ORF: किस तरह बाइजू एक दशक की अवधि में 25 लोगों वाली टेस्ट की तैयारी कराने वाली कंपनी से बदलकर दुनिया की सबसे मूल्यवान एजुकेशन टेक्नोलॉजी (एडटेक) कंपनी में बदल गई?
Divya Gokulnath: बाइजू में काम करने वाले हम जैसे लोगों के लिए ये सीधा जुनून के असली ज़रूरत से मिलने का मामला है. हमारा मिशन पढ़ाई को सबकी पहुंच तक लाना, उसे असरदार, आकर्षक और हर छात्र की ज़रूरत के मुताबिक़ बनाना था. हम तकनीक और छात्रों की असली जिज्ञासा का फ़ायदा उठाना चाहते थे और छात्रों को सक्रिय और आत्मनिर्भर बनने में मदद करना चाहते थे. यहां तक कि बाइजू जब ऑफलाइन काम कर रही थी, तब भी उसकी लोकप्रियता कई गुना बढ़ गई. बाइजू ने टेस्ट की तैयारी कराने वाली क्लास का रूप ले लिया जो आगे चलकर 100 छात्रों की वर्कशॉप बन गई. बाद में ये आकार बढ़कर 100 से ज्यादा छात्रों वाले ऑडिटोरियम में तब्दील हो गया जो आगे चलकर 20,000 से ज़्यादा छात्रों वाले स्टेडियम में बदल गया.
जल्द ही हमने महससू किया कि हमारी शिक्षा प्रणाली के सामने तीन बड़ी चुनौतियां हैं- अच्छे शिक्षकों और अच्छे कंटेंट की कमी, परंपरागत पढ़ाई-लिखाई के माहौल में किसी छात्र की ज़रूरत के मुताबिक पढ़ाई की कमी और पढ़ाई के लिए प्यार के बदले परीक्षा के डर की वजह से छात्रों का पढ़ना.
इन चरणों के दौरान बाइजू की टीम ने पूरे देश की यात्रा की ताकि क्वालिटी शिक्षा को हर छात्र तक पहुंचाया जा सके. जल्द ही हमने महससू किया कि हमारी शिक्षा प्रणाली के सामने तीन बड़ी चुनौतियां हैं- अच्छे शिक्षकों और अच्छे कंटेंट की कमी, परंपरागत पढ़ाई-लिखाई के माहौल में किसी छात्र की ज़रूरत के मुताबिक पढ़ाई की कमी और पढ़ाई के लिए प्यार के बदले परीक्षा के डर की वजह से छात्रों का पढ़ना.
हमने ये समझा कि जिस तरह छात्र सीखते हैं, उस पर असली असर डालने के लिए हमें जल्दी शुरुआत करने की ज़रूरत होगी यान वो उम्र जिस वक़्त छात्र मूलभूत बातों से जूझते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि ये किसी भी छात्र के लिए महत्वपूर्ण समय होता है, उस वक़्त ज़िंदगी भर की पढ़ाई की नींव पड़ती है. थिंक एंड लर्न प्राइवेट लिमिटेड (बाइजू की मूल कंपनी) की शुरुआत 2011 में हुई और इसका ज़ोर किंडरगार्टन से लेकर 12वीं क्लास तक के सेगमेंट पर था. बाद में हमने अगस्त 2015 में अपना सबसे अच्छा प्रोडक्ट लॉन्च किया, बाइजू- द लर्निंग ऐप. 2011 से 2015 के बीच हमने ऐप के रूप में अच्छी पढ़ाई हर किसी तक पहुंचाने के आइडिया पर काम करके उसे विकसित किया. शिक्षक किस तरह पढ़ाते हैं या अभिभावक ऐप से क्या चाहते हैं के बदले हमने इस बात पर ध्यान दिया कि छात्रों को असरदार पढ़ाई के लिए किस चीज़ की ज़रूरत है.
आज भारत के सबसे पसंदीदा स्कूल लर्निंग ऐप और दुनिया की सबसे मूल्यवान एडटेक कंपनी के रूप में हम हर छात्र के मुताबिक़ पढ़ाई का तरीक़ा विकसित करने पर काम कर रहे हैं. हर छात्र की पढ़ाई की ज़रूरत अलग होती है. हमारे पढ़ाई के प्रोग्राम इस तरह से डिज़ाइन किए गए हैं कि वो हर छात्र के अंदाज़ और रफ़्तार के मुताबिक़ ख़ुद में बदलाव कर सकें.
