Author : Gurjit Singh

Published on Nov 21, 2023 Updated 0 Hours ago

आसियान-GCC की साझेदारी का मक़सद अच्छा है लेकिन दोनों पक्षों के सदस्यों में सहयोग और यहां तक कि दिलचस्पी भी बढ़ाने की ज़रूरत है.

आसियान-GCC शिखर सम्मेलन: नई साझेदारी की शुरुआत

20 अक्टूबर को आसियान-खाड़ी सहयोग परिषद (गल्फ कोऑपरेशन काउंसिल या GCC) की बैठक का अपना एक अलग महत्व था. लेकिन इस बैठक का समय ख़ास बन गया क्योंकि हमास-इज़रायल संकट, जिसने खाड़ी देशों का ध्यान अपनी तरफ खींचा, के बावजूद GCC-आसियान शिखर सम्मेलन आयोजित हुआ.

GCC आसियान का एक स्थायी साझेदार नहीं है और इसने हाल के वर्षों में ही दिलचस्पी दिखाई है. आसियान ने भी अपने डायलॉग और क्षेत्रीय साझेदार के तौर पर विकसित देशों पर ध्यान दिया है. आसियान के क्षेत्रीय साझेदारों में सिर्फ संयुक्त अरब अमीरात (UAE) ही GCC देशों में शामिल है. ये तथ्य कि GCC ने आसियान के साथ शिखर सम्मेलन आयोजित करने का फैसला लिया, वो मौजूदा शांति और बिना किसी संदेह की आर्थिक एवं विदेश नीति की अभिव्यक्ति है जिसे दोनों पक्ष अपनी पारंपरिक साझेदारी से आगे जाकर अमल में लाने के लिए तैयार हैं. GCC ट्रोइका (पूर्व, वर्तमान और आगामी अध्यक्ष) ने 2018 में संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में आसियान से मुलाकात की और इसके बाद अगले साल विदेश मंत्रियों की मुलाकात UNGA में हुई.  

इसकी अच्छी योजनाएं हैं जैसा कि साझा बयान से देखा जा सकता है. उनका लक्ष्य क्षेत्र में लगातार शांति कायम रहने पर निर्भर करता है लेकिन फिलहाल इस पर ख़तरा है. शिखर सम्मेलन हर दो साल पर आयोजित करने का प्रस्ताव रखा गया है और अगला सम्मेलन 2025 में मलेशिया में होगा.

बढ़ती दिलचस्पी

आसियान के तीन व्यापक उद्देश्य हैं जिनमें से कई की अगुवाई अलग-अलग आसियान देशों के द्वारा की जाती है जिनका GCC के अलग-अलग देशों के साथ संबंध है. इनमें से कई देशों के लिए प्रवासी आबादी और उनके द्वारा भेजा गया पैसा महत्वपूर्ण है. ख़ास तौर पर इंडोनेशिया और फिलीपींस के लोग बड़ी संख्या में खाड़ी देशों में रहते हैं और उन्हें भारी मात्रा में वहां से पैसा मिलता है. इस प्रवासी जनसंख्या का कल्याण एक महत्वपूर्ण मुद्दा है. इंडोनेशिया, मलेशिया और ब्रुनेई, जो कि आसियान में प्रमुख मुस्लिम देश हैं, के लिए हज का कोटा सऊदी अरब के साथ एक और महत्वपूर्ण मुद्दा है. हालांकि सभी खाड़ी देशों के साथ ये मुद्दा नहीं है.

खाड़ी देशों के साथ आसियान के देश आर्थिक सहयोग बनाने की इच्छा रखते हैं, विशेष रूप से विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) और तेल एवं गैस के क्षेत्र में जुड़ाव के ज़रिए. आसियान देश FDI और विदेशी फंड से इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट हासिल करने वाले महत्वपूर्ण देश हैं, ख़ास तौर पर चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के तहत. इस मामले में विविधता लाने में खाड़ी देश एक बड़ी भूमिका अदा करते हैं. विशेष रूप से सऊदी अरब और UAE ने अलग-अलग आसियान देशों पर ध्यान दिया है लेकिन बातचीत के मुताबिक इस क्षेत्र में अच्छी प्रगति दर्ज नहीं की गई है.

