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Published on Jan 08, 2025 Updated 0 Hours ago

श्रीलंका ने एक साल पहले विदेशी रिसर्च पोतों को अपने बंदरगाहों पर रुकने पर प्रतिबंध लगाया था, जिसकी समयसीमा समाप्त हो गई है. ऐसे में नज़रें अब श्रीलंका की नई दिसानायके सरकार पर हैं कि वो इस दिशा में क्या क़दम उठाती है, इससे उसकी भविष्य की रणनीति के बारे में भी पता चलेगा.

चीन के 'अनुसंधान पोतों' पर प्रतिबंध हटाना: श्रीलंका के लिए एक परीक्षा

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श्रीलंका के राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके पद संभालने के बाद अपनी पहली विदेशी यात्रा के दौरान भारत आए थे और यहां उन्होंने भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ बातचीत की थी. बाद में उन्होंने बताया था कि पीएम मोदी से वार्ता के दौरान उन्होंने आश्वासन दिया है कि “श्रीलंका अपनी ज़मीन को किसी भी तरह से भारत के हितों एवं क्षेत्रीय स्थिरता व अखंडता के ख़िलाफ़ इस्तेमाल नहीं होने देगा.” ज़ाहिर है कि श्रीलंका की ओर से “विदेशी रिसर्च जहाजों” (जिन्हें भारत और दुनिया के कई दूसरे देशों द्वारा “जासूसी जहाज” माना जाता है) पर साल भर पहले लगाए गए प्रतिबंध को हटाना, यानी श्रीलंकाई समुद्री क्षेत्र में कार्य करने वाले ऐसे विदेशी जहाजों के वहां के बंदरगाहों पर लंगर डालने पर लगी रोक को हटाना, देखा जाए तो गंभीर चिंता का मुद्दा है.

 

राष्ट्रपति दिसानायके ने साफ तौर पर आश्वस्त किया है कि वे यह सुनिश्चित करेंगे कि श्रीलंकाई क्षेत्र का उपयोग ऐसे किसी भी काम के लिए नहीं किया जाए, जिससे भारत के सुरक्षा हितों पर असर पड़े.

भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने दोनों देशों के नेताओं की बैठक के बाद संवाददाता सम्मेलन में कहा था कि "शोध जहाजों के रुकने जैसे मसलों को लेकर हमें लगता है कि श्रीलंकाई सरकार इन विषयों पर विचार कर रही है. ऐसे कई मुद्दे हैं, जिन पर श्रीलंकाई सरकार को सोचने की ज़रूरत है....हमने बातचीत के दौरान इस क्षेत्र में अपने सुरक्षा हितों और उनकी संवेदनशीलता के बारे में स्पष्ट संकेत दिया है. राष्ट्रपति दिसानायके ने साफ तौर पर आश्वस्त किया है कि वे यह सुनिश्चित करेंगे कि श्रीलंकाई क्षेत्र का उपयोग ऐसे किसी भी काम के लिए नहीं किया जाए, जिससे भारत के सुरक्षा हितों पर असर पड़े. इसलिए, हम इन सभी मुद्दों पर श्रीलंका सरकार के साथ बातचीत जारी रखेंगे और हमें पूरा भरोसा है कि श्रीलंकाई क्षेत्र में विदेशी रिसर्च पोतों के ठहरने जैसे अहम मसलों पर आगे भी श्रीलंका की सरकार का पूरा तवज्जो रहेगा."

 

ज़ाहिर है कि श्रीलंका में विदेशी शोध जहाजों, विशेष रूप से चीनी रिसर्च पोतों का मुद्दा इसलिए बेहद अहम हो गया है क्योंकि श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे की सरकार द्वारा लगाया गया "विदेशी रिसर्च जहाजों" पर एक साल का प्रतिबंध पिछले साल के अंत में समाप्त हो गया है. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या श्रीलंका में राष्ट्रपति दिसानायके के नेतृत्व वाली नई सरकार विदेशी शोध जहाजों पर पूर्व में लगाए गए प्रतिबंध को अनिश्चित काल के लिए बढ़ाएगी, या इस प्रतिबंध को हटाएगी या फिर ऐसे जहाजों को रिसर्च जैसी गतिविधियां संचालित नहीं करने की शर्त के साथ श्रीलंकाई बंदरगाहों पर लंगर डालने की मंजूरी प्रदान करेगी. गौरतलब है कि श्रीलंका में पूर्व की विक्रमसिंघे सरकार ने भारत और अमेरिका द्वारा आपत्ति जताए जाने के बाद ही चीनी रिसर्च जहाजों की आवाजाही पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया था. ज़ाहिर है कि चीनी शोध पोतों ने जब डिएगो गार्सिया में अमेरिकी सैन्य अड्डे से कुछ ही दूर पर श्रीलंका के दक्षिणी समुद्री क्षेत्र से आवाजाही शुरू कर दी थी, तब अमेरिका ने इस पर अपनी कड़ी आपत्ति जताई थी. 

