Author : Maya Prakash

Published on Sep 11, 2023 Updated 0 Hours ago
आख़िर किन वजहों से भारत ने अफ्रीकन यूनियन को G20 में शामिल करने प्रस्ताव दिया था: विश्लेषण

स्थायी मेहमान से स्थायी सदस्य तक

अफ्रीकन यूनियन (AU) G20 के कई शिखर सम्मेलनों में एक स्थायी मेहमान रहा है. इसके अलावा वो G20 के विशेष वर्किंग ग्रुप जैसे कि अफ्रीकन यूनियन इकोनॉमिक प्रोग्राम और न्यू पार्टनरशिप फॉर अफ्रीकाज़ डेवलपमेंट (NEPAD) का भी नेतृत्व करता है. वर्तमान में अफ्रीकन यूनियन की G20 में कोई ख़ास नुमाइंदगी नहीं है, अफ्रीकी देशों में से सिर्फ़ एक स्थायी सदस्य और दो मेहमान देश G20 में शामिल हैं. इसके विपरीत यूरोपीय देशों में से छह स्थायी सदस्य और एक मेहमान प्रतिनिधि G20 में शामिल है. इस तरह G20 में अफ्रीकन यूनियन के मुकाबले यूरोपियन यूनियन की नुमाइंदगी काफी ज़्यादा है. वैश्विक अर्थव्यवस्था में 10 प्रतिशत के हिस्से, 1.4 अरब आबादी और 19 साल की औसत उम्र (मेडियन ऐज) की वजह से डेमोग्राफिक डिविडेंड (जनसांख्यिकीय फायदा) के साथ अफ्रीकी संघ इन मानदंडों (पैरामीटर) के मामले में यूरोपीय संघ के बराबर है. कागजों में देखें तो AU की स्थायी सदस्यता के लिए मज़बूत दलीलें हैं क्योंकि मौजूदा समय में अफ्रीका महादेश के 55 देश इसके सदस्य हैं और यहां 2050 तक दुनिया की सबसे ज़्यादा आबादी होने का अनुमान है. 

 पिछले साल G20 की अध्यक्षता के दौरान इंडोनेशिया ने G20 बाली समिट से पहले ही AU के लिए स्थायी सदस्यता के विचार का समर्थन किया था.

दिल्ली में G20 समिट 2023 के लिए ज़ोरदार तैयारी के साथ भारत के लिए ये एक मौका भी था कि वो ग्लोबल साउथ (विकासशील देश) की नुमाइंदगी करने वाले अपने नेतृत्व को दिखाए. G20 के सदस्य देशों में से ग्लोबल साउथ के छह देश हैं जिनमें से चार देश लगातार तीन-तीन साल की तिकड़ी में इसकी अध्यक्षता करेंगे: ‘इंडोनेशिया-भारत-ब्राज़ील’ और ‘भारत-ब्राज़ील-दक्षिण अफ्रीका’. ‘ग्लोबल साउथ के क्वॉड’ का ये निर्णायक मोड़ महत्वपूर्ण संरचनात्मक सुधारों के लिए सिफारिशों के ज़रिए G20 की लीडरशिप को ग्लोबल साउथ के दृष्टिकोण को सशक्त करने की अनुमति देता है. पिछले साल G20 की अध्यक्षता के दौरान इंडोनेशिया ने G20 बाली समिट से पहले ही AU के लिए स्थायी सदस्यता के विचार का समर्थन किया था. इस पहल का तब फ्रांस, चीन और दक्षिण अफ्रीका जैसे G20 के सदस्य देशों ने समर्थन किया था लेकिन बाद में बाली की लीडरशिप डिक्लेरेशन (घोषणापत्र) 2022 में इस पहल को जगह नहीं दी गई. अन्य शिखर सम्मेलनों के दौरान भी वैश्विक संस्थानों से बेहतर प्रतिनिधित्व की अपील की गई जैसे कि वॉशिंगटन डीसी में अमेरिका-अफ्रीका लीडरशिप समिट 2022 में अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने स्थायी सदस्य के तौर पर AU के G20 में शामिल होने का समर्थन किया था. 

