भविष्य के रोज़गार के लिए हमारे युवाओं के हुनर में निवेश की ज़रूरत को स्वीकार करने के लिए और एंटरप्रेन्योरशिप की भावना पैदा करने के लिए दुनिया भर में 2014 से विश्व युवा कौशल दिवस (वर्ल्ड यूथ स्किल्स डे) मनाया जाता है. 15-24 साल के नौजवानों की संख्या 1.2 अरब है और ये दुनिया की कुल आबादी का 16 प्रतिशत हिस्सा हैं. 2030 तक इनकी जनसंख्या बढ़कर 1.3 अरब होने का अनुमान है. कुछ विकासशील देश “युवा उभार” का भी अनुभव कर रहे हैं जिसका नतीजा बच्चों और किशोरों के बड़े हिस्से के रूप में निकला है. ध्यान देने की बात है कि इस घटनाक्रम में जहां कामगारों और नेताओं की अगली पीढ़ी को बढ़ावा देने की भरपूर संभावना है वहीं ये जोखिम भी है कि अगर पर्याप्त अवसर तैयार नहीं होते हैं तो ये डेमोग्राफिक बम (जनसांख्यिकीय बम) भी बन सकता है. अवसर तैयार करने का ऐसा ही एक प्रयास है सतत विकास लक्ष्य (सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल) 4 का उद्देश्य जो पूरे जीवन में सीखने के मौक़ों को पैदा करने और अच्छी तकनीकी और व्यावसायिक (वोकेशनल) शिक्षा में निवेश के ज़रिए हुनरमंद बनाने के लिए रास्ता मज़बूत करने पर ध्यान देता है. यूनेस्को के मुताबिक टेक्निकल एंड वोकेशनल एजुकेशन एंड ट्रेनिंग (TVET) का मतलब व्यवसाय के महत्वपूर्ण क्षेत्रों, उत्पादन सेवाओं और आजीविका की आवश्यकताओं का ध्यान रखने के लिए शैक्षणिक, प्रशिक्षण और कौशल विकास की प्रक्रिया की व्यापक श्रेणी को हासिल करना है. ये अच्छे काम एवं जीवन भर की सीख और समावेशी एवं सतत अर्थव्यवस्था के लिए लोगों एवं समुदायों को अधिकार संपन्न बनाने की सहूलियत पर भी ज़ोर देता है.
कौशल विकास और उद्यमशीलता मंत्रालय (MSDE) अपनी प्रमुख योजना स्किल इंडिया मिशन, जिसकी शुरुआत 2015 में हुई थी, को भविष्य के हुनरमंद कामकाजी लोगों (वर्कफोर्स) को विकसित करने के व्यापक उद्देश्य के साथ चलाता है. इस योजना के तहत 2022 तक 40 करोड़ से ज़्यादा युवाओं को उचित ट्रेनिंग मुहैया कराने का लक्ष्य रखा गया था.
भारत के युवाओं का हुनर कवायद को आसान बना रहा
अनुमान है कि 2047 तक भारत में 1.1 अरब लोग कामकाजी उम्र समूह (15-64) में होंगे और इस तरह भारत के पास अपने युवाओं की क्षमता को उजागर करने के लिए एक अनूठा अवसर है. TVET में 10 लाख युवाओं, जो हर महीने भारत में नौकरी के बाज़ार में आते हैं, को उचित नौकरी मुहैया कराने की क्षमता है. फिर से कौशल सिखाने और अपग्रेडिंग समेत कई तरह के हुनर मुहैया कराने के लिए औपचारिक संस्थानों के नेटवर्क की स्थापना की आवश्यकता को स्वीकार करते हुए भारत ने पहले ही अपने कामकाजी उम्र के लोगों को भविष्य की नौकरियों के लिए तैयार करने के मकसद से एक व्यवस्थात्मक बदलाव शुरू कर दिया है. कौशल विकास और उद्यमशीलता मंत्रालय (MSDE) अपनी प्रमुख योजना स्किल इंडिया मिशन, जिसकी शुरुआत 2015 में हुई थी, को भविष्य के हुनरमंद कामकाजी लोगों (वर्कफोर्स) को विकसित करने के व्यापक उद्देश्य के साथ चलाता है. इस योजना के तहत 2022 तक 40 करोड़ से ज़्यादा युवाओं को उचित ट्रेनिंग मुहैया कराने का लक्ष्य रखा गया था.
