6 जनवरी 2024 को पश्चिमी काबुल के हज़ारा बहुल दश्त-ए-बारची इलाके में आम लोगों से भरी एक मिनी बस पर इस्लामिक स्टेट खुरासान प्रोविंस (ISKP) ने हमला किया जिसमें पांच लोगों की मौत हो गई जबकि 15 घायल हो गए. इसके बाद अल्पसंख्यक शिया समुदाय को निशाना बनाकर ISKP ने दो और हमले किए. इसके बाद इसी तरह से तीन और हमले हुए लेकिन किसी संगठन ने इनकी ज़िम्मेदारी नहीं ली. ये हमले काबुल पर तालिबान के कब्ज़े के बाद हज़ारा समुदाय के ख़िलाफ़ ISKP के लगातार हमलों का जारी रहना है. हज़ारा समुदाय के लिए ये हिंसा का सिर्फ एक रूप है जिसका वो सामना कर रहे हैं. इसके साथ-साथ तालिबान के इस्लामिक अमीरात के द्वारा व्यवस्थात्मक ढंग से उनके ख़िलाफ़ भेदभाव और अत्याचार किया जा रहा है. जैसे-जैसे तालिबान अफ़ग़ानिस्तान में अपने पैर जमा रहा है और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय इस संगठन के साथ अपना काम-काजी संबंध विकसित कर रहा है, वैसे-वैसे ये ज़रूरी होता जा रहा है कि हज़ारा समुदाय के सामने मौजूद तालिबान और ISKP के ख़तरे के दोहरे स्वरूप यानी व्यवस्थात्मक अत्याचार और निशाना बनाकर हिंसक हमलों पर ध्यान दिया जाए.
व्यवस्थात्मक अलगाव: इस्लामिक अमीरात में हज़ारा
अफ़ग़ानिस्तान में शिया आबादी, जिनमें से ज़्यादातर हज़ारा हैं, देश की कुल जनसंख्या का लगभग 10 प्रतिशत है. तालिबान और ISKP- दोनों उन्हें 'काफिर' के तौर पर देखते हैं. अपनी जातीय और धार्मिक पहचान की वजह से हज़ारा समुदाय को हमेशा से सरकारी और गैर-सरकारी- दोनों संगठनों की हिंसा का सामना करना पड़ा है. 2021 में अपनी वापसी के बाद भले ही तालिबान ने देश के अल्पसंख्यकों, ख़ास तौर पर धार्मिक अल्पसंख्यकों, की रक्षा के लिए अपना भरोसा जताया था लेकिन सामूहिक हत्या के डर और तालिबान के पिछले शासन (1996-2001) की यादों ने बड़ी संख्या में हज़ारा समुदाय के लोगों को दूसरे देशों में पनाह लेने के लिए प्रेरित किया जैसे कि बलूचिस्तान के क्वेटा में इमामबाड़ा. हज़ारा समुदाय के कुछ तबके तालिबान को समर्थन भी देते हैं. नवंबर 2021 में अपने हितों की रक्षा के मक़सद से हज़ारा समुदाय के लगभग एक हज़ार बुजुर्गों ने काबुल में इकट्ठा होकर तालिबान के लिए अपने समर्थन का वादा किया और अमेरिका के समर्थन वाली सरकार का 'अंधेरा युग' ख़त्म होने का स्वागत किया. उन्होंने तालिबान के प्रति अपनी वफादारी की पुष्टि भी की.
हज़ारा समुदाय के लिए ये हिंसा का सिर्फ एक रूप है जिसका वो सामना कर रहे हैं. इसके साथ-साथ तालिबान के इस्लामिक अमीरात के द्वारा व्यवस्थात्मक ढंग से उनके ख़िलाफ़ भेदभाव और अत्याचार किया जा रहा है.
