Published on Jul 24, 2023 Updated 0 Hours ago

तालमेल के साझा विषयों की तलाश से सहयोग और बढ़ सकता है. लेकिन, ये मक़सद हासिल करने के लिए समझौते करने के साथ साथ दोनों पक्षों को एक दूसरे से लगातार संवाद करते रहना होगा.

अमेरिकी विदेश मंत्री ब्लिकेंन का चीन दौरा: नाज़ुक हालातों में उम्मीदों की झलक!

अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन, चीन के वरिष्ठ नेताओं से मिलने के लिए 18 जून को बीजिंग पहुंचे थे. पिछले पांच साल में ये पहली बार था, जब अमेरिका के विदेश मंत्री चीन के दौरे पर आए थे. ब्लिंकेन का चीन दौरा ऐसे मोड़ पर हुआ है, जब इस बात की आशंका बढ़ रही है कि दोनों देशों के बीच, टकराव सैन्य संघर्ष में तब्दील हो सकता है, ख़ास तौर से ताइवान के मसले पर, जहां 2024 में राष्ट्रपति चुनाव होने वाले हैं. मई महीने में अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलीवन और चीन के सर्वोच्च राजनयिक वैंग यी के बीच वियना में मुलाक़ात हुई थी. इस बैठक में ही चीन और अमेरिका इस बात पर सहमत हुए कि उन्हें, ‘बातचीत के सामान्य तौर-तरीक़ों को दोबारा स्थापित करना होगा’. इसके बाद ही ब्लिंकेन का ये बीजिंग दौरा मुमकिन हो सका.

जोखिम कम करना (De-risking)

एंटनी ब्लिंकेन का ये चीन दौरा, दोनों देशों के लगातार ख़राब हो रहे द्विपक्षीय संबंधों के निर्णायक मोड़ पर हुआ है. ‘जासूसी गुब्बारे’ की घटना के बाद दोनों देशों में तनाव बढ़ा हुआ है. ऐसे में ब्लिंकेन का ज़ोर इस बात पर ज़्यादा था कि चीन और अमेरिका के बीच बातचीत के रास्ते खुले रहने चाहिए और ऐसी कोई भी ग़लतफ़हमी पैदा होने से रोकना चाहिए, जिससे संघर्ष शुरू होने का ख़तरा पैदा हो. बढ़ते तनाव के बावजूद, बाइडेन प्रशासन की रणनीति यही है कि चीन के साथ संवाद जारी रखा जाए और दोनों देशों के रिश्तों के जोखिम कम किए जाएं. अमेरिका ये प्रयास इस बात के बावजूद कर रहा है कि इसी साल 2 से 4 जून के दौरान सिंगापुर में हुए शांग्री ला डायलॉग के दौरान चीन ने अमेरिका के रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन के अपने रक्षा मंत्री ली शांगफू से मिलने का प्रस्ताव ठुकरा दिया था.

एंटनी ब्लिंकेन का ये चीन दौरा, दोनों देशों के लगातार ख़राब हो रहे द्विपक्षीय संबंधों के निर्णायक मोड़ पर हुआ है. ‘जासूसी गुब्बारे’ की घटना के बाद दोनों देशों में तनाव बढ़ा हुआ है. ऐसे में ब्लिंकेन का ज़ोर इस बात पर ज़्यादा था कि चीन और अमेरिका के बीच बातचीत के रास्ते खुले रहने चाहिए

अमेरिकी विदेश मंत्री के हालिया चीन दौरे का मक़सद कई विवादित मुद्दों का समाधान तलाशना था. इनमें छोटी घटनाओं के बड़े संघर्ष में तब्दील होने की आशंका, व्यापार के मसले, मानव अधिकार और ताइवान के मुद्दे शामिल थे. ब्लिंकेन का ये दौरा इस बुनियाद पर आधारित था कि ताइवान, आर्थिक मतभेद और मानव अधिकार की चिंताओं समेत कई मसलों पर चीन के साथ अमेरिका का विवाद है. फिर भी दोनों देशों के बीच होड़ को बड़े टकराव में बदलने से रोकने की आवश्यकता है. विदेश मंत्री ब्लिंकेन के इस दौरे के केंद्र में चीन से पूरी तरह दूरी बनाने के बजाय डि-रिस्किंग या जोखिम कम करने की रणनीति है, जिस पर G7 देशों के बीच सहमति बनी है. फिर भी, उनका ये दौरा कोई ठोस नतीजे हासिल करने में नाकाम रहा है, और अमेरिका अभी भी चीन के साथ अपने रिश्तों में ‘निवेश करने, तालमेल बनाने और मुक़ाबले करने’ की तिहरी रणनीति पर बना हुआ है.

