Author : Girish Luthra

Published on May 27, 2024 Updated 0 Hours ago

ऑस्ट्रेलिया ने राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति 2024 जारी की है. ये सुरक्षा के नए (और ख़तरनाक) माहौल में खुद को सुरक्षित रखने, रणनीतिक रूप से विरोधाभासी और आत्मसंतोष की भावना को त्यागने की बात करती है. ये नीति देश की सुरक्षा को मज़बूत करने के लिए निर्णायक तौर पर आगे बढ़ने को कहती है.

ऑस्ट्रेलिया की नई रक्षा रणनीति और मज़बूत होता पश्चिमी पैसेफिक गठबंधन?

ऑस्ट्रेलिया ने 17 अप्रैल 2024 को अपनी पहली राष्ट्रीय रक्षा रणनीति (NDS) जारी की. इससे पहले राष्ट्रीय रणनीति समीक्षा 2023 में आयी थी, जिसमें दो साल में एक बार एनडीएस जारी करना अनिवार्य किया गया था. इसके लिए फंडिंग की कोई समस्या ना आए, इसलिए एनडीएस को एकीकृत निवेश कार्यक्रम (IIP) से जोड़ा गया. ऐसा करने का ये भी उद्देश्य था कि इसका सामरिक रणनीति के साथ उच्चतम समन्वय हो. इसमें क्षमता बढ़ाने को प्राथमिकता देना, सुरक्षा बलों की दशा और संरचना, रक्षा अधिग्रहण, भर्ती और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बातचीत और दूसरे आदान-प्रदान शामिल हैं. एनडीएस वैश्विक और क्षेत्रीय (इंडो-पैसेफिक) स्तर पर ऑस्ट्रेलिया की भागीदारी की बात तो करती है साथ ही ये ऑस्ट्रेलिया के सैन्य हितों के मुख्य क्षेत्रों पर भी ध्यान केंद्रित करती है, जिसमें प्रशांत महासागर के दक्षिण पूर्वी एशिया क्षेत्रों के माध्यम से पूर्वोत्तर हिंद महासागर और उत्तरी दृष्टिकोण भी शामिल है.

एनडीएस वैश्विक और क्षेत्रीय (इंडो-पैसेफिक) स्तर पर ऑस्ट्रेलिया की भागीदारी की बात तो करती है साथ ही ये ऑस्ट्रेलिया के सैन्य हितों के मुख्य क्षेत्रों पर भी ध्यान केंद्रित करती है

नई दिशा और दृष्टिकोण

एनडीएस राष्ट्रीय सुरक्षा के एक नई विचार की तरफ बढ़ने पर ज़ोर देती है, जहां इनकार की रणनीति प्राथमिक सामरिक उद्देश्य होगी. प्रतिरोध को इस रणनीति के एक उपवर्ग के रूप में दिखाया गया है. इस रणनीति के अन्य आधार हैं: (a) दादागीरी को रोकना (b) क्षेत्रीय सुरक्षा और समृद्धि का समर्थन करना (c) एक अनुकूल क्षेत्रीय सामरिक संतुलन बनाए रखना. अब ऑस्ट्रेलियाई सुरक्षा बलों (ADF) के लिए जो अवधारणा थी, वो भी बदल जाएगी. पहले ये एक संतुलित सेना थी, जिसे अलग-अलग आकस्मिक ख़तरों का सामना करने के लिए तैयार रखा गया था लेकिन अब इसे एकीकृत और केंद्रित सेना में तब्दील किया जाएगा. इसे “द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से सबसे चुनौतीपूर्ण रणनीतिक माहौल” का मुकाबला करने के लिए तैयार किया जाएगा. इन्हीं उद्देश्यों के मुताबिक क्षमताओं को प्राथमिकता देने और क्षमता बढ़ाने की योजना बनाई गई है. अपने उत्तरी ठिकानों से मार करने की ऑस्ट्रेलियाई सेना की क्षमता को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई है. इसकी मारक क्षमता में भी काफी वृद्धि की गई है.

इनकार द्वारा प्रतिरोध की रणनीति ऑस्ट्रेलिया ने अपनी पसंद से चुनी है, क्योंकि ऑस्ट्रेलिया ये जानता है कि सज़ा द्वारा प्रतिरोध की रणनीति (पलटवार करने की विश्वसनीय धमकी के बावजूद) निकट भविष्य में भी व्यावहारिक नहीं है. जब एनडीएस को पूरी तरह लागू कर दिया जाएगा, तब भी ऑस्ट्रेलियाई सेना का आकार तुलनात्मक रूप से कम ही रहेगा. इतना ही नहीं इनकार से प्रतिरोध की इस रणनीति को अमेरिका और दूसरे मित्र देशों के साथ मज़बूत गठबंधन और सहयोग के ज़रिए ही क्रियान्वित किया जा सकता है. इसलिए इस बात में कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिकी का गठबंधन (AUKUS) इस रणनीति का एक अहम हिस्सा है. 