सत्ता में आने के फौरन बाद तालिबान ने बामियान में हज़ारा नेता अब्दुल अली मज़ारी के बुत को ध्वस्त कर दिया. ये अल्पसंख्यकों के प्रति उदार रवैये की किसी भी उम्मीद को एक झटका था. हज़ारा समुदाय को ज़बरन दूसरी जगह भेजने, उन्हें उनकी ख़ानदानी ज़मीन से हटाने और उस ज़मीन को तालिबान के समर्थकों को सौंपने की ख़बरें भी आईं. उन्हें दायकुंडी, उरुज़गन, कंधार, हेलमंड और बाल्ख प्रातों से कम दिन के नोटिस पर हटाया गया और इसके ख़िलाफ़ उन्हें किसी क़ानूनी समाधान का विकल्प भी नहीं दिया गया. हज़ारा समुदाय के लगभग 2,800 निवासियों को सितंबर 2021 में दायकुंडी और उरुज़गन के 15 गांवों से हटाया गया. हज़ारा समुदाय के लोगों की ज़मीन हड़पने की इस रणनीति का इस्तेमाल ऐतिहासिक रूप से इस समुदाय को कुचलने के लिए किया गया है. तालिबान ने अपने लिए, अपने द्वारा इस्लामिक सिस्टम तैयार करने के लिए सुधार का बहाना बनाकर हज़ारा समुदाय को सरकार की नौकरशाही और न्यायपालिका से भी अलग कर दिया. राजनीतिक व्यवस्था में उन्हें सिर्फ सांकेतिक नुमाइंदगी दी गई और मावलावी मेहदी मुजाहिद अकेले हज़ारा थे जिन्हें तालिबान ने सत्ता में आने के बाद किसी केंद्रीय प्रांत के खुफिया प्रमुख के तौर पर नियुक्त किया. हालांकि अगस्त 2022 में तालिबान के ख़िलाफ़ विद्रोह की वजह से उनकी हत्या कर दी गई. तालिबान हज़ारा समुदाय के उन सदस्यों को भी निशाना बना रहा है जिन्हें वो ख़तरा समझता है. सत्ता में आने के बाद एक्सट्राज्यूडिशियल (कानून से परे) हत्या की ख़बरें आई हैं.
अफ़ग़ानिस्तान में हालात को लेकर संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक तालिबान ने अलग-अलग समुदायों के लोगों से अपनी मुलाकात बढ़ा दी है और इस सिलसिले में उसने शिया समुदाय के प्रतिनिधियों से भी बैठक की है. लेकिन उसने देश की नौकरशाही और सरकार के दूसरे सभी अंगों पर अपने नियंत्रण का इस्तेमाल हज़ारा समुदाय को बेदखल करने और अलग-थलग करने के लिए किया है. 1 जनवरी से तालिबान का कुख्यात सदाचार और दुराचार (वर्चु एंड वाइस) मंत्रालय ‘ख़राब ढंग से हिजाब’ पहनने पर महिलाओं को हिरासत में ले रहा है. इन गिरफ्तारियों की शुरुआत हज़ारा समुदाय के वर्चस्व वाले इलाकों से हुई और कई हज़ारा नेताओं ने इस अभियान को तालिबान के द्वारा चुनकर निशाना बनाने के रूप में देखा है. महिलाओं के अधिकारों और शिक्षा पर पाबंदी समेत तालिबान की भेदभावपूर्ण परंपराओं ने हज़ारा समुदाय की महिलाओं को बहुत ज़्यादा प्रभावित किया है. हज़ारा समुदाय के लिए आई मदद को तालिबान ने उन गुटों तक पहुंचा दिया जो उसका समर्थन करते हैं. पिछले साल तालिबान के अधीन उच्च शिक्षा मंत्रालय ने भी एक हुक्मनामा जारी किया जिसके तहत शिया संप्रदाय से जुड़ी या शियाओं, सलाफी और तालिबान के राजनीतिक विरोधियों द्वारा लिखी गई और हनाफी न्यायशास्त्र (ज्यूरिस्प्रूडेंस) से अलग मानी गई सभी किताबों को हटाने का आदेश दिया गया था. तालिबान ने शियाओं और सुन्नियों के बीच शादी पर भी पाबंदी लगा दी. कई प्रांतों में उलेमा काउंसिल के गठन में भी किसी शिया या महिला सदस्य को शामिल नहीं किया गया.
तहरीक-ए-तालिबान (TTP) के ख़तरे की वजह से पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के ख़राब होते संबंध ने भी परोक्ष रूप से अफ़ग़ानिस्तान के हज़ारा समुदाय पर ख़राब असर डाला है. ऐतिहासिक रूप से हज़ारा समुदाय ने अपने देश में निर्दयी कार्रवाई और दमन से बचने के लिए पाकिस्तान में पनाह ली है. पाकिस्तान सरकार के द्वारा नवंबर 2023 में अफ़ग़ान शरणार्थियों को निकालने के फैसले ने हज़ारा समुदाय को ख़तरे में डाल दिया है क्योंकि उन्हें अपने देश जाने पर अत्याचार का शिकार बनने का डर है. जब से अफ़ग़ान शरणार्थियों को बाहर करने की योजना का ऐलान हुआ है, तब से कई को गिरफ़्तार किया गया है और उन्हें उनके काम-काज से निकाला गया है.