प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) MSDE की एक कौशल प्रमाणपत्र देने की योजना (स्किल सर्टिफिकेशन स्कीम) है जिसको राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (NSDC) चलाता है. इसका उद्देश्य युवाओं को ज़रूरी हुनर की ट्रेनिंग से लैस करना है. योजना में विशेष हिस्सों को भी शामिल किया गया है जैसे कि नेशनल स्किल क्वालिफिकेशन फ्रेमवर्क (NSQF) जो राष्ट्रीय स्तर पर एकीकृत शिक्षा का ढांचा है और जो अभ्यर्थियों को वांछित योग्यता का स्तर हासिल करने को आसान बनाता है. PMKVY का एक हिस्सा रिकॉग्निशन ऑफ प्रायर लर्निंग (RPL) भी है जिसके तहत युवाओं को कौशल प्रमाणपत्र दिया जाता है, विशेष रूप से अनियंत्रित (अनरेगुलेटेड) क्षेत्रों में. PMKVY के तहत कौशल भी आता है जो कौशल प्रशिक्षण के लिए संभावित उम्मीदवारों को आकर्षित करने के इरादे से एक व्यावहारिक जागरूकता आधारित दृष्टिकोण है. PMKVY का एक पार्ट रोज़गार मेला भी है जो रोज़गार चाहने वाले युवाओं के लिए करियर प्लेसमेंट का मेला है.
इसके बाद 2016-20 के बीच PMKVY 2.0 आई जिसका लक्ष्य अल्पकालीन ट्रेनिंग, रिकॉग्निशन ऑफ प्रायर लर्निंग (RPL) और विशेष परियोजना कार्यक्रम के माध्यम से मांग आधारित हुनर से लैस करके 1 करोड़ युवाओं की मदद करना था.
2020-21 में शुरू PMKVY 3.0 के तहत 7.36 लाख उम्मीदवारों को ट्रेनिंग दी गई जबकि 1.2 लाख अन्य युवाओं ने कोविड वॉरियर्स के लिए विशेष क्रैश कोर्स के ज़रिए फायदा हासिल किया. शिक्षा मंत्रालय की सलाह से इस कार्यक्रम के तहत स्किल हब इनिशिएटिव की परिकल्पना भी की गई जिसका मक़सद उद्योगों के लिए एक हुनरमंद वर्कफोर्स तैयार करना है. ये मोटे तौर पर नौकरी के बाज़ार के मौजूदा रुझानों से मेल खाने वाला एक कुशल वर्कफोर्स तैयार करने, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के भीतर वोकेशनल ट्रेनिंग को शामिल करने एवं उसे मुख्यधारा में लाने और कौशल के केंद्र को मज़बूत फंडिंग के तौर-तरीकों के साथ स्थानीय संस्थानों एवं यूनिवर्सिटी से जोड़ने पर ध्यान देती है.
मांग और आपूर्ति की खाई को भरने के लिए अब योजनाबद्ध दृष्टिकोण में खामियों को दूर करने का समय आ गया है. एक विश्लेषण के अनुसार 14 मार्च 2023 तक PMKVY के तहत सर्टिफिकेट पाने वाले चार में से केवल एक या 22.2 प्रतिशत को ही नौकरी मिली है.