AUKUS के पनडुब्बी मार्ग (AUKUS स्तंभ 1) के तीन चरणों को लेकर जो विस्तृत जानकारी सामने आ रही है उसके मुताबिक इस गठबंधन में विध्वंसकारी तकनीकों, क्षमताओं, औद्योगिक आधार और त्रिपक्षीय लाइसेंस मुक्त निर्यात (AUKUS स्तंभ 2) पर ध्यान केंद्रित किया गया है.

AUKUS के पनडुब्बी मार्ग (AUKUS स्तंभ 1) के तीन चरणों को लेकर जो विस्तृत जानकारी सामने आ रही है उसके मुताबिक इस गठबंधन में विध्वंसकारी तकनीकों, क्षमताओं, औद्योगिक आधार और त्रिपक्षीय लाइसेंस मुक्त निर्यात (AUKUS स्तंभ 2) पर ध्यान केंद्रित किया गया है. एनडीएस का मूल आधार सामूहिक सुरक्षा है. एनडीएस में ये कहा गया है कि “ऑस्ट्रेलिया की रक्षा इंडो-पैसेफिक क्षेत्र की सामूहिक सुरक्षा में निहित है”. इन्हीं उद्देश्यों को हासिल करने के लिए ब्रिटेन, जापान और न्यूज़ीलैंड के साथ सहयोग को प्राथमिकता दी गई है. पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में हाल में द्विपक्षीय और त्रिपक्षीय सुरक्षा व्यवस्था को लेकर कुछ समझौते हुए. इसमें अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया, फिलीपींस, ब्रिटेन और कोरिया शामिल हैं. इस नए गठबंधन की सरंचना तेज़ी से विकसित हो रही है. एनडीएस ना सिर्फ़ इस तंत्र से जुड़ती है बल्कि वो इस प्रक्रिया को तेज़ भी करती है. इस नए विकसित हो रहे गठबंधन में सरसरी तौर पर क्वॉड का भी ज़िक्र है और भारत को “शीर्ष स्तरीय रक्षा साझेदार” बताया गया है. इसका मतलब ये हुआ कि भारत भले ही ‘हार्ड पावर प्रतिरोध गठंबधन’ का हिस्सा नहीं है, लेकिन अन्य क्षेत्रों में भारत का समर्थन और इस नए उभरते तंत्र के लिए भारत का सहयोगात्मक दृष्टिकोण काफी मूल्यवान है.

सबसे बड़ी चिंता ‘चीन’

हालांकि, अमेरिका की इंडो-पैसेफिक रणनीति 2022 की तरह एनडीएस में चीन का सीधे-सीधे नाम नहीं लिया गया है. लेकिन इसमें अमेरिका और चीन के बीच सामारिक प्रतिद्वंदिता और इंडो-पैसेफिक क्षेत्र में चीन की दादागीरी का उल्लेख ज़रूर किया गया है. एनडीएस में ऑस्ट्रेलिया के प्राथमिक सैन्य हित और इस क्षेत्र में सुरक्षा के माहौल में तेज़ी से आ रही गिरावट के कारणों के संबंध में चीन का ज़िक्र किया गया है. एनडीएस इस क्षेत्र के लिए अमेरिका की रणनीति का पूरी तरह समर्थन करता है और ये भी स्पष्ट है कि इनकार से प्रतिरोध की रणनीति चीन को ध्यान में रखकर ही बनाई गई है. एकीकृत केंद्रित सेना को चीन को रोकने के लिए ही बनाया गया है और अगर ये रणनीति नाकाम रहती है तो फिर साझेदार देशों के साथ मिलकर जवाब दिया जाएगा. शक्ति का उभार, ताकत का आधार और मारक क्षमता अमेरिका और अन्य सहयोगी देशों के साझा प्रतिरोध की रीढ़ है. एनडीएस में ज़्यादातर अधिग्रहण योजनाओं और साझा मिशन को मज़बूत करने के लिए अमेरिकी प्लेटफ़ॉर्म्स और उपकरणों को शामिल करने की बात कही गई है. इस रणनीति में अमेरिका के साथ सह विकास सह-उत्पादन और साझा रखरखाव पर भी ज़ोर दिया गया है.

एनडीएस में ये आकलन भी शामिल है कि अमेरिका और चीन के बीच जो बातचीत हो रही है, वो उपयोगी साबित हो रही है, खासकर किसी गलत अनुमान से बचने में. इसमें ये भी कहा गया है कि जब ज़रूरत होगी तब चीन के सामने ऑस्ट्रेलिया अपने मुद्दे उठाएगा और सुरक्षा के मुद्दों पर बात भी करेगा.

लंबी दूरी के समुद्री लक्ष्यों पर हमला करने को प्राथमिकता दी गई है. सेना के लिए भारी और मध्यम लैंडिंग क्राफ्ट के अधिग्रहण पर काम चल रहा है. इससे तटीय युद्ध कौशल में मदद मिलेगी और अपनी पसंद की जगह पर सेना की तैनाती की जा सकेगी.

