Author : Manoj Joshi

Published on Jul 20, 2021 Updated 0 Hours ago

भारतीय सेना को आधुनिक, उच्च तकनीक वाले युद्ध लड़ने में सक्षम बनाने के लिए पुनर्निर्माण और पुनर्गठन की ज़रूरत है. लेकिन, क्या इसे सीधे परिवर्तन करना चाहिए

सशस्त्र बलों का पुनर्गठन: एकीकृत कमानों के निर्माण की कोशिश

एक न्यूज़ रिपोर्ट में दावा किया गया है कि सरकार 15 अगस्त तक युद्ध क्षेत्र या एकीकृत सैन्य कमान (unified military commands) के गठन की प्रक्रिया शुरू करने की तैयारी में है. जून के शुरू में इस मसले पर एक मसौदा पेश कर ने के बाद रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सभी पक्षों की एक बैठक बुलाई, जिस से कि रक्षा मामलों की कैबिनेट कमेटी के समक्ष इस मसले को अंतिम मंज़ूरी के लिए रखे जाने से पहले इस पर चर्चा की जा सके. अब, ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि सरकार आगे बढ़ने की योजना के साथ संयुक्त-कमान (theatre commands) की स्थापना का आदेश देने वाली है. सैन्य सेवाओं (थल सेना, वायु सेना और नौसेना) की ‘संयुक्त कमान’ को ‘थिएटर कमांड’ कहा जाता है.

जनवरी 2020 में जब सरकार ने जनरल बिपिन रावत को पहला चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) और रक्षा मंत्रालय में बनाए गए नए सैन्य मामलों के विभाग (डीएमए) का सचिव बनाया, तो उन्हें तीन साल के भीतर सेना के पुनर्गठन का भी अधिकार दिया गया. 

ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि सरकार आगे बढ़ने की योजना के साथ संयुक्त-कमान (theatre commands) की स्थापना का आदेश देने वाली है. सैन्य सेवाओं (थल सेना, वायु सेना और नौसेना) की ‘संयुक्त कमान’ को ‘थिएटर कमांड’ कहा जाता है

संसाधनों के अधिकतम उपयोग के उद्देश्य से सैन्य कमानों के पुनर्निर्माण और उनके बीच जुड़ाव को बढ़ावा देने का काम सौंपे जाने के डेढ़ साल बाद अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या यह फैसला जल्दबाज़ी में लिया गया? इस कारण सरकार ने जिस लक्ष्य के साथ इस की स्थापना की थी, वह लक्ष्य अब दुर्बल हो सकता है. ऐसी भी रिपोर्ट है कि भारतीय वायु सेना इन प्रस्तावित योजनाओं के साथ आगे बढ़ने को लेकर अनिच्छुक है. इतना ही नहीं सीएसडी जनरल रावत की टिप्पणियां ज़्यादा परेशान करने वाली हैं. अब ऐसा लग रहा है कि देश के लिए बेहद अहम इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए वह संभवतः सबसे उपयुक्त व्यक्ति नहीं हैं. उदाहरण के लिए, 2 जुलाई को एक सेमिनार में बोलते हुए जनरल रावत ने घोषणा की थी कि वायु सेना की भूमिका ज़मीनी सेना के लिए केवल ‘सहायक’ (Support Arm) की है. जो काफी हद तक तोपची सैनिकों (Artillery) या कॉम्बैट इंजीनियरों (Combat Engineers) की तरह.  

यह एक असाधारण बयान है, जो द्वितीय विश्व युद्ध में प्रचलित एक सोच से मेल खाता है. निश्चित रूप से उस युग में इस बयान की कोई जगह नहीं है, जहां एकीकृत हवाई-ज़मीनी (AirLand) या हवाई-समुद्री (AirSea) ऑपरेशन मानक बन गए हैं और सैद्धांतिक परिवर्तन बहु स्तरीय ऑपरेशन (multi domain operations) की ओर हो रहे हैं. इस बहु स्तरीय ऑपरेशन में न केवल पारंपरिक वायु सेना, थल सेना और नौ सेना के तत्वों को जोड़ जा रहा है, बल्कि साइबर क्षमता को भी साथ लाया जा रहा है, जिससे कि संचार तंत्र को तबाह कर प्रभावी साजो-सामान से ऑपरेशन की गहराई और गति को बढ़ाया जा सके.