ये घोषणा भी की गई है कि PMKVY 4.0 को जल्द ही लॉन्च किया जाएगा. इसका उद्देश्य आने वाले तीन वर्षों में कौशल विकास को एक व्यापक युवा वर्ग तक ले जाना है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद में 2023 के अपने बजट भाषण के दौरान ऐलान किया कि ये योजना नौजवानों को हुनरमंद बनाने के लिए आवश्यकता पर आधारित कोर्स को शामिल करने के साथ-साथ व्यावहारिक ट्रेनिंग और उद्योगों के साथ भागीदारी पर विशेष ज़ोर देगी. स्कीम के तहत न्यू एज की ख़ास टेक्नोलॉजी जैसे कि कोडिंग, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), रोबोटिक्स, मेकेनोट्रिक्स, इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IOT), 3D प्रिंटिंग, ड्रोन और दूसरे सॉफ्ट स्किल को विकसित करने को भी शामिल किया जाएगा. 2015 से 1 करोड़ 32 लाख अभ्यर्थियों को ट्रेनिंग के साथ PMKVY 4.0 का वादा है कि आदिवासी क्षेत्रों समेत हर जगह अधिक महिलाओं की भागीदारी के ज़रिए लैंगिक (जेंडर) विविधता पर ध्यान दिया जाएगा, इलेक्ट्रिक गाड़ियों (EV) के उत्पादन और सोलर इंजीनियरिंग के लिए महिला वर्कफोर्स को विकसित किया जाएगा और कोविड महामारी के दौरान नौकरी गंवाने वाले लोगों को नया हुनर सिखाया जाएगा एवं मौजूदा हुनर को और बढ़ाया जाएगा. कौशल विकास और उद्यमशीलता पर राष्ट्रीय नीति 2015 में भारत के भीतर होने वाली सभी तरह की कौशल गतिविधियों के लिए एक व्यापक ब्लूप्रिंट तैयार किया गया है. इन गतिविधियों को कौशल की आवश्यकता के एक समान मानक से जोड़ा गया है और उन्हें मांग के केंद्र के साथ मिलाया गया है.
2016 में शुरू की गई नेशनल अप्रेंटिसशिप प्रमोशन स्कीम (NAPS) वित्तीय प्रोत्साहन, तकनीक और समर्थन (एडवोकेसी सपोर्ट) के ज़रिए देश में अप्रेंटिसशिप को बढ़ावा दे रही है.
व्यवसाय के अध्ययन को बढ़ावा देने और एंटरप्रेन्योरशिप सपोर्ट नेटवर्क तक पहुंच एवं नौजवानों के लिए स्टार्ट-अप आइडिया को आसान बनाने के लिए अखिल भारतीय योजना के रूप में प्रधानमंत्री युवा उद्यमिता विकास अभियान (PM-YUVA) की शुरुआत 2016 में की गई. प्रोजेक्ट AMBER (एक्सीलेरेटेड मिशन फॉर बेटर एम्प्लॉयमेंट एंड रिटेंशन) जैसा कार्यक्रम राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (NSDC) और जेनरेशन इंडिया फाउंडेशन (GIF) के साझा सहयोग से शुरू किया गया और इसमें कौशल विकास और उद्यमशीलता मंत्रालय (MSDE) नोडल एजेंसी के तौर पर जुड़ा है. इस कार्यक्रम का प्रयास अच्छी नौकरी को बढ़ावा देना, बेहतर रोज़गार के अवसर और लंबे समय तक काम में टिके रहने के लिए संपूर्ण कौशल मुहैया कराना है. कौशल विकास से जुड़े कोर्स में नाम दर्ज कराने के लिए युवाओं को वित्त मुहैया कराने के उद्देश्य से स्किल लोन स्कीम 2015 में लॉन्च की गई. नेशनल स्किल क्वालिफिकेशन फ्रेमवर्क (NSQF) की गाइडलाइन के अनुसार ट्रेनिंग देने वाले इंस्टीट्यूट से सर्टिफाइड डिग्री हासिल करने के लिए ये कोर्स नेशनल ऑक्युपेशन स्टैंडर्ड और क्वालिफिकेशन पैक जैसी क्वालिटी कंट्रोल की सीमा रेखा से मेल खाता हो. एक और महत्वपूर्ण कोशिश स्किल इम्पैक्ट बॉन्ड है जिसकी शुरुआत NSDC ने की थी. ये बॉन्ड परिणाम आधारित कार्य योजना पर ध्यान देता है जिसके तहत जॉब प्लेसमेंट और नौकरी में बने रहने की रणनीति को प्राथमिकता दिया जाता है. ये पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) ट्रेनिंग पाने वालों के लिए सर्टिफिकेशन की जगह वास्तविक रोज़गार का फायदा उठाने पर ध्यान देती है और इसमें कम आमदनी वाले परिवारों से पहली बार रोज़गार मांगने वाले लगभग 18,000 लोगों ने नाम दर्ज कराया है जिनमें से 72 प्रतिशत महिलाएं थीं.