एडटेक के क्षेत्र में बाइजू की ‘अपेक्षाकृत’ कामयाबी की सबसे बड़ी वजह ये है कि वो छात्रों की जीवन के लिए उपयोगी साबित होती है. आज हमारे ऐप को 6 करोड़ 40 लाख डाउनलोड मिल चुके हैं, 42 लाख सालाना पेड सब्सक्राइबर हैं और 85 प्रतिशत लोग पेड सब्सक्रिप्शन को फिर लेते हैं. ये आंकड़े इस बात की गवाही देते हैं कि छात्र बाइजू के पढ़ाई के तरीक़े का आनंद उठा रहे हैं. लेकिन हमने तो अभी सिर्फ़ शुरुआत की है, इसे क्रांति बताने से पहले हमें लंबी दूरी तय करनी है.
ORF: भारत के टेक्नोलॉजी इकोसिस्टम ने किस तरह बाइजू के छलांग लगाने में मदद की जो एक दशक पहले तक मुमकिन नहीं था ?
Divya Gokulnath: बाइजू एक दशक से डिजिटल फ़र्स्ट कंपनी रही है. हमारी सफलता के इस सफ़र में तकनीक ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और ये अभी भी हमारी सभी कोशिशों में सबसे अहम भूमिका निभाती है. शुरुआती दिनों में, जब बाइजू टेस्ट के लिए तैयारी कराने वाली ऑफलाइन क्लास चलाती थी, हमारी सबसे बड़ी बाधा थी देश भर के छात्रों तक अच्छी पढ़ाई को पहुंचाना. हमारी टीम देश भर का दौरा करती थी और उत्साही छात्रों से भरे स्टेडियम में उन्हें पढ़ाती थी. 2009 में बाइजू ने CAT के लिए वीसैट के ज़रिए वीडियो आधारित ऑनलाइन पढ़ाई की शुरुआत की. ये हमारे लिए क्रांतिकारी क़दम था और ये पहला मौक़ा था जब हमने अपने काम-काज में छलांग लगाने के लिए तकनीक का इस्तेमाल किया.
तब से हमने लंबी दूरी तय की है. अपने लर्निंग ऐप की मदद के ज़रिए हमने गणित और विज्ञान जैसे विषयों में पढ़ाई के नये-नये तरीकों की खोज की और हर छात्र की क्षमता के आधार पर उनकी पढ़ाई में मदद की. हमारे सिस्टम में तकनीक का सही मेल हमें हर छात्र की क्षमता के मुताबिक़ उनकी पढ़ाई में मदद करता है. साथ ही छात्रों के लिए बेहद ज़रूरी सिफ़ारिश करने, भविष्यवाणी करने और उनकी पढ़ाई की ‘असली’ चुनौती का हल करने में भी तकनीक मदद करती है. हमारे लिए ध्यान की एक और महत्वपूर्ण बात गेम के डिज़ाइन सिद्धांतों का इस्तेमाल करना है जो कि मूलभूत मानवीय मनोविज्ञान और व्यवहार के बारे में है और जिसकी वजह से छात्र प्रत्रिकिया और नतीजा देते हैं.
आज भारत में 70 प्रतिशत छात्रों की पहुंच स्मार्टफ़ोन तक है और इसके और भी बढ़ने की उम्मीद है. स्मार्टफ़ोन की पहुंच अपार है और ये पूरे भारत के छात्रों की पढ़ाई के नतीजे पर असर डालता है. किफ़ायती होने और इस्तेमाल में आसानी की वजह से स्मार्टफ़ोन घर-घर में इस्तेमाल होने लगा है. इसके अलावा, युवा पीढ़ी के लिए स्मार्टफ़ोन कंटेंट के इस्तेमाल का प्राथमिक साधन बन गया है.