खाड़ी देशों के लिए मुख्य उद्देश्य एक ऐसे क्षेत्र के साथ स्थिर संबंध बनाना है जहां आर्थिक विकास बढ़ रहा है. चूंकि भारत के साथ GCC का एक मज़बूत रिश्ता है, इसलिए हिंद-प्रशांत  नज़रिया बढ़ाने की इच्छा का मतलब है कि आसियान को जोड़ना भी महत्वपूर्ण है. GCC की नीतियों में विविधता (डायवर्सिफिकेशन) आसियान के साथ रिश्ते मज़बूत करने की उसकी इच्छा के बारे में बताता है. GCC और आसियान के अलग-अलग देशों ने व्यापक आर्थिक साझेदारी के समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं. दोनों क्षेत्रीय संगठनों के बीच एक संभावित फ्री ट्रेड एग्रीमेंट भी मुमकिन है.

आसियान चाहता है कि GCC के देश आसियान कनेक्टिविटी 2025 के तहत परियोजनाओं में शामिल हों. आसियान कनेक्टिविटी 2025 की घोषणा सितंबर में भारत में आयोजित G20 शिखर सम्मेलन के दौरान की गई थी. ये एक और ख़ास परियोजना है जिसका आसियान से संपर्क हो सकता है. इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप-इकोनॉमिक कॉरिडोर (IMEC) के ऐलान  से पहले पीएम मोदी ने 7 सितंबर 2023 को भारत-आसियान शिखर सम्मेलन के दौरान जकार्ता में मिडिल ईस्ट और यूरोप के साथ ऐसी कनेक्टिविटी का विस्तार आसियान तक करने के बारे में बयान दिया था. इसलिए भारत जो चाहता है, उसके लिए GCC का साथ मददगार है. क्या आसियान GCC के साथ अपने साझेदारी को स्वतंत्र रूप से देख रहा है या भारत के साथ मिलाकर? अभी तक आसियान ने ग्लोबल साउथ (विकासशील देशों) में भी हमेशा भारत के साथ एक अलग साझेदार की तरह बर्ताव किया है और दूसरे साझेदारों के साथ स्वतंत्र रूप से काम किया है. भारत-आसियान शिखर सम्मेलन के दौरान पीएम मोदी के सुझाव को आगे बढ़ाने के लिए आसियान खाड़ी देशों के साथ क्षेत्रीय कनेक्टिविटी परियोजनाएं, जिसमें भारत भी शामिल है, शुरू करके अच्छा काम करेगा. खाड़ी देशों का भी यही दृष्टिकोण प्रतीत होता है. ऐसा लगता है कि आसियान अपने सदस्य देशों के भीतर अपनी कनेक्टिविटी की परियोजनाओं में GCC का निवेश हासिल करने के लिए उत्सुक है, जैसा कि BRI ने किया है.

GCC और आसियान- दोनों का ये मानना है कि वो अपने-अपने क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण हैं और अब दोनों क्षेत्रों को जुड़ना चाहिए. आसियान कनेक्टिविटी के लिए शिखर सम्मेलन से पहले GCC और आसियान के कारोबारियों, एकेडमिक जगत के लोगों और मीडिया के लोगों के बीच एक बैठक का आयोजन सऊदी अरब में हुआ. वो सहमत हुए कि ट्रैक 2 लेवल पर भी रणनीतिक तौर पर आगे बढ़ना और प्राइवेट बिज़नेस सेक्टर का एक-दूसरे की तरफ ज़्यादा देखना ज़रूरी है. फेडरेशन ऑफ गल्फ चैंबर और आसियान की एक संस्था के बीच समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए जाने की संभावना है. जायज़ा लेने के लिए एक बैठक जनवरी 2024 में होने की संभावना है.

स्ट्रेट ऑफ होर्मुज़ के साथ GCC और स्ट्रेट ऑफ मलक्का के साथ आसियान को एशिया में सामरिक आउटपोस्ट माना जाता है. क्या ये एक-दूसरे को लेकर अपना ध्यान बढ़ा सकते हैं? और इस ध्यान को डगमगाने से बचा सकते हैं? आख़िरकार, GCC और आसियान के बीच 1990 से संबंध हैं.  

फिर भी ये साफ नहीं है कि वो उन साझेदारों के साथ काम करेंगे या आसियान में और ज़्यादा खाड़ी के निवेश के लिए उन साझेदारों के साथ केवल मेल-जोल का इस्तेमाल करेंगे.

