Published on Oct 19, 2021 Updated 0 Hours ago

AUKUS:ऑस्ट्रेलिया को ऑकस का हिस्सा बनने के बाद अपने यूरोपियन सहयोगियों के कम हुए भरोसे को जीतना होगा.   

AUKUS: एशियाई और यूरोपियन दृष्टिकोण से ‘ऑकस’ का आकलन

सितंबर 2021 में, यूनाइटेड किंगडम (यूके), संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस) और ऑस्ट्रेलिया ने चीन के बढ़ते कदम को रोकने के मक़सद से एक ऐतिहासिक सुरक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किये. इस पहल का एलान, जिसे ऑकस कहा जा रहा है, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन, प्रधानमंत्री बॉरिस जॉनसन और स्कॉट मॉरिसन ने संयुक्त रूप से वर्चुअली आयोजित एक मीटिंग में किया गया था. इस समझौते ने ऑस्ट्रेलिया को अमेरिका की ओर से दी गई तकनीक का इस्तेमाल करते हुए परमाणु संचालित पनडुब्बियां के निर्माण का अधिकार दिया, जिसे अमेरिका ने इससे पहले केवल ब्रिटेन के साथ साझा किया था. ऑकस समझौते के अंतर्गत आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और अन्य प्रौद्योगिकी, साइबर और समुद्र के नीचे उपयोग होने वाली दूसरी तकनीकों को साझा करने की बात कही जा रही है. सैन्य क्षमता पर मुख्य रूप से फोकस रहेगा. संयुक्त बयान में इस समझौते का वर्णन, “तीन देशों के लिए, समान सोच वाले सहयोगियों और भागीदारों के साथ, साझा मूल्यों की सुरक्षा औऱ हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा और समृद्धि को बढ़ावा देने के लिए एक ऐतिहासिक अवसर” के रूप में किया गया है. यूके की सरकार ने, अपने बयान में, इस बात पर प्रकाश डाला कि, “ऑकस गठबंधन के तहत, हम संयुक्त क्षमताओं और प्रौद्योगिकी सहभागिता के विकास को बढ़ावा देकर, अपने लोगों को खतरों से सुरक्षा प्रदान करना सुनिश्चित करेंगे और अपने साझा लक्ष्यों को सुदृढ़ करेंगे. ऑकस सुरक्षा और रक्षा से जुड़े विज्ञान, तकनीक, औद्योगिक आधार और आपूर्ति चेन के एकीकरण को और गहरा करने के लिए प्रोत्साहित करेगा”. ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन को यह कहते हुए कोट (quote) किया गया कि तीन देशों की टीमें रॉयल ऑस्ट्रेलियाई नौसेना के लिए एडिलेड में बनने जा रहे नये परमाणु संचालित पनडुब्बियों के बेड़े को जोड़ने के लिए काम करेगी और अगले 18 महीनों में एक योजना के साथ सामने आयेगी. ऑस्ट्रेलिया के लिए, ऑकस उच्च क्षमता के साथ लंबे समय के लिए परमाणु संचालित पनडुब्बियों की तैनाती की राह प्रशस्त करेगा ताकि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में निवारण क्षमता में सुधार किया जा सके.

संयुक्त बयान में इस समझौते का वर्णन, “तीन देशों के लिए, समान सोच वाले सहयोगियों और भागीदारों के साथ, साझा मूल्यों की सुरक्षा औऱ हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा और समृद्धि को बढ़ावा देने के लिए एक ऐतिहासिक अवसर” के रूप में किया गया है. 

ऑकस का बहुआयामी स्वरूप, जैसे गहन सैन्य अंतरसंचालन में सुधार और साइबर स्पेस, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और क्वांटम प्रौद्योगिकियों जैसे नये उभरते क्षेत्रों में सहयोग देना, चीन के विस्तार को रोकने के लिए हिंद-प्रशांत क्षेत्र में ऑस्ट्रेलिया की स्थिति को मज़बूत करेगा.

चीनी पहलू 

हालांकि साझा बयान में इस बात से परहेज किया गया है कि यह पार्टनरशिप दबंग चीन से निपटने पर केंद्रित है, लेकिन हिंद-प्रशांत क्षेत्र के देश, विशेषकर ऑस्ट्रेलिया, प्रशांत द्वीप देशों में चीन के बढ़ते इंफ्रास्ट्रक्चर निवेश, जो ऑस्ट्रेलिया का पिछला आंगन है, और कोविड-19 के उद्गम की पड़ताल के लिए ऑस्ट्रेलिया की पहल के बाद उसके ख़िलाफ चीन द्वारा लगाये गए व्यापार प्रतिबंध से चिंतित है.