दौरे में क्या संदेश छिपा है?

चीन के नेताओं के साथ ब्लिंकेन की बातचीत के दौरान अन्य समस्याओं जैसे कि अमेरिका द्वारा चीन पर लगाए गए व्यापारिक और तकनीकी पाबंदियों के साथ साथ ताइवान के विवाद पर प्रमुखता से बातचीत हुई. हाल के दिनों तक अमेरिका में चीन के राजदूत रहे विदेश मंत्री छिन गांग ने कहा कि कूटनीतिक संबंध स्थापित होने से लेकर अब तक के दौर में इस वक़्त दोनों देशों के रिश्ते अपने सबसे निचल स्तर पर हैं. चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के विदेशी मामलों के आयोग के अध्यक्ष वैंग यी ने इस पतन के लिए अमेरिका को ज़िम्मेदार ठहराया और कहा कि अमेरिका में चीन को लेकर ग़लत राय बनाई जा रही है और ‘चीन से ख़तरे का झूठा प्रचार’ किया जा रहा है. वैंग यी, विदेश नीति में चीन के राष्ट्रपति के सलाहकार हैं. उन्होंने ब्लिंकेन से गुज़ारिश की कि वो चीन का मूल्यांकन ‘पश्चिम के नज़रिए से’ करना बंद करें, जहां राष्ट्रों ने दूसरों पर दबदबा बनाने के लिए ताक़त जुटाई थी. वैंग ने इशारों में चीन की लक्ष्मण रेखा का भी ज़िक्र किया और बाइडेन प्रशासन से कहा कि वो तकनीकी मामलों में चीन पर लगाम लगाने की नीति और उसके घरेलू मामलों में दखल देना छोड़ दे. ताइवान का हवाला देते हुए वैंग यी ने कहा कि उसका एकीकरण चीन के मुख्य हितों में से एक होने के साथ साथ चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का मिशन भी है. उन्होंने अमेरिका पर ‘एक चीन के सिद्धांत’ का पालन करने का दबाव भी बनाया. 

ब्लिंकेन के चीन दौरे का अमेरिका में सार्वजनिक रूप से तो यही मूल्यांकन किया गया कि ये दौरा उम्मीद जगाता है. इसका सबूत तब मिला जब राष्ट्रपति बाइडेन ने ब्लिंकेन की तारीफ़ करते हुए कहा कि, उन्होंने ‘बहुत शानदार काम किया’, और चीज़ें सही दिशा में आगे बढ़ रही हैं. हालांकि, चीन के अकादमिक क्षेत्र में चल रही चर्चाओं को देखें, तो ब्लिंकेन के इस दौरे को लेकर तस्वीर बिल्कुल अलग नज़र आती है. चीन के इंस्टीट्यूट ऑफ़ कंटेंपरेरी इंटरनेशनल रिलेशंस के झैंग झिशिन ने तर्क दिया है कि जब तक दोनों देशों के बीच टकराव को ख़त्म नहीं किया जाता, तब तक किसी भी बातचीत के सफल होने की संभावना नहीं है.

चीन, मौजूदा अमेरिकी सरकार को पिछली सरकारों से अलग मानते हुए इस बात पर अधिक ज़ोर देता है कि इसने उनकी नीतियों पर किस तरह असर डाला है. चीन के रणनीतिकारों के बीच ये बात आम है कि 2009 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद अमेरिका, जलवायु परिवर्तन जैसे मसलों पर सहयोग करने के लिए तैयार था. लेकिन, चीन का ये भी मानना है कि 2016 के बाद से अमेरिका के रणनीतिकारों के बीच चीन को लेकर ‘कड़ा रुख़’ अपनाने का चलन बढ़ा है, जो ट्रंप के शासनकाल में धीरे धीरे चीन की ‘आकांक्षाओं’ को क़ाबू करने की नीति में तब्दील हो गया है और जहां ‘संवाद और सहयोग’ को कमज़ोरी की निशानी माना जाने लगा है. अपने लेख में झैंग झिशिन ज़ोर देकर ये कहते हैं कि घरेलू राजनीति की वजह से बाइडेन प्रशासन की चीन नीति एक नए शीत युद्ध को बढ़ावा देने की दिशा में आगे बढ़ने की रही है.

इससे पता चलता है कि अमेरिका में रहने वाले चीन के विद्वान, अमेरिका के बड़े कारोबारियों के बीच अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके, दोनों देशों के संबंधों को उस वक़्त सामान्य बनाने की कोशिश कर रहे हैं, जब अमेरिका और भारत नज़दीक आ रहे हैं और अमेरिका, ऐसी तकनीकें देने को तैयार हो रहा है, जिससे भारत को फ़ायदा हो.

