टिकाऊ विकास को आगे ले जाने और 2030 के एजेंडे को हासिल करने में डेटा एक महत्वपूर्ण औजार (टूल) के तौर पर उभरा है. हाल के वर्षों में टिकाऊ विकास के लक्ष्यों (सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स) को आगे बढ़ाने के लिए डेटा प्रेरित दृष्टिकोण के इर्द-गिर्द समर्थन और अभियान में साफ तौर पर बढ़ोतरी देखी गई है. नवंबर 2022 में प्रधानमंत्री मोदी ने ऐलान किया कि प्रिंसिपल ऑफ डेटा फॉर डेवलपमेंट (विकास के लिए डेटा का सिद्धांत या D4D) भारत की G20 अध्यक्षता के लिए प्रमुख होगा. हालांकि पूरे G20 में डेटा परिदृश्य काफी असमान बना हुआ है. कुछ देश जहां D4D का प्रभावी ढंग से उपयोग करने में सक्षम हुए हैं वहीं दूसरे देश ऐसा करने में बड़ी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं. ये लेख ग्लोबल नॉर्थ (विकसित देशों) एवं ग्लोबल साउथ (विकासशील देशों) के बीच के साथ-साथ देशों के भीतर डेटा के अंतर और विभाजन को भरने के परिणामों की छानबीन करता है और उन सामरिक कदमों के बारे में बताता है जो G20 के सदस्य देश D4D को बढ़ावा देने के लिए साझा तौर पर उठा सकते हैं.
ये लेख ग्लोबल नॉर्थ (विकसित देशों) एवं ग्लोबल साउथ (विकासशील देशों) के बीच के साथ-साथ देशों के भीतर डेटा के अंतर और विभाजन को भरने के परिणामों की छानबीन करता है और उन सामरिक कदमों के बारे में बताता है जो G20 के सदस्य देश D4D को बढ़ावा देने के लिए साझा तौर पर उठा सकते हैं.
G20 का डेटा परिदृश्य
G20 के भीतर डेटा परिदृश्य एक जटिल तस्वीर पेश करता है, डेटा की उपलब्धता और पहुंच के साथ-साथ डेटा की क्वालिटी के मामले में काफी महत्वपूर्ण अंतर है. G20 के कुछ देशों में जहां मजबूत डेटा इकोसिस्टम और अच्छी तरह से स्थापित सांख्यिकीय प्रणाली (स्टैटिसटिकल सिस्टम) हैं, वहीं अन्य देश अपने यहां डेटा कलेक्शन और विश्लेषण की क्षमता के मामले में पीछे हैं. इसका नतीजा काफी ज्यादा कमियों के रूप में सामने आता है जिनमें विकास से जुड़े अलग-अलग डेटा की गैर-मौजूदगी और कमजोर समुदायों से जुड़े डेटा का गायब होना शामिल है. इसके कारण जमीनी चुनौतियों का सही ढंग से पता नहीं लग पाता है जिससे जवाबी नीतियों को तैयार करने एवं कदम उठाने में रुकावट आती है. मिसाल के तौर पर G20 डेटा गैप्स इनिशिएटिव फेज 3 (DGI-3) ने चार व्यापक क्षेत्रों की पहचान की है जिनमें G20 को सूचना की कमी को दूर करने को प्राथमिकता देना चाहिए: जलवायु परिवर्तन; घरेलू वितरण से जुड़ी सूचना; फिनटेक एवं वित्तीय समावेशन; और प्राइवेट स्रोतों से डेटा के साथ-साथ प्रशासनिक डेटा.
