मनोरंजन जगत से जुड़े मीडिया में मनोविज्ञान और मीडिया विश्लेषणों में अक्सर अवतारों और शख़्सियतों की चर्चा होती है. आमतौर पर इस बात पर चर्चा होती है कि मीडिया में दिखने और सम्मोहित करने वाला व्यक्तित्व उस शख़्स की असल शख़्सियत से किस तरह से अलग होता है. इस लेख में हम इस विचार की साइबरस्पेस के दायरे में पड़ताल करेंगे. इसमें अवतार निर्माण के प्राथमिक स्वरूपों और दुराचार से जुड़ी आशंकाओं के निपटारे की क़वायद भी शामिल है. इनके अलावा अवतारों के सिलसिले में नियम-क़ायदों की ज़रूरत और आचार संहिता की भी चर्चा होगी.
अवतार का निर्माण और प्रयोग
पारदर्शिता में गिरावट के चलते सोशल मीडिया और साइबरस्पेस जैसे प्लेटफ़ॉर्म तत्काल सभी प्रयोगकर्ताओं के ‘नए रूप‘ गढ़ देते हैं. इससे न केवल नामी हस्तियों को अपनी शख़्सियत गढ़ने का मौक़ा मिला, बल्कि प्लेटफ़ॉर्म तक पहुंच रखने वाले किसी भी प्रयोगकर्ता को इस काम को अंजाम देने की छूट मिल गई है. इंटरनेट, प्रयोगकर्ताओं पर आधारित माध्यम है और फ़िलहाल ये अवतारों की सुरक्षा और जवाबदेहियों से जुड़े मसले पेश कर रहा है. लिहाज़ा प्रयोगकर्ताओं को नियामक सहायता की दरकार है, जो सरकारों, उद्योगों और तमाम दूसरे प्रयोगकर्ताओं को एकीकृत कर दें.
साइबरस्पेस के आदर्शवाद या प्रयोगकर्ताओं के वजूद से जुड़ी इच्छा के मुताबिक अवतार को नए रूप में पेश करने की रचनात्मक क्षमता कई मायनों में स्वच्छंदता का एहसास कराती है. हालांकि वैचारिकता की इस परिकल्पना से व्यक्तिगत पहचान, पहचान से जुड़ी समझ और सामुदायिक नुमाइंदगी के बीच की विसंगतियां बेपर्दा हो जाती हैं.
प्रयोगकर्ता और अवतार के आपसी संवादों के आधार पर अवतारों को 2 मुख्य स्वरूपों में बांटा जा सकता है: प्रयोगकर्ता द्वारा तैयार किया गया और आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI)/मशीन लर्निंग द्वारा प्रोग्राम और सहायता वाला. ये अवतार कई रूपों में शख़्सियतों को पेश कर सकते हैं. इसकी एक मिसाल एडिटिंग औज़ारों या ‘कैटफ़िशिंग‘ के ज़रिए प्रयोगकर्ताओं के रंगरूप को बदलने के तौर पर हमारे सामने है. एक और नई बात मार्केटिंग रणनीति और उत्पाद विज्ञापनों के रूप में यूज़र-प्रोग्रामिंग से जुड़ी है. आम तौर पर इन्हें कैरेक्टर मर्केंडाइज़िंग की श्रेणी में रखा जाता है. इसके तहत प्रयोगकर्ताओं और उद्योग के बीच की खाई को पाटने के लिए आपसी संवाद से भरा अनुभव क़ायम करने के लिए मशीन लर्निंग (ML) या AI का इस्तेमाल किया जाता है.
अवतार के उपयोग के क्षेत्र में सबसे आम मसले पहचान और नुमाइंदगी से जुड़े होते हैं. अवतार भौतिक स्वरूप के दायरे से परे ख़ुद का प्रकटीकरण होता है. अवतार निर्माण के लिए यूज़र डेटा की आवश्यकता होती है. दूसरी ओर इंटरनेट से जुड़े किसी भी पहलू के लिए डेटा की निजता एक ज़रूरी स्तंभ है. ऐसे में अवतार निर्माण के लिए प्रयोगकर्ताओं की पहचान ज़ाहिर करना अनैतिक हो जाता है. लिहाज़ा अवतार की पहचान पूर्व निर्धारित नहीं होती, बल्कि उनको ख़ुद परिभाषित किया जाता है.
