Author : JAY MANIYAR

Published on Nov 25, 2021 Updated 0 Hours ago

ASEAN-India Relations: भारत और आसियान दोनों को ही अपने समुद्री संबंधों के क्षेत्र में उपलब्ध तमाम अवसरों को भुनाना चाहिए, जिससे कि वो इसे आपसी सहयोग और साझा फ़ायदों में तब्दील कर सकें.

ASEAN-India Relations: समुद्री क्षेत्र में भारत और आसियान के संबंध-एक विश्लेषण

भारत और आसियान (ASEAN-India Relations), दो सबसे बड़े और समृद्ध क्षेत्रों में से एक हैं. इस समय भारत की GDP 3.4 ख़रब डॉलर है. वहीं आसियान देशों (ASEAN Countries) की कुल GDP क़रीब 4 ख़रब डॉलर है. भारत की आबादी लगभग 1.3 अरब है, वहीं, आसियान देशों की आबादी इससे आधी से कुछ कम है. ये बुनियादी सूचकांक इस बात का इशारा करते हैं कि एशिया (ASIA) के क्षेत्रीय परिवेश में भारत और आसियान दो उभरती हुई ताक़ते हैं. दोनों के पास काफ़ी असरदार क्षमताएं हैं, जो आगे चलकर अमेरिका, चीन, यूरोपीय संघ और जापान जैसी अन्य ताक़तों के लगभग बराबर के दर्ज़े पर पहुंचने की संभावना रखती हैं. अन्य सूचकांकों में GDP की विकास दर भी एक पैमाना है. आसियान और भारत दोनों ही ने पिछले दो दशकों में 5 से 7 फ़ीसद की विकास दर से प्रगति की है. भारत की विकास दर इसके बढ़ते हुए क़द के अनुरूप थोड़ी अधिक रही है.

भारत 1992 में आसियान का क्षेत्रीय डायलॉग पार्टनर बना था. तीन साल बाद ये रिश्ता फुल डायलॉग पार्टनर के दर्ज़े तक बढ़ाया गया था. 

भारत 1992 में आसियान (ASEAN-India Relations) का क्षेत्रीय डायलॉग पार्टनर बना था. तीन साल बाद ये रिश्ता फुल डायलॉग पार्टनर के दर्ज़े तक बढ़ाया गया था. इसके साथ-साथ भारत आसियान से जुड़े बेहद प्रभावशाली क्षेत्रीय सम्मेलन यानी आसियान रीजनल फोरम (ARF) का भी सदस्य बन गया. ये मंच आसियान की बैठक के ठीक अगले साल, संगठन के राजनीतिक और सुरक्षा संबंधी आयामों पर ध्यान केंद्रित करता है. 2000 के दशक की शुरुआत से ही, भारत और आसियान के रिश्तों में और नज़दीकी बढ़ी है. दोनों पक्षों के बीच शिखर सम्मेलन होते रहे हैं, जो डायलॉग पार्टनर बनने के नतीजे में शुरू हुईं हैं.  चूंकि, भारत एक डायलॉग पार्टनर है. इसलिए वो आसियान के रक्षा मंत्रियों की प्लस बैठकों (ADMM+) का भी हिस्सा बन गया है. इन बैठकों में आसियान देशों और उनके सभी डायलॉग पार्टनर देश महत्वपूर्ण रक्षा विषयों पर चर्चा करते हैं. इस वक़्त ऐसे देशों की संख्या आठ है.