 

विदेशी शोध जहाजों को सोच-समझकर अनुमति देगी श्रीलंका सरकार

श्रीलंकाई राष्ट्रपति दिसानायके का जनवरी 2025 के मध्य में चीन की यात्रा पर जाने का कार्यक्रम है. यहां महत्वपूर्ण बात यह है कि श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपतियों की तर्ज पर राष्ट्रपति दिसानायके ने भी पद संभालने के बाद अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए भारत को चुना है. ऐसे में भारतीय विश्लेषकों को यह समझना चाहिए कि श्रीलंका एक संप्रभु राष्ट्र है और वहां की नई जेवीपी यानी जनता विमुक्ति पेरामुना सरकार पर भी देश की पूर्व की सरकारों की भांति ही घरेलू स्तर पर दबाव होगा कि किस पड़ोसी देश के साथ संबंधों को प्राथमिकता देनी है और किसके साथ रिश्ते प्रगाढ़ करने हैं. ज़ाहिर है कि राष्ट्रपति दिसानायके की पार्टी यानी जेवीपी की शुरुआत के दौरान उग्रवादी विचारधारा थी और कहीं न कहीं भारत विरोधी रुख था. हालांकि, धीरे-धीरे जेवीपी की भारत विरोधी सोच कमज़ोर हुई है. दूसरी और जेवीपी को चीनी समर्थक माना जाता है, लेकिन वास्तविकता में जेवीपी कभी चीन की इतनी अधिक समर्थक भी नहीं रही है, जितना कि इसके मार्क्सवादी विचारों के प्रति झुकाव से प्रतीत होता है.

 

राष्ट्रपति दिसानायके के भारत दौरे के बाद अपनी साप्ताहिक न्यूज़ ब्रीफिंग में श्रीलंकाई सरकार के कैबिनेट प्रवक्ता नलिंडा जयतिसा ने कहा कि श्रीलंका सरकार विदेशी रिसर्च पोतों को "केस प्रति केस" आधार पर यानी हर मामले की पूरी जांच-परख करने के बाद ही अनुमति देगी. हालांकि, कोलंबो को पीएलए-एन मेडिकल शिप पीस आर्क के श्रीलंकाई समुद्री क्षेत्र में आने को लेकर कोई दिक़्क़त नहीं है. इस मामले में कैबिनेट प्रवक्ता जयतिसा ने कहा कि भारत और चीन के साथ श्रीलंका "कूटनीतिक लिहाज" से बातचीत करेगा और आगे बढ़ेगा, लेकिन उन्होंने इसके बारे में विस्तार के साथ ज़्यादा कुछ भी नहीं बताया.

 कैबिनेट प्रवक्ता जयतिसा ने कहा कि भारत और चीन के साथ श्रीलंका "कूटनीतिक लिहाज" से बातचीत करेगा और आगे बढ़ेगा, लेकिन उन्होंने इसके बारे में विस्तार के साथ ज़्यादा कुछ भी नहीं बताया.

श्रीलंका सरकार के कैबिनेट प्रवक्ता जयतिसा ने विदेशी शोध जहाजों को अनुमति देने के लिए जिस दिन अपनी सरकार के नज़रिए को सामने रखा था, उसी दिन चीनी पीपुल्स पॉलिटिकल कंसल्टेटिव कॉन्फ्रेंस (CPPCC) की नेशनल कमेटी की उपाध्यक्ष किन बोयोंग ने राष्ट्रपति दिसानायके के साथ एक बैठक में कहा कि बीजिंग श्रीलंकाई समुद्री क्षेत्र में रिसर्च से जुड़ी अपनी गतिविधियों को फिर से शुरू करने को लेकर बेहद उत्सुक है. दिसानायके और किन बोयोंग की बैठक के बाद श्रीलंकाई राष्ट्रपति के मीडिया प्रभाग (PMD) ने एक बयान जारी किया, जिसमें कहा गया कि, "किन बोयोंग ने कहा है कि श्रीलंका में न केवल बंद पड़ी ज़रूरी परियोजनाओं को शुरू करने की योजना है, बल्कि विभिन्न वजहों से अस्थायी तौर पर रुकी हुई समुद्री शोध गतिविधियों को भी दोबारा से शुरू करने की योजना है."