भारत में स्मार्टफ़ोन की बढ़ती संख्या और लोगों तक इंटरनेट की पहुंच की वजह से ऑनलाइन पढ़ाई में बढ़ोतरी हुई है और उसे अपनाने में तेज़ी आई है. कई रिपोर्टों के मुताबिक आज भारत में 70 प्रतिशत छात्रों की पहुंच स्मार्टफ़ोन तक है और इसके और भी बढ़ने की उम्मीद है. स्मार्टफ़ोन की पहुंच अपार है और ये पूरे भारत के छात्रों की पढ़ाई के नतीजे पर असर डालता है. किफ़ायती होने और इस्तेमाल में आसानी की वजह से स्मार्टफ़ोन घर-घर में इस्तेमाल होने लगा है. इसके अलावा, युवा पीढ़ी के लिए स्मार्टफ़ोन कंटेंट के इस्तेमाल का प्राथमिक साधन बन गया है. युवा पीढ़ी अब तकनीक, स्मार्टफ़ोन, टैबलेट और कंप्यूटर का इस्तेमाल आसानी से करती है. स्मार्टफ़ोन महानगरों और छोटे शहरों के छात्रों के बीच असमानता भी दूर करता है. इसके लिए स्मार्टफ़ोन दोनों जगहों के छात्रों को समान अवसर मुहैया कराता है और हर छात्र की ज़रूरत के हिसाब से पढ़ाई का अवसर देता है. साथ ही छात्रों को दुनिया भर के सर्वश्रेष्ठ शिक्षकों तक भी ले जाता है. डिजिटल बंटवारा जहां अभी भी एक चुनौती है, लेकिन दुनिया में जो असमानता और भेदभाव मौजूद हैं, उनका हल करना ज़्यादा बड़ी बाधा है. छात्रों के एक छोटे से वर्ग की ही अच्छे स्कूलों और अच्छे शिक्षक तक पहुंच है जबकि ज़्यादातर छात्रों के पास अच्छी शिक्षा की पहुंच नहीं है. इस समस्या का हल करने के लिए तकनीक की मदद ली जा सकती है और वितरण के माध्यम के रूप में स्मार्टफ़ोन का इस्तेमाल किया जा सकता है जिससे कि दुनिया के हर इलाक़े में छात्रों को अच्छी क्वालिटी का कंटेंट मिल सके.
ORF: बाइजू ने कई कंपनियों का अधिग्रहण किया है, कई के साथ सहयोग किया है जिसकी वजह से इसकी पहुंच का काफ़ी विस्तार हुआ है और इससे कंटेंट को पहुंचाने का नया मॉडल भी मिला है. इस तकनीकी दुनिया में एक शिक्षक के रूप में आप अगली पीढ़ी के दिमाग़ पर छाने और उन तक सीधे पढ़ाई के अच्छे कंटेंट पहुंचाने में डिजिटल प्लेटफॉर्म के बारे में क्या सोचते हैं ?
Divya Gokulnath: बाइजू में हमारा दृष्टिकोण छात्रों को इस तरह तैयार करना है कि वो पढ़ाई से प्यार करने लगे. सीखना बचपन का सबसे अभिन्न हिस्सा है. हर उम्र के बच्चों के लिए पढ़ाई के तौर-तरीक़े तैयार करने में मैंने जो साल बिताए हैं, उनसे मैंने महसूस किया है कि बच्चों के पास सीखने के लिए असीमित रास्ते हैं. किताब, सिनेमा, वीडियो, टेलीविज़न और इंटरनेट कुछ ऐसे साधन हैं जो किसी बच्चे को सीखने में मदद करते हैं. बाइजू सीखने के इन रास्तों को अनोखे सिनेमा की तरह के वीडियो और गेम जैसे कंटेंट के ज़रिए जोड़ने में कामयाब रही. हम तकनीक का इस्तेमाल करके छात्रों को संदर्भ के मुताबिक़ और तस्वीरों के ज़रिए समझाते हैं. एक परंपरागत क्लासरूम की पढ़ाई के माहौल से अलग एक तकनीक आधारित पढ़ाई का सिस्टम आपको देश के हर चौक-चौराहे में छात्रों तक पहुंचने का मौक़ा देता है. छात्रों के सीखने के पैटर्न के डाटा की उपलब्धता फीडबैक और आकलन की इजाज़त देती है. ‘नॉलेज ग्राफ्स’ जो हमारे सीखने के सिस्टम का दिमाग़ है, इसे और असरदार बनाती है. ये एक ग्राफिक्स के आधार पर प्रस्तुति है जो बताती है कि अलग-अलग धारणाएं किस तरह एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं और ये एक छात्र की सीखने की यात्रा को महत्वपूर्ण धारणाओं या जानकारी के बारे में बताकर निर्देशित कर सकती है. इससे छात्रों को हमारे कंटेंट को अपनी सीखने की रफ़्तार के आधार पर देखने की छूट मिलती है. साथ ही छात्रों की पढ़ाई के पिछले पैटर्न के आधार पर उन्हें आगे की पढ़ाई के बारे में सिफ़ारिश की जाती है. इस तरह वो पढ़ाई से वास्तव में प्यार करने लगते हैं. एक छात्र पर एक शिक्षक के आदर्श अनुपात को हम मोबाइल या टैबलेट पर लेकर आए हैं. जो डिवाइस छात्र इस्तेमाल करते हैं वो उनकी समझ से सामंजस्य बिठा लेता है, वो उनकी पढ़ाई में कमी को समझता है और उस कमी को वीडिया या टेस्ट के बारे में बताकर भरता है.