भारत उभरती हुई सुपरपावर तो आसियान एक बड़ा क्षेत्रीय बहुपक्षीय संगठन

अगर हम आज के हालात पर ध्यान केंद्रित करें, तो ये साफ़ है कि भारत और आसियान के बीच व्यापक विषयों पर साझेदारियां इस बात का प्रतीक हैं कि दोनों पक्षों को समुद्री क्षेत्र में और सकारात्मक ढंग से संवाद बढ़ाने की ज़रूरत है, और दोनों ही पक्षों को समुद्री सुरक्षा जैसे ख़ास चिंता के मसलों पर विशेष ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है. आज भारत एक उभरती हुई सुपरपावर है, तो आसियान एक बड़ा क्षेत्रीय बहुपक्षीय संगठन है, जिसकी बहुत अहमियत है. ऐसे में दोनों ही पक्षों के बीच रिश्तों को नई ऊंचाई पर ले जाने की काफ़ी संभावनाएं दिखती हैं. हालांकि, दावा ये किया जाता है कि बहुत से द्विपक्षीय और बहुपक्षीय संबंधों के बावजूद, आसियान और भारत सीधे सीधे लेन देन वाले संबंध से परहेज़ करते हैं. ये बात काफ़ी हद तक सही भी है. जबकि ऐसा होने पर दोनों पुराने दोस्तों के बीच एक मज़बूत संबंध देखने को मिल सकता है.

इसके उलट आज भारत और आसियान के रिश्तों में कई तरह के मतभेद देखने को मिल रहे हैं, जो बेहद जटिल और ज़रूरी मसलों पर अलग अलग राय के कारण पैदा हुए हैं. इसकी कुछ मिसालें एशिया की सुरक्षा की दुविधा, भारतीय उप-महाद्वीप में मुख्य रूप से भारत की अगुवाई में परमाणु हथियारों का नर्माण, आसियान और भारत के बीच मुक्त व्यापार क्षेत्र (AIFTA) को लागू करने से जुड़े कई मसले और शक्ति के संतुलन के मुद्दे हैं. शक्ति संतुलन बिठाने में जोखिम इस बात का है कहीं इससे क्षेत्र के नाज़ुक रक्षा संतुलन बिगड़ न जाएं और अराजकता न फैल जाए.

भारतीय उप-महाद्वीप में मुख्य रूप से भारत की अगुवाई में परमाणु हथियारों का नर्माण, आसियान और भारत के बीच मुक्त व्यापार क्षेत्र (AIFTA) को लागू करने से जुड़े कई मसले और शक्ति के संतुलन के मुद्दे हैं. 

भारत और आसियान, समुद्री कूटनीति में अहम संवाद करते हैं, जिससे इस क्षेत्र का समुद्री कद काफ़ी बढ़ जाता है. इससे दोनों पक्षों के बीच समुद्री व्यापार बढ़ा है. मंत्रियों और वरिष्ठ अधिकारियों के स्तर की बातचीत में इज़ाफ़ा हुआ है, और नौसैनिक अभ्यासों के ज़रिए द्विपक्षीय नौसैनिक सहयोग बढ़ा है. ये कूटनीति, दोनों ही पक्षों के नौसैनिक बलों द्वारा अपनी रणनीतिक ज़रूरतें पूरी करने के लिए की जा रही है और इसके साथ साथ इस सहयोग का मक़सद भारत और दक्षिणी पूर्वी एशियाई क्षेत्र में समुद्री क्षेत्र के प्रति जागरूकता बढ़ाना (MDA) भी है. भारत के कई आसियान देशों के साथ गहरे रक्षा संबंध हैं और वो इन देशों के साथ नियमित रूप से सैन्य कूटनीति में शिरकत करता है, जिसमें समुद्री क्षेत्र भी शामिल है. चूंकि एक इकाई के तौर पर आसियान सहयोगी और साझा सुरक्षा के मॉडल में विश्वास रखता है, क्योंकि इससे आसियान के सदस्य देशों की सुरक्षा संबंधी अलग अलग ज़रूरतें पूरी होती हैं. इसके अलावा आसियान अगर हम आसियान के समुद्री सुरक्षा पर आउटलुक दस्तावेज़ के पेज नंबर 3 पर देखें,तो- भारत के साथ मुख्य रूप से जियो-इकॉनमिक्स और द्विपक्षीय सहयोग पर ही ज़ोर दिया जाता है.