तालिका 1: G20 DGI-3 के तहत लक्ष्य तैयार किए गए सांख्यिकीय उत्पाद
Area |
Information Gap |
Target Variable |
Climate Change-Related Data Gaps |
Greenhouse gas (GHG) emission accounts and national carbon footprints |
Annual air emissions accounts (for GHGs) by industry and estimates of national carbon footprints by demand category |
Energy accounts |
Annual energy accounts that record the supply and use of energy from natural inputs, energy products, energy residuals and other residual flows |
Carbon footprints of foreign direct investment |
CO2 emissions per unit of output of foreign-controlled multinational enterprises and domestic-controlled enterprises by industry |
Climate finance (green debt and equity securities financing) |
Statistics on green debt securities and listed shares by sector of issuer and holder |
Forward-Looking physical and transition risk indicators |
Forward-looking physical and transition risk indicators related to populations, assets, output/production, firm profitability, and wealth |
Climate-Impacting Government Subsidies |
Annual estimates of government subsidies by type of subsidy |
Climate Change Mitigation and Adaptation Expenditures |
Annual estimates of current and capital expenditures on climate mitigation and adaptation activities by sector |
Household Distributional Information Data Gaps |
Distribution of household income, wealth, consumption and savings |
Annual estimates of household income, consumption, saving and wealth by quintile or decile |
Digitalization and Financial Innovation and Inclusion |
Fintech credit |
Estimates of fintech credit aggregates and linkages of fintech credit entities with the financial and non-financial sectors |
Digital money |
Estimates of the stock and flow of digital money by type |
Fintech-enabled financial inclusion |
Annual estimates of fintech-enabled financial inclusion and access by type of access and sector |
स्रोत: G20 डेटा गैप्स इनिशिएटिव 3: वर्कप्लान, मार्च 2023
जरूरी निवेश, संसाधन और क्षमता
डेटा कलेक्शन, रिपोर्टिंग और एनालिसिस सिस्टम में सामरिक निवेश, खास तौर पर सीमित तकनीकी क्षमता वाले देशों में, D4D कार्यक्रमों की सफलता के लिए एक पूर्व शर्त है. G20 के सदस्य देशों, विशेष रूप से निम्न और मध्यम आमदनी वाले देशों (LMIC), को उन क्षेत्रों की पहचान करने की जरूरत है जहां अतिरिक्त संसाधनों और तकनीकी समर्थन की आवश्यकता है. साथ ही इस बात की भी पहचान करने की आवश्यकता है कि कैसे D4D की पहल और साक्ष्य आधारित हस्तक्षेपों की निगरानी एवं मूल्यांकन में कमजोरियों का समाधान किया जा सकता है. सुधार के लिए किए गए उपाय, जिनमें D4D इकोसिस्टम को मजबूत करने के लिए संसाधनों का स्मार्ट आवंटन शामिल है, महत्वपूर्ण रूप से सामाजिक-आर्थिक विकास और बेहतरी की संभावना को बढ़ा सकते हैं. G20 के निम्न और मध्यम आमदनी वाले देशों को भी डेटा इंफ्रास्ट्रक्चर तक पहुंच में सुधार करके घरेलू स्तर पर डिजिटल बंटवारे को दूर करना चाहिए. इसमें कई तरह की गतिविधियां शामिल हैं जिनकी शुरुआत ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी में सुधार, डेटा सेंटर की स्थापना और डिजिटल प्लैटफॉर्म के निर्माण से होती है. ये विशेष रूप से विकास के मामले में पिछड़ चुके इलाकों में होना चाहिए ताकि वहां के समुदायों को सशक्त बनाया जा सके. निम्न और मध्यम आमदनी वाले देशों को डेटा लिटरेसी (साक्षरता) और टेक्निकल स्किलिंग (तकनीकी तौर पर हुनरमंद बनाने) के कार्यक्रमों में भी निवेश करने की आवश्यकता है ताकि जमीनी स्तर से एक “डेटा कल्चर” की शिक्षा दी जा सके और खराब डिजिटल जानकारी को शामिल करने से जुड़े जोखिमों के बारे में सचेत रहा जा सके जो वास्तव में मौजूदा डिजिटल बंटवारे को और बढ़ा सकता है. नीति निर्माताओं को इस मुद्दे के बारे में संवेदनशील बनाना और ट्रेनिंग देना एक और विषय है जिसमें लक्ष्य बनाकर कार्यक्रम और निवेश एक असर पैदा कर सकता है.
डेटा इकोसिस्टम को मजबूत करना
G20 के भीतर डेटा डिवाइड को दूर करने और D4D तक समान पहुंच एवं उसके उपयोग को बढ़ावा देने के लिए सदस्य देश निम्नलिखित उपाय अपना सकते हैं:
डेटा कलेक्शन की कोशिशों को बढ़ावा देना: G20 के देशों को डेटा कलेक्शन से जुड़ी आंतरिक क्षमता के विकास का समर्थन करना चाहिए, उन क्षेत्रों पर ध्यान देना चाहिए जहां साफ तौर पर डेटा की कमी है और कमजोर समुदाय रहते हैं. अपने संप्रभु क्षेत्र के भीतर अलग-अलग देश डेटा संग्रह के नेटवर्क को मजबूत करने और उनका विस्तार करने के लिए स्थानीय सरकारों, सिविल सोसायटी और प्राइवेट सेक्टर के संस्थानों के बीच साझेदारी को बढ़ावा दे सकते हैं. जमा किए गए डेटा को अलग-अलग और गुमनाम करने के लिए भागीदारों को ट्रेनिंग देने की विशेष रूप से आवश्यकता है ताकि एक तरफ जहां डेटा से जुड़े लोगों की संभावित आवश्यकता की साफ तौर पर पहचान की जा सके वहीं दूसरी तरफ उन लोगों की पहचान सुरक्षित और गोपनीय रह सके.
अंतर्राष्ट्रीय डेटा साझेदारी बनाना: आधुनिक डेटा क्षमता वाले देशों और परंपरागत तौर पर D4D से जुड़ी चुनौतियों का अनुभव करने वाले देशों के बीच डेटा साझेदारी स्थापित करने की आवश्यकता है. विकासशील देशों (साउथ-साउथ) के बीच और विकसित एवं विकासशील देशों (नॉर्थ-साउथ) के बीच सहयोग का नया मॉडल तैयार करना चाहिए ताकि जानकारी का आदान-प्रदान हो सके और सहयोग को बढ़ावा दिया जा सके. मेंटरशिप प्रोग्राम (परामर्श कार्यक्रम), तकनीकी सहायता और फंडिंग का समर्थन D4D की क्षमता को मजबूत करने के लिए महत्वपूर्ण साबित होगा.