 

इस बैठक में श्रीलंकाई राष्ट्रपति की ओर से भी चीन द्वारा संचालित अधूरी पड़ी परियोजना का जिक्र किया गया. उन्होंने चीन द्वारा बनाए जा रहे सेंट्रल एक्सप्रेसवे के अधूरे हिस्सों को पूरा करने की ज़रूरत बताई और चीन द्वारा वित्तपोषित कोलंबो पोर्ट सिटी (CPC) अंतर्राष्ट्रीय बैंकिंग केंद्र एवं हंबनटोटा ज़िले में चल रही सप्लाई हब्स एवं और संस्थागत परियोजनाओं की शुरुआत में तेज़ी की उम्मीद भी जताई. हालांकि, श्रीलंकाई राष्ट्रपति के मीडिया प्रभाग द्वारा जारी बयान में इसका कोई उल्लेख नहीं था कि दिसानायके ने चीन के सामने अपनी सरकार की प्राथमिकताएं स्पष्ट रूप से बताई हैं या नहीं. 

 

विदेशी जहाजों को अनुमति के लिए मानक संचालन प्रक्रिया

श्रीलंका में विदेशी शोध जहाजों की आवाजाही की अनुमति को लेकर चल रही तमाम अटकलों पर फौरी तौर पर रोक लगाने के लिए श्रीलंका के विदेश मंत्री विजिता हेराथ ने “एक विशेष समिति का ऐलान किया है. यह स्पेशल कमेटी विदेशी शोध पोतों को ठहरने की अनुमति के पूरे मामले को देखेगी और श्रीलंका आने वाले रिसर्च जहाजों व दूसरे विदेशी जहाजों को मंजूरी देने पर निर्णय लेगी.” ज़ाहिर है कि विदेश मंत्री विजिता हेराथ दिल्ली दौरे पर भी राष्ट्रपति दिसानायके के साथ थे और उम्मीद है कि राष्ट्रपति दिसानायके की चीनी यात्रा के दौरान भी उनके साथ होंगे. कैबिनेट के निर्णय के दो दिन बाद श्रीलंका के विदेश मंत्री विजिता हेराथ ने 20 दिसंबर को स्पष्ट किया था कि विदेशी शोध पोतों के आने पर लगाए गए साल भर के प्रतिबंध की समयसीमा समाप्त होने के बाद, इसके लिए "एक नया स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रॉसीजर यानी मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) अमल में लाई जाएगी". अहम बात यह है कि श्रीलंका की पूर्व सरकार ने विदेशी रिसर्च जहाजों पर प्रतिबंध लगाने के साथ ही इसको लेकर एसओपी को भी अंतिम रूप दिया था और तब से सरकार की ओर से जारी आधिकारिक बयानों (बिना किसी विस्तृत जानकारी के) में यदा-कदा इस मानक प्रक्रिया का जिक्र किया भी गया है.

 श्रीलंकाई मीडिया में प्रकाशित ख़बरों के मुताबिक़ विदेश मंत्री विजिता हेराथ ने यह कहा है कि ‘भारत की सबसे बड़ी चिंता अपनी क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करना और क्षेत्रीय सुरक्षा को बनाए रखना है.

श्रीलंकाई मीडिया में प्रकाशित ख़बरों के मुताबिक़ विदेश मंत्री विजिता हेराथ ने यह कहा है कि ‘भारत की सबसे बड़ी चिंता अपनी क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करना और क्षेत्रीय सुरक्षा को बनाए रखना है. इसको लेकर श्रीलंका ने भारत को आश्वस्त किया है कि वह अपनी ज़मीन पर ऐसी किसी की गतिविधि को प्रोत्साहित नहीं करेगा, जिससे भारत या हिंद महासागर के लिए ख़तरा पैदा हो. विदेशी शोध जहाजों की अनुमित को लेकर जो नई मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) अपनाई जा रही है, वो इस बात का पूरा ख्याल रखेगी.