GCC और आसियान की स्थापना एक-दूसरे के पांच साल के भीतर हुई थी. आसियान की स्थापना पांच सदस्यों के साथ 1976 में हुई थी, अब इसमें 10 सदस्य हैं. GCC की स्थापना 1981 में हुई थी और बहरीन, कुवैत, ओमान, क़तर, सऊदी अरब और UAE इसके सदस्य हैं. GCC के भीतर अलग-अलग सुरों की तुलना में शायद आसियान की एकता कम चुनौतीपूर्ण दिखती है. दोनों अपने-अपने क्षेत्रों में अपने-अपने संगठनों की मुख्य भूमिका के लिए प्रतिबद्ध हैं. आसियान के भीतर कोई असली दबदबे वाली ताकत नहीं है. GCC को काफी हद तक UAE और सऊदी अरब मिलकर चलाते हैं, इसमें बहरीन और क़तर अक्सर अलग राय रखते हैं. अब चूंकि दोनों संगठन द्विपक्षीय संबंधों से आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं तो उनका इरादा एक-दूसरे के महत्व का समर्थन करना है. शायद वो एक ऐसा सामरिक क्षेत्र बनाना चाहते हैं जहां उनके सदस्यों के बीच नई साझेदारी विकसित हो सके.

इसके लिए उनके पास 2024 से 2028 के बीच सहयोग की पहली रूप-रेखा मौजूद है. अगर इसे अमल में लाया गया तो उनके बीच बेहतर भागीदारी बनेगी. ये देखा जाना अभी बाकी है कि इसकी फंडिंग कैसे की जाएगी. वैसे तो GCC और आसियान साउथ-साउथ कोऑपरेशन (विकासशील देशों के बीच सहयोग) चाह रहे हैं लेकिन आसियान के लिए अपने विकसित और विकासशील साझेदारों के बीच अंतर करना मुश्किल साबित हो रहा है और वो हमेशा उम्मीद करता है कि सभी साझेदार उसके साथ सभी गतिविधि के लिए फंड देंगे. सहयोग की इस रूप-रेखा के मुख्य बिंदु हैं कि ये कुछ देशों के द्वारा द्विपक्षीय तौर पर किए जा रहे कामों यानी आर्थिक और धर्म आधारित आदान-प्रदान से आगे जाता है. अब आतंकवाद विरोध, कट्टरता, जलवायु परिवर्तन, नवीकरणीय ऊर्जा और खाद्य सुरक्षा महत्वपूर्ण मुद्दे हैं जिसे वो शामिल करने का इरादा रखते हैं.

व्यापार सहयोग में बढ़ोतरी

2022 में GCC-आसियान द्विपक्षीय व्यापार लगभग 110 अरब अमेरिकी डॉलर था. ये GCC देशों को चीन, भारत और यूरोपियन यूनियन (EU) के बाद आसियान का एक महत्वपूर्ण साझेदार बनाता है. हालांकि विश्लेषकों का ये मानना है कि 5.5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की साझा GDP के साथ GCC और आसियान के बीच और ज़्यादा व्यापार हो सकता है.

2010 में आसियान-GCC के बीच 78 अरब अमेरिकी डॉलर का व्यापार हुआ था जो 2021 में बढ़कर 85 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया और फिर 2022 में तेज़ी से बढ़कर 110 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया. आसियान में GCC का निवेश 2016 से 2021 के बीच लगभग 13.4 अरब अमेरिकी डॉलर था. ज़्यादातर निवेश UAE से आता है और मुख्य रूप से इंडोनेशिया, मलेशिया और सिंगापुर में जाता है. GCC-आसियान साझेदारी का मक़सद एक ज़्यादा समान संबंध तैयार करना है जहां हर सदस्य एक भूमिका अदा करे. सिंगापुर और GCC के बीच 2013 से ही फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) लागू है. इसकी वजह से 2014-2021 के बीच 43 अरब अमेरिकी डॉलर का व्यापार हुआ. क्या आसियान के दूसरे देश GCC के साथ अलग-अलग FTA पर हस्ताक्षर करेंगे या आसियान और GCC के बीच एक व्यापार व्यवस्था होगी?