डेटा इंफ्रास्ट्रक्चर को अपग्रेड करने के लिए संसाधनों का आवंटन- जिनमें डेटा स्टोरेज, प्रोसेसिंग और एनालिसिस के लिए सुविधा तैयार करना शामिल है- दुनिया भर की विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के लिए ध्यान देने का एक और क्षेत्र होना चाहिए.
डेटा इंफ्रास्ट्रक्चर को अपग्रेड करना और उभरती एवं विघटनकारी प्रौद्योगिकियों (इमर्जिंग एंड डिसरप्टिव टेक्नोलॉजीज) को अपनाना: डेटा इंफ्रास्ट्रक्चर को अपग्रेड करने के लिए संसाधनों का आवंटन- जिनमें डेटा स्टोरेज, प्रोसेसिंग और एनालिसिस के लिए सुविधा तैयार करना शामिल है- दुनिया भर की विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के लिए ध्यान देने का एक और क्षेत्र होना चाहिए. वैश्विक डेटा उत्पादन, खपत और स्टोरेज में G20 का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. वैश्विक स्तर पर डेटा सर्वर और क्लाउड सेंटर में से 69 प्रतिशत से ज्यादा G20 के देशों में हैं लेकिन इनमें से ज्यादातर वर्तमान में अमेरिका, चीन, जापान, यूनाइटेड किंगडम (UK), जर्मनी और ऑस्ट्रेलिया में हैं. इमर्जिंग एंड डिसरप्टिव टेक्नोलॉजीज (EDT) जैसे कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और मशीन लर्निंग का इस्तेमाल ग्रीन फील्ड डेटासेट (पूरी तरह से नया डेटा) जनरेट करने और डेटा एनालिटिक्स के जरिए नई व्यावहारिक जानकारी (एक्शनेबल इनसाइट) पैदा करने में मदद कर सकता है. EDT के इस्तेमाल का समर्थन करने के लिए पूरे इनोवेशन इकोसिस्टम को और विकसित करना चाहिए जिनमें स्टार्टअप्स का इनक्यूबेशन (बढ़ावा देना), एंटरप्रेन्योरशिप को प्रोत्साहन और तकनीक केंद्रित पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप का निर्माण शामिल है.
डेटा साझा करने की सुविधा के लिए तौर–तरीके का निर्माण: G20 देशों के बीच डेटा को शेयर करने के लिए तौर-तरीके की स्थापना D4D तक पहुंच में सुधार लाएगी. ओपन डेटा के इस्तेमाल को बढ़ावा देने की साफ तौर पर आवश्यकता है. साथ ही ओपन-एक्सेस रिपॉजिटरी (सबके लिए उपलब्ध भंडार) को बनाने की भी जरूरत है जिसके जरिए विकास से जुड़े डेटा को सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध कराया जा सकता है. इसके साथ-साथ इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम की इंटरऑपरेबिलिटी को जरूर मजबूत करना चाहिए ताकि बिना किसी बाधा के अलग-अलग प्लैटफॉर्म पर डेटा के इंटीग्रेशन (एकीकरण) और इस्तेमाल को सुनिश्चित किया जा सके. G20 देशों में राष्ट्रीय सांख्यिकीय और D4D संस्थानों को डेटा क्वालिटी, कंपरैबिलिटी (तुलना करने) और स्टैंडर्डाइजेशन (मानकीकरण) के लिए कोशिशों का नेतृत्व करने के उद्देश्य से एक साथ आना चाहिए. अंत में, और शायद सबसे महत्वपूर्ण रूप से, व्यापक डेटा प्राइवेसी और सुरक्षा की रूपरेखा बनानी चाहिए ताकि गोपनीयता को सुनिश्चित किया जा सके और भरोसा बनाया जा सके. इसके साथ-साथ स्टैंडर्ड (मानक), अप्रोच (दृष्टिकोण) और प्रोटोकॉल को एक जैसा करने के लिए बुनियादी काम करना चाहिए जो सीमा के आर-पार विकास से जुड़े खास तरह के डेटा को साझा करने की अनुमति दे.
[नोट: इस लेख के लेखकों के द्वारा विस्तार से एक नीतिगत लेख जिसका शीर्षक था “डेटा का इस्तेमाल कर 2030 के एजेंडे को आगे बढ़ाना: G20 के लिए सिफारिशें” का प्रकाशन थिंक20 इंडिया के द्वारा किया गया था.]
अनिर्बान सरमा ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में सीनियर फेलो हैं.
देबोस्मिता सरकार ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के सेंटर फॉर न्यू इकोनॉमिक डिप्लोमेसी में जूनियर फेलो हैं.
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