इसके अलावा आज की युवा पीढ़ी के लिए स्क्रीन कंटेंट का इस्तेमाल करने की प्राथमिक चीज़ हो गई है. एक स्क्रीन के साथ हर छात्र वर्चुअल क्लासरूम में आगे की सीट पर बैठा रहता है और यहां कोई पीछे की सीट पर बैठने वाला छात्र नहीं होता. ये नई पीढ़ी तकनीक, स्मार्टफ़ोन, टैबलेट और कंप्यूटर का इस्तेमाल आसानी से करती है. वो अल्फाबेट और नंबर स्क्रीन की मदद से ही सीखते हैं. बाइजू में हम उसी तरीक़े (स्क्रीन) का इस्तेमाल पढ़ाई के लिए करते हैं जिसका इस्तेमाल बच्चे मनोरंजन और गेम के लिए करते हैं.
स्मार्ट डिवाइस और इंटरनेट के घर-घर तक पहुंचने का नतीजा परंपरागत और वर्चुअल क्लासरूम की सबसे अच्छी चीज़ों के रूप में बाहर आएगा. ‘कल के क्लासरूम’ में तकनीक सबसे प्रमुख होगी. उसकी मदद से छात्र निष्क्रिय की जगह सक्रिय पढ़ाई कर सकेंगे.
एक शिक्षक के रूप में तकनीक ने मुझे अच्छा करने के लिए सशक्त बनाया है और मैं मज़बूती से यकीन करती हूं कि शिक्षा का भविष्य तकनीक में है. तकनीक की मदद से बना पढ़ाई का प्लेटफॉर्म छात्रों, शिक्षकों और अभिभावकों के लिए हर समाधान की जगह होगी. स्मार्ट डिवाइस और इंटरनेट के घर-घर तक पहुंचने का नतीजा परंपरागत और वर्चुअल क्लासरूम की सबसे अच्छी चीज़ों के रूप में बाहर आएगा. ‘कल के क्लासरूम’ में तकनीक सबसे प्रमुख होगी. उसकी मदद से छात्र निष्क्रिय की जगह सक्रिय पढ़ाई कर सकेंगे. भविष्य में हम देखेंगे कि छात्रों को क्लासरूम और डिजिटल दुनिया की सबसे अच्छी पढ़ाई मिलेगी. रीढ़ की हड्डी के तौर पर तकनीक के साथ हम ‘असली वैश्विक क्लासरूम’ बना सकेंगे जहां भौगोलिक लोकेशन, स्कूल के इंफ्रास्ट्रक्चर और निपुणता के स्तर का विचार किए बिना छात्र पढ़ाई के प्लेटफॉर्म के ज़रिए अच्छी शिक्षा पा सकेंगे.
ORF: मौजूदा महामारी और रणनीतिक अधिग्रहण और सहयोग के साथ बाइजू में आप ख़ुद को लगातार कैसे बदल रहे हैं ?
Divya Gokulnath: हमारा संगठन बेहद चुस्त है. हमने ज़्यादा असर डालने के लिए अपने ही बिज़नेस मॉडल और रणनीति को तोड़ दिया है. मौजूदा महामारी ने हमें इनोवेट करने और नये हालात के मुताबिक़ ख़ुद को तैयार करने का मौक़ा दिया है. इस वक़्त छात्र पूरी तरह ऑनलाइन पढ़ाई पर निर्भर हैं. ऐसे में अप्रैल और मई में हमने देखा कि डेढ़ करोड़ से ज़्यादा नये छात्रों ने बाइजू के ऐप का इस्तेमाल किया. इसके अलावा हमने ये भी देखा कि ऑनलाइन पढ़ाई को लेकर अभिभावकों की सोच में बदलाव आया है. हमारी अपनी रिसर्च से पता चलता है कि जो बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई करने लगे हैं, उनमें से 75 प्रतिशत से ज़्यादा अभिभावक चाहते हैं कि स्कूल खुलने के बाद भी उनके बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई करते रहें.