G20 की भूमिका: ग्लोबल साउथ की आवाज़ को जोड़िए

बाहरी देशों के द्वारा G20 की आलोचना अक्सर इस बात के लिए की जाती है कि वो एक ‘निजी समूह’ है जिसके पास नई सदस्यता के लिए कोई रोडमैप नहीं है. इस तरह के नैरेटिव का मुक़ाबला करने के लिए एक “मानव केंद्रित’ दृष्टिकोण संभव है जैसा कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुझाव दिया था जब उन्होंने एक बड़े संघर्ष, महामारी या वैश्विक आर्थिक संकट के दौरान वैक्सीन या फार्मास्युटिकल सप्लाई चेन के क्षेत्र में G20 की मौजूदा साझेदारी का हवाला दिया था. भारत की G20 अध्यक्षता के तहत की गई पहल “वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट” के माध्यम से ग्लोबल साउथ के बीच सलाह-मशविरे को अभूतपूर्व फायदा हुआ. “वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट” टिकाऊ और समावेशी वैश्विक विकास को प्राथमिकता देती है. इस तरह की पहल से जुड़कर G20, वर्ल्ड बैंक और IMF जैसे संस्थानों की क्षमता को बढ़ाने के लिए एक रोडमैप विकसित कर सकता है, इन संस्थानों को आर्थिक एकीकरण से आगे की समकालीन चुनौतियों का समाधान करने के लिए समर्थ बना सकता है.    

दो दशक पुराने AU में इसके सदस्य देशों के बीच भू-राजनीतिक सामंजस्य की कमी हो सकती है और ये G20 सदस्यों के साथ एकीकरण के लिए चिंता का एक कारण हो सकता है.

AU की स्थायी सदस्यता के प्रस्ताव के साथ G20 के नीति निर्माताओं को इस युवा संगठन के भू-राजनीतिक ध्रुवीकरण के बारे में भी सावधान होना चाहिए. चीन ने इथियोपिया में AU के मुख्यालय की एकतरफा तौर पर फंडिंग करके या AU में काम-काज की जगह पर साइबर जासूसी के दावों के ज़रिए इस क्षेत्र में अपना दबदबा बनाने में काफी दिलचस्पी दिखाई है. क्या G20 के बहुपक्षीय क्षेत्र में विकास के अपने एजेंडे को आगे बढ़ाते समय AU अपनी सामरिक तटस्थता को बरकरार रख सकता है? विकास से जुड़ी कई अन्य चुनौतियों की तरफ AU और G20 के सदस्यों के इस भू-राजनीतिक ध्रुवीकरण के बावजूद क्या भारत वैश्विक चुनौतियों को लेकर एक ज़िम्मेदार व्यापक दृष्टिकोण अपनाकर ग्लोबल साउथ का नेतृत्व कर सकता है?  

क्या AU तैयार है? 

जनवरी 2023 में आयोजित सालाना AU समिट में 2063 के लिए अफ्रीकन विज़न को बहाल किया गया. साथ ही अफ्रीकन कॉन्टिनेंटल फ्री ट्रेड एग्रीमेंट से हासिल नतीजों, यूनियन के तौर पर बातचीत के लिए उचित गवर्नेंस के ढांचे, क्षमता निर्माण और खाद्य सुरक्षा, ऊर्जा सुरक्षा एवं अन्य गैर-परंपरागत सुरक्षा चुनौतियों पर प्रकाश डाला गया. हालांकि G20 के नीति निर्माता दलील दे सकते हैं कि AU मौजूदा समय में EU जैसी कठोर और कुशल प्रणाली की तरह काम नहीं कर सकता है लेकिन फिर भी AU की क्षमताओं को देखते हुए इस क्षेत्र को G20 की निर्णय लेने की प्रक्रिया के साथ जोड़ देना चाहिए. AU का एजेंडा मज़बूती से कई टास्क फोर्स जैसे कि G20 डेवलपमेंट वर्किंग ग्रुप की अगुवाई में ‘G20 एक्शन प्लान ऑन 2030 एजेंडा फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट इन 2016’ से मिलता-जुलता है. इस तरह के अंतर-सरकारी समूह अफ्रीकी यूनियन को बातचीत की मेज पर अपनी स्थायी मौजूदगी के बाद वैश्विक मंच पर बेहतर आर्थिक सौदेबाज़ी की ताकत मुहैया कराएंगे और एक खंडित एवं विविधताओं से भरे यूनियन के लिए आर्थिक आवश्यकताओं के एक न्यूनतम साझा विभाजक (मिनिमम कॉमन डिनोमिनेटर) के बारे में कम-से-कम बताएंगे. क्या दूसरे AU समिट नियमित तौर पर बैठक के ज़रिए G20 के एजेंडे के साथ जुड़ सकते हैं? क्या ये एजेंडा AU के दूसरे द्विपक्षीय मंचों जैसे कि TICAD, रूस-अफ्रीका, यूरोप-अफ्रीका या भारत-अफ्रीका शिखर सम्मेलन के साथ जुड़ सकता है? 