GCC की तरफ से निर्यात का प्रमुख समान कच्चा तेल है जबकि आसियान मुख्य रूप से इलेक्ट्रॉनिक्स और मशीनरी का निर्यात करता है. इंडोनेशिया और मलेशिया GCC देशों में और ज़्यादा हलाल बाज़ार पर कब्ज़ा करने की उम्मीद रखते हैं और हलाल स्टैंडर्ड के लिए सर्टिफिकेशन की प्रक्रिया में सामंजस्य बनाने की शुरुआत कर रहे हैं. सिंगापुर एक वित्तीय केंद्र के रूप में दुबई, अबू धाबी, मनामा और रियाद के साथ ज़्यादा भागीदारी की उम्मीद कर रहा है. वैसे तो भरोसेमंद तेल सप्लाई और ऊर्जा परिवर्तन में दिलचस्पी की बात की जा रही है लेकिन तथ्य ये है कि GCC के देशों का तेल पर बहुत ज़्यादा ध्यान है और नवीकरणीय ऊर्जा के लिए उनकी प्रतिबद्धता कम है. कॉप28 शिखर सम्मेलन, जिसकी मेज़बानी UAE कर रहा है, शायद ये रास्ता दिखाएगा. आसियान इस बात के लिए उत्सुक है कि GCC देशों को उस क्षेत्रीय पावर ग्रिड में निवेश करना चाहिए जिसकी स्थापना की वो योजना बना रहा है.

आसियान-GCC शिखर सम्मेलन

GCC और आसियान के बीच शुरुआती चर्चा के दौरान एक समृद्ध क्षेत्र की बुनियाद के लिए शांति पर ध्यान दिया गया. आसियान इसके लिए मित्रता और सहयोग की संधि (TAC) को मॉडल मानता है. जुलाई 2023 में सऊदी अरब TAC में शामिल हो गया और अब सभी GCC देश TAC का पालन करते हैं. ये उन्हें एक साझा मंच देता है. इज़रायल और हमास के बीच संकट के फिर से उभरने के कारण GCC और आसियान- दोनों के भीतर मतभेद सामने आए हैं. आसियान के अध्यक्ष के रूप में इंडोनेशिया और आसियान-GCC साझेदारी के मौजूदा कोऑर्डिनेटर के तौर पर मलेशिया ने ये सुनिश्चित किया कि मौजूदा हालात के बावजूद शिखर सम्मेलन सफल हो और दोनों देश ये सुनिश्चित करने में मददगार रहे कि गज़ा को लेकर आसियान के विदेश मंत्रियों का बयान और GCC के साथ साझा बयान आए. वैसे तो ये कोई खलबली मचाने वाली बात नहीं थी लेकिन इसने मानवीय कानून एवं कार्रवाई, नागरिकों की सुरक्षा और दो देशों के समाधान के महत्व को लेकर कुछ साझा विचार दिखाए.

आसियान के देश इस पर अपना अलग रुख अपना रहे हैं. उदाहरण के लिए, अमेरिका के साथ फिलीपींस नज़दीकी तौर पर जुड़ा है और वो इज़रायल के आत्मरक्षा  के अधिकार को मान्यता देता है; सिंगापुर ने हमास की निंदा की. वहीं इंडोनेशिया और मलेशिया फिलिस्तीन के साथ ज़्यादा जुड़े हुए हैं और इज़रायल के साथ उनके रिश्ते नहीं हैं. आसियान के बाकी छह देश अपने बयानों में थोड़े दूर रहे हैं. ये अलग-अलग रुख कमज़ोर आसियान-GCC बयान की ओर ले गया.

27 अक्टूबर 2023 को UNGA में गज़ा में तत्काल मानवीय संघर्ष विराम और राहत सामग्री पहुंचाने के लिए प्रस्ताव पर मतदान के दौरान 120 देशों ने पक्ष में मतदान किया, 14 ने ख़िलाफ़ में और 45 देश गैर-हाज़िर रहे. GCC के सभी देशों ने प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया. इस मामले में आसियान के देशों का अलग-अलग रुख था. ब्रुनेई, इंडोनेशिया, मलेशिया, म्यांमार, सिंगापुर, थाईलैंड, वियतनाम और यहां तक कि तिमोर लेस्त ने प्रस्ताव के समर्थन में मतदान किया. फिलीपींस ने प्रस्ताव के ख़िलाफ़ वोट डाला और कंबोडिया अनुपस्थित रहा.

आसियान-GCC की साझेदारी का मक़सद अच्छा है लेकिन दोनों पक्षों के सदस्यों में सहयोग और यहां तक कि दिलचस्पी भी बढ़ाने की ज़रूरत है. इसका नेतृत्व कुछ देश कर रहे हैं जो देखेंगे कि आसियान से जुड़ी साझेदारियों के साथ या उसके बिना फायदों को ज़्यादा-से-ज़्यादा कैसे किया जाए. दोनों क्षेत्रों का सामरिक तौर पर आगे बढ़ना वर्तमान में उनके लिए एक चुनौती है.


गुरजीत सिंह जर्मनी, इंडोनेशिया, इथियोपिया, आसियान और अफ्रीकन यूनियन में भारत के राजदूत रह चुके हैं.

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