साइबरस्पेस के आदर्शवाद या प्रयोगकर्ताओं के वजूद से जुड़ी इच्छा के मुताबिक अवतार को नए रूप में पेश करने की रचनात्मक क्षमता कई मायनों में स्वच्छंदता का एहसास कराती है. हालांकि वैचारिकता की इस परिकल्पना से व्यक्तिगत पहचान, पहचान से जुड़ी समझ और सामुदायिक नुमाइंदगी के बीच की विसंगतियां बेपर्दा हो जाती हैं. लिहाज़ा अवतार की पहचान आधारित गतिविधियों के लिए भी ख़ास प्लेटफ़ॉर्म से जुड़े मानकों की दरकार होती है, ताकि प्रयोगकर्ता की डेटा निजता से जुड़ी किसी भी विसंगति से निपटा जा सके. यूज़र्स भी अपने लिए अनेक अवतार और पहचान गढ़ सकते हैं. इनमें वीडियो गेम कैरेक्टरों से लेकर मैसेज बोर्ड के नामकरण तक शामिल हैं. हालांकि इन क़वायदों से साइबर संसार में ‘अवतारों की जवाबदेही’ से जुड़ी पेचीदगियां और बढ़ जाती हैं.
डिजिटल स्वायत्तीकरण अवतार से जुड़े पहचान के मसलों को और हवा देता है. इनमें डिजिटल ब्लैकफ़ेस से जुड़े ज़्यादा अतिवादी मसले शामिल हैं. कई बार शख़्सियत या व्यक्तित्व को व्यापारिक वस्तु के तौर पर इस्तेमाल करने के लिए फ़र्जी पहचान तैयार करना सांस्कृतिक शिनाख़्त के इस्तेमाल का मसला बन जाता है.
अवतारों की संख्या को यूज़र के हिसाब से सीमित नहीं किया गया है. इस तरह साइबर स्पेस, प्रयोगकर्ताओं को दूसरों की रज़ामंदी या सत्यापन के बिना उनकी ऑनलाइन नुमाइंदगी तैयार करने की छूट दे देता है. हालांकि ज़्यादातर मामलों में ये किसी नामी हस्ती का रूप धारण करने के तौर पर सामने आते हैं. किसी और का रूप धारण करने, जालसाज़ी या अवमानना को लेकर बने क़ानूनों के ज़रिए इन हरकतों से निपटा जाता है. हालांकि कई मामलों में ये क़वायद नामी हस्तियों तक सीमित नहीं रहती और नाज़ुक और कमज़ोर लोग भी इस तरह शोषण की चपेट में आ सकते हैं. भेदभाव भरी हरकतों पर आधारित प्रोफ़ाइल तैयार करने को लेकर फ़िलहाल यूज़र्स पर कोई रोक नहीं है. इस तरह नक़ली/काल्पनिक पहचान भी तैयार कर ली जाती है. यूज़र्स को डीप फ़ेक के ज़रिए अश्लील तस्वीरें बनाने और चुराई हुई सामग्रियां अपलोड करने का मौक़ा मिल जाता है, जो लोगों की प्रतिष्ठा बर्बाद कर देती हैं. प्रयोगकर्ता की निजता के लिए हिफ़ाज़ती उपाय ज़रूरी होते हैं. बहरहाल, यूज़र्स को इंटरनेट द्वारा मुहैया कराई गई गुमनामी का लाभ उठाकर दूसरों को नुक़सान पहुंचाने की छूट नहीं दी जा सकती.
डिजिटल स्वायत्तीकरण अवतार से जुड़े पहचान के मसलों को और हवा देता है. इनमें डिजिटल ब्लैकफ़ेस से जुड़े ज़्यादा अतिवादी मसले शामिल हैं. कई बार शख़्सियत या व्यक्तित्व को व्यापारिक वस्तु के तौर पर इस्तेमाल करने के लिए फ़र्जी पहचान तैयार करना सांस्कृतिक शिनाख़्त के इस्तेमाल का मसला बन जाता है. ऐसी परिस्थिति में सारी रेखाएं धुंधली पड़ जाती हैं. कंपनियां अक्सर इस तरह के प्रयोगों को अंजाम देती हैं. बहरहाल व्यक्तिगत उपयोगकर्ता “चारित्रिक किरदार” नहीं हैं, लिहाज़ा वो अवतार से जड़े प्रतिनिधित्व को अपनाना चालू कर देते हैं.