फुडान यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर अमेरिकन स्टडीज़ के निदेशक वू शिनबो हाल ही में अमेरिका के दौरे पर गए थे. ब्लिंकेन की यात्रा के बारे में उन्होंने कहा कि अतीत में चीन, अमेरिका के साथ अपने रिश्तों को लेकर बहुत ज़्यादा उम्मीद नहीं लगाए हुए था. उनका मूल्यांकन ये है कि अभी भी दोनों देशों के रिश्तों में कोई बड़ा बदलाव नहीं आने वाला है. हालांकि, वू कहते हैं कि अमेरिका के उद्योगपति, अमेरिका और चीन के संबंधों में तनाव से नाख़ुश हैं और कारोबारी तबक़ा ये चाहता है कि दोनों देशों के रिश्ते कम से कम द्विपक्षीय व्यापार के मामले में तो सुधरने चाहिए. इससे पता चलता है कि अमेरिका में रहने वाले चीन के विद्वान, अमेरिका के बड़े कारोबारियों के बीच अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके, दोनों देशों के संबंधों को उस वक़्त सामान्य बनाने की कोशिश कर रहे हैं, जब अमेरिका और भारत नज़दीक आ रहे हैं और अमेरिका, ऐसी तकनीकें देने को तैयार हो रहा है, जिससे भारत को फ़ायदा हो.

अमेरिका में चीन के पूर्व राजदूत के तौर पर विदेश मंत्री छिन गांग, चीन और अमेरिका के रिश्तों के इन समीकरणों को बख़ूबी समझते हैं और वो, दोनों देशों के रिश्ते सुधारने के लिए सांस्कृतिक और शिक्षा के क्षेत्र में आदान-प्रदान बढ़ाने पर ज़ोर देते रहे हैं. कम से कम इस बार तो चीन के रणनीतिकार, अमेरिका का रुख़ समझने के लिए संकेतों को पढ़ने की कोशिश कर रहे हैं. इसका एक बड़ा इशारा तो ये होगा कि अमेरिका की मौजूदा राजनीतिक परिचर्चा किस तरह से अमेरिका और चीन के साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी समझौते को प्रभावित करेगी. ये समझौता दोनों देशों के बीच संबंधों का प्रमुख आधार रहा है और इसने चीन की तकनीकी प्रगति में बड़ा योगदान दिया है. चीन के नीति निर्माता मानते हैं कि चीन को क़ाबू करने की अमेरिकी सोच ने विज्ञान और तकनीक के मामले में लगभग चालीस साल पुराने इस द्विपक्षीय समझौते को चोट पहुंचाई है. और वो अमेरिका के साथ अपने रिश्तों के भविष्य का आकलन इस आधार पर करेंगे कि जब इस समझौते के नवीनीकरण को लेकर बातचीत शुरू होगी, तो अमेरिका का रवैया कैसा रहता है. ज़ाहिर है अमेरिका और चीन के रिश्ते पथरीली राह की तरफ़ बढ़ रहे हैं.

मानवाधिकार का मसला लंबे समय से अमेरिका और चीन के रिश्तों के बीच विवाद का विषय रहा है. ब्लिंकेन ने अपने इस दौरे में मानव अधिकारों के उल्लंघन का मसला और ख़ास तौर से शिंजियांग, तिब्बत और हॉन्ग कॉन्ग के हालात का मुद्दा उठाया था. व्यापार के क्षेत्र में अमेरिका, चीन को उसकी अपारदर्शी व्यापारिक नीतियों के लिए ज़िम्मेदार ठहराने के साथ साथ चाहता है कि चीन पारदर्शिता को बढ़ावा दे और अंतरराष्ट्रीय नियमों का पालन करे. हालांकि, मानव अधिकारों की वाजिब चिंताओं और अन्य सामरिक हितों के बीच तालमेल बिठा पाना एक जटिल चुनौती है.

ब्लिंकेन का चीन दौरा अमेरिका की बहुपक्षीय संवाद की व्यापक रणनीति का एक हिस्सा है. आज जब दुनिया तेज़ी से आपस में जुड़ती जा रही है, तो वैश्विक चुनौतियों का मुक़ाबला करने के लिए देशों के बीच सहयोग आवश्यक होता जा रहा है. अमेरिका और चीन एक दूसरे के प्रतिद्वंदी भले हों, लेकिन, जलवायु परिवर्तन, परमाणु अप्रसार और वैश्विक स्वास्थ्य को लेकर उनके हित साझा हैं. ब्लिंकेन की परिचर्चाओं में इन वैश्विक मसलों पर सहयोग के मौक़ों पर भी चर्चा हुई. बहुपक्षीय मंचों में सहयोग और संवाद के लिए एक रूप-रेका स्थापित करने से मुक़ाबले को क़ाबू में रखने और संघर्ष रोकने में मदद मिलेगी.