समुद्री क्षेत्र के दायरे में आने वाले विषयों की संख्या काफ़ी अधिक है. इसलिए इसमें सहयोग बढ़ाने के लिए लगातार सहयोग, मिलकर ध्यान केंद्रित करने के साथ और कई तरह के उपाय करने की ज़रूरत है. तभी यथास्थिति में बदलाव आ सकता है. पारंपरिक ख़तरों के साथ-साथ, समुद्री प्रदूषण से लेकर अवैध रूप से, बिना किसी नियम क़ानून के और जानकारी दिए हुए मछली पकड़ने (IUU) जैसे पर्यावरण के नुक़सान से निपटने में भी सहयोग की ज़रूरत है. इस मामले में इंडोनेशिया को सबसे ज़्यादा नुक़सान हो रहा है, जो अरबों डॉलर में है; समुद्री डकैती और अपराध; समुद्री पर्यटन उद्योग, जो आसियान देशों की GDP में काफ़ी योगदान देता है; प्राकृतिक आपदाएं और तबाही; और ऐसे ही कई और मसले हैं, जो शांति, स्थिरता और सुरक्षा को लगातार क्षति पहुंचा रहे हैं.

भारत के कई आसियान देशों के साथ गहरे रक्षा संबंध हैं और वो इन देशों के साथ नियमित रूप से सैन्य कूटनीति में शिरकत करता है, जिसमें समुद्री क्षेत्र भी शामिल है. 

आसियान देशों में भारत, इंडोनेशिया और थाईलैंड के साथ आपसी समन्वय से समुद्री गश्त (CORPATs) लगातार रहा है. इनका मक़सद क्षेत्र में समुद्री डकैती रोकना है, जो एक समय में दुनिया का सबसे ख़तरनाक इलाक़ा कहा जाता है. देशों की नौसेनाओं के बीच साझा गश्त का मक़सद समुद्री डकैतों और समुद्र में अपराध करने वालों के साथ ‘समुद्र से’ और ‘समुद्र में’ होने वाली मुठभेड़ों से निपटना है. इसके ज़रिए, आपदा से बेहद प्रभावित हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में तबाही का प्रभाव कम करने के लिए मानवीय मदद पहुंचाने में सहयोग भी किया जाता है. दो देशों के बीच सामरिक सहयोग और तालमेल बढ़ाने के लिए, भारत और इंडोनेशिया (समुद्र शक्ति), भारत और सिंगापुर (SIMBEX) के बीच नौसैनिक युद्धाभ्यास भी हो रहे हैं, जिससे इन देशों की नौसैनिक क्षमता बढ़ी है, और इस क्षेत्र के देशों के समुद्री बलों के बीच सहयोग भी बढ़ा है. आसियान की सुरक्षा संबंधी चिंताओं से निपटने के लिए ये नौसैनिक युद्धाभ्यास काफ़ी अहम हैं.

आज के समुद्री परिवेश में भारत और आसियान

आसियान ने एक ‘दृष्टिकोण’ दस्तावेज़ जारी किया गया था, जिसे काफ़ी प्रचार मिला था. इसमें हिंद प्रशांत क्षेत्र में एक व्यापक नज़रिया अपनाने की बात कही गई है. अमेरिका और फ्रांस जैसी दो बड़ी ताक़तें, जो हिंद प्रशांत क्षेत्र में अपने ख़ास हितों को सबसे ज़्यादा अहमियत देती हैं- के अलावा, आसियान ने साफ़ किया था कि वो हिंद प्रशांत क्षेत्र को बहुत प्राथमिकता देता है. क्योंकि मौजूदा उथल-पुथल और टकराव के बीच आसियान के लिए हिंद प्रशांत क्षेत्र का व्यापक समुद्री और क्षेत्रीय दायरा काफ़ी अहम हो जाता है. आउटलुक दस्तावेज़ में समुद्री क्षेत्र के प्रति आसियान की लगातार चले आ रही प्रतिबद्धताओं पर न सिर्फ़ ज़ोर दिया गया है, बल्कि उन्हें दोहराया भी गया है. इससे भारत और आसियान के बीच सहयोग की ज़रूरत और भी बढ़ जाती है. क्योंकि, दोनों देशों के समुद्री और महासागरीय क्षेत्र आपस में मिलते हैं.