अगर AU को शामिल करने की बात G20 के बहुपक्षीय क्षेत्र में आगे बढ़ती है तो ये अफ्रीका को लेकर दुनिया की विकसित एवं विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की कथित सोच में एक आदर्श बदलाव होगा.

दो दशक पुराने AU में इसके सदस्य देशों के बीच भू-राजनीतिक सामंजस्य की कमी हो सकती है और ये G20 सदस्यों के साथ एकीकरण के लिए चिंता का एक कारण हो सकता है. इसके अलावा संरचनात्मक हस्तक्षेप एक चुनौतीपूर्ण काम है. इस तरह G20 की सदस्यता का विस्तार एक समय लेने वाली कवायद है जिसमें बातचीत के कई दौर शामिल हैं. क्या ग्लोबल साउथ के लिए कुछ वैकल्पिक हस्तक्षेप संभव हैं जिन्हें G20 में शामिल किया जा सकता है? ऐसा लगता है कि ग्लोबल साउथ के मुद्दों के हिसाब-किताब में कमी है, ख़ास तौर पर किसी वैश्विक संकट के दौरान गैर-परंपरागत सुरक्षा चुनौतियों के लिए. क्या गैर-परंपरागत सुरक्षा मुद्दों से निपटने के लिए एक समानांतर ‘अनिवार्य और औपचारिक हिस्सेदारी’ का निर्माण किया जा सकता है, विशेष रूप से आपातकाल के दौरान महत्वपूर्ण चीज़ों की सप्लाई के लिए? महामारी जैसे वैश्विक संकट के दौरान WTO के मौजूदा नियमों के साथ तालमेल करके G20 के दायरे के तहत व्यापार विवाद के समाधान के लिए एक विशेष तौर-तरीका ग्लोबल साउथ की आवाज़ को शामिल करने के लिए एक विकल्प हो सकता है. G20 में व्यापार विवाद को हल करने के लिए ये सिस्टम ग्लोबल साउथ को महत्वपूर्ण आर्थिक समाधान तक पहुंचने में मदद कर सकता है क्योंकि एक संकट के दौरान ये सबसे असुरक्षित होता है. 

निष्कर्ष

भारत ने G20 दिल्ली शिखर सम्मेलन 2023 के दौरान संयुक्त राष्ट्र, वर्ल्ड बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) समेत कई वैश्विक संस्थानों को न्योता दिया है. इस समिट को ग्लोबल साउथ से जुड़े मुद्दों के लिए एक बड़े मंच के तौर पर तैयार किया गया है. हालांकि AU के अच्छी तरह से जुड़ने के मामले में अभी भी कई सवालों के जवाब मिलने बाकी हैं. EU से अलग AU में फिलहाल कोई साझा करेंसी, कस्टम यूनियन या क्षेत्रीय शांति एवं सुरक्षा से जुड़ी पहल नहीं हैं जो बहुपक्षीय G20 समूह के साथ व्यापक रूप से आर्थिक एकीकरण कर सके. अफ्रीकन यूनियन समिट 2024 के दौरान G20 बहुपक्षीय मंच के साथ औपचारिक बातचीत के नियम तय करने के लिए अपने सदस्य देशों के बीच संरचनात्मक चर्चा को शामिल किया जा सकता है. चूंकि G20 के तहत संरचनात्मक मान्यता हासिल करने के लिए AU को अभी एक लंबा रास्ता तय करना है, ऐसे में बाकी सदस्य देशों के साथ बातचीत के लिए ‘ग्लोबल साउथ क्वॉड’ को मिली G20 अध्यक्षता के ये चार साल मूलभूत वर्ष के तौर पर काम कर सकते हैं. निष्कर्ष ये है कि अगर AU को शामिल करने की बात G20 के बहुपक्षीय क्षेत्र में आगे बढ़ती है तो ये अफ्रीका को लेकर दुनिया की विकसित एवं विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की कथित सोच में एक आदर्श बदलाव होगा.


सागर के. चौरसिया ORF के सेंटर फॉर इकोनॉमी एंड ग्रोथ में एसोसिएट फेलो हैं.

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