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तीनों देशों- भूटान, भारत और चीन, की ओर से तात्कालिकता दिखाए जाने के बावजूद सीमा विवाद के निपटारे में तीनों पक्षों के अलग-अलग हित बड़ी चुनौती बने हुए हैं.
भारत (India) में तैनात चीन (China) के राजदूत 10 से 13 अक्टूबर तक 3 दिन के भूटान (Bhutan) दौरे पर थे. वहां उन्होंने राजा जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक (JigmeKhesarNamgyelWangchuck), प्रधानमंत्री लोटे सेरिंग और विदेश मंत्री टांडी दोरजी(TandiDorji) से मुलाक़ात की. दरअसल,पिछले साल भूटान और चीन ने सीमा वार्ताओं में तेज़ी लाने के लिए तीन चरणों वाले रोडमैप से जुड़े समझौता पत्र (MoU) पर दस्तख़त किए थे. इस क़रार के एक साल बाद चीनी राजदूत का ये दौरा,सामान्य दिखने वाला मगर हक़ीक़त में बेहद अहम घटनाक्रम है. इससे भूटान के सीमा विवादों (border dispute) को सुलझाने को लेकर तीनों किरदारों (भूटान, चीन और भारत) की तात्कालिकता साफ़ झलकती है. हालांकि, इन तीनों खिलाड़ियों के हित अलग-अलग हैं, लिहाज़ा मसले के समाधान के रास्ते में गंभीर चुनौतियां आती रहेंगी.
भारत और चीन की ज़मीनी सरहदों में घिरे भूटान ने 1949 के मित्रता और सहयोग संधि के बाद से भारत के साथ विशेष संबंध क़ायम रखे हैं. उधर चीन के साथ भूटान ने बग़ैर किसी राजनयिक संपर्क के भी तटस्थ रिश्ता बनाए रखा है. चीन की ओर से भूटान के कई इलाक़ों पर दावे किए जाते हैं. इनमें उत्तर की पासामलुंग और जाकारलुंग घाटी शामिल हैं, जो भूटान के लिए सांस्कृतिक तौर पर बेहद अहम हैं. पश्चिम दिशा में डोकलाम, ड्रामना और शाखटोई, याक चु और चारिथांग चु, सिंचुलुंगपा और लांगमार्पो घाटियों पर भी चीन अपना दावा ठोकता रहा है. ये इलाक़े चाराग़ाह के लिहाज़ से समृद्ध होने के साथ-साथ सामरिक रूप से भूटान-भारत-चीन के त्रिकोण (trijunction) पर स्थित हैं. ये क्षेत्र भारत के सिलिगुड़ी गलियारे के बेहद नज़दीक है. 2020 में चीन ने भूटान के पूर्व में साकटेंग पशुविहार (Sakteng sanctuary) पर भी नए सिरे से अपना दावा जता दिया.
भारत और चीन की ज़मीनी सरहदों में घिरे भूटान ने 1949 के मित्रता और सहयोग संधि के बाद से भारत के साथ विशेष संबंध क़ायम रखे हैं. उधर चीन के साथ भूटान ने बग़ैर किसी राजनयिक संपर्क के भी तटस्थ रिश्ता बनाए रखा है. चीन की ओर से भूटान के कई इलाक़ों पर दावे किए जाते हैं.
भूटान ने चीन के साथ पहली सीमा वार्ताओं की शुरुआत 1984 में की थी. 1988 में दोनों पक्षों ने वार्ताओं को दिशा देने के बुनियादी सिद्धांतों पर हामी भरी. 1998 में दोनों देशों ने वार्ताओं को जारी रखने और यथास्थिति बरक़रार रखने से जुड़े समझौते पर दस्तख़त किए. अब तक दोनों ही देशों में विशेषज्ञ स्तर की 10 बैठकें और सीमा वार्ताओं के 24 दौर आयोजित हो चुके हैं. अपने भौगोलिक आकार और सामरिक अहमियत के चलते भूटान बेहद रक्षात्मक रहा है. 2021 में भूटान और चीन ने वार्ताओं में तेज़ी लाने और सीमा विवादों के निपटारे के लिए एक MoUपर हस्ताक्षर किए.
चीनी राजदूत के ताज़ा भूटान दौरे में दोस्ताना संपर्क बनाए रखने, आपसी रिश्ते सुधारने, दोनों के हित पूरे करने वाला सहयोग, चीन-भूटान सीमा वार्ताओं को बढ़ावा देने और त्रिस्तरीय रोडमैप के साथ आगे बढ़ने पर ज़ोर दिया गया. चीन की ओर से दिखाए जा रहे उत्साह से सीमा वार्ताओं को आगे बढ़ाने और इलाक़े में अपने रणनीतिक और रुतबे से जुड़े हित साधने को लेकर उसकी बढ़ती हसरतें ज़ाहिर होती हैं.
