Published on Jan 22, 2024 Updated 0 Hours ago

उत्तर कोरिया से लगातार बढ़ रहे ख़तरे की वजह से दक्षिण कोरिया को अपना स्वदेशी परमाणु आत्मरक्षा कवच विकसित करने की दिशा में बढ़ने को मजबूर होना पड़ रहा है.

उत्तर कोरिया का मिसाइल परीक्षण और परमाणु हथियारों को लेकर दक्षिण कोरिया की दुविधा!

यूक्रेन और रूस, इज़राइल और हमास के बीच चल रहे युद्धों के बीच, उत्तर कोरिया द्वारा बार बार दी जा रही धमकियों के कारण कोरियाई प्रायद्वीप भी लगातार संकटों का सामना कर रहा है. हाल ही में उत्तर कोरिया ने समुद्री सीमा के क़रीब गोलीबारी की थी, जिसकी वजह से पूरे इलाक़े में हंगामा खड़ा हो गया है. दक्षिण कोरिया के मुताबिक़, उत्तर कोरिया ने पिछले हफ़्ते लगभग 350 राउंड गोले दाग़े थे. उत्तर कोरिया ने ये गोलीबारी, सीमा के क़रीब दक्षिण कोरिया की सैन्य गतिविधियों के जवाब में की थी. इन सैन्य अभ्यासों को उत्तर कोरिया ने ‘फ़ौज़ी ग़ुंडों की हरकत’ क़रार दिया था. यही नहीं, दिसंबर 2023 में उत्तर कोरिया ने अपनी ह्वासॉन्ग-18 इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल (ICBM) का परीक्षण भी किया था, और ‘किसी भी वक़्त’ परमाणु हमला करने की धमकी दी थी. ये एक महत्वपूर्ण घटना थी. किम जोंग-उन ने उकसाए जाने पर अमेरिका पर भी एटमी हमला करने की धमकी दी थी और कहा था कि उनके देश ने ये मिसाइल अपने ख़िलाफ़ सैन्य संघर्ष का माहौल बनाए जाने के विरोध में किया था.

दक्षिण कोरिया के मुताबिक़, उत्तर कोरिया ने पिछले हफ़्ते लगभग 350 राउंड गोले दाग़े थे. उत्तर कोरिया ने ये गोलीबारी, सीमा के क़रीब दक्षिण कोरिया की सैन्य गतिविधियों के जवाब में की थी. इन सैन्य अभ्यासों को उत्तर कोरिया ने ‘फ़ौज़ी ग़ुंडों की हरकत’ क़रार दिया था.

हाल के दिनों में बढ़ा ये ख़तरा दक्षिण कोरिया के लिए विशेष रूप से चिंता पैदा करने वाला है. यहां तक कि 2022 में भी उत्तर कोरिया ने लगभग 70 मिसाइलें दाग़ी थीं, जिसके बाद दक्षिण कोरिया की जनता की तरफ़ से परमाणु हथियार विकसित करने की मांग बढ़ गई है. इस लेख में हम परमाणु चुनौती का सामना कर रहे दक्षिण कोरिया के सामने खड़ी जटिलताओं, अधिक स्वायत्तता स्थापित करने का दबाव, बाहरी ख़तरों और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा के बदलते पहलुओं का आकलन कर रहे हैं.

एटमी हथियारों को लेकर दक्षिण कोरिया की दुविधा 

दक्षिण कोरिया अपनी सुरक्षा के लिए मोटे तौर पर अमेरिका पर निर्भर रहा है. हालांकि, शीत युद्ध के बाद के दौर में आर्थिक लाभ हासिल करने और उत्तर कोरिया से बढ़ते ख़तरे से निपटने के लिए दक्षिण कोरिया ने चीन के साथ संवाद की शुरुआत की थी. दक्षिण कोरिया की समझौतावादी विदेश नीति ने उसको गठबंधन और स्वायत्तता के बीच एक संतुलन बनाने की इजाज़त नहीं दी. इस वजह से दक्षिण कोरिया के लिए अपनी विदेश नीति और विशेष रूप से अपनी परमाणु नीति को स्वतंत्र रूप से संचालित करना मुश्किल हो गया है. उत्तर कोरिया की तरफ़ से बढ़ते एटमी ख़तरे को देखते हुए, आज दक्षिण कोरिया ख़ुद को एक भू-राजनीतिक जाल में फंसा हुआ पा रहा है, जो उसके पेचीदा और बहुआयामी परमाणु मसले को दिखाता है.

