Author : Shoba Suri

Expert Speak Health Express
Published on Oct 11, 2024 Updated 0 Hours ago

भोजन असुरक्षा और मानसिक स्वास्थ्य के बीच के चक्र को तोड़ने के लिए, ऐसी पहल करने की जरूरत है जो सीधे मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं पर केंद्रित हों. 

भोजन की कमी और मानसिक स्वास्थ्य: इस चक्र को तोड़ने की चुनौती

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वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य में खाद्यान्न असुरक्षा ऐसा मुद्दा है, जो मानसिक स्वास्थ्य की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है. खाद्यान्न सुरक्षा और मानसिक स्वास्थ्य के बीच एक ऐसा जटिल संबंध है जो सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स यानी सतत विकास लक्ष्य 2 ‘ज़ीरो-हंगर’ अर्थात ‘शून्य भुखमरी’ और 3 ‘गुड हेल्थ एंड वेल-बिइंग’ यानी ‘बेहद स्वास्थ्य एवं तंदरुस्ती’ दोनों को ही हासिल करने में अहम भूमिका अदा करता है. 2024 की स्टेट ऑफ फुड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन यानी खाद्य सुरक्षा एवं पोषण की स्थिति पर वर्ल्ड रिपोर्ट के अनुसार खाद्य असुरक्षा की वजह से वैश्विक स्तर पर ग्यारह में से एक व्यक्ति क्रॉनिक हंगर यानी दीर्घकालिक भुखमरी से प्रभावित होता है. इससे यह संकेत मिलता है कि 2030 तक भूख और खाद्यान्न असुरक्षा को ख़त्म करने के वैश्विक स्तर पर हो रहे प्रयास अपने निर्धारित लक्ष्य से और भी ज़्यादा पीछे चल रहे हैं. 2019 से 2022 के बीच में वैश्विक भूखमरी ने 122 मिलियन लोगों को अपनी चपेट में ले लिया था. जबकि इसी अवधि में खाद्यान्न असुरक्षा में 20 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई. संघर्ष, जलवायु परिवर्तन, खाद्यान्नों की बढ़ती कीमतों तथा असमानता की वजह से पैदा होने वाली वैश्विक भूख में स्थिरता आ रही है. इसके बावजूद यह महामारी के पहले की स्थिति (2017 में इससे 815 मिलियन नागरिक प्रभावित हुए थे, जबकि 2023 में यह संख्या 333 मिलियन रही थी) से ज़्यादा ही है. चाहे महामारी के दौरान तथा महामारी के बाद किए गए हस्तक्षेपों की वजह से ये सकारात्मक परिणाम दिखाई दे रहे हो, लेकिन यूक्रेन युद्ध की वजह से वैश्विक अनाज व्यापार प्रभावित हुआ है और इसमें गिरावट देखी जा रही है. अब ग़ाजा में चल रहे संघर्ष की वजह से वैश्विक खाद्यान्न असुरक्षा की तेजी से वापसी हो सकती है अथवा वर्तमान स्थिति और भी ख़राब हो सकती है. स्थानीय खाद्य भंडार में कमी के साथ ही संघर्षों की वजह से वैश्विक खाद्य व्यवस्था और कृषि उपज में व्यवधान पड़ता है. कृषि उपज में कमी के चलते आपूर्ति श्रृंखला प्रभावित होती है, जिसके चलते महत्वपूर्ण संसाधनों जैसे खाद्य एवं कृषि रसायन तक पहुंच सीमित हो जाती है. इसके परिणामस्वरूप कीमतों में उछाल देखा जाता है. कीमतों में उछाल को वैश्विक स्तर पर खाद्यान्न सुरक्षा की राह में एक बड़ी बाधा माना जाता है.

ग़ाजा में चल रहे संघर्ष की वजह से वैश्विक खाद्यान्न असुरक्षा की तेजी से वापसी हो सकती है अथवा वर्तमान स्थिति और भी ख़राब हो सकती है. स्थानीय खाद्य भंडार में कमी के साथ ही संघर्षों की वजह से वैश्विक खाद्य व्यवस्था और कृषि उपज में व्यवधान पड़ता है.