बिपिन रावत की कभी-कभी बिना सोचे-समझे की गई बयानबाज़ी और जिस गति से चीज़ें आगे बढ़ रही हैं, उसको देखते हुए इस दिशा में भरोसा नहीं बढ़ रहा है. इसका एक कारण मौजूदा सुधारों की गोलमाल स्थिति है. ऐसा पिछले कुछ सालों से देखा जा रहा है. सीडीएस की नियुक्ति को ही लीजिए. वह एक चार स्टार अधिकारी हैं. वह रक्षा मंत्रालय में डीएमए के सचिव भी हैं. लेकिन वह न तो देश की सुरक्षा के लिए जवाबदेह हैं, और न ही रक्षा नीति बनाने के लिए. वह बड़े हथियारों की ख़रीद में भी नहीं हैं. यह सब काम अब भी गैर सैन्य अधिकारी रक्षा सचिव के दायरे में है. 

चीफ्स ऑफ स्टाफ कमेटी (Chiefs of Staff Committee) के चेयरमैन के तौर पर वह केवल रक्षा मंत्री के सलाहकार हैं, वह भी तीनों सशस्त्र सेनाओं से जुड़े मसले में. तीनों सशस्त्र सेनाओं के प्रमुखों का रैंक भी यही है, लेकिन डीएमए के सचिव होने के नाते वह सेना प्रमुखों पर ज़ोर डाल सकते हैं. डीएमए पदोन्नति, नियुक्ति और अनुशासनात्मक मामलों को देखता है. राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के साथ उनके संबंधों को लेकर भी भ्रम की स्थिति है, जो साल 2018 में बनाई गई रक्षा योजना समिति (Defence Planning Committee) और 2019 तक रणनीतिक योजना समूह (Strategic Planning Group) के प्रमुख हैं.

एकीकृत कमान 

एक रिपोर्ट के मुताबिक जो मौजूदा अवधारणा उभरकर सामने आई है उसके तहत तीन ज़मीनी कमान होंगे: जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के लिए उत्तरी कमान, हिमाचल से अरुणाचल तक के पूरे क्षेत्र के लिए पूर्वी कमान और पंजाब से गुजरात तक के लिए पश्चिमी कमान. इसके अलावा एक हवाई रक्षा कमान (Air Defence Command) होगा जो पूरे देश को कवर करेगा और एक एकीकृत नौसैनिक कमान (Maritime Theatre Command) होगा जो अंडमान से लेकर देश के पश्चिमी तट तक फैला होगा. हालांकि, एक दूसरी रिपोर्ट में कहा गया है कि केवल चार युद्ध क्षेत्र कमान (theatre commands) होंगे, जिसमें से दो ज़मीनी होंगे जो पाकिस्तान और चीन से लगी सीमा को देखेंगे और एक-एक हवाई सुरक्षा और नौसैनिक कमान होंगे. एक तीसरी रिपोर्ट कहती है कि तीन जमीनी कमान- उत्तरी, पश्चिमी और उपद्वीपीय (peninsular) के साथ-साथ एक हवाई सुरक्षा और एक नौसैनिक कमान भी होंगे. युद्ध क्षेत्र कमांडर (theatre commanders) लेफ्टिनेंट जनरल या वाइस एडमिरल या फिर एयर मार्शल रैंक के होंगे, जो चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी को रिपोर्ट करेंगे. चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी की अध्यक्षता सीडीएस के नाते जनरल रावत करते हैं, और इसमें तीनों सेना के प्रमुख शामिल हैं.  

समस्या यह है कि जिस प्रक्रिया की परिकल्पना की जा रही है वह ऊपर से नीचे (top-down one) है, जहां कमान तो बना दिए जाते हैं, लेकिन जो चीज़ें एक कमान के लिए ज़रूरी हैं उन्हें छोड़ दिया जाता हैं. उन्हें भरने की कोई समय सीमा तय नहीं की जाती.

शुरू से ही भारतीय वायु सेना ने इन बदलावों को लेकर अपनी नाराज़गी ज़ाहिर की है. वैसे सभी तीनों सशस्त्र सेनाएं एक संयुक्त युद्ध सिद्धांत की ज़रूरत पर सहमत हैं. वायुसेना का विचार है कि उसके अल्प संसाधनों को देखते हुए, उन्हें युद्ध क्षेत्र कमान और एक वायु रक्षा कमान के बीच विभाजित करना ठीक नहीं होगा. मौजूदा प्रक्रिया के साथ समस्या यह है कि जनरल रावत शुरू से ही जल्दबाज़ी में रहे हैं. सीडीएस के रूप में कार्यभार संभालने के पहले दिन ही रावत ने वायु रक्षा कमान के निर्माण के लिए एक रोडमैप तैयार करने का आदेश जारी कर दिया. उस निर्णय को लेने से पहले कितना सोचा-विचारा गया या कितने कर्मचारियों ने काम किया, यह स्पष्ट नहीं है. दूसरी समस्या यह है कि जिस प्रक्रिया की परिकल्पना की जा रही है वह ऊपर से नीचे (top-down one) है, जहां कमान तो बना दिए जाते हैं, लेकिन जो चीज़ें एक कमान के लिए ज़रूरी हैं उन्हें छोड़ दिया जाता हैं. उन्हें भरने की कोई समय सीमा तय नहीं की जाती. यह वह प्रक्रिया है जो भारत के सुरक्षा बलों, जो हर समय अर्द्ध युद्ध की तैयारी में रहते हैं, को असंतुलन की स्थिति में डाल सकती है. 

