Author : Pratnashree Basu

Expert Speak Raisina Debates
Published on Feb 12, 2024 Updated 0 Hours ago

उत्तर कोरिया के शासक किम जोंग उन ने ऐलान किया है कि अब उनका देश कभी भी दक्षिण कोरिया के साथ सुलह का प्रयास नहीं करेगा. किम जोंग उन के इस ऐलान से कोरियाई प्रायद्वीप ही नहीं, बल्कि पूरी वैश्विक बिरादरी के समक्ष एक पेचीदा स्थिति पैदा हो गई है.

सैन्य ताक़त के प्रदर्शन का उद्देश्य: उत्तर कोरिया का इरादा और उत्तर पूर्व एशिया की चिंताएं!

 उत्तर कोरिया के तानाशाह शासक किम जोंग उन ने 15 जनवरी को दक्षिण कोरिया को लेकर अपने उस ऐलान से सनसनी फैला दी, जिसमें दक्षिण कोरिया के साथ एकीकरण की सभी कोशिशों को विराम देने की बात कही गई थी. किम ने यह भी कहा था कि वे अपने देश के संविधान से एकीकरण से संबंधित अनुच्छेद को हटा देगें. इतना ही नहीं किम जोंग उन ने यह भी ऐलान किया कि अब से दक्षिण कोरिया सबसे प्रमुख शत्रु माना जाएगा. उन्होंने दोनों देशों में सुलह को अंज़ाम देने के लिए बनाई गई सभी सरकारी एजेंसियों को भी समाप्त करने का फरमान सुनाया. किम जोंग उन द्वारा यह ऐलान हाल ही में प्योंगयांग की ओर से अपनी सैन्य ताक़त का ज़बरदस्त प्रदर्शन करने के बाद किया गया है. इन ताज़ा घटनाक्रमों से लगता है कि उत्तर पूर्व एशिया में वर्ष 2024 की शुरुआत मुश्किल हालातों के साथ होने वाली है. उल्लेखनीय है कि 5 से 7 जनवरी के बीच उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया के बीच तनाव की स्थित बन गई थी. उत्तर कोरिया की सेना ने दक्षिण कोरियों के साथ विवादित पश्चिमी समुद्री सीमा के पास ज़बरदस्त गोलाबारी की थी. इस घटना के बाद प्योंगयांग ने 14 जनवरी को एक सॉलिड-फ्यूल हाइपरसोनिक मिसाइल लॉन्च कर खलबली मचा दी थी. इससे पहले 9 जनवरी को उत्तर कोरिया ने ऐलान किया था कि उसने "पानी के नीचे परमाणु हथियार प्रणाली" का सफल परीक्षण किया है.

 उत्तर कोरिया द्वारा दक्षिण कोरिया के साथ भविष्य में किसी भी एकजुटता की संभावना को सिरे से ख़ारिज करने का ऐलान देखा जाए तो कोरियाई प्रायद्वीप के लिहाज़ से बेहद महत्वपूर्ण भी है और चिंता में भी डालने वाला है. 

