 मई 2023 को संपन्न हुई. इसके साथ ही भारत और यूरोपीय संघ के बीच संपर्कों के एक व्यस्त हफ़्ते की समाप्ति हुई. यूरोपीय संघ हिंद-प्रशांत मंत्रिस्तरीय मंच और 22वें भारत त्रिस्तरीय मंच (ITF) के तहत स्थापित संपर्कों की अगली कड़ी के तौर पर हाल की बैठकों के दौर का संचालन हुआ. 

मिसाल के तौर पर अमेरिका द्वारा चीन के हाई-टेक सेक्टर को लक्षित कर लगाई गई निर्यात पाबंदियों और रणनीतिक सख़्ती का भारत भले ही स्वागत करे, लेकिन हिंदुस्तान अपने टेक सेक्टर के लिए चीन से होने वाले आयातों पर ही निर्भर है.

भारत आज एक नाज़ुक मोड़ पर खड़ा है. देश में कामकाजी उम्र वाले लोगों की आबादी 2030 में अपने शिखर पर पहुंच जाएगी. भारत की जनसंख्या का बहुत बड़ा हिस्सा युवा और कामकाजी आयु वाला है. इस प्रकार देश को जनसांख्यिकीय तौर पर बड़ी बढ़त (demographic dividend) हासिल है, और भारत इसे अधिकतम स्तर तक पहुंचाने की दौड़ में लगा है. सतत आर्थिक वृद्धि को लेकर उभरती प्रौद्योगिकियों के प्रयोग के ज़रिए इस क़वायद को आगे बढ़ाने की कोशिशें की जा रही हैं. भारत ने डिजिटल अर्थव्यवस्था को इस मक़सद के उत्प्रेरक के तौर पर पहचाना है. इस सिलसिले में घरेलू रूप से विकसित डिजिटल सेवाओं, इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग और सहायक सेवाओं के साथ-साथ उत्पादों के विकास पर ज़ोर दिया गया है. मौजूदा वक़्त में वैश्विक स्तर पर भागीदारियों, आपूर्ति श्रृंखलाओं और भूराजनीतिक परिदृश्यों में निरंतर नए-नए समीकरण बन रहे हैं. भारत को इनके उतार-चढ़ावों के हिसाब से आगे बढ़ना होगा. इस रुझान को विद्वानों ने “फाटक में बंद वैश्वीकरण” का नाम दिया है. इसके चलते नीतियों में कई प्रकार के विरोधाभास दिखाई देते हैं. मिसाल के तौर पर अमेरिका द्वारा चीन के हाई-टेक सेक्टर को लक्षित कर लगाई गई निर्यात पाबंदियों और रणनीतिक सख़्ती का भारत भले ही स्वागत करे, लेकिन हिंदुस्तान अपने टेक सेक्टर के लिए चीन से होने वाले आयातों पर ही निर्भर है. मसलन 2021 में भारत द्वारा सेमीकंडक्टर उपकरणों के कुल आयात का 78.9 प्रतिशत हिस्सा चीन से आया था. इसी प्रकार हिंदुस्तान में इंटीग्रेटेड सर्किट्स के कुल आयात में चीन का हिस्सा 29 प्रतिशत रहा था. चीन दुनिया में लीथियम-आयन बैटरियों का सबसे बड़ा निर्यातक है. यही बैटरियां भारत की प्रस्तावित ई-गतिशीलता क्रांति को ऊर्जा देंगी. आज दुनिया में चुनिंदा भागीदारियों और भरोसेमंद गठजोड़ों का रुझान देखने को मिल रहा है. ऐसे में सरकार और उद्योग जगत, दोनों समान रूप से ख़ुद को जद्दोजहद भरे हालात में पाते हैं. दरअसल, वो आपूर्ति श्रृंखला की रिशोरिंग (नए सिरे से स्रोत बनाने), नियरशोरिंग (भौगोलिक रूप से नज़दीक स्रोत बनाने) और फ्रेंडशोरिंग (दोस्ताना रिश्तों वाले इलाक़े में स्रोत बनाने) की दोधारी तलवार का सामना कर रहे हैं.  

ऐसी दोधारी तलवार के लिए म्यान कैसा हो?

