Author : Harsh V. Pant

Published on Apr 26, 2019 Updated 0 Hours ago

अगर नेशनल तौहीद जमात ही समस्या की जड़ है, तो तमिलनाडु में इस संगठन की मौजूदगी की बारीकी से पड़ताल जरूरी है। आईएसआईएस की वास्तव में इन धमाकों में भूमिका है, तो आईएसआईएस की विचारधारा का असर कितना है, इसका आकलन करना होगा।

श्रीलंका पर आतंकवादी हमलाः भारत के लिए चुनौतियां

ईस्टर के मौके पर 21 अप्रैल को श्रीलंका में हुए बम धमाकों ने दस साल लंबे शांति के दौर की धज्जियां उड़ा दी। इसके साथ ही इस देश के सामाजिक और राजनीतिक ताने-बाने के अंदर पसरा तनाव एक बार फिर से सतह पर आ गया है। यह भीषण धमाके देश के उस हिंसक अतीत की यादें ताजा कर देते हैं, जब श्रीलंका में 25 साल तक चले गृह युद्ध में 70,000 से ज्यादा लोगों की मौत हुई। 2009 में श्रीलंका की सेना ने लिबरेशन टाइगर्स आफ तमिल ईलम (लिट्टे) को आखिरकार पराजित कर दिया था और इस गृह युद्ध का अंत हुआ था।

सुनियोजित तरीके से समन्वित रूप से इन धमाकों में पहले कोलंबो, नेगोंबो और बट्टीकलोआ में ईस्टर सर्विस के दौरान भीड़ भरे चर्चों को निशाना बनाया गया। इसके बाद राजधानी कोलंबो के तीन आलीशान होटलों, शांग्रीला, सिनेमोन ग्रांड और किंग्सबरी में सिलसिलेवार तरीके से बम विस्फोट हुए। कम से कम 39 विदेशी नागरिक भी इन हमलों में मारे गए। जिनमें तीन भारतीय, पांच ब्रिटिश, दो तुर्की और दो चीनी नागरिक शामिल हैं।

दो करोड़ 14 लाख आबादी वाले इस देश में ईसाई समुदाय दस प्रतिशत से भी कम है। यह अल्पसंख्यक समुदाय ही इन हमलों का मुख्य निशाना था। हाल के दिनों में श्रीलंका में सांप्रदायिक तनाव बढ़ा है। एक ओर कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन पैदा हो गए हैं, तो वहीं दूसरी ओर बोडू बाला सेना व अन्य के नेतृत्व में चरमपंथी राष्ट्रवादी बौध संगठन भी लामबंद हो गए हैं। इस तनाव के बावजूद भी श्रीलंका में ईसाई कभी हिंसा के निशाने पर नहीं रहे। लेकिन अब वैश्विक घटनाक्रम श्रीलंका के स्थानीय टकराव पर अपना असर दिखा रहा है।

इन धमाकों से दहली श्रीलंका सरकार ने व्यवस्था कायम करने के लिए तमाम कदम उठाए हैं। राष्ट्रपति ने इन धमाकों की जांच के लिए तीन सदस्यीय पैनल गठित कर दिया है। इसके अलावा पुलिस एवं सुरक्षा बलों को लोगों को हिरासत में लेने और पूछताछ करने के लिए अतिरिक्त शक्तियों से लैस किया गया है। सरकार ने अस्थायी रूप से फेसबुक, इंस्टाग्राम समेत तमाम सोशल मीडिया पर भी पाबंदी लगा दी है।

श्रीलंका सरकार ने आखिरकार नेशनल तौहीद जमात (एनटीजे) नामक एक नामालूम से कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन को इन हमलों के लिए जिम्मेदार ठहराया है। पिछले साल इस संगठन ने बौद्य मठों में मूर्तियों में तोड़-फोड़ की थी, लेकिन इस तरह के व्यापक हमलों का इसका कोई अतीत नहीं है। फिलहाल यही अंदाजा लगाया जा रहा है कि इन हमलों के लिए एनटीजे को वैश्विक आतंकवादी नेटवर्क से सहयोग मिला। हालांकि इन हमलों में मारे जाने वाले सभी आत्मघाती हमलावर श्रीलंका के नागरिक हैं।