उत्तर कोरिया द्वारा दक्षिण कोरिया के साथ भविष्य में किसी भी एकजुटता की संभावना को सिरे से ख़ारिज करने का ऐलान देखा जाए तो कोरियाई प्रायद्वीप के लिहाज़ से बेहद महत्वपूर्ण भी है और चिंता में भी डालने वाला है. जिस प्रकार से उत्तर कोरिया के नज़रिए में परिवर्तन देखा जा रहा है और किम जोंग उन ने जिस प्रकार से सख़्त बयान दिया है कि उत्तर कोरिया युद्ध शुरू नहीं करेगा, लेकिन युद्ध की परिस्थिति में पीछे भी नहीं हटेगा, यह सारे घटनाक्रम कई तरह की चिंताओं और आशंकाओं को जन्म देते हैं. किम जोंग उन द्वारा दक्षिण कोरिया के साथ सुलह और एकीकरण के प्रयासों को समाप्त करने का ऐलान, देखा जाए तो दोनों देशों को एक ही सरकार के अंतर्गत लाने की दशकों पुरानी आकांक्षाओं के ज़मीदोज़ होने जैसा है. उत्तर कोरिया द्वारा युद्ध को लेकर जिस तरह की बयानबाज़ी की गई है, उससे कोरियाई प्रायद्वीप में न केवल तनाव बढ़ेगा, बल्कि अनिश्चितिता का माहौल भी पैदा होगा. ज़ाहिर है कि प्योंगयांग की उत्तर कोरिया को परमाणु हथियार संपन्न देश बनाने की बढ़ती महत्वाकांक्षाओं की वजह से यह पूरा क्षेत्र लंबे वक़्त से वैश्विक चिंता का केंद्र बिंदु बना हुआ है. इन हालातों में अगर दोनों ही पक्षों की तरफ से विवाद को बढ़ावा देने की कोई कोशिश की जाती है, चाहे वो कोशिश अनजाने में ही क्यों न की गई हो, लेकिन वो दोनों देशों के बीच सैन्य टकराव की आशंका बढ़ाने का काम करेगी.

 

उत्तर कोरिया की यह घोषणा न केवल उसके पड़ोसी देशों के लिए, बल्कि अमेरिका के लिए भी किसी कूटनीतिक चुनौती से कम नहीं है. ज़ाहिर है कि दक्षिण कोरिया, चीन, जापान और रूस जैसे सभी मुल्कों ने इस पूरे क्षेत्र में स्थिरता का माहौल बनाए रखने के लिए पुरजोर कोशिश की है, साथ ही उत्तर कोरिया के साथ परमाणु निरस्त्रीकरण की चर्चाओं को आगे बढ़ाने में भी अहम भूमिका निभाई है. गौरतलब है कि जिस प्रकार से उत्तर कोरिया ने अचानक अपने दृष्टिकोण एवं मकसद में बदलाव किया है, उसने क्षेत्रीय रणनीतियों एवं कूटनीतिक पहलों का नए सिरे से मूल्यांकन किए जाने की ज़रूरत जताई है. उत्तर कोरिया का सबसे नज़दीकी पड़ोसी दक्षिण कोरिया इस ताज़ा घटनाक्रम से सबसे ज़्यादा प्रभावित देश है, इसलिए ख़ास तौर पर उसके लिए सबसे अधिक कूटनीतिक पहलें करना आवश्यक हो गया है. दक्षिण कोरिया की सरकार ने दशकों से अपनी नीतियों के माध्यम से उत्तर कोरिया के साथ शांतिपूर्ण संबंध स्थापित करने की कोशिशें की हैं और उसके साथ सुलह की संभावना के हर संभव प्रयास किए हैं. उत्तर कोरिया द्वारा जिस तरह से दक्षिण कोरिया के साथ एकजुटता के प्रयासों को सिरे से ख़ारिज किया गया है, उसने सियोल को भी तमाम मुद्दों पर फिर से सोचने के लिए विवश कर दिया है. इनमें अपनी सुरक्षा को चाकचौबंद करने के बारे में सोचने के साथ ही विभिन्न देशों के साथ अपने कूटनीतिक संबंधों को मज़बूती देना, ख़ास तौर पर टोक्यो और वॉशिंगटन के साथ अपने राजनयिक रिश्तों को सशक्त करना शामिल है. 

 उत्तर कोरिया ने जिस प्रकार से अपने इरादों को ज़ाहिर किया है, उसने कहीं न कहीं सुरक्षा को लेकर जापान को बेहद चिंतित कर दिया है. उल्लेखनीय है कि इस इलाक़े में अमेरिका की अच्छी-ख़ासी सैन्य मौज़ूदगी है और उत्तर कोरिया के साथ परमाणु निरस्त्रीकरण से संबंधित बातचीत में भी अमेरिका की भूमिका प्रमुख रही है.