भूटान के साथ विवाद निपटाने के लिए चीन अक्सर साम दाम दंड भेद की नीति अपनाता रहा है. सहायता और जनता के बीच संपर्कों के प्रस्ताव देकर चीन ने भूटान को रिझाने की तमाम कोशिशें की हैं. अप्रैल 2022 में चीन ने कोविड-19 से मुक़ाबले के लिए भूटान को मेडिकल आपूर्ति भी पहुंचाई थी.
हालांकि, पिछले कुछ सालों में उसकी ज़ोर ज़बरदस्ती भी बढ़ गई है. इसकी शुरुआत 1990 के दशक के आख़िर में हुई थी. उस वक़्त चीन ने अपने नागरिकों को विवादित क्षेत्रों और चाराग़ाहों में बसने के लिए उकसाना शुरू किया था. बाद के दशकों में चीन ने भूटानी इलाक़ों में सड़कें, बुनियादी ढांचे और यहां तक कि पक्की बसावटों तक का निर्माण कर लिया. 2020-2021के बीच सैटेलाइट तस्वीरों से उत्तर और पश्चिम में नए गांवों के निर्माण का ख़ुलासा होता है. इन गांवों में सैन्य और पुलिस चौकियां, बस्तियां और बेहतर रूप से जुड़े सड़क और पुल तैयार कर दिए जाते हैं. चीन की धमकाने वाली गतिविधियों में इस तरह की बढ़ोतरी से भूटान के साथ सीमा विवाद ख़त्म करने की उसकी तीव्र इच्छा का पता चलता है. इस तरह वो भारत के ख़िलाफ़ सामरिक बढ़त भी हासिल करना चाहता है.
हाल के घटनाक्रमों से भारत और भूटान में चीन के विस्तारवाद से मुक़ाबले को लेकर समझदारी और तात्कालिकता में बढ़ोतरी के भी संकेत मिलते हैं. पहला, दोनों ही देश क्षेत्रवार वार्ताओं को आगे बढ़ा रहे हैं. भूटान ने तो 1990 के दशक से ही ये रुख़ अपना रखा है, जबकि भारत ने 2020 से खुले तौर पर इस दांव में दिलचस्पी दिखानी शुरू कर दी है.
ये तात्कालिकता कई वजहों से सामने आई है: दरअसल, भारत के साथ भूटान के बेहद ख़ास रिश्तों और चीन के साथ भूटान की अनसुलझी सीमाओं और राजनयिक रिश्तों के अभाव से एशियाई शक्ति बनने की चीन की हसरतों को लगातार चोट पहुंचती रही है. भारत के साथ जारी रस्साकशी के चलते भी चीन को भूटान पर दवाब डालने और भूटान के पश्चिम में विवादित इलाक़ों पर नियंत्रण क़ायम करने की ज़रूरत महसूस होती है. भूटान का पश्चिमी क्षेत्र, भारत के ख़िलाफ़ सिलिगुड़ी गलियारे की ओर से चीन की आक्रामक तैनाती में भारी मज़बूती ला देता है. 1990 में चीन ने भूटान को उत्तर के विवादग्रस्त इलाक़ों के बदले पश्चिम के विवादित इलाक़ों की अदला-बदली करने का भी प्रस्ताव दिया था. एक और अहम बात ये है कि अमेरिका और भारत के साथ चीन के बढ़ते तनावों से भूटान जैसे ग़ैर-दोस्ताना मुल्क से संभावित चुनौतियों को लेकर चीन की चिंताएं और बढ़ जाती हैं. दरअसल चीन को डर है कि तिब्बत में संभावित अशांति फैलाने में भूटान मददगार की भूमिका निभा सकता है.