अपनी विदेश नीति को स्वतंत्र रूप से चलाने के लिए दक्षिण कोरिया पूरी सक्रियता से कई कूटनीतिक संवाद चला रहा है. जैसे कि वो क्वॉड (QUAD) के साथ नज़दीकी संबंध स्थापित कर रहा है और चीन की आक्रामकता के ख़िलाफ़ ज़ोर-शोर से आवाज़ उठा रहा है. यही नहीं, दक्षिण कोरिया न्यू सदर्न पॉलिसी और इंडो-पैसिफिक स्ट्रैटेजी जैसी बहुपक्षीय पहलें भी कर रहा है. दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यून सुक-इयोल ने हाल ही में दक्षिण कोरिया द्वारा अपने स्वदेशी परमाणु हथियार विकसित करने या फिर अमेरिका के टैक्टिकल एटमी हथियारों को दोबारा तैनात करने की संभावनाओं की भी चर्चा की, ताकि वो उत्तर कोरिया की तरफ़ से परमाणु ख़तरे में हुए भयंकर इज़ाफ़े का सामना कर सके. इससे पहले पार्क चुंग-ही के शासनकाल में दक्षिण कोरिया ने अपने परमाणु हथियार विकसित करने की शुरुआत की थी, मगर अमेरिका ने इसमें अड़ंगा लगा दिया था. हालांकि, यून ने फ़ौरन परमाणु हथियार विकसित करने की मांगों को ख़ारिज कर दिया है. लेकिन, उनके बयानों ने दक्षिण कोरिया की परमाणु महत्वाकांक्षाओं को लेकर घरेलू चर्चा की शुरुआत की और उन्हें नई धार दे दी है. इसलिए, उत्तर कोरिया की तरफ़ से लगातार बने हुए ख़तरों, अंदरूनी कारणों की वजह से दक्षिण कोरिया को आत्मरक्षा के लिए परमाणु हथियार विकसि करने और बाहरी किरदारों द्वारा इसमें सावधानी बरतने से पैदा हुए इन हालात की जटिलताओं की पड़ताल करना महत्वपूर्ण हो जाता है.

घरेलू दबाव: सुरक्षा संबंधी चिंताएं और स्वायत्तता की इच्छा

उत्तर कोरिया की ओर से मंडराता परमाणु ख़तरा: दक्षिण कोरिया के ऊपर परमाणु हमले की तलवार लगातार लटक रही है, क्योंकि उत्तर कोरिया लगातार मिसाइलें दाग़ रहा है और उसका एटमी हथियार कार्यक्रम भी बेलगाम चल रहा है. उत्तर कोरिया की तरफ़ से लगातार परमाणु हमला करने की धमकी उस वक़्त और ख़तरनाक हो गई,जब नवंबर 2022 में उसने सियोल की तरफ़ दर्जनों मिसाइलें दाग़ी थीं. इनमें से एक मिसाइल, दक्षिण कोरिया के उल्लेयुंगडो द्वीप पर गिरी थीं. कोरिया के युद्ध (1950-53) के बाद ऐसा पहली बार हुआ था. मिसाइलें दाग़े जाने की इन घटनाओं की वजह से दक्षिण कोरिया की सरकार को उस द्वीप पर हवाई हमले की चेतावनी जारी करनी पड़ी थी. इसका दक्षिण कोरिया की जनता पर गहरा असर पड़ा था. उसके बाद हुए सर्वेक्षणों में स्वदेशी परमाणु कवच को लेकर नागरिकों के बीच समर्थन को उल्लेखनीय ढंग से बढ़ता पाया गया था.

असान इंस्टीट्यूट फॉर पॉलिसी स्टडीज़ द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में पता चला था कि कोरिया के 64.3 प्रतिशत लोग स्वतंत्र रूप से परमाणु हथियार विकसित करने का समर्थन करते हैं.

असान इंस्टीट्यूट फॉर पॉलिसी स्टडीज़ द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में पता चला था कि कोरिया के 64.3 प्रतिशत लोग स्वतंत्र रूप से परमाणु हथियार विकसित करने का समर्थन करते हैं. इसके अतिरिक्त शिकागो काउंसिल ऑन ग्लोबल अफ़ेयर्स और चे इंस्टीट्यूट फॉर एडवांस्ड स्टडीज़ द्वारा किए गए संयुक्त सर्वे में संकेत मिला था कि दक्षिण कोरिया के 70 प्रतिशत से ज़्यादा लोग, उत्तर कोरिया से बढ़ते एटमी ख़तरे को देखते हुए अपने देश के परमाणु हथियार विकसित करने का समर्थन करते हैं. दक्षिण कोरिया की जनता के बीच ये जज़्बात उत्तर कोरिया द्वारा बार बार मिसाइलें दाग़ने और उसकी संशोधित परमाणु नीति की वजह से बढ़ गए हैं. इससे स्वदेशी परमाणु हथियार विकसित करने की ज़रूरत लोगों को और भी समझ में आ रही है. 