उल्लेखनीय है कि वॉशिंगटन तो पहले से ही दक्षिण कोरिया के साथ अपने संबंधों को बढ़ाने के लिए सक्रियता से जुटा है. प्योंगयांग द्वारा जनवरी 2024 के पहले हफ्ते में विवादित समुद्री सीमा पर गोलाबारी की घटना के तत्काल बाद इन तीनों देशों ने त्रिपक्षीय नौसैनिक अभ्यास भी किया है. किम जोंग उन की की घोषणा पर प्रतिक्रिया देते हुए सियोल की तरफ से आधिकारिक बयान में कहा गया कि वह दोनों देशों के एकीकरण से संबंधित अपनी कोशिशों और पहलों को नहीं रोकेगा. इन पहलों में दोनों देशों के बीच पारस्परिक संबंधों को सुधारने के लिए एकीकरण ब्लूप्रिंट की कमियों को दूर कर उसे और बेहतर करना भी शामिल है. ज़ाहिर है कि उत्तर कोरिया की परमाणु ताक़त एवं क्षेत्रीय अस्थिरता को लेकर जापान काफ़ी अर्से से अपनी चिंता जताता रहा है और किम के इस नए ऐलान से उसका सबसे अधिक परेशान होना लाज़िमी है. उत्तर कोरिया ने जिस प्रकार से अपने इरादों को ज़ाहिर किया है, उसने कहीं न कहीं सुरक्षा को लेकर जापान को बेहद चिंतित कर दिया है. उल्लेखनीय है कि इस इलाक़े में अमेरिका की अच्छी-ख़ासी सैन्य मौज़ूदगी है और उत्तर कोरिया के साथ परमाणु निरस्त्रीकरण से संबंधित बातचीत में भी अमेरिका की भूमिका प्रमुख रही है. ऐसे में इन बदले हुए हालातों को संभालने में कूटनीतिक लिहाज़ से अमेरिका को अपनी ओर से अधिक प्रयास करने चाहिए. कुल मिलाकर बदली परिस्थितियों में वॉशिंगटन को न सिर्फ उत्तर कोरिया के साथ बातचीत को दौरान अपने नज़रिए को बदलना होगा, बल्कि दूसरे क्षेत्रीय साझीदारों के साथ नज़दीकी बढ़ाने के साथ ही सहयोग को मज़बूत करने पर भी ध्यान देना होगा.

 

हो सकता है कि किम जोंग उन ने जो ऐलान किया है, उसके पीछे घरेलू मोर्चे पर डंवाडोल स्थितियों को मज़बूत करने की कोशिश हो. ऐसा इसलिए है, क्योंकि किम के भाषण में आर्थिक लक्ष्यों को हासिल करने और लोगों की आजीविका को बेहतर बनाने जैसे मुद्दे भी शामिल थे. लेकिन यह भी हो सकता है कि किम के इस ऐलान के कारण पहले से ही खाद्यान्न और ऊर्जा की कमी से जूझ रहे उत्तर कोरिया की अर्थव्यवस्था और ज़्यादा संकट में घिर जाए. वास्तविकता में उत्तर कोरिया छोड़कर दक्षिण कोरिया जाने वाले नागरिकों की तादात वर्ष 2023 में तीन गुना हो गई है. अपने परमाणु और मिसाइल कार्यक्रमों एवं मानवाधिकारों के हनन की वजह से उत्तर कोरिया वर्षों से तमाम तरह के प्रतिबंधों को झेल रहा है. इन प्रतिबंधों की वजह से विदेशी मुद्रा, टेक्नोलॉजी और विभिन्न वस्तुएं उत्तर कोरिया की पहुंच से दूर हो चुकी हैं. वर्तमाम में जिस तरह से उत्तर कोरिया ने अपने बदले हुए इरादों को दुनिया के सामने रखा है, उससे यह सवाल उठना लाज़िमी है कि क्या इसके मद्देनज़र वैश्विक समुदाय को उस पर लगाए गए प्रतिबंधों को जारी रखना चाहिए या फिर उनमें कुछ ढील देने चाहिए. दूसरी तरफ, सियोल की ओर से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) से कहा गया है कि वो प्योंगयांग द्वारा लगातार अपने परमाणु कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के मसले पर कार्रवाई करे. वर्ष 2006 में प्योंगयांग ने अपना पहला परमाणु परीक्षण किया था और उसके बाद उत्तर कोरिया पर तमाम प्रतिबंध थोपे गए थे, जबकि पिछले कुछ वर्षों में इन प्रतिबंधों को और भी कड़ा कर दिया गया था. इस सबके बावज़ूद UNSC उत्तर कोरिया के परमाणु और बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रमों पर लगाम लगाने में नाक़ाम साबित हुआ है.