समुद्री क्षेत्र में आसियान, बहुपक्षीय संबंधों वाले क़दम निश्चित रूप से उठा रहा है. इस मुद्दे पर आसियान मैरिटाइम फोरम (AMF) और विस्तारित आसियान मैरिटाइम फोरम (EAMF) के मंच के माध्यम से चर्चा होती है. दोनों ही मंचों पर ऐसे कई क़दम उठाए गए हैं, जिनसे ये साफ़ संकेत मिलता है कि आसियान की व्यवस्था में ऐसे नियमों और विचारों पर ज़ोर दिया जाता है, जो आसियान के समुद्री सीमा के दायरे से जुड़े हुए हों. समुद्री क्षेत्र से जुड़े सभी मसलों पर चर्चा होती है. इनमें संयुक्त राष्ट्र के समुद्र संबंधी नियमों की संधि (UNCLOS), समुद्री प्रशिक्षण और शिक्षा, कनेक्टिविटी और मूलभूत ढांचा, क्षेत्रीय विकास और समुद्री माहौल से जुड़े वैज्ञानिक मक़सद शामिल हैं. भारत विस्तारित आसियान समुद्री मंच (EAMF) का अभिन्न अंग रहा है और 2012 में इसका सदस्य बनने के बाद इस मंच की कई पहलों का हिस्सा भी बना है.

समुद्री क्षेत्र में सहयोग, कूटनीत और आला दर्ज़े के समुद्री हथियारों और अन्य उपकरणों के व्यापार में आसियान के पास भारत को देने के लिए बहुत कुछ है. 

समुद्री क्षेत्र से जुड़े कई मसलों पर एक जैसी राय होने के बावजूद, भारत और आसियान के बीच द्विपक्षीय संबंधों को आसियान के संस्थापक देशों और बाद में जुड़े सदस्यों के साथ भारत के मज़बूत ऐतिहासिक संबंधों के आधर पर अलग-अलग विकसित किया जाना चाहिए. समुद्री क्षेत्र में सहयोग, कूटनीत और आला दर्ज़े के समुद्री हथियारों और अन्य उपकरणों के व्यापार में आसियान के पास भारत को देने के लिए बहुत कुछ है. ऐसे संबंध विकसित करने के अन्य कारणों में इस क्षेत्र से जुड़ी तमाम तरह की सुरक्षा संबंधी चिंताएं और अलग अलग तरह के पर्यावरण और पारिस्थितिकी संबंधी चुनौतियां हैं, जो एक तरक़्क़ीपसंद भविष्य की राह में रोड़ा बन सकती हैं.

ध्यान देने वाली बात ये है कि भारत और आसियान समुद्री क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए राज़ी हुए हैं. दोनों पक्ष ये स्वीकार करते हैं कि इस क्षेत्र में सहयोग के कई कारण और अवसर हैं. आसियान, वैश्विक प्रतिद्वंदिता के प्रमुख कारणों में से एक, दक्षिणी और पूर्वी चीन सागर के पास है. आसियान देशों का इलाक़ा समुद्री डकैती और अन्य अपराधों, ड्रग तस्करी, मानव तस्करी, जहाज़ों को अगवा करने और ऐसे ही अन्य अपराधों का भी शिकार है. इसी वजह से क्षेत्र की ताक़तें अपना ध्यान इस इलाक़े में गश्त लगाने और पड़ताल करते रहने में दिलचस्पी ले रही हैं, ताकि इन अपराधों पर क़ाबू पा सकें. इसके अलावा, आसियान, एशिया को परिभाषित करने वाली बहुत सी भौगोलिक टकराव वाली लक़ीरों के बीच में पड़ता है. इस वजह से सुनामी और भूकंप जैसी आपदाएं, आसियान देशों के समुद्री और ज़मीनी क्षेत्र पर आती रहती हैं. इनसे जान-माल का भारी नुक़सान होता आया है.