ISKP के रडार पर
सत्ता में तालिबान की वापसी के पहले से ही हज़ारा समुदाय के दबदबे वाले इलाकों में शैक्षणिक संस्थानों और मेटरनिटी वार्ड पर ISKP निशाना साधता था. पिछले कुछ वर्षों में भीड़-भाड़ वाली जगहों, स्कूलों, मस्जिदों और अस्पताल के वार्ड में हज़ारा समुदाय पर हमले किए गए. 2018 में UNAMA (यूनाइटेड नेशन असिस्टेंस मिशन इन अफ़ग़ानिस्तान) ने ISKP के द्वारा शिया समुदाय पर हमले की 19 घटनाओं जबकि 2019 में 10 घटनाओं के बारे में बताया. ISKP के द्वारा किए जाने वाले हमलों की तीव्रता में काबुल पर तालिबान के कब्ज़े के बाद काफी उछाल आया है. अक्टूबर 2021 में ISKP ने कंधार में सबसे बड़ी शिया मस्जिद पर हमला किया जिसमें लगभग 40 लोगों की मौत हो गई. ISKP एक साथ अल्पसंख्यक समूहों और बड़ी हस्तियों पर निशाना साधने की रणनीति का पालन कर रहा है. UNAMA के अनुसार, तालिबान के कब्ज़े के बाद से पहले 21 महीनों में हज़ारा समुदाय के लगभग 345 लोगों की हत्या हुई या उन्हें घायल किया गया. 1 अगस्त और 7 नवंबर 2023 के बीच UN के आंकड़े के मुताबिक ISKP के द्वारा नागरिकों, ख़ास तौर पर शिया समुदाय के लोगों, पर हमले की आठ घटनाएं हुईं.
महिलाओं के अधिकारों और शिक्षा पर पाबंदी समेत तालिबान की भेदभावपूर्ण परंपराओं ने हज़ारा समुदाय की महिलाओं को बहुत ज़्यादा प्रभावित किया है.
अफ़ग़ानिस्तान में सरकार और सभी मौजूदा ढांचों पर तालिबान के कब्ज़े और हज़ारा समुदाय के साथ तालिबान की ऐतिहासिक दुश्मनी ने ISKP जैसे संगठनों के लिए हज़ारा समुदाय पर हमला जारी रखने और निशाना बनाकर हत्या करने में बढ़ावा देने का काम किया होगा. कई विरोधी समूह इसे तालिबान और ISKP के बीच मेल-जोल के एक बिंदु के तौर पर भी देखते हैं और दोनों के बीच इस मुद्दे पर तालमेल की संभावना को खारिज नहीं करते हैं.
हज़ारा समुदाय के अत्याचार पर ध्यान खींचने और उनके ‘नरसंहार’ को स्वीकार करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से अनुरोध करने के उद्देश्य से पिछले महीने दुनिया भर के 30 से ज़्यादा शहरों में कई संगठनों और कार्यकर्ताओं ने हाथ मिलाया. उन्होंने हज़ारा समुदाय के लोगों पर हमला करने वाले अपराधियों पर कार्रवाई और दोष तय करने की मांग की. पिछले ढाई वर्षों में अंतरराष्ट्रीय समुदाय और तालिबान के बीच संबंध का स्तर बढ़ गया है. वैसे तो अलग-अलग देशों ने तालिबान को महिलाओं और जातीय अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधित्व बढ़ाने और शासन व्यवस्था, सुरक्षा एवं अन्य मांगों का पालन करने का अनुरोध किया है लेकिन सहयोग के बदले तालिबान को अधिक कदम उठाने के लिए प्रेरित करने के मामले में नाकामी हाथ लगी है. तालिबान सरकार ने पिछले दिनों काबुल में एक क्षेत्रीय सहयोग की पहल से जुड़ी बैठक की जिसमें 11 पड़ोसी देशों के प्रतिनिधि शामिल हुए. इनमें भारत, चीन और रूस के प्रतिनिधि भी शामिल थे. तालिबान ने इस मंच का इस्तेमाल अपने इस नैरेटिव को तय करने के साधन के रूप में किया कि वो अंतरराष्ट्रीय समुदाय को किस तरह अपने साथ जुड़ने हुए देखना चाहता है यानी व्यापार एवं आर्थिक संपर्क और क्षेत्रीय सुरक्षा पर ध्यान जबकि महिलाओं और हाशिए पर मौजूद दूसरे समूहों को शामिल करने से जुड़े सवाल पीछे. ऐसा होने पर अफ़ग़ानिस्तान के अल्पसंख्यक समूह और भी किनारे हो जाएंगे. वो हिंसा से और ज़्यादा प्रभावित बन जाएंगे और इस्लामिक अमीरात को अपनी भेदभावपूर्ण नीतियों और नौकरशाही की मनमानी को जारी रखने में आसानी होगी.
शिवम शेखावत ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में जूनियर फेलो हैं.
अंजलि श्रीवास्तव ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में रिसर्च इंटर्न हैं.
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