दूसरी ओर,हाल के घटनाक्रमों से भारत और भूटान में चीन के विस्तारवाद से मुक़ाबले को लेकर समझदारी और तात्कालिकता में बढ़ोतरी के भी संकेत मिलते हैं. पहला, दोनों ही देश क्षेत्रवार वार्ताओं को आगे बढ़ा रहे हैं. भूटान ने तो 1990 के दशक से ही ये रुख़ अपना रखा है, जबकि भारत ने 2020 से खुले तौर पर इस दांव में दिलचस्पी दिखानी शुरू कर दी है.बताया जाता है कि गलवान में चीन के साथ बढ़ते तनावों के बीच भारत ने भूटान से चीन के साथ अपने भू-क्षेत्रीय विवाद सुलझाने को कहा था, ताकि ये तीनों किरदार भौगोलिक तौर पर जटिल त्रिकोणीय इलाक़ों पर ध्यान लगा सकें. जुलाई में भूटान के विदेश मंत्री ने अपनी सफ़ाई में ज़ोर देकर कहा था कि 2021 के MoUके तहत चीन के साथ केवल द्विपक्षीय मसलों के समाधान पर बल दिया गया है, और इससे पश्चिम के सरहदी त्रिकोण वाले इलाक़ों पर कोई असर नहीं पड़ेगा.
दूसरा, ऐसा लगता है कि दोनों ही देश 2012 के समझौते का इस्तेमाल कर चीन के विस्तारवाद पर नकेल कसने में पारस्परिक दिलचस्पी दिखा रहे हैं. 2017 में डोकलाम में जारी तनातनी के बीच भारत ने 2012 के समझौते का पालन नहीं करने को लेकर चीन की कड़ी आलोचना की थी. समझौते में कहा गया था कि त्रिकोणीय इलाक़ों में सभी पक्षों के साथ वार्ताओं के विचार को शामिल किया जाएगा. हालांकि भूटानी इलाक़ों में सड़क निर्माण करने को लेकर चीन की आलोचना करने के बावजूद डोकलाम संकट के वक़्त भूटान ने ऐसा कोई बयान जारी नहीं किया था. बहरहाल त्रिपक्षीय रूप से विवाद का निपटारा करने को लेकर भूटान के ताज़ा बयानों से ऐसा लगता है कि वो इस समझौते में पहले से ज़्यादा दिलचस्पी ले रहा है. साथ ही भारतीय चिंताओं का आदर करते हुए उसके रुख़ के हिसाब से आगे बढ़ रहा है.
इस तात्कालिकता और समझ के बावजूद कई चुनौतियां सामने खड़ी हैं:
पहली चुनौती तो यही है कि क्या त्रिकोण वाले इलाक़ों पर भारत के साथ चर्चा करने को चीन तैयार होगा या नहीं. चीन की रज़ामंदी के मायने ये होंगे कि वो भूटान-चीन सीमा विवाद को द्विपक्षीय मसला समझने की अपनी दशकों पुरानी नीति का त्याग कर रहा है. चीन के साथ भारत की बढ़ती रस्साकशी और पश्चिम के विवादित इलाक़ों की सामरिक अहमियत के मद्देनज़र चीन के रुख़ में ऐसे बदलाव के आसार ना के बराबर हैं.
चीन के साथ राजनयिक रिश्तों की शुरुआत के लिए भूटान को P-5 देशों में से किसी के साथ भी राजनयिक रिश्ते नहीं रखने की अपनी नीति का त्याग करना होगा. भूटान ने महाशक्तियों के स्तर पर होने वाली राजनीति से परे रहने के लिए ये नीति अपना रखी है.
भूटान के लिए दूसरी चुनौती ये है कि उसे पश्चिम के विवादित इलाक़ों में चीन के बढ़ते विस्तारवादी रुख़पर भारत की चिंताओं का निपटारा करनाहोगा. भारत ने कई मौक़ों पर भूटान को चीन के बढ़ते घुसपैठ के बारे में बताकर आगाह भी किया है. जुलाई 2022 में भूटान में चीनी निर्माणों से जुड़ी सैटेलाइट तस्वीरें सामने आने के बाद भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा था कि वो सुरक्षा से जुड़े इन तमाम घटनाक्रमों पर नज़दीकी से नज़र बनाए हुए है.उसी महीने भारत के थल सेना प्रमुख ने भूटानी राजा के साथ रक्षा सहयोग को आगे बढ़ाने के अवसरों पर चर्चा की थी. ग़ौरतलब है कि भूटान के राजा ही वहां प्रतिरक्षा और सुरक्षा से जुड़े मसलों के वास्तविक प्रधान हैं. इस मौक़े पर भारतीय थल सेना प्रमुख ने भूटानी थल सेना के मुखिया समेत कई दूसरे अहम नेताओं से भी बातचीत की थी. सितंबर 2022 में भूटान के राजा ने द्विपक्षीय संबंध मज़बूत करने के इरादे से भारत के प्रधानमंत्री और विदेश सचिव से भी मुलाक़ात की. दरअसल, लगातार जारी घुसपैठों से निपटने को लेकर भूटान के पास ना तो पर्याप्त तैनाती है और ना ही ज़रूरी साज़ो सामानों से जुड़ी क़ाबिलियत. इसके बावजूद वो भारत से और ज़्यादा मदद मांगने से हिचकता है क्योंकि उसे चीन की ओर से और ज़्यादा आक्रामकता दिखाए जाने का डर सताता है. दोनों देशों के बीच लगातार बढ़ता सहयोग और घबराहट इन्हीं हालातों का नतीजा हैं.