रिसर्च से पता चलता है कि जो बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई करने लगे हैं, उनमें से 75 प्रतिशत से ज़्यादा अभिभावक चाहते हैं कि स्कूल खुलने के बाद भी उनके बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई करते रहें.
हमने सक्रियता से हालात का जवाब दिया और अपने अल्पकालीन लक्ष्यों को समायोजित किया. वहीं छात्रों के पढ़ाई से प्यार करने के दीर्घकालीन दृष्टिकोण को जस का तस बरकरार रखा. ऑनलाइन पढ़ाई को स्वीकार करने में तेज़ी के साथ हम नये प्रोडक्ट को लॉन्च करने में भी तेज़ी ला रहे हैं जैसे कि हमारा लाइव क्लास जिसे अप्रैल में मुफ़्त में उपलब्ध कराया गया. पहले हमने इसे साल के आख़िर में लॉन्च करने की योजना बनाई थी लेकिन फिर हमें महसूस हुआ कि इस तरह की पढ़ाई को लॉकडाउन के दौरान छात्रों के जीवन में लाना चाहिए. हमने इतिहास, नागरिक शास्त्र और भूगोल के लिए भी सीखने के कार्यक्रम लॉन्च किए हैं. हमने अपना सीखने का कार्यक्रम देश की लगभग हर भाषा में तैयार किया है. हाल में हमने अपर किंडरगार्टन और लोअर किंडरगार्टन में पढ़ने वाले छात्रों के लिए सीखने का कार्यक्रम लॉन्च किया है.
भारत में प्राइवेट ट्यूशन सेक्टर के टुकड़ों में बंटे होने के स्वरूप को देखते हुए हमने बाइजू क्लास भी लॉन्च किया है जो हर क्लास के छात्रों के लिए स्कूल के बाद सीखने की चीज़ है. इसके साथ ही छात्र अब अपने तय समय पर भारत के सर्वश्रेष्ठ शिक्षकों की ऑनलाइन क्लास में शामिल हो सकते हैं, उनकी शंका का तुरंत समाधान हो सकता है और उन्हें व्यक्तिगत मार्गनिर्देशन मिल सकता है और ये सारी चीज़ें घर के आरामदायक माहौल और सुरक्षा में मिल सकती हैं. ये सभी कार्यक्रम उस वक़्त लॉन्च हुए जब हमारी टीम काफ़ी दूर अपने घर में बैठकर काम कर रही थी. ये भारत की तकनीक आधारित इकोसिस्टम की कार्यकुशलता का प्रमाण है.
हमारे अधिग्रहणों और सहयोगों का भी मक़सद हमेशा हमारी पेशकश को मज़बूत करना और एक प्लेटफॉर्म पर सीखने की संपर्ण चीज़ मुहैया कराना रहा है. पिछले साल की शुरुआत में हमने पालो आल्टो की एक सिखाने वाली गेम कंपनी ऑस्मो का अधिग्रहण किया था और अब हमने लोकप्रिय कोडिंग प्लेटफॉर्म व्हाइट हैट जूनियर का अधिग्रहण किया है. हमारी रणनीति का एक बड़ा हिस्सा छात्रों की भागीदारी बढ़ाना और छात्रों को पढ़ाई का आनंद दिलाना रहा है. हमारे अधिग्रहणों ने हमारे लक्ष्य और दीर्घकालीन दृष्टिकोण का ध्यान रखा है. एक सवाल जो हम ख़ुद से पूछते हैं, वो ये है कि क्या ये छात्रों के लिए इस्तेमाल की चीज़ होगी और क्या छात्र इसका इस्तेमाल करेंगे. ये हमारी मूल्यांकन की प्रक्रिया का मूलभूत हिस्सा है. कुल मिलाकर ध्यान हमेशा इस बात पर रहा है कि हम साथ आकर अपने सीखने वालों के लिए कुछ और अच्छा बनाएं.
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