आसियान और भारत के लिए आगे की राह

साफ़ है कि भारत और आसियान के संबंधों में विस्तार और लाभ के बहुत से अवसर हैं. इस वक़्त एशिया की जियोपॉलिटिक्स में भी दोनों के रिश्तों की अहम भूमिका है. ख़ास तौर से एशिया और प्रशांत क्षेत्र की जलसंधियों, समुद्रों और महासागरीय क्षेत्र में. ऐसे में भारत और आसियान के लिए आपसी संबंधों में एक नाज़ुक संतुलन बनाने की सख़्त ज़रूरत है, जो आगे चलकर एक समृद्ध भविष्य के लिए भी बहुत ज़रूरी साबित होंगे. यहां इस बात का उल्लेख ज़रूरी है कि आसियान और भारत कई क्षेत्रों में अच्छे संबंध विकसित करने की कगार पर खड़े हैं. इनमें समुद्री क्षेत्र में सहयोग भी शामिल है. चूंकि आसियान देशों को भारत से वैसी ऐतिहासिक शिकायतें नहीं हैं, जैसी इन देशों को चीन के साथ हैं. ऐसे में भारत ने आसियान देशों के साथ ऐतिहासिक संबंधों की बुनियाद पर आज के दौर की अहमियत वाले रिश्ते बनाए हैं. इन रिश्तों से इस क्षेत्र को क़ुदरती तौर पर अमन की राह पर चलने का मौक़ा मिल सकता है. जबकि, चीन के साथ आसियान देश कई तरह के टकरावों और संघर्षों में उलझे हुए हैं.

अब तक आसियान और भारत, एशिया और बाक़ी विश्व के लिए एक साझा समुद्री नज़रिये पर पूरी तरह से सहमत नहीं हो पाए हैं. आसियान के ‘ऑउटलुक’ ने एक रणनीति सामने रखी है. वहीं भारत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सागर (SAGAR) यानी क्षेत्र में सबके लिए सुरक्षा और विकास की नीति के ज़रिए हिंद प्रशांत के लिए अपना एक ठोस नज़रिया सामने रखा है. हिंद महासागर और एशिया प्रशांत क्षेत्र के लिए भी एक दूरगामी और बहुआयामी रणनीति की सख़्त ज़रूरत है. भारत और उसकी ब्लू वाटर नौसेना के लिए ये बात बहुत अहम है. इन रणनीतियों में भारत के आसियान जैसे साझीदारों के अलग अलग हितों को भी शामिल करना ज़रूरी है, जिससे ये सुनिश्चित हो सके कि इस रणनीति का कोई बेवजह का बुरा असर, इन देशों के साथ रिश्तों पर न पड़े. जनवरी 2018 में आसियान और भारत के आपसी रिश्तों के 25 साल पूरे होने पर हुए सम्मेलन के बाद जारी साझा विज़न स्टेटमेंट के बिंदु नौ और दस में आपसी सहयोग के कई मसलों पर ज़ोर दिया गया है. इनमें आवाजाही की आज़ादी और समुद्री परिवहन मार्गों की सुरक्षा के मुद्दे शामिल हैं. इसलिए अब भारत और आसियान की ये ज़िम्मेदारी बनती है कि वो समुद्री क्षेत्र में सबके समृद्ध भविष्य को रफ़्तार देना सुनिश्चित करें.

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