अन्य देशों के अलावा अमेरिका, यूरोपीय संघ (EU), जापान और यूनाइटेड किंगडम (UK) जैसे अंतरराष्ट्रीय भागीदारों के साथ भारत के जुड़ावों का रुख़ प्रौद्योगिकी के मोर्चे पर निर्भरताओं के हिसाब से तय होगा. इस संदर्भ में अमेरिका “निवेश करो, गठजोड़ बनाओ और प्रतिस्पर्धा करो” की आर या पार वाली नीति का पालन करता है, लेकिन भारत ऐसे रास्ते पर नहीं चल सकता. मार्च में अमेरिका के वाणिज्य मंत्री रायमोंडो की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों ने सेमीकंडक्टर आपूर्ति श्रृंखला और नवाचार हिस्सेदारी पर एक समझौता पत्र (MoU) पर दस्तख़त किए थे. इस करार से दोनों पक्षों को निवेश और विविधीकरण के अवसरों की पहचान करने में मदद मिलेगी. इस भागीदारी में आपूर्ति श्रृंखलाओं का ख़ाका तैयार करने के साझा प्रयास करने और एक दूसरे का पूरक बनने के अनुकूल क्षेत्रों की पहचान करने का काम शामिल है. अहम बात ये है कि इस भागीदारी के परिणाम दूसरों के लिए मिसाल बनने का काम करेंगे, ख़ासतौर से ऐसे देश जो एक साझेदार के तौर पर भारत पर बारीक़ी से नज़र बनाए हुए हैं. चूंकि भारत विकल्पों की पड़ताल कर रहा है, ऐसे में उसे टिकाऊ और समग्र रुख़ पर ग़ौर करना चाहिए. भारत को किसी एक राष्ट्र या क्षेत्र पर निर्भरता हटाकर किसी दूसरे क्षेत्र या देश पर निर्भरता वाली हालत में फंसने से परहेज़ करना चाहिए.

डी-रिस्किंग (जोख़िम मुक्त बनाने) को लेकर यूरोपीय संघ की भाषा भले ही अस्पष्ट रूप से तय की गई हो, लेकिन भारत में इसकी स्वीकार्यता ज़्यादा रहेगी. अटलांटिक के आर-पार देखें तो अमेरिका की तुलना में EU का रुख़ भारत के लिहाज़ से ज़्यादा सटीक दिखता है.

कच्चे माल से जुड़े क्षेत्र की भी ज़रूरत के मुताबिक पड़ताल नहीं की गई है, जिसपर भी सहयोग को आगे बढ़ाया जा सकता है. रेअर अर्थ्स पर क्वॉड की भागीदारी के संदर्भ में विश्लेषकों ने भारत में सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा संचालित रेअर अर्थ्स सेक्टर में नई जान फूंकने का प्रस्ताव किया है. हाल ही में जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया ने 59 लाख टन लीथियम भंडार का पता लगाया है. बहरहाल, लीथियम की खनन के चलते स्थानीय समुदायों के संभावित विस्थापन और पर्यावरण को होने वाले नुक़सान को हल्के में नहीं लिया जा सकता.

डी-रिस्किंग (जोख़िम मुक्त बनाने) को लेकर यूरोपीय संघ की भाषा भले ही अस्पष्ट रूप से तय की गई हो, लेकिन भारत में इसकी स्वीकार्यता ज़्यादा रहेगी. अटलांटिक के आर-पार देखें तो अमेरिका की तुलना में EU का रुख़ भारत के लिहाज़ से ज़्यादा सटीक दिखता है. कार्यकारी रूप से TTC की तीन धाराएं निश्चित रूप से महत्वाकांक्षी हैं. ये हैं- सामरिक प्रौद्योगिकियां, डिजिटल प्रशासन और कनेक्टिविटी; हरित और स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियां; और लचीली मूल्य श्रृंखलाएं, व्यापार और निवेश. अब से कुछ हफ़्तों बाद EU-भारत मुक्त व्यापार समझौते से जुड़ी वार्ताएं अपने पांचवें दौर में प्रवेश कर जाएंगी. हालांकि, इसके बावजूद आगे क़दम बढ़ाने के लिहाज़ से TTC एक अहम मंच बना रहेगा. “प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की जांच करने को लेकर एक-दूसरे की व्यवस्थाओं के लिए बाज़ार पहुंच से जुड़े द्विपक्षीय मसलों को सुलझाने और सूचनाओं के आदान-प्रदान” के साथ-साथ “विश्व व्यापार संगठन पर ख़ासतौर से ज़ोर देते हुए वैश्विक और बहुपक्षीय व्यापार मसलों के निपटारे” को लेकर EU और भारत लचीली मूल्य श्रृंखलाओं पर सहयोग करने पर सहमत हो गए हैं. इसमें कोई ताज्जुब की बात नहीं है कि प्रेस विज्ञप्ति में जिन तीन धाराओं का ज़िक्र है, उनमें से आख़िरी धारा को सबसे कम परिभाषित किया गया है. इस पर विराम लगाते हुए अधिकारियों ने ये कहा कि यूरोपीय संघ के कार्बन टैक्स को भारत WTO में चुनौती देने पर विचार कर रहा है. “कार्बन सीमा व्यवस्थाओं पर संपर्क में गहनता लाने” को लेकर दोनों पक्षों के बीच हुई सहमति के अगले ही दिन अधिकारियों की ओर से ऐसे संकेत दिए गए. बहरहाल, विज्ञप्ति में दोनों पक्षों के बीच के रिश्तों में “व्यापार और निवेश की अपार संभावनाओं” को भी रेखांकित किया गया है. इसके मायने यही हैं कि TTC के तहत अभी ढेर सारी क़वायदों को अंजाम दिया जा सकता है.