सिद्धांत और अनुभव 

एक आदर्श स्थिति में इस पैमाने पर किए जाने वाले परिवर्तनों में एक स्पष्ट राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति का पालन करना चाहिए और एक संयुक्त रक्षा सिद्धांत के तहत काम करना चाहिए. इसके बजाय, इस प्रक्रिया को दूसरे तरीके से क्रियान्वित किया जा रहा है. पहले संरचनाओं का निर्माण किया जा रहा है जो सिद्धांत बनाएंगे. अप्रैल 2017 में एक संयुक्त सिद्धांत तैयार किया गया था, लेकिन जून में ओआरएफ में हुई चर्चा में इसकी कमियां उजागर हुईं. इस तरह के एक सिद्धांत के अभाव में युद्ध क्षेत्र कमान अपने एकल-सेवा सिद्धांतों और ऑपरेशन की अवधारणाओं पर लौट आएंगे.

इसमें कोई शक नहीं कि इस मुद्दे पर रावत के लिए एकीकृत रक्षा स्टाफ (Integrated Defence Staff) और अन्य समूहों ने काफी मेहनत की होगी. लेकिन काग़ज़ी रिपोर्ट पर्याप्त नहीं होती. व्यावहारिक अनुभव का कोई विकल्प नहीं है, और यह अनुभव ज़मीनी स्तर के अभ्यास से आता है. आदर्श रूप में इन युद्ध क्षेत्र कमानों की स्थापना से पहले वर्षों तक चर्चा और युद्ध अभ्यास से नई संयुक्त कमान की अवधारणाओं को साबित करने की ज़रूरत थी.  

वास्तव में सरकार ने इसके बारे में सही तरीके से प्रयास किया और 2001 में अंडमान और निकोबार कमान की स्थापना की. इस कमान की स्थापना मंत्री समूह की सिफारिश पर की गई. मंत्री समूह ने कारगिल समीक्षा समिति की अनुसंशा पर रक्षा स्थिति की गहन समीक्षा की थी.

युद्ध क्षेत्र कमान के विचार के लिए ए एंड सी कमांड (A&C Command) को सबूत के तौर पर देखा गया. लेकिन यह अनुभव अच्छा नहीं रहा और ट्राई सर्विस कमान लड़खड़ा रहा है. ऐसा सिर्फ़ इसलिए नहीं हुआ कि यह कमान अकेला था, बल्कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि तीनों सेना की अलग-अलग संस्कृतियों को आसानी से नहीं मिलाया जा सकता. लेकिन 2012 में भी नरेश चंद्र टास्क फोर्स की रिपोर्ट में सीडीएस का विचार और युद्ध क्षेत्र कमानों की एक निहित स्वीकृति शामिल था. लेकिन विरोध (ख़ासकर रक्षा मंत्रालय के गैर सैन्य अधिकारियों के) के कारण इस पर आगे नहीं बढ़ा गया. 

मोदी सरकार ने इस बेहद जटिल समस्या का समाधान निकाला और जनरल रावत को सीडीएस और डीएमए के सचिव के रूप में नियुक्त किया. ऐसा लगता है कि जनरल ने तय कर लिया है कि वह अपने हुक्मों से तीनों सशस्त्र सेनाओं के यूनिटों को एक युद्ध क्षेत्र कमान के तहत ला देंगे. ऐसा करना एक बड़ी भूल होगी. बड़ी सैन्य सेवाओं में सुधार और पुनर्गठन आसान नहीं है, विशेष रूप से भारतीय सेना का, जो कई मामलों में वास्तविक और संभावित ख़तरों का सामना करने के लिए युद्ध के लिए अर्द्ध रूप में हमेशा तैयार रहती है. किसी भी प्रक्रिया को अपनाने से पहले दो बातों को ध्यान में रखना चाहिए: 1) संतुलन और 2) प्रभाव. पहला यह सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है कि सुधार और पुनर्गठन की प्रक्रिया अनपेक्षित अंतराल पैदा तो नहीं करती है, जो युद्ध के समय में सुरक्षा बलों को असंतुलित कर सकती है. दूसरा स्वाभाविक है, क्योंकि सुधार का अंतिम परीक्षण यह है कि क्या यह उस प्रणाली से बेहतर काम करता है जिसके बदले उसे लाया गया है.