ऑकस समझौते ने 2016 में हुए पनडुब्बी सौदे को एकाएक खत्म कर दिया जिसे ऑस्ट्रेलिया ने फ्रांस के साथ किया था. फ्रांस और ऑकस देशों के बीच विवाद ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक नाज़ुक स्थिति खड़ी कर दी है और ट्रांस-अटलांटिक संबंधों में और भी ज़्यादा विभाजन उत्पन्न हो गया है, जो अमेरिका के अफगानिस्तान से वापसी के एकतरफा फैसले के बाद तीव्र दबाव में था. 

पिछले कुछ सालों में, ऑस्ट्रेलिया ने चीन के साथ मधुर संबंध बनाये थे, लेकिन हाल के सालों में यह रिश्ते खराब हुए हैं. इसके साथ ही, दक्षिण चीन सागर, हॉन्गकॉन्ग और ताइवान स्ट्रेट (जलडमरूमध्य) में चीन की आक्रामकता ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र के देशों के बीच सतर्कता बढ़ा दी है. रक्षा समझौते को अंतिम रूप देने के बाद राष्ट्रपति बाइडेन ने कहा, “हमें क्षेत्र में वर्तमान सामरिक वातावरण और यह किस तरह से विकसित होगा, दोनों को देखने की ज़रूरत हैं, क्योंकि हमारे प्रत्येक देश और वास्तव में दुनिया का भविष्य स्वतंत्र और खुले हिंद-प्रशांत पर निर्भर करता है जो आने वाले दशकों में चिरस्थायी और समृद्धिशाली बने”.

हिंद-प्रशांत क्षेत्र के देशों की प्रतिक्रिया

ऑस्ट्रेलिया ने स्पष्ट कर दिया है कि वो परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) का पालन करेगा और अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा अभिकरण समेत गैर परमाणु हथियार राज्य होने के नाते अपने सभी कर्त्तव्यों को निभाने के लिए प्रतिबद्ध रहेगा. फिर भी कुछ देशों ने इस बात पर चिंता ज़ाहिर की है कि, “यह फैसला अप्रत्यक्ष रूप से हथियारों के प्रसार को प्रेरित करेगा.” विशिष्ट रूप से, चीनी विदेश मंत्रालय ने दावा किया है कि, “परमाणु संचालित पनडुब्बी सहयोग ने क्षेत्रीय शांति और स्थिरता को गंभीर रूप से कमज़ोर किया है, हथियारों की होड़ को बढ़ाया है और अंतरराष्ट्रीय अप्रसार की कोशिशों को नुकसान पहुंचाया है”.

एशिया

इंडोनेशिया जैसे दक्षिणपूर्वी एशियाई देशों ने कहा, “वो ऑस्ट्रेलिया के परमाणु पनडुब्बी के फैसले को सावधानी से देख रहे हैं, क्षेत्रीय हथियारों की होड़ और शक्ति विशिष्ठता क्षमताओं पर अपनी चिंता ज़ाहिर करते हैं”. मलेशिया के प्रधानमंत्री ने भी ‘ऑकस सहयोग पर चिंता जताई है, जो हिंद प्रशांत क्षेत्र में परमाणु हथियारों की दौड़ को उत्प्रेरित करता है’. दक्षिणपूर्वी एशियाई समकक्ष को चिंता है कि यह चीन को दक्षिण चीन सागर में ज़्यादा आक्रामक होने के लिए उकसाएगा. दूसरी तरफ, कुछ आसियान देश जैसे फिलीपींस और वियतनाम अतिरिक्त क्षेत्रीय देशों की भागीदारी देखकर संतुष्ट हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि इससे “क्षेत्र में चीनी आक्रामकता और दमन का मुकाबला ” करने में सहायता मिलेगी. जापान जैसे ऑस्ट्रेलिया के क्वाड पार्टनर देशों ने इस व्यवस्था का स्वागत किया है. दूसरी ओर, भारत ने, इशारा किया है कि, “ऑकस क्वॉड को मज़बूत करने की योजना को प्रभावित नहीं करेगा. भारत दोनों को बहुत अलग समूहों के तौर पर देखता है, ऑकस को एक सुरक्षा गठजोड़ करार देते हुए भारत ने संकेत दिये हैं कि क्वॉड मुख्य रूप से सुरक्षा पर केंद्रित नहीं है. साथ ही, ऑकस को भारतीय हितों से जोड़ने की भारत की कोई इच्छा नहीं है”.