इन नीतिगत हस्तक्षेपों के बावजूद अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के अनुसार भारत में 2030 तक 2 करोड़ 90 लाख हुनरमंद युवाओं की कमी का अनुमान है. ILO के अनुमान के मुताबिक अगले दशक में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के संदर्भ में हुनर की ये कमी 1.97 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की है. 2015 की कौशल विकास और उद्यमशीलता के लिए राष्ट्रीय नीति (NPSDE) का अनुमान है कि भारत में सिर्फ 5.4 प्रतिशत वर्कफोर्स ने औपचारिक स्किल ट्रेनिंग हासिल की है जबकि यूनाइटेड किंगडम (UK) में ये आंकड़ा 68 प्रतिशत, जर्मनी में 75 प्रतिशत और दक्षिण कोरिया में 96 प्रतिशत है.
मांग और आपूर्ति की खाई को भरने के लिए अब योजनाबद्ध दृष्टिकोण में खामियों को दूर करने का समय आ गया है. एक विश्लेषण के अनुसार 14 मार्च 2023 तक PMKVY के तहत सर्टिफिकेट पाने वाले चार में से केवल एक या 22.2 प्रतिशत को ही नौकरी मिली है. इसमें ये भी कहा गया है कि पहले चरण में 19,86,000 युवाओं ने ट्रेनिंग हासिल की और इसमें प्लेसमेंट 18.4 प्रतिशत रही. तीन चरणों में PMKVY 2.0 सबसे लंबा रही और इसमें सबसे ज़्यादा उम्मीदवारों यानी 1,09,98,000 ने ट्रेनिंग हासिल की और प्लेसमेंट का प्रतिशत भी सबसे अधिक 23.4 रहा. इसके बाद PMKVY 3.0 की शुरुआत हुई जिसमें 4,45,000 को ट्रेनिंग मिली और प्लेसमेंट 10.1 प्रतिशत रही.