अवतार को यूज़र/प्रोग्रामर से जुदा पहचान देने वाले नियामक दिशानिर्देश दोनों तरह के अवतारों का नियमन कर सकते हैं. एक वो जो ख़ुद के विस्तार के रूप में प्रयोग में आते हैं और दूसरे वो अवतार, जो ग़ैर-इंसानी और पहले से तयशुदा (programmed) होते हैं.
नियामक जवाबदेही तैयार करना
प्रयोगकर्ताओं को सीधे तौर पर जवाबदेह बनाने के लिए नियामक प्राधिकारों को पहले से नियम-क़ायदे तैयार करने होंगे. ये नियम वास्तविक जीवन के समुदायों और पहचानों के आचार से मेल खाते होने चाहिए. ऐसी नियामक क़वायदों में वैचारिक और पहचान की चोरी पर आधारित अवतार निर्माण जैसे मसलों का चित्रण ज़रूरी होगा, चाहे ऐसा दुराचार अनजाने में ही क्यों न हुआ हो! वैकल्पिक रूप से वैश्विक प्राधिकारों (ख़ासतौर से वो जो किसी एक राष्ट्र के साइबर क़ानून या विचारधारा से संबद्ध न हों) को यूज़र के इर्द-गिर्द नियमन तैयार करने होंगे. अनजाने में अपराध करने वालों को दोषी ठहराए बिना दुराचार की घटनाओं को सीमित करने की क़वायद सुनिश्चित करनी होगी.
इस क्षेत्र में नियमन 2 मुख्य सिद्धांतों को अमल में लाएंगे:
- साइबरस्पेस में एक अलग शख़्स के तौर पर अवतार की पहचान तैयार करना. साथ ही अवतारों के यूज़र क्रिएशन को प्रति प्रयोगकर्ता के हिसाब से निश्चित संख्या पर सीमित करना, और
- अवतारों के साथ जुदा इकाइयों (कंपनियों और प्रॉपराइटरों के अस्तित्व के अनुकूल) के तौर पर पेश आना. दोनों ही तरीक़े अवतारों की विशिष्ट वैधानिक पहचान पर टिके होते हैं.
ये तरीक़े प्रयोगकर्ता के तजुर्बे या डेटा निजता से जुड़े नियमनों में ख़लल डाले बिना पूर्व में बताए गए मसलों का निपटारा करेंगे.
अगर कोई अवतार उपयोगकर्ता पर आधारित है तो अवतार की क्रियाओं को लेकर शुरू की गई वैधानिक प्रक्रियाओं से यूज़र की निजता पर आंच नहीं आएगी. एक शख़्स द्वारा तैयार किए जाने वाले अवतारों की तादाद सीमित करने की क़वायद शैतानी इरादों वाले व्यक्तियों के लिए लगाम का काम करेगी. इन हरकतों में पहचान चुराना, अश्लील तस्वीरें बनाना, प्रतिष्ठा पर चोट करना और अन्य प्रकार के उत्पीड़न शामिल हैं.
अनजाने में अवतार-आधारित दुराचार के मामलों में अवतार तैयार करने वाले यूज़र को रक्षाकवच हासिल रहेगा. ऐसे मसलों में यूज़र्स द्वारा अनजाने में किया गया स्वायत्तीकरण; गेम के क्षेत्र में ग़ैर-इरादतन उत्पीड़न या अनजाने में पहचान की नक़ल उतारने जैसी गतिविधियां शामिल हैं. इस तरह अवतार को लेकर स्वायत्तता बनेगी और उसे प्रोग्रामर से इतर एक जुदा इकाई समझा जाएगा. कमज़ोरों और अनजाने में अपराध करने वालों की हिफ़ाज़त से दोषी किरदार जवाबदेह बनेंगे. इससे समूचे प्लेटफ़ॉर्म और यूज़र्स के लिए ज़्यादा जवाबदेही भरा वातावरण तैयार होगा.
