Author : Vivek Mishra

Published on Aug 05, 2022 Updated 0 Hours ago

अर्जेंटीना के आर्थिक संकट की तरफ़ तुरंत राजनीतिक ध्यान देने की ज़रूरत है क्योंकि महामारी और यूक्रेन संघर्ष के लंबे असर की वजह से वहां की स्थिति और बिगड़ गई है.

क्या अर्जेंटीना आर्थिक संकट से बच पाएगा?

अर्जेंटीना ने पिछले दिनों ख़ुद को राजनीतिक उथल-पुथल के केंद्र में पाया. इसकी वजह अर्थव्यवस्था के मंत्री मार्टिन गुज़मैन के द्वारा अचानक सरकार से अपने इस्तीफ़े का ऐलान  था. गुज़मैन राष्ट्रपति अल्बर्टो फर्नांडीज़ की सेंटर-लेफ्ट सरकार के क़रीबी सहयोगी थे. लेकिन देश के राष्ट्रपति के साथ क़रीबी संबंध होने के बावजूद गुज़मैन की उपराष्ट्रपति क्रिस्टीना फर्नांडीज डी किर्चनर के साथ लगातार भिड़ंत होती रहती थी. दोनों के बीच दूसरे मुद्दों के अलावा खर्च में कटौती और कड़ी राजकोषीय नीति को लेकर मतभेद थे. राजनीतिक जानकारों का दावा है कि गुज़मैन का इस्तीफ़ा सरकार के साथ-साथ देश में राष्ट्रपति के अलग-थलग होने में बढ़ोतरी की तरफ़ एक और क़दम है जिसका अप्रूवल रेट 25 प्रतिशत है.

 

अतीत में क्रिस्टीना फर्नांडीज़ 2007-2015 के बीच दो बार अर्जेंटीना की राष्ट्रपति रह चुकी हैं. देश में अभी भी क्रिस्टीना फर्नांडीज़ के समर्थकों का अपेक्षाकृत मज़बूत आधार है लेकिन 2019 के चुनाव में उन्होंने अल्बर्टों फर्नांडीज़ को नेतृत्व के लिए चुना जबकि ख़ुद को उपराष्ट्रपति के रूप में. इसकी वजह ये थी