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मौजूदा समय में भारत के पड़ोस में अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप और हथियारबंद समूहों एवं चरमपंथी विचारों के बढ़ने के साथ भारत कुछ गंभीर सुरक्षा चुनौतियों का सामना कर रहा है.
ये लेख निबंध श्रृंखला “बुडापेस्ट एडिट” का हिस्सा है.
फरवरी 2021, जब सैन्य सरकार ने सत्ता संभाली, से म्यांमार अराजकता की चपेट में है. अलग-अलग जातीय हथियारबंद संगठनों (EAO) और म्यांमार के सैन्य बलों के बीच संघर्ष का प्रभाव भारत के पूर्वोत्तर राज्यों पर पड़ने का ख़तरा है. म्यांमार के साथ 1,643 किमी. और बांग्लादेश के साथ 4,096 किमी. से ज़्यादा की विशाल खुली सीमा के साथ इन देशों में भारत के निवेश की सुरक्षा के अलावा सुरक्षा और अवैध इमिग्रेशन (अप्रवासन) भारत की दो बड़ी चिंताएं हैं. सत्ता में बदलाव के बाद बांग्लादेश भी अराजकता की चपेट में आ गया है क्योंकि कट्टरपंथी तत्व मुखर हो गए हैं और भारत विरोधी एवं अल्पसंख्यक विरोधी भावनाओं को भड़का रहे हैं.
ये ज़्यादा पुरानी बात नहीं है जब पश्चिमी देशों ने बांग्लादेश के विशिष्ट अर्धसैनिक बल रैपिड एक्शन बटालियन (RAB) पर प्रतिबंधों को लागू किया था. उन्होंने बांग्लादेश में शेख़ हसीना के नेतृत्व वाली सरकार और देश में लोकतंत्र की स्थिति को लेकर चिंता जताई थी.
कई पश्चिमी देशों ने म्यांमार की सैन्य सरकार पर प्रतिबंध लगा रखा है और वो नेशनल यूनिटी गवर्नमेंट (NUG) के समर्थन में आगे आए हैं. वैसे तो यांगून में अमेरिकी दूतावास ने NUG को सालाना लगभग 200 मिलियन अमेरिकी डॉलर प्रदान करने की ख़बरों का खंडन किया है लेकिन उसने आम लोगों की सुरक्षा में सहायता देने, मानवाधिकार को बढ़ावा देने और लोकतंत्र समर्थक किरदारों, जातीय समूहों और लोकतंत्र की तरफ म्यांमार के रास्ते को बहाल करने में लगे अन्य लोगों को गैर-ख़तरनाक मदद मुहैया कराने की बात मानी है.
ये ज़्यादा पुरानी बात नहीं है जब पश्चिमी देशों ने बांग्लादेश के विशिष्ट अर्धसैनिक बल रैपिड एक्शन बटालियन (RAB) पर प्रतिबंधों को लागू किया था. उन्होंने बांग्लादेश में शेख़ हसीना के नेतृत्व वाली सरकार और देश में लोकतंत्र की स्थिति को लेकर चिंता जताई थी. अमेरिका तो “चुनाव पर्यवेक्षकों” को तैनात करने की हद तक भी चला गया था. आज कथित रूप से पश्चिमी देशों द्वारा स्वीकृत अंतरिम सरकार के साथ शेख़ हसीना के सरकार से बाहर होने के बाद हुए संघर्षों में लगभग 4,700 लोगों की मौत हो गई है जबकि अनगिनत लोग लापता हैं. बांग्लादेशी समूहों ने देश में बिगड़ती मानवाधिकार की स्थिति और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के संबंध में यूरोपीय संसद के समक्ष भी चिंता जताई है.
आज भारत के पड़ोस में अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप और हथियारबंद समूहों एवं चरमपंथी विचारों के बढ़ने के साथ भारत कुछ गंभीर सुरक्षा चुनौतियों का सामना कर रहा है. लेकिन क्षेत्रीय स्थिरता पर इसके असर को नज़रअंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि भारत की पूर्वोत्तर सीमा शायद एशिया की सबसे अस्थिर सीमा है. बुडापेस्ट ग्लोबल डायलॉग 2024 के दौरान बालाज़्स ओरबान ने कहा कि ये संप्रभुता का युग होगा. उस भावना में कोई सिर्फ ये उम्मीद कर सकता है कि ये सिद्धांत न केवल पश्चिमी देशों पर लागू होता है बल्कि ग्लोबल साउथ के देशों (विकासशील देशों) पर भी.
रामी निरंजन देसाई मानव विज्ञानी और भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र की जानकार हैं. वो स्तंभकार एवं लेखक हैं और मौजूदा समय में दिल्ली स्थित इंडिया फाउंडेशन में डिस्टिंग्विश्ड फेलो हैं.
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Rami Desai is an author, anthropologist, and scholar specializing in the North Eastern region of India. She holds degrees in Anthropology of Religion and Theology ...
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