चीन का झगड़ालू रवैया: चीन, लंबे समय से उत्तर कोरिया का समर्थन करता रहा है. किम की सरकार की खुली वकालत करके उसने तनाव को और बढ़ा दिया है. हाल ही में चीन द्वारा ताइवान पर हमला करने की धमकी को दोहराकर हालात को और ख़राब बना दिया है.अगर चीन, ताइवान पर हमला करता है, तो वो उत्तर कोरिया की रक्षा पंक्ति का इस्तेमाल एक और सैन्य मोर्चा खोलने के लिए कर सकता है, जिससे अमेरिका और दक्षिण कोरिया, दोनों के लिए दोहरा ख़तरा पैदा हो जाएगा. ये रणनीति अमेरिका को ताइवान के विवाद में उलझने से रोक देगी. इसके अलावा, सियोल में अमेरिका के टर्मिनल हाई एल्टीट्यूड एरिया डिफेंस (THAAD) मिसाइल डिफेंस सिस्टम की तैनाती को लेकर चीन के कड़े ऐतराज़ और उसके बाद आर्थिक नुक़सान पहुंचाने के लिए उठाए गए क़दमों ने अपनी सुरक्षा और अर्थव्यवस्था को महफ़ूज़ रखने की क्षमता को काफ़ी सीमित कर दिया है. इसका नतीजाये हुआ है कि दक्षिण कोरिया के लोग अब आने वाले समय में चीन को भी एक बड़ा ख़तरा मानने लगे हैं और इस दोहरे ख़तरे से निपटने के लिए परमाणु हथियार विकसित कराना चाहते हैं.

अमेरिका के परमाणु कवच पर से कम होता भरोसा: अमेरिका के परमाणु रक्षा कवच पर लंबे समय से चली आ रही निर्भरता और अमेरिका की प्रतिबद्धता में हीला-हवाली का नतीजा ये हुआ है कि इस मामले में भी कई चुनौतियां पैदा हो गई हैं. उल्लेखनीय रूप से ट्रंप प्रशासन की ‘अमेरिका फर्स्ट’ वाली नीतियां, जिसके तहत वित्तीय कारणों से दक्षिण कोरिया में तैनात 4,000 अमेरिकी सैनिकों को वापस बुलाने का प्रस्ताव और परमाणु निरस्त्रीकरण को लेकर अस्पष्ट रवैये ने इस परमाणु रक्षा कवच की विश्वसनीयता को लेकर आशंकाओं को जन्म दिया है. इन हालात ने दक्षिण कोरिया के भीतर एटमी हथियारों के विकास को लेकर समर्थन और बढ़ा दिया है.

हाल ही में दक्षिण कोरिया में परमाणु हथियारों से लैस पनडुब्बियां तैनात करके एटमी ख़तरे को कम करने के मक़सद से ‘वॉशिंगटन घोषणा’ पर दस्तख़त किए गए हैं. लेकिन, अमेरिका ये समझौता करके भी दक्षिण कोरिया की पूरी और विश्वसनीय सुरक्षा कर पाने की अपनी क्षमता और प्रतिबद्धता को लेकर पैदा हुई आशंकाएं दूर नहीं कर सका है.