मोदी सरकार ने इस बेहद जटिल समस्या का समाधान निकाला और जनरल रावत को सीडीएस और डीएमए के सचिव के रूप में नियुक्त किया. ऐसा लगता है कि जनरल ने तय कर लिया है कि वह अपने हुक्मों से तीनों सशस्त्र सेनाओं के यूनिटों को एक युद्ध क्षेत्र कमान के तहत ला देंगे.

कोई भी बदलाव करने का सामान्य तरीका अनुभव से जुड़ा होना चाहिए. यह आसान और कठिन दोनों तरह के कामों पर लागू होता है. उदाहरण के लिए, पुराने ढांचे को तोड़ने और उन्हें नया आकार देने के बजाय विशेष संचालन, अंतरिक्ष और रसद (Logistics) के लिए नया एकीकृत कमान बनाना आसान है.

एक एकीकृत लॉजिस्टिक्स कमान (Unified Logistics Command) तीनों सेनाओं के लिए ज़रूरी सामान्य चीजों को संभालने के साथ शुरू हो सकता है, जैसे कि भोजन, पीओएल (POL), वाहनों का रखरखाव, अस्पताल और कई अन्य चीजें. यह गैर सैन्य संगठनों के साथ काम करने के लिए साधन और तरीके भी ईजाद कर सकता है, जिससे कि गैर-ज़रूरी गोदामों के रखरखाव और ढुलाई जैसे कामों का बोझ सेना के कंधों से हटाया जा सके और आपात स्थिति और युद्ध के समय उनकी क्षमता बढ़ाई जा सके. 

अमेरिका में एकीकृत कमान की अवधारणा 1947 से विकसित हो रही है और 1986 के गोल्डवाटर-निकोल्स अधिनियम में इसे एक लचीले प्रारूप में स्वीकार किया गया. अक्सर युद्ध लड़ने वाला देश होने के नाते अमेरिका इनका उपयोग एक प्रयोगशाला के तौर पर करने में सक्षम है, जिससे कि भविष्य के बदलाव और अनुकूलन में सहायता मिले. दूसरी तरफ चीन में युद्ध क्षेत्र कमान बनाने और सेंट्रल मिलिट्री कमिशन (Central Military Commission) की कमान संरचना के पुनर्गठन की कवायद भले ही साल 2015 से 2017 के बीच तीन सालों में की गई हो, लेकिन यह उस प्रक्रिया का अंत था जो डेढ़ दशक से अधिक समय से चली आ रही थी. जिनान सैन्य क्षेत्र में ज़मीनी स्तर पर अवधारणाओं को साबित करने के लिए बहुत काम किया गया.

भारतीय सेना कुछ हद तक पुरातन रही है. यहां हर सशस्त्र बल अनिवार्य रूप से युद्ध लड़ने की अपनी योजना बनाता है. यद्यपि वे ‘संयुक्तता’ (jointness) की शपथ लेते हैं और संयुक्त अभ्यास करते हैं. मौजूदा व्यवस्था के तहत प्रत्येक घटक- नौ सेना, वायु सेवा और थल सेना- अपने स्वयं के कमांडर के अधीन लड़ते हैं, जो अपने सहयोगियों के साथ ‘समन्वय’ करते हैं.

आज बड़ी मात्रा में मिसाइलों, सटीक युद्ध सामग्री और साइबर हमलों के अलावा सेनाओं को आधुनिक युद्ध की अत्यधिक बढ़ती गति से भी निपटना है. एक कमांडर को निर्बाध रूप से एकीकृत युद्ध क्षमताओं के माध्यम से बल या पैंतरेबाज़ी को तेजी से लागू करने में सक्षम होना चाहिए. उसे ‘समन्वित कार्रवाई’ के लिए चीजों को छोड़ने के बजाय ऐसा करना चाहिए. भारतीय सेना को आधुनिक, उच्च तकनीक वाले युद्ध लड़ने में सक्षम बनाने के लिए पुनर्निर्माण और पुनर्गठन की ज़रूरत है. लेकिन, क्या इसे सीधे परिवर्तन करना चाहिए, या फिर जैसा कि एक चीनी कहावत है ‘पत्थरों को महसूस करके नदी पार करो’ यानी स्थिति का आकलन कर आगे बढ़ने पर विचार करना चाहिए. 


(मैं अपने सहयोगी ब्रिगेडियर दीपक सिन्हा को धन्यवाद देना चाहता हूं जिन्होंने मुझे इस मसौदे पर कुछ उपयोगी टिप्पणियां दीं.)

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