 फिलहाल इस क्षेत्र में जो परिस्थितयां बनी हैं, भू-राजनीतिक उथल-पुथल के बावज़ूद उन पर न सिर्फ़ समझदारी से सोच-विचार करने की ज़रूरत है, बल्कि कूटनीतिक संपर्कों के ज़रिए क्षेत्र में शांति और स्थिरता बरक़रार रखना आवश्यक है.

मौज़ूदा वक़्त में भू-राजनीतिक परिस्थितियां अनुकूल नहीं है और तनाव से भरी हुई हैं. ऐसे में प्योंगयांग की तरफ से संयम बरतने के बजाए आक्रामक रवैया अपनाया गया है और भड़काऊ बयानबाजी की गई है. ऐसा लग रहा है कि प्योंगयांग द्वारा ऐसा बर्ताव आगे भी किया जाएगा, साथ ही सैन्य अभ्यास, मिसाइलों का परीक्षण और गोलाबारी जैसी घटनाओं को बढ़ाया जाएगा. इतना ही नहीं, हाल में जैसे उत्तर कोरिया द्वारा सुलह की कोशिशों के प्रति अनिच्छा जताई गई है, आने वाले दिनों में उसके द्वारा इससे भी कड़ा क़दम उठाने का ऐलान किया जा सकता है, लेकिन ऐसी कतई संभावना नज़र नहीं आ रही है कि वह हमले जैसी कोई कार्रवाई को अंज़ाम दे सकता है. ऐसा इसलिए है क्योंकि उत्तर कोरिया को यह अच्छी तरह से मालुम है कि अगर वह हमले का दुस्साहस करता है, तो उसे वॉशिंगटन का सामना करना पड़ेगा. ज़ाहिर है कि उत्तर कोरिया किसी भी परिस्थिति में अमेरिका से टकराव नहीं करना चाहता है, क्योंकि फिलहाल वो ऐसा करने की स्थिति में नहीं है. वर्तमान में जिस तरह से उत्तर कोरिया ने दक्षिण कोरिया के साथ अपनी सुलह की कोशिशों को आगे नहीं बढ़ाने का ऐलान किया है, साथ ही युद्ध की किसी भी संभावना में पीछे नहीं हटने का इरादा प्रकट किया है, उसने कोरियाई प्रायद्वीप ही नहीं, बल्कि दुनिया के तमाम देशों के समक्ष एक विकट स्थिति पैदा करने का काम किया है. फिलहाल इस क्षेत्र में जो परिस्थितयां बनी हैं, भू-राजनीतिक उथल-पुथल के बावज़ूद उन पर न सिर्फ़ समझदारी से सोच-विचार करने की ज़रूरत है, बल्कि कूटनीतिक संपर्कों के ज़रिए क्षेत्र में शांति और स्थिरता बरक़रार रखना आवश्यक है. उत्तर कोरिया कब क्या करेगा, इसके बारे में कुछ भी कहा नहीं जा सकता है. पूर्व में भी उत्तर कोरिया अप्रत्याशित क़दम उठा चुका है, ऐसे में उसने जिस तरह से अपने नज़रिए को लेकर यू-टर्न लिया है, उसमें यह ज़रूरी हो जाता है कि क्षेत्र में शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए बेहद सावधानी व सतर्कता बरती जाए.


प्रत्नाश्री बसु ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में एसोसिएट फेलो हैं.

ये लेखक के निजी विचार हैं.

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