अगर कोई अवतार उपयोगकर्ता पर आधारित है तो अवतार की क्रियाओं को लेकर शुरू की गई वैधानिक प्रक्रियाओं से यूज़र की निजता पर आंच नहीं आएगी. एक शख़्स द्वारा तैयार किए जाने वाले अवतारों की तादाद सीमित करने की क़वायद शैतानी इरादों वाले व्यक्तियों के लिए लगाम का काम करेगी.
ऐसी नियामक क़वायदों से उन मामलों में भी मदद मिलेगी जहां अवतार ML प्रोग्रामिंग पर आधारित होते हैं और दूसरे अवतारों के साथ संवाद के हिसाब को ख़ुद को ढालते हैं. प्रोग्रामर (जिसने तत्कालीन समसामयिक आचार संबंधी दिशानिर्देशों के हिसाब से अवतार तैयार किए) को अवतार की किसी हरकत के लिए ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जाएगा. दुराचार के नतीजे के तौर पर अवतार को दोबारा प्रोग्राम करना होगा. ग़ैर-इरादतन दुराचार के आधार पर प्रोग्रामर पर पाबंदी नहीं लगाई जाएगी.
अवतार की स्वायत्तता पर इन नियमनों से परे नियामकों को इनके उपयोग और पहचान के लिए वैश्विक रूप से प्रासंगिक आचार दिशानिर्देश तैयार करने होंगे. पहचान की चोरी जैसे मसलों से निपटने के लिए ऊपर बताए गए नियम मददगार साबित हो सकते हैं. आचार संबंधी दिशानिर्देश हल्के दुराचारों (जैसे डिजिटल ब्लैकफ़ेस, अप्रत्यक्ष उत्पीड़न या मानहानि/प्रतिष्ठा पर हमले) के संदर्भ में ज़्यादा मुफ़ीद होते हैं. ऐसे आचार दिशानिर्देशों में प्लेटफ़ॉर्म के हिसाब से तय की गई आचार संहिता को निश्चित रूप से जगह दी जानी चाहिए. साथ ही प्रयोगकर्ता के तजुर्बे को आगे बढ़ाना चाहिए.
साइबर स्पेस के लिए आचार संबंधी आम दिशानिर्देशों से इतर प्लेटफ़ॉर्म के हिसाब से तय की गई आचार संहिता आवश्यक होती है. न केवल यूज़र्स बल्कि विभिन्न प्लेटफ़ॉर्मों के बीच भारी सांस्कृतिक अंतर की वजह से ये क़वायद निहायत ज़रूरी है. इनमें मानक तय होने चाहिए. इनके तहत बलात्कार, चोरी, हत्या, उत्पीड़न, गाली-गलौच और जालसाज़ी से परहेज़ करने की तार्किक जवाबदेही होनी चाहिए. साथ ही जीवन का अधिकार, निजता का अधिकार और समान अवसरों और सेवाओं तक पहुंच के अधिकार भी सुरक्षित होने चाहिए. आचार संबंधी दिशानिर्देश क़ानून की तरह काम नहीं करते, लिहाज़ा प्लेटफ़ॉर्म के हिसाब से तय की गई आचार संहिता इन्हें बल प्रदान करती है.
निष्कर्ष
नियमनों, आचार संबंधी दिशानिर्देशों और प्लेटफ़ॉर्म के हिसाब से आचार संहिता को आपसी तालमेल से तैयार किए जाने से दुराचार में बढ़ोतरी की आशंका की पहले ही रोकथाम हो सकती है. इनमें न्यूरोलॉजिकल जुड़ाव और प्रोटियस इफ़ेक्ट शामिल हैं. विकेंद्रीकृत मेटावर्स के लिए नियामक आधार तैयार करने को लेकर मौजूदा साइबर क़ानूनों की मदद लेना ज़रूरी है. साथ ही मेटावर्स के न्यायिक क्षेत्राधिकार की पूर्ववर्ती क़वायद के लिए आचार संबंधी दिशानिर्देश और प्लेटफ़ॉर्म के हिसाब से आचार संहिता भी तैयार करनी होगी.
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