तीसरी चुनौती ये है कि सीमा विवादों के हल को लेकर चीन की नीति में भूटान के साथ राजनयिक रिश्ते स्थापित करने की चाल भी शामिल है. अमेरिका और भारत के साथ बढ़ते तनावों के बीच चीन की ऐसी मांगों में और बढ़ोतरी होने वाली है. इन घटनाक्रमों से भारत और अमेरिका चौकन्ने हो जाएंगे, साथ ही भूटान के लिए भी मुश्किलें बढ़ जाएंगीं.
वैसे तो भूटान लगातार चीन के साथ रिश्ते सुधारने को तत्पर रहा है, लेकिन गहरे जुड़ाव या राजनयिक रिश्तों की शुरुआत कई दूसरे कारकों से प्रभावित रहे हैं. प्राथमिक रूप से अपने दोनों पड़ोसियों के साथ भूटान के रिश्ते ‘ख़तरों के संतुलन‘ से जुड़े रुझान से प्रेरित रहे हैं. चीन की ज़ोर ज़बरदस्तियां बढ़ने पर भूटान ने अलग-थलग रहने की अपनी नीति का त्याग करते हुए भारत के साथ अपने रिश्ते गहरे करने शुरू कर दिए. नतीजतन भूटान लगातार भारतीय अर्थव्यवस्था, सुरक्षा गारंटी और विकास सहायता से जुड़ता चला गया. दूसरी ओर, चीन अतीत में हुए क़रारों की धज्जियां उड़ाता रहा, लगातार डराता धमकाता रहा. साथ ही नए-नए इलाक़ों पर दावे भी ठोकता रहा. ज़ाहिर है भूटान को चीन की ओर से पेश ख़तरे की धारणाओं की काट करने के लिए कोई क़वायद नहीं की गई.
भूटान का विकास मॉडल सकल राष्ट्रीय ख़ुशहाली पर आधारित है,जो चीन के साथ गहरे आर्थिक जुड़ावों को रोकने का काम करेगी. दरअसल, बीजिंग की मदद अक्सर आर्थिक और पर्यावरणीय तौर पर ग़ैर-टिकाऊ होती है. चीन की ओर से ख़तरों से जुड़ी धारणाएं ख़त्म हुए बिना यही हालात बरक़रार रहने के आसार हैं. हालांकि, चीनी राजदूत के ताज़ा दौरे से ऐसे नज़रिए में सुधार के कुछ संकेत मिलते हैं, लेकिन काफ़ी कुछ चीन की कार्रवाइयों से निर्धारित होगा. इस बीच चीन में शी जिनपिंग अपने तीसरे कार्यकाल की शुरुआत कर चुके हैं. उन्होंने तिब्बती सीमा क्षेत्रों पर तवज्जो देने का मन बनाया है. ऐसे में ख़तरों से जुड़ी मौजूदा धारणाएं क़ायम रहने के आसार हैं. एक और अहम बात ये है कि चीन के साथ राजनयिक रिश्तों की शुरुआत के लिए भूटान को P-5 देशों (संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के 5 स्थायी सदस्यों) में से किसी के साथ भी राजनयिक रिश्ते नहीं रखने की अपनी नीति का त्याग करना होगा. भूटान ने महाशक्तियों के स्तर पर होने वाली राजनीति से परे रहने के लिए ये नीति अपना रखी है.
सीमा विवादों का निपटारा भूटान के लिए बेहद दुश्वारियों भरी क़वायद होगी. हालांकि संकेत ऐसे हैं कि सभी पक्षों ने इस विवाद के ख़ात्मे में दिलचस्पी और तात्कालिकता दिखाई है. इसके बावजूद, आगे का सफ़र इस बात पर निर्भर करेगा कि इन तमाम पक्षों के हितों और ज़रूरतों के साथ कैसे सामंजस्य बिठाया जाता है. तबतक सीमा विवाद के संभावित निपटारे का लक्ष्य बेहद दूर दिखाई देता है.
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Aditya Gowdara Shivamurthy is an Associate Fellow with the Strategic Studies Programme’s Neighbourhood Studies Initiative. He focuses on strategic and security-related developments in the South Asian ...
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