 

श्रीलंकाई विदेश मंत्री हेराथ ने कुल मिलाकर इस बात पर ज़ोर दिया है कि समुद्री सुरक्षा और क्षेत्रीय अखंडता सुनिश्चित करना सबसे बड़ी प्राथमिकताएं हैं और इस मुद्दे पर श्रीलंका का दृष्टिकोण एकदम स्पष्ट है. उन्होंने कहा कि “हम ऐसी किसी भी गतिविधि को मंजूरी नहीं देंगे, जो श्रीलंका की राष्ट्रीय सुरक्षा में रुकावट पैदा करने वाली हो.” हालांकि, उनके बयान से यह साफ नहीं पाया है कि वो ऐसा कह कर चीन को संदेश देना चाहते हैं या भारत को स्पष्ट करना चाहते हैं, या फिर वे दोनों देशों को ही अपने इरादों के बारे में बताना चाहते हैं कि जब सुरक्षा का मसला सामने होगा तो, श्रीलंका किसी के दबाव में नहीं आएगा और खुद ही यह तय करेगा की उसकी प्राथमिकताएं क्या होंगी.

 

चीनी जासूसी जहाजों के बार-बार आने पर भारत ने जताई थी आपत्ति

दरअसल, भारत के कान तब खड़े हुए थे, जब चीन के रिसर्च और जासूसी जहाजों की आवाजाही भारतीय बंदरगाहों के आसपास काफ़ी बढ़ गई थी. चीन के युआन वांग 6, युआन वांग 5, शी यान 6, जियांग यांग हांग 03 और जियांग यांग हांग 01 समेता तमाम ऐसे चीनी पोत थे, जिनके बारे में आशंका जताई गई थी कि वे इस इलाके में आने-जाने के दौरान और कभी-कभी श्रीलंकाई समुद्री क्षेत्र में विचरण के दौरान भारत के महत्वपूर्ण रक्षा प्रतिष्ठानों और सुरक्षा से जुड़ी भारतीय गतिविधियों पर पैनी नज़र रख रहे हैं. गौरतलब है कि फरवरी 2023 में ऐसे ही एक चीनी शोध/जासूसी जहाज ने माले पोर्ट पर लंगर डाला था. शायद ऐसा इसलिए हुआ था, क्योंकि ये जहाज चीन से श्रीलंका के लिए निकल चुका था, लेकिन इसी बीच श्रीलंका की सरकार ने चीनी शोध जहाजों पर एक साल का प्रतिबंध लगा दिया था और मज़बूरी में इसे मालदीव का रुख करना पड़ा था. माले में चीनी जहाज के रुकने के बाद देखा जाए तो मालदीव में राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज़्ज़ू सरकार के साथ भारत की पहले से चली आ रही तल्खी और बढ़ गई थी.

 

यह चीनी जासूसी पोत एक महीने की हिंद महासागर की लंबी यात्रा के बाद लौटा था, इसलिए श्रीलंका में ठिकाना नहीं मिलने पर यह माले में रुका था. देखा जाए तो, हाल-फिलहाल में चीन के इस प्रकार के जासूसी अनुसंधान जहाजों की यह आखिरी यात्रा थी. ऐसे में यह सवाल उठना लाज़िमी है कि क्या चीन ने प्रतिबंध के बाद अपने ऐसे जहाजों की आवाजाही रोक दी है, या फिर मालदीव में भविष्य में भी वह अपने जासूसी जहाजों को भेजेगा. इस बीच, कुछ ख़बरों में यह भी सामने आया है कि इंडोनेशिया के तटरक्षक बल ने मालदीव जाने वाले ऐसे ही एक चीनी जहाज को रोक दिया था, क्योंकि उस जहाज ने अपनी सिग्नल प्रणाली को बंद कर दिया था, ताकि उसके बारे में किसी को पता न चल पाए. 

 

मौज़ूदा हालात में सबसे बड़ा सवाल यही है कि चीन द्वारा अपने रिसर्च जहाजों की आवाजाही के लिए अनुमति मांगने पर क्या श्रीलंका मंजूरी देगा या फिर वहां की सरकार की ओर से चीन के सामने ऐसी कोई शर्त रखी जाएगी कि उसके जहाजों को तभी अनुमति दी जाएगी, जब वे श्रीलंकाई समुद्री क्षेत्र और बंदरगाहों में कोई भी जासूसी और अुनसंधान जैसी गतिविधि न करें. श्रीलंका में पूर्व की सरकारों ने भी इस संबंध में भारतीय चिंताओं को लेकर क़दम उठाए थे. राष्ट्रपति पद से जबरन हटाए गए पूर्व श्रीलंकाई राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे का चीन के प्रति ज़बरदस्त झुकाव था, या कहें कि उन्हें चीनी हितों की सबसे अधिक चिंता थी. राजपक्षे के जाने के बाद सत्ता में आई रानिल विक्रमसिंघे की सरकार ने पूर्व सरकार की चीन को लेकर प्रतिबद्धताओं को कुछ हद तक पूरा करने के दौरान चीन के ऐसे शोध जहाजों में से एक जहाज को कोलंबो पोर्ट पर लंगर डालने की अनुमति दी थी. लेकिन यह मंजूरी तब दी गई थी, जब उसने अपने सभी रिसर्च उपकरणों को बंद कर दिया था और सिग्नल जारी रखे थे. यानी इस चीनी जहाज को केवल अपने कर्मियों को बदलने और तेल भरने के लिए वहां रुकने की अनुमति दी गई थी.