लेकिन चीन इस रणनीति की ‘शीतयुद्ध काल की मानसिकता’ कहकर आलोचना करता रहा है और करता रहेगा. चीन कुछ दूसरे देशों से अपनी रणनीति अपनाने को कहेगा, जो उसके मुताबिक सबसे लिए फायदेमंद होगी. लेकिन इसके साथ-साथ चीन इस नए गठबंधन का सामना करने के तरीके भी ढूंढेगा.

समुद्री सुरक्षा पर ध्यान

एक द्वीपीय देश होने की वजह से ऑस्ट्रेलिया ऐतिहासिक रूप से समुद्री सुरक्षा और नौसैनिक क्षमता पर ही ध्यान केंद्रित करता रहा है. लेकिन ऑस्ट्रेलिया अब एनडीएस के ज़रिए सुरक्षा को एक नए स्तर पर ले जाना चाहता है. वो चीन से निपटने की क्षमताओं में वृद्धि में एक सार्थक योगदानकर्ता बनना चाहता है. ऑस्ट्रेलिया ने इसके लिए अगले दस साल में 765 अमेरिकी डॉलर के बजट का प्रावधान किया है. इसमें से सबसे ज़्यादा यानी 38 प्रतिशत राशि समुद्री सुरक्षा के लिए आवंटित है. इसके अलावा समुद्र के नीचे युद्ध, समुद्री इनकार, स्थानीय समुद्र पर नियंत्रण और जल और थल के मिशन में वृद्धि की भी योजनाएं बनाई गई हैं. नौसैनिक जहाजों के निर्माण को भी बड़े पैमाने पर बढ़ावा देने की योजना बनाई गई है, खासकर दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया के ऑसबोर्न शिपयार्ड और पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के हेंडरसन शिपयार्ड में. हवाई मिशन के अभियान, लंबी दूरी की ख़ुफिया, निगरानी और टोह (ISR)लेने की क्षमता और वायुसेना की मारक क्षमता बढ़ाने की भी योजना है. लंबी दूरी के समुद्री लक्ष्यों पर हमला करने को प्राथमिकता दी गई है. सेना के लिए भारी और मध्यम लैंडिंग क्राफ्ट के अधिग्रहण पर काम चल रहा है. इससे तटीय युद्ध कौशल में मदद मिलेगी और अपनी पसंद की जगह पर सेना की तैनाती की जा सकेगी. बड़े विमानों के संचालन के लिए कोकोस (कीटिंग) द्वीप को भी विकसित करने की योजना है.

समुद्र पर इतना ध्यान केंद्रित करने की वजह चीन के ख़िलाफ सामूहिक प्रतिरोध से जुड़ा है. हालांकि इनकार द्वारा प्रतिरोध के लिए ज़रूरी क्षमताओं का परिणाम मिलने में अभी वक्त लगेगा. लेकिन एनडीएस ने ऑस्ट्रेलिया के हितों को सुरक्षित रखने और इसके लिए जो नया गठबंधन उभरा है, उसमें सहयोग के लिए ऑस्ट्रेलिया को एक सार्थक योगदानकर्ता बनाया है.

 

निष्कर्ष

रक्षा रणनीति समीक्षा के बाद ऑस्ट्रेलिया ने जो राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति जारी की, वो सुरक्षा के नए (और ख़तरनाक) माहौल में खुद को सुरक्षित रखने, रणनीतिक विरोधाभासी और आत्मसंतोष की भावना को त्यागने की बात करती है. ये नीति देश की सुरक्षा को मज़बूत करने के लिए निर्णायक तौर पर आगे बढ़ने को कहती है. इनकार की रणनीति और सामूहित प्रतिरोध इस नीति का केंद्रीय तत्व है और ये भविष्य में ऑस्ट्रेलियाई सेना का मार्गदर्शन करेगी. ये नीति ऐसी परिस्थितियों के लिए तैयार रहने को कहती है जहां चीन इस क्षेत्र में दादागीरी करे या फिर सीधे ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ शत्रुतापूर्ण कार्रवाई करे. हालांकि, इस रणनीति में चीन के साथ बातचीत का रास्ता खुला रखने (अमेरिका को भरोसे में लेकर) की बात भी कही गई है, जिससे इस क्षेत्र में तनाव, ज़ोखिम और अनिश्चितता को कम किया जा सके. अमेरिका और दूसरे सहयोगियों के साथ मज़बूत गठबंधन के ज़रिए इसका उद्देश्य चीन के ख़िलाफ प्रतिरोध में एक बड़ा योगदानकर्ता बनना और पूर्वी इंडो-पैसेफिक में शक्ति संतुलन बनाए रखना है. ऐसा करके एनडीएस पश्चिमी पैसेफिक क्षेत्र में नए उभरते गठबंधन की गति भी देती है. 


गिरीश लूथरा ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में प्रतिष्ठित फैलो हैं

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