Figure 1: Food insecurity is a mental health issue

Breaking The Cycle Food Insecurity And Mental Health



खाद्य स्रोत की भूमिका 

 

खाद्य सुरक्षा मानसिक स्वास्थ्य में अहम भूमिका अदा करती है. इसकी वजह से तनाव, भावनाएं, संज्ञानात्मक संबंधी क्षमताएं और संपूर्ण मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है. एक समीक्षा अध्ययन ने पाया है कि मानसिक पीड़ा तथा खाद्य सुरक्षा के बीच संबंध है. ऐसे में इस अध्ययन को आगे बढ़ाते हुए इसमें मानसिक स्वास्थ्य संकेत (इटिंग डिसऑर्डर यानी भोजन विकार तथा आत्महत्या), आसपास के कारक (पर्यावरणीय एवं निजी प्रभाव) तथा खाद्यान्न तक सीमित पहुंच को शामिल किया जाना चाहिए. खाद्यान्न असुरक्षा की वजह से महिलाएं बुरी तरह प्रभावित होती हैं, जिसकी वजह से उनके मानसिक तनाव की चपेट में आने का ख़तरा बढ़ जाता है. COVID-19 महामारी के दौरान खाद्यान्न असुरक्षा एवं मानसिक स्वास्थ्य के बीच संबंधों की जांच के लिए किए गए रिसर्च में पता चला कि जो लोग खाद्य असुरक्षा का सामना करते हैं उन पर चिंता (257 प्रतिशत) तथा डिप्रेशन (253 प्रतिशत) के शिकार होने का ख़तरा मंडराता रहता है.

 

वैश्विक स्तर पर 160 देशों में किए गए अध्ययन से पता चला कि युवाओं के भावनात्मक स्वास्थ्य तथा खाद्यान्न उपलब्धता के बीच महत्वपूर्ण संबंध है. आवश्यक सामग्रियों जैसे खाद्य स्रोत, पहुंच, उपलब्धता और न्यूट्रिशनल स्टेटस यानी पोषक तत्वों के स्तर की कमी से भी मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है. अफ्रीका में किए गए एक सिस्टमैटिक रिव्यू यानी व्यवस्थित समीक्षा में पाया गया कि खाद्यान्न असुरक्षा का बुजुर्गों तथा महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर असर देखा जाता है. पुर्तगाल में हुए एक अध्ययन से यह पता चला है कि खाद्य असुरक्षा का सामना करने वाले परिवारों की महिलाओं में चिंता तथा अवसाद के ज़्यादा लक्षण देखे जाते हैं. COVID-19 महामारी के दौरान खाद्यान्न असुरक्षा बढ़ी है और इसकी वजह से हाशिए पर गुजर बसर करने वाले समूह प्रभावित होते है. इसके चलते वहां के लोगों में नकारात्मक स्वास्थ्य परिणाम का अनुभव करने अथवा सामना करने का ख़तरा और भी बढ़ा है.

वैश्विक स्तर पर 160 देशों में किए गए अध्ययन से पता चला कि युवाओं के भावनात्मक स्वास्थ्य तथा खाद्यान्न उपलब्धता के बीच महत्वपूर्ण संबंध है. आवश्यक सामग्रियों जैसे खाद्य स्रोत, पहुंच, उपलब्धता और न्यूट्रिशनल स्टेटस यानी पोषक तत्वों के स्तर की कमी से भी मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मानसिक स्वास्थ्य की व्याख्या इस प्रकार की है: ‘‘मानसिक स्वास्थ्य, मानसिक कल्याण की वह स्थिति है, जिसमें लोग जीवन के तनाव का मुकाबला करते हुए अपनी क्षमताओं पर ख़रे उतरकर अच्छी शिक्षा ग्रहण कर अच्छा काम करते हुए अपने समाज के लिए योगदान दे सकें.’’ एक रिसर्च अध्ययन में 149 देशों के लोगों पर खाद्य असुरक्षा तथा मानसिक स्वास्थ्य के प्रभाव को परखा गया और पाया गया कि ख़राब मानसिक स्वास्थ्य और खाद्य असुरक्षा के बीच गहरा पारस्परिक संबंध है. लैंसेट के अनुसार खाद्य असुरक्षा की वजह से आरंभिक विकास में देरी हो सकती है और संज्ञानात्मक संबंधी विकास प्रभावित हो सकता है. इसका प्रमुख कारण यह है कि खाद्य असुरक्षा की वजह से सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी हो जाती है. माताओं और बच्चे में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दे अधिक देखे जाते हैं, क्योंकि माताओं को खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ता है. यह एक ऐसा चिंताजनक मुद्दा है जिसे सामाजिक नीति हस्तक्षेपों के माध्यम से हल किया जा सकता है. खाद्यान्न की कमी का सामना करने वाले परिवारों के बच्चों को अक्सर अपने पालकों से आक्रामक बर्ताव अथवा मानसिक तनाव का सामना करना पड़ता है. इस वजह से बच्चों का व्यवहार भी नकारात्मक हो जाता है. हाल में हुई एक व्यवस्थित समीक्षा ने पाया है कि गिरते जा रहे विभिन्न मानसिक स्वास्थ्य परिणामों तथा लिंग, आयु, ग्रामीण/शहरी रहन-सहन तथा स्वास्थ्य स्थिति के बीच एक जटिल संबंध है.