इस तरह के सुनियोजित और समन्वित हमलों के बारे में यह तो मानना ही पड़ेगा कि बिना किसी बाहरी मदद के इस तरह के हमले किए जाना संभव नहीं है। कुछ लोगों ने शक जाहिर किया है कि इन धमाकों के पीछे आईएसआईएस का हाथ हो सकता है। सीरिया और ईराक में आईएसआईएस की ओर से तकरीबन सौ श्रीलंकाई लड़ाके मौजूद हैं। इस तथ्य से इस शंका को बल मिलता है कि इन हमलों में आईएसआईएस का हाथ हो सकता है।

इन हमलों के बारे में वास्तव में बहुत महत्वपूर्ण बात खुफिया ढांचे की गंभीर विफलता है। इन हमलों से दस दिन पहले श्रीलंका की सुरक्षा एजेंसियों को इस बाबत चेतावनी जारी दी गई थी कि एक कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन चर्चों पर आत्मघाती हमले की तैयारी कर रहा है। लेकिन इस चेतावनी पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। यही नहीं हमलों से एक दिन पहले भी यह चेतावनी दोहराई गई थी। भारत की तरफ से भी इस खतरे के बारे में श्रीलंका को आगाह किया जा चुका था। अभी तक जो नजर आता है, यह एक रणनीतिक विफलता है। इस गंभीर संकट की स्थिति में श्रीलंका का संस्थागत ढांचा पूरी तरह नदारद है। अगर एनटीजे के इस हमले में शामिल होने की बात सही है, तो यह और भी बड़ी रणनीतिक चूक है कि एक छोटे से संगठन से यह इतना बड़ा खतरा बन गया और इसकी किसी को भनक तक नहीं लगी।

श्रीलंका के प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने स्पष्ट कर दिया है कि न तो उन्हें और न ही उनके किसी कैबिनेट सहयोगी को इस चेतावनी की जानकारी दी गई। इससे नजर आता है कि देश के राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना और उनके बीच चल रहा सत्ता संघर्ष किस हद तक जा चुका है। राष्ट्रपति देश के रक्षा मंत्री भी हैं और सभी खुफिया एजेंसियां उन्हें ही रिपोर्ट करती हैं।

देश जैसे-जैसे चुनाव के नजदीक जाएगा, सिरिसेना और विक्रमसिंघें के बीच तनाव और गहरा होता जाएगा। राजपक्षे खेमा सिरिसेना को हटाकर उनकी जगह लेने के लिए इंतजार में है। यह खेमा इस बात को पूरी मजबूती के साथ उछालेगा कि तमिल विद्रोह से राजपक्षे किस तरह सफलतापूर्वक निपटे थे।

श्रीलंका का घटनाक्रम भारत की सुरक्षा के लिए भी चुनौती है। अगर एनटीजे सही में समस्या की जड़ है, तो तमिलनाडु में इसकी मौजूदगी को करीब से जांचना जरूरी होगा। अगर इस हमले में आईएसआईएस ने वास्तव में कोई भूमिका निभाई है, तो आईएसआईएस के समाप्त होने के बावजूद उसकी विचारधारा के प्रभाव का भी आकलन करना होगा। भारत को अपने जैसी सोच वाले श्रीलंका और बांग्लादेश जैसे देशों के साथ और करीब होकर काम करना होगा, जिससे इस खतरनाक प्रवृत्ति से निपटने के लिए समूचे दक्षिण एशिया का एक ठोस रवैया तैयार किया जा सके।


यह लेख मूल रूप से The Diplomat में प्रकाशित हो चुका है।

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