ईयू ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ कोई द्वेष नहीं रखता है, लेकिन अपने द्वीपक्षीय संबंधों को सुधारने के लिए और हिंद-प्रशांत क्षेत्र को लेकर अपनी साझा परिकल्पना में एकदूसरे के पूरक बनने के लिए व्यापार और अर्थव्यवस्था जैसे गैर-रक्षा मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर विश्वास की कमी को दूर करने की ज़रूरत है.

यूरोप

ऑकस समझौते ने 2016 में हुए पनडुब्बी सौदे को एकाएक खत्म कर दिया जिसे ऑस्ट्रेलिया ने फ्रांस के साथ किया था. फ्रांस और ऑकस देशों के बीच विवाद ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक नाज़ुक स्थिति खड़ी कर दी है और ट्रांस-अटलांटिक संबंधों में और भी ज़्यादा विभाजन उत्पन्न हो गया है, जो अमेरिका के अफगानिस्तान से वापसी के एकतरफा फैसले के बाद तीव्र दबाव में था. अफ़गान संकट के बीच लड़खड़ा रहे ट्रांस-अटलांटिक संबंधों ने ब्रसेल्स की ओर से यूरोपियन सामरिक स्वायत्तता को ज़रूरी बना दिया है, लेकिन हाल के परमाणु-पनडुब्बी सौदे के साथ ही, ऑकस ने फ्रांस और ईयू को हिंद-प्रशांत क्षेत्र से दरकिनार कर दिया है, जिसके कारण फ्रांस को कैनबरा और अमेरिका से अपने राजदूतों को वापस बुलाना पड़ा, जो 243 वर्ष के लंबे गठजोड़ में पहली बार हुआ है.

फ्रांसीसी विदेशी इलाकों के कारण हिंद-प्रशांत क्षेत्र में फ्रांस एक रणनीतिक भूमिका निभाता है. इसके अलावा, बढ़ते समुद्री व्यापार यातायात के साथ विश्व व्यापार में संयुक्त रूप से क्षेत्र के बढ़ते योगदान और निवेश को देखते हुए फ्रांस, Francafrique से आगे हिंद-प्रशांत में, दशकों तक कम बजट के आवंटन के बाद, अपनी महत्वाकांक्षाओं को बढ़ाने के लिए सजग हुआ है. यह विंडबना ही है कि मई 2018 में सिडनी में, जहां फ्रांस हिंद-प्रशांत की धारणा को अपनाने वाला पहला ईयू सदस्य देश बना, राष्ट्रपति मैक्रों ने फ्रांस को एक हिंद-प्रशांत शक्ति के रूप में घोषित करते हुए क्षेत्र के लिए अपनी रणनीति का खाका रखा, जिसके बाद फ्रांस के लिए हिंद-प्रशांत की अहमियत में परिवर्तन का एहसास हुआ.

हालांकि, ऑकस समझौते ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में फ्रांस की महत्वाकांक्षाओं को धक्का पहुंचाया है और हिंद-प्रशांत शक्ति के रूप में उसके दावों पर सवाल खड़े किये हैं. पेरिस के बजाय कैनबरा का वॉशिंगटन को साथ देने से क्षेत्र में चीन की विस्तारवादी लालसाओं के ख़िलाफ मैक्रों की महत्वाकांक्षा पटरी से उतर गई है. ऑस्ट्रेलिया की फ्रांस के साथ अटैक-क्लास पनडुब्बियों का सौदा रद्द होने का परिणाम करोड़ों यूरो के भारी जुर्माने का भुगतान होगा. ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के फैसले से फ्रांस नाराज़ है क्योंकि फ्रांसीसी विदेश मंत्री Jean-Yves Le Drian और सशस्त्र बल मंत्री Florence Parly  ने खुले तौर पर ऑकस के लिए फ्रांस को छोड़ने के ऑस्ट्रेलिया के फैसलों पर निराशा जताई है.

हस्ताक्षर के बाद, फ्रांस ने कैनबरा और वॉशिंगटन से अपने राजदूतों को वापस बुला लिया है, फ्रांस-ब्रिटिश रक्षा मंत्रियों के शिखर सम्मेलन को स्थगित कर दिया है और संभवत: ईयू-ऑस्ट्रेलिया व्यापार समझौते पर बातचीत में विलंब किया है क्योंकि ज़्यादातर ईयू नेताओं ने ट्रांस-अटलांटिक और हिंद-प्रशांत सहयोगियों द्वारा भरोसे को तोड़ने का हवाला देते हुए फ्रांस का साथ दिया है.