2030 के एजेंडा को पाने और सतत विकास को प्रोत्साहित करने के लिए यह आवश्यक है कि इन दोनों मुद्दों को लक्ष्य बनाकर ही संयुक्त पहल की जाए.

चुनौतियां मौजूद होने के बावजूद विभिन्न क्षेत्रों की आबादी की अलग-अलग ज़रूरतों को पूर्ण करने के लिए कार्रवाई योग्य तथा टिकाऊ हस्तक्षेप और नवाचार दृष्टिकोण अपनाया जा सकता है. पश्चिम अफ्रीकी देशों में मौजूद सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों को इस तरह तैयार किया गया है कि इनके सहयोग से असुरक्षित आबादी जैसे कि बच्चों, महिलाओं, युवा और बुजुर्गों तक सीधे सहायता पहुंचाकर उन्हें बढ़ती खाद्यान्न कीमतों के प्रभाव को प्रबंधित करने में सक्षम बनाया जा सकें. यूरोपियन यूनियन की ‘‘फार्म टू फोर्क स्ट्रैटेजी’’ ने खाद्य सुरक्षा को बढ़ाने के लिए रचनात्मक तरीके दुनिया के सामने रखे हैं. तकनीक आधारित समाधानों जैसे मोबाइल एप्प और डाटा एनालिटिक्स का उपयोग करके खाद्यान्न वितरण प्रणाली को अधिक कुशल बनाकर भी खाद्य सुरक्षा में सुधार किया गया है. तकनीक का उपयोग करने की वजह से खाद्यान्न की बर्बादी को कम करने में सफ़लता मिली है और पोषक तत्वों से जुड़ी जानकारी को समय रहते लोगों तक पहुंचाने को भी बढ़ाया जा सका है. भारत के इलेक्ट्रॉनिक पब्लिक डिस्ट्रिब्यूशन सिस्टम जिसे “e-PDS” भी कहा जाता है ने लाभार्थियों तक सब्सिडाइज्ड यानी रियायती अनाज पहुंचाने की व्यवस्था को अधिक कुशल बनाने के लिए तकनीक का उपयोग किया है. इसकी वजह से खाद्यान्न वितरण अधिक कुशल हुआ है और संभावित ख़तरों का सामना करने वाले लोगों तक राशन पहुंचाने के काम में सुधार हो सका है.

 

आगे की राह 

 

खाद्यान्न असुरक्षा तथा मानसिक स्वास्थ्य के चक्र को तोड़ने के लिए यह ज़रूरी है कि मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों को ही सीधे हस्तक्षेप कर लक्षित किया जाए. 2030 के एजेंडा को पाने और सतत विकास को प्रोत्साहित करने के लिए यह आवश्यक है कि इन दोनों मुद्दों को लक्ष्य बनाकर ही संयुक्त पहल की जाए. FAO, WTO तथा G20 आदि संगठनों के माध्यम से विभिन्न देशों के बीच सहयोग से मानवीय प्रयास मजबूत हो सकते हैं और खाद्यान्न आपूर्ति श्रृंखला में आ रही रुकावटों से निपटा जा सकता है. वर्तमान सामाजिक पहलों में मानसिक स्वास्थ्य सहायता को शामिल करने से, विशेषत: ऐसे इलाकों में जहां व्यापक खाद्यान्न असुरक्षा देखी जा रही है, एक संपूर्ण रणनीति हासिल की सकती है. इसके लिए मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े पेशेवर लोगों, सामाजिक नेताओं तथा नीति निर्माताओं के बीच सहयोग की ज़रूरत है.



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