तेज़-तर्रार संपर्क की ओर

इस मक़सद से EU-भारत व्यापार और प्रौद्योगिकी परिषद यानी TTC, सामरिक स्वायत्तता और डी-रिस्किंग की साझा समझ तैयार करने का सामरिक मंच मुहैया कराता है. इस क़वायद से आंतरिक उपायों के साथ-साथ बाहरी क़दमों में संतुलन बिठाने के अवसर भी हासिल होते हैं. घरेलू उपायों में देसी विनिर्माण क्षमताएं, डिजिटल सेवाएं और नियामक व्यवस्थाएं तैयार करना शामिल हैं. उधर, बाहरी क़दमों में सुसंगत मानदंड और अन्य हिस्सेदारों के लिए “थर्ड-वे” प्रस्ताव शामिल हैं. जैसा कि 22वें ITF में हिस्सा ले रहे एक शीर्षस्तरीय प्रतिभागी ने कहा, सामरिक स्वायत्ता एक दायरे के तहत आती है. इसके एक छोर पर अधिकतम रुख़ वाला वैश्वीकरण है तो दूसरी ओर राष्ट्रीयकरण और स्वदेशीकरण. हालांकि, इस कड़ी में कुछ ऐसे नाज़ुक क्षेत्र हैं जिनपर देश अटकलें नहीं लगा सकते. ऐसे में TTC यूरोपीय संघ और भारत के बीच एक सेतु का काम कर सकता है. इस मंच पर दोनों पक्ष उन सेक्टरों पर रज़ामंद हो सकते हैं जिन्हें वो नाज़ुक समझते हैं और जिनकी आपूर्ति श्रृंखलाओं और निवेश की बारीक़ पड़ताल की ज़रूरत होती है.

5G की शुरुआत में चीनी इकाइयों को मौक़ा दिए जाने से रोकने का निर्णय करके यूरोप और भारत ने आपसी रज़ामंदी से टेलीकॉम को एक ऐसा ही क्षेत्र माना है. ज़ाहिर तौर पर वित्तीय बुनियादी ढांचा (ख़ासतौर से फ़िनटेक ऐप्लीकेशंस) ऐसा ही एक अन्य क्षेत्र है. आख़िरी तौर पर सेमीकंडक्टर्स भी एक नाज़ुक क्षेत्र है, जिसपर दोनों ही पक्ष नीतिगत स्तर पर तालमेल बिठाने पर सहमत हुए हैं. भले ही सभी सेमीकंडक्टर्स एक समान या निश्चित श्रेणियों वाले नहीं हैं- जैसे ऑटोमोटिव सेक्टर और रक्षा प्रणालियों में प्रयोग होने वाले सेमीकंडक्टर्स दूसरों के मुक़ाबले ज़्यादा नाज़ुक हैं. 

यूरोपीय संघ के साथ भारत की प्रौद्योगिकी हिस्सेदारी संभावनाओं से भरी हुई है. निश्चित तौर पर इस रास्ते में कुछ रुकावटें भी हैं. इनमें आयात शुल्क, श्रम मानकों और कार्बन टैक्सों से जुड़े भारी मतभेद शामिल हैं. ये मसले FTA वार्ताओं में अड़चनें डालते रहे हैं. हालांकि, इन बाधाओं के बावजूद टेक निर्भरताओं के मुद्दे पर क़दम बढ़ाने की दिशा में भारत और यूरोपीय संघ का बढ़ता तालमेल, फ़ायदे का सौदा साबित होगा. इसे TTC के तहत पोषित किए जाने की दरकार है.  


त्रिशा रे ऑब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन के सेंटर फ़ॉर सिक्योरिटी, स्ट्रैटेजी एंड टेक्नोलॉजी में डिप्टी डायरेक्टर हैं. 

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