ऑस्ट्रेलिया के लिए ऑकस समझौते का अपना फायदा और अवसर है, ख़ासकर यह नयी त्रिपक्षीय पार्टनरशिप, लेकिन इसके साथ ही एशिया और यूरोप में उसके अन्य सहयोगियों की प्रतिक्रिया कुछ चुनौतियां भी पेश करती हैं, जिसे ऑस्ट्रेलिया को कूटनीतिक तरीके से दूर करना होगा

जर्मनी के यूरोपीय मामलों के मंत्री माइकल रॉथ ने अपनी प्रतिक्रिया में ऑकस को यूरोपीय लोगों के लिए एक वेकअप कॉल करार दिया है क्योंकि ईयू अक्सर विदेश और सुरक्षा नीतियों के मुद्दों पर बंटा रहता है. इसके अलावा, ईयू, फ्रांस के मार्गदर्शन में, ऑस्ट्रेलिया के साथ एफटीए की व्यवस्था में देरी कर सकता है क्योंकि ज़्यादार ईयू सदस्य देश एक पारस्परिक भावना पर साथ खड़े हैं- भरोसे की कमी. ईयू ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ कोई द्वेष नहीं रखता है, लेकिन अपने द्वीपक्षीय संबंधों को सुधारने के लिए और हिंद-प्रशांत क्षेत्र को लेकर अपनी साझा परिकल्पना में एकदूसरे के पूरक बनने के लिए व्यापार और अर्थव्यवस्था जैसे गैर-रक्षा मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर विश्वास की कमी को दूर करने की ज़रूरत है.

ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका समान सोच वाले हिंद-प्रशांत क्षेत्र के देशों- भारत और जापान- के साथ इस क्षेत्र में सुरक्षा की चुनौतियों का सामना करने के लिए पहले ही हरकत में आ चुके हैं. इन समान सोच वाले देशों के समूह में हाल ही में यूके भी शामिल हो गया है. हाल के दिनों में यूके का HMS Queen Elizabeth Carrier अमेरिका के कर्मचारियों और उपकरणों के साथ हिंद-प्रशांत क्षेत्र में तैनात किया गया है. पिछले महीने Carrier Strike Group ने समान सोच वाले भागीदारों के साथ अंतर-संचालन स्थापित करने के लिए ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ अभ्यास का दौर शुरू किया था. यूके के लिए ऑकस, 2021 में उसके रक्षा और विदेश नीति की समीक्षा में उसकी नई हिंद-प्रशांत रणनीति पेश करने के बाद, एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है.

अफ़गान संकट के बाद से ईयू-अमेरिका के संबंध, ब्रसेल्स के लिए यूरोपियन सामरिक स्वायत्तता को लागू करने की मांग कर रहा है, और अब उनके द्वारा लॉन्च की गई नई हिंद-प्रशांत रणनीति को देखते हुए ईयू, चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव परियोजना (BRI) के जवाब में “ग्लोबल गेटवे” को लॉन्च करने पर विचार कर रहा है. ईयू अपने मौजूदा रिश्तों को बनाये रखने के लिए हिंद-प्रशांत क्षेत्र में टकटकी लगाये हुए है ताकि वो इस क्षेत्र में राजनीतिक, आर्थिक और सैन्य प्लेयर के रूप में खुद को अग्रसर कर सके. यूरोपियन कमिशन की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डर लेयन की टिप्पणी, अनजाने में न सिर्फ पेरिस बल्कि ब्रसेल्स के ज़ख्मों को उजागर करती है क्योंकि, कम से कम वॉशिंगटन की नज़रों में, यूरोप निर्णय लेने के कार्य में पीछे है. बाइडेन-हैरिस प्रशासन में, एशिया यूरोप से आगे है क्योंकि अमेरिका एकसमान सोच वाले लोकतंत्रों और क्षेत्रीय बहुपक्षीय समूहों के साथ मिलकर हिंद-प्रशांत को सुरक्षित करने का लक्ष्य रखता है.

ऑस्ट्रेलिया के लिए ऑकस समझौते का अपना फायदा और अवसर है, ख़ासकर यह नयी त्रिपक्षीय पार्टनरशिप, लेकिन इसके साथ ही एशिया और यूरोप में उसके अन्य सहयोगियों की प्रतिक्रिया कुछ चुनौतियां भी पेश करती हैं, जिसे ऑस्ट्रेलिया को कूटनीतिक तरीके से दूर करना होगा. अपने हिंद-प्रशांत नीति में ऑस्ट्रेलिया का मुख्य मकसद समान सोच वाले देशों और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भागीदारों के साथ काम करना है, जिसे देखते हुए दोनों एशियाई और यूरोपीय देशों की तरफ से बढ़ती जा रही सतर्कता को हल्के में नहीं लिया जा सकता है.

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