भले ही यूरोप में चल रहे युद्ध ने दुनिया के बहुत से देशों को नए भू-सामरिक तालमेल बनाने का मौक़ा मुहैया कराया हो. लेकिन, वैश्विक व्यवस्था की स्थिरता के लिए चीन और अमेरिका के रिश्ते अहम बने हुए हैं. 

अमेरिका और चीन की एक दूसरे पर आर्थिक निर्भरता, उनके तनावपूर्ण संबंधों में एक नया आयाम जोड़ती है. अपने तमाम मतभेदों के बावजूद, दोनों देश अपने आर्थिक संबंधों की अहमियत और रिश्ते पूरी तरह टूटने के नुक़सान को बख़ूबी समझते हैं. ब्लिंकेन और चीन के अधिकारियों के बीच बातचीत में आर्थिक विषयों पर मतभेदों, जैसे कि व्यापार के असंतुलन और बाज़ार तक पहुंच को लेकर भी चर्चा हुई होगी. व्यापक भू-राजनीतिक चिंताओं से निपटने के साथ साथ इन आर्थिक टकरावों का प्रबंधन एक नाज़ुक संतुलन बनाने का काम है. इन वार्ताओं के नतीजों का असर वैश्विक व्यापार, निवेश के प्रवाह और आर्थिक स्थिरता पर भी पड़ेगा. ऐसे में आर्थिक मामलों में सहयोग के साझा हित तलाशने से अधिक स्थिर और सहयोगी संबंध स्थापित करने में मदद ज़रूर मिलेगी. लेकिन, इस लक्ष्य को पाने के लिए दोनों ही देशों को समझौते करने के साथ साथ लगातार संवाद करते रहना होगा.

बातचीत का नतीजा

दोनों देशों के बीच बातचीत का केवल एक ही सकारात्मक नतीजा निकला और वो था फेंटानिल बनाने में इस्तेमाल होने वाले रसायनों के प्रवाह को रोकना. फेंटानिल एक सिंथेटिक ड्रग है. अमेरिका में नशाख़ोरी के संकट पर क़ाबू पाने के लिए दोनों देश एक द्विपक्षीय कार्यकारी समूह बनाने पर सहमत हुए हैं. चीन द्वारा रूस को घातक हथियार मुहैया न कराने का वादा भी इस दौरे का एक और सकारात्मक नतीजा कहा जा सकता है. इनके अलावा, दोनों ही देशों के लिए इस बातचीत के कोई ठोस सामरिक नतीजे नहीं निकले. हां, ब्लिंकेन के दौरे का एक सकारात्मक पहलू ये कहा जा सकता है कि इससे भविष्य में संवाद की शुरुआत ज़रूर होगी. जबकि नकारात्मक पहलू ये है कि व्यापार और ताइवान के मुद्दों पर एक दूसरे पर पलटवार वाली नीतियों को लेकर कोई सहमति नहीं बन सकी. इसके साथ साथ, ब्लिंकेन का दौरा अमेरिका और चीन के बीच सैन्य बातचीत की राह निकाल पाने में भी नाकाम रहा. फिर भी, इस दौरे की अहमियत इस बात में है कि दोनों ही देशों ने बाद में जारी अपने बयानों में इसे लेकर सकारात्मक संकेत दिए हैं. इससे कम से कम ये इशारा तो ज़रूर मिलता है कि भविष्य में भी उनके बीच बातचीत होती रहेगी.

भले ही यूरोप में चल रहे युद्ध ने दुनिया के बहुत से देशों को नए भू-सामरिक तालमेल बनाने का मौक़ा मुहैया कराया हो. लेकिन, वैश्विक व्यवस्था की स्थिरता के लिए चीन और अमेरिका के रिश्ते अहम बने हुए हैं. इस लिहाज़ से चीन का स्थिरता का वादा करना और बड़े विवाद पैदा करने से दूर रहना, अमेरिका के हितों के लिहाज़ से बेहद महत्वपूर्ण है.

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Authors

Vivek Mishra

Vivek Mishra

Vivek Mishra is a Fellow with ORF’s Strategic Studies Programme. His research interests include America in the Indian Ocean and Indo-Pacific and Asia-Pacific regions, particularly ...

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Kalpit A Mankikar

Kalpit A Mankikar

Kalpit A Mankikar is a Fellow with Strategic Studies programme and is based out of ORFs Delhi centre. His research focusses on China specifically looking ...

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