 आने वाले दिनों और हफ्तों में इस पर नज़र रखना होगा कि चीनी शोध पोतों को लेकर श्रीलंकाई सरकार क्या क़दम उठाती है.

श्रीलंका की ओर से विदेशी रिसर्च जहाजों की आवाजाही पर एक साल के प्रतिबंध के दौरान सरकार ने जर्मनी के एक रिसर्च पोत को लंगर डालने और तेल व ज़रूरी रसद भरने की मंजूरी प्रदान की थी. बताया जा रहा है कि जब कोलंबो में स्थित चीनी दूतावास ने श्रीलंका की सरकार के जर्मनी शोध पोत को अनुमति देने के बारे में पूछा था, तब सरकार की ओर से कहा गया था कि जर्मन पोत को केवल तेल भरने के लिए रुकने की अनुमति दी गई थी, श्रीलंकाई समुद्री क्षेत्र में रिसर्च से जुड़ी किसी गतिविधि को अंजाम देने की अनुमति नहीं दी गई थी. श्रीलंका में सरकार द्वारा 1 जनवरी को विदेशी शोध जहाजों पर लगा प्रतिबंध हटाए जाने के बाद, जो एसओपी अपनाने की बात की गई है, उसमें भी यही मापदंड अपनाया जाएगा. इसके बारे में श्रीलंकाई सरकार के आधिकारिक प्रवक्ताओं द्वारा बताया भी गया है, हालांकि यह देखने वाली बात होगी की इस पर कितना अमल किया जाता है. ज़ाहिर है कि प्रतिबंध विवाद के दौरान जापान ने भी श्रीलंका को एक समुद्री शोध पोत की पेशकश की थी. तब तत्कालीन राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने कहा था कि वे विदेशी रिसर्च पोतों पर लगाए गए एक साल के प्रतिबंध के दौरान क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण पर ज़ोर देंगे. हालांकि, जापान के प्रस्ताव और श्रीलंका सरकार की प्रतिक्रिया को लेकर आगे क्या कुछ घटित हुआ, इसके बारे में कोई ख़ास जानकारी उपलब्ध नहीं है.

 

श्रीलंकाई राष्ट्रपति दिसानायके की भारत यात्रा के दौरान दोनों राष्ट्राध्यक्षों की बातचीत के बाद भारतीय विदेश सचिव मिस्त्री ने जिस प्रकार से विदेशी रिसर्च जहाजों की अनुमति को लेकर चिंता जताई है, लगता है कि उसे श्रीलंकाई सरकार गंभीरता से लेगी और इसे ध्यान में रखकर ही भविष्य में कोई निर्णय लेगी. लेकिन ऐसा होगा या नहीं यह सब भविष्य के गर्त में है. इसलिए आने वाले दिनों और हफ्तों में इस पर नज़र रखना होगा कि चीनी शोध पोतों को लेकर श्रीलंकाई सरकार क्या क़दम उठाती है. इस मुद्दे पर श्रीलंकाई सरकार के फैसले से ही निर्धारित होगा कि उसकी विदेश और रक्षा नीति का लब्बोलुआब क्या है. ज़ाहिर है कि श्रीलंका के लिए एक तरफ भारत जैसा विश्वस्त पड़ोसी, तो दूसरी तरफ चीन है, जिनसे उसे सबसे अधिक कर्ज़ दिया है. कहने का मतलब है कि विदेशी रिसर्च पोतों के मामले में कोलंबो का रुख एक लिहाज़ से श्रीलंका की नई सरकार के लिए लिटमस टेस्ट की तरह है. इस मामले में श्रीलंकाई सरकार किस प्रकार संतुलन स्थापित करते हुए आगे बढ़ती है, इसी से सुनिश्चित होगा कि अल्पावधि, मध्यम अवधि और दीर्घावधि में उसकी विदेश व रक्षा नीति सफलता के नए मुकाम हासिल करेगी, या फिर विफल हो जाएगी.


एन सत्या मूर्ति एक नीति विश्लेषक और राजनीतिक टिप्पणीकार हैं, जो चेन्नई में रहते हैं.

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