आगे के लिए हुनर से लैस होना
स्पष्ट रूप से ये सुनिश्चित करने के लिए और भी काम करने की ज़रूरत है कि देश अपने जनसांख्यिकीय लाभ से नहीं चूके और अपनी विशाल मानव पूंजी में निवेश करे. इसकी शुरुआत बुनियादी शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारने की कोशिश के साथ-साथ पर्याप्त टेस्टिंग और अलग-अलग देशों में तुलनात्मक मापने योग्य संकेतकों (इंडिकेटर्स) से की जा सकती है. शायद ये उपाय अच्छा फायदा दे सकता है क्योंकि नौजवानों को स्कूल के शुरुआती दौर के पाठ्यक्रम में एक अच्छे करियर के विकल्प के रूप में व्यावसायिक कौशल के बारे में बताया जाता है और वो पहले से ही तकनीकी प्रशिक्षण से उम्मीदों के बारे में तैयार और जागरूक रहेंगे. अध्ययनों से शुरुआती शिक्षा को टेक्निकल ट्रेनिंग से जोड़ने के महत्व का संकेत मिला है. इस तरह की पढ़ाई बाद में जीवन के दूसरे हुनर के साथ-साथ उद्योग से जुड़ने के लिए आवश्यक योग्यता में बदल जाती है. ज़रूरी कौशल की एक व्यवस्थात्मक रूपरेखा भी मांग पर आधारित कौशल में बढ़ोतरी के इकोसिस्टम को तैयार कर सकती है और काम करने वाले लोगों की मांग और आपूर्ति में मौजूदा रुझान को तलाशने में मदद कर सकती है. समय-समय पर हुनर की ज़रूरत के संबंध में डेटा तैयार और साझा करने के लिए उद्योग के हितधारकों (स्टेकहोल्डर्स) के साथ बातचीत का उपयोग नोडल मंत्रालयों के द्वारा वार्षिक समीक्षा और निगरानी के लिए किया जा सकता है. भविष्य की नौकरियों पर ध्यान देकर श्रम बाज़ार के मूल्यांकन के अध्ययन का इस्तेमाल उभरती देखभाल (केयर), डिजिटल और ग्रीन (हरित) अर्थव्यवस्था जैसे उद्योगों की मांग में बदलाव पर नज़र रखने में किया जा सकता है. इसके आधार पर आवश्यक हुनर विकसित करके उसे वर्तमान ट्रेनिंग के पाठ्यक्रम में शामिल किया जा सकता है.
भविष्य की नौकरियों पर ध्यान देकर श्रम बाज़ार के मूल्यांकन के अध्ययन का इस्तेमाल उभरती देखभाल (केयर), डिजिटल और ग्रीन (हरित) अर्थव्यवस्था जैसे उद्योगों की मांग में बदलाव पर नज़र रखने में किया जा सकता है. इसके आधार पर आवश्यक हुनर विकसित करके उसे वर्तमान ट्रेनिंग के पाठ्यक्रम में शामिल किया जा सकता है.
श्रम, कपड़ा और कौशल विकास पर संसद की स्थायी समिति ने अपनी 36वीं रिपोर्ट में कहा है कि फंड के कम इस्तेमाल और अधिक ड्रॉपआउट (बाहर निकलने) रेट की वजह से कार्यक्रम को काफी नुकसान हुआ है. अलग-अलग दीर्घकालीन तरीकों की पहचान और नतीजों पर आधारित फंडिंग शायद फंडिंग से जुड़ी कमियों को दूर करने में मददगार साबित होगी. कौशल की ट्रेनिंग से जुड़े इंफ्रास्ट्रक्चर को लगातार बेहतर बनाने से और सर्टिफाइड ट्रेनर में महिलाओं की उचित भागीदारी से और अधिक महिलाओं को ट्रेनिंग सेशन में शामिल होने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा. भारत में श्रम बाज़ार में महिलाओं की हिस्सेदारी की दर 22 प्रतिशत है जो कि अमेरिका, चीन और UK के लगभग 70 प्रतिशत के औसत की तुलना में काफी कम है. इसी वजह से जानकारों ने तर्क दिया है कि भारत ऐतिहासिक लैंगिक असमानता को चुनौती देने के लिए और अगले 10 वर्षों में महिलाओं के लिए कम-से-कम 4 करोड़ 30 लाख जॉब के निर्माण को सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त कदम उठाए. हर साल नौकरी के बाज़ार में कदम रखने वाले 1 करोड़ 30 लाख नौजवानों को हुनर सिखाना एक चुनौतीपूर्ण काम है लेकिन कुछ खामियों को दूर करके हम शायद भविष्य के अपने वर्कफोर्स के लिए डेमोग्राफिक डिविडेंड को अधिकतम कर सकते हैं.
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