हाल ही में दक्षिण कोरिया में परमाणु हथियारों से लैस पनडुब्बियां तैनात करके एटमी ख़तरे को कम करने के मक़सद से ‘वॉशिंगटन घोषणा’ पर दस्तख़त किए गए हैं. लेकिन, अमेरिका ये समझौता करके भी दक्षिण कोरिया की पूरी और विश्वसनीय सुरक्षा कर पाने की अपनी क्षमता और प्रतिबद्धता को लेकर पैदा हुई आशंकाएं दूर नहीं कर सका है. इस वजह से दक्षिण कोरिया में परमाणु हथियार विकसित करने को लेकर परिचर्चाओं को और बल मिला है. ये चिंता बिल्कुल वाजिब है कि अमेरिका, दक्षिण कोरिया के नागरिकों की रक्षा करने के बजाय, अपने शहरों और अपने नागरिकों की सुरक्षा को प्राथमिकता देगा. इससे स्वदेशी परमाणु क्षमता विकसित करने को लेकर विचार शुरू हुआ है. यही नहीं, रूस और उत्तर कोरिया के बीच परमाणु तकनीक साझा किए जाने की आशंका ने भी दक्षिण कोरिया को गठबंधन के समझौते संशोधिन करके परमाणु शक्ति से लैस पनडुब्बी का कार्यक्रम (SSN) को आगे बढ़ाने की संभावना भी पैदा हुई है. उत्तर कोरिया पर नज़र रखने वाली एक स्वतंत्र पर्यवेक्षक गैब्रिएला बर्नाल का कहना है कि अगर दक्षिण कोरिया को ये लगता है कि अमेरिका उसको मंझधार में छोड़ देगा तो इस बात की पूरी संभावना है कि भविष्य में दक्षिण कोरिया, अमेरिका की ख़्वाहिशों को दरकिनार करते हुए अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एटमी हथियारों विकसित करने की दिशा में आगे बढ़ने लगेगा.

तकनीकी शक्ति और राष्ट्रवादी महत्वाकांक्षाएं: दक्षिण कोरिया में परमाणु हथियार विकसित करने को लेकर चर्चाएं तब से तेज़ हुईं, जब अमेरिका ने दक्षिण कोरिया में टैक्टिकल परमाणु हथियार तैनात करने या फिर दक्षिण कोरिया द्वारा स्वतंत्र रूप से परमाणु क्षमता हासिल करने के राष्ट्रपति यून के प्रस्ताव को ठुकरा दिया. इस वजह से दक्षिण कोरिया में राष्ट्रीय गौरव और सामरिक स्वायत्तता की ख़्वाहिशें उफ़ान पर आ गईं, जिससे स्वदेशी परमाणु कार्यक्रम के पक्ष में दिए जा रहे तर्कों को बल मिला. इसके अतिरिक्त दक्षिण कोरिया के पास वो उन्नत तकनीकी और वैज्ञानिक क्षमता है, जो एटमी हथियार विकसित करने के लिए बेहद ज़रूरी होता है. इससे दक्षिण कोरिया को अपनी परमाणु नीतियों पर अधिक अधिकार हासिल होगा. हालांकि, मौजूदा वैश्विक परिदृश्य में दक्षिण कोरिया को एक परमाणु शक्ति के रूप में उभरने से पहले सावधानी से पुनर्विचार करना होगा. इससे इस मोड़ पर परमाणु हथियार विकिसत करने की संभावनाओं पर अनिश्चितता के बादल मंडराने लगे हैं.

संतुलन साधने की कोशिश और एक टिकाऊ समाधान की तलाश

एटमी हथियारों को लेकर दक्षिण कोरिया की ये दुविधा वैश्विक परमाणु अप्रसार व्यवस्था के सामने खड़ी व्यापक चुनौतियों को प्रतिबिंबित करती है. इस चुनौती से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए दक्षिण कोरिया को बड़ी चतुराई से कूटनीतिक प्रयासों, क्षेत्रीय सहयोग और एक मज़बूत पारंपरिक सुरक्षा ढांचा विकसित करने का सटीक ममेल तैयार करना होगा, ताकि वो एक राष्ट्र के तौर पर अपने साथ साथ व्यापक क्षेत्र का भविष्य भी सुरक्षित कर सके.

सुरक्षा में सहयोग बढ़ाकर, साझा युद्ध अभ्यास और दुश्मन को भयग्रस्त करने को लेकर अपनी प्रतिबद्धता को दोहराने के साथ गठबंधन में नई जान डालने से दक्षिण कोरिया की सुरक्षा संबंधी चिंताएं दूर की जा सकती है. इस मामले में दक्षिण कोरिया और अमेरिका ने हाल ही में 2024 के मध्य तक एक साझा परमाणु रणनीति की योजना बनाकर उसे लागू करने के दिशा-निर्देशों स्थापित करने को अंतिम रूप दिया है. इन दिशा-निर्देशों में बहुत व्यापक विषय शामिल किए गए हैं. इनमें संवेदनशील परमाणु जानकारी साझा करना, आज की ज़रूरत के मुताबिक़ सुरक्षा व्यवस्था स्थापित करना, परमाणु संकटों की स्थिति में सलाह मशविरे की प्रक्रियाओं को अंतिम रूप देना, वास्तविक समय में नेताओं के स्तर पर संवाद के माध्यम को संचालित करना और संकटों से निपटने एवं ख़तरों को कम करने की योजनाएं शामिल हैं.

यही नहीं, दक्षिण कोरिया की आत्मरक्षा की क्षमता को मज़बूत करते हुए, परमाणु ख़तरे से निपटने पर अधिक ध्यान केंद्रित करने की ज़रूरत है. इसके लिए G20 और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) जैसे बहुपक्षीय मंचों के ज़रिए परमाणु निरस्त्रीकरण के प्रयास करने के साथ साथ दक्षिण कोरिया, जापान और अमेरिका के बीच त्रिपक्षीय सहयोग बढ़ाने और चीन, दक्षिण कोरिया और जापान के साथ प्रस्तावित त्रिपक्षीय बातचीत दोबारा शुरू करने जैसी कूटनीतिक कोशिशें भी तेज़ करनी होंगी. इसके अतिरिक्त दक्षिण कोरिया द्वारा क्वॉड ढांचे में शामिल होने के प्रयासों को अगर परमाणु निरस्त्रीकरण की बातचीत के साथ जोड़ा जाए, तो इससे उत्तर कोरिया पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों से कहीं ज़्यादा दबाव बनेगा. वैसे तो परमाणु हथियारों से पूरी तरह निजात मिलने की गारंटी तो नहीं है. लेकिन, इन कोशिशों में बयानबाज़ी कम करने और परमाणु निरस्त्रीकरण को लेकर बातचीत शुरू करने की संभावनाएं तो हैं.

अमेरिका का समर्थन महत्वपूर्ण तो है. लेकिन अगर मौजूदा अमेरिकी प्रशासन पारंपरिक तरीक़ा अपनाते हुए दक्षिण कोरिया को भरोसा दिलाता है, तो भी दक्षिण कोरिया के नीति निर्माताओं को सतर्क रहना होगा कि 2024 में होने वाले चुनावों के बाद, भविष्य के अमेरिकी प्रशासन कहीं दूसरा रुख़ न अपना लें.

हालांकि, राष्ट्रपति यून द्वारा हाल ही में परमाणु शक्ति विकसित करने पर विचार करने और कूटनीतिक प्रयासों को तेज़ करने की कोशिशें, दक्षिण कोरिया के चतुर रणनीतिक नज़रिए को दिखाते हैं. लेकिन, आने वाले हालात से निपटने के लिए अमेरिका और दक्षिण कोरिया के परमाणु गठबंधन, सुरक्षा को लेकर घरेलू चिंताएं दूर करने और कूटनीतिक पहलों में शामिल होने के बीच एक बारीक संतुलन बनाने की ज़रूरत है. अमेरिका का समर्थन महत्वपूर्ण तो है. लेकिन अगर मौजूदा अमेरिकी प्रशासन पारंपरिक तरीक़ा अपनाते हुए दक्षिण कोरिया को भरोसा दिलाता है, तो भी दक्षिण कोरिया के नीति निर्माताओं को सतर्क रहना होगा कि 2024 में होने वाले चुनावों के बाद, भविष्य के अमेरिकी प्रशासन कहीं दूसरा रुख़ न अपना लें. दक्षिण कोरिया की चुनौती ये है कि वो एक परिष्कृत और व्यापक तरीक़ा तलाशे, जो उसकी सुरक्षा को सुनिश्चित करने के साथ साथ इस क्षेत्र की व्यापक स्थिरता में भी योगदान दे. इसके साथ साथ, दक्षिण कोरिया की अर्थव्यवस्था निर्यात पर आधारित है और परमाणु हथियार विकसित करने का कोई भी प्रयास अर्थव्यवस्था को पंगु बना सकता है, क्योंकि तब अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लगे तो दक्षिण कोरिया काफ़ी कमज़ोर हो सकता है. यही नहीं, इससे क्षेत्रीय सुरक्षा अस्थिर हो जाएगी. हथियारों की होड़ को बढ़ावा मिलेगा और विश्व स्तर पर दक्षिण कोरिया की छवि और मध्यम दर्जे की ताक़त बनने के उसके लक्ष्य को भी चोट पहुंचेगी. इसीलिए, परमाणु हथियार विकसित करने का विकल्प भले ही मौजूदा हालात में सबसे अच्छा विकल्प हो. मगर, इसको लेकर दक्षिण कोरिया का रुख़ अस्पष्ट बना हुआ है. पर, भविष्य में एटमी हथियारों की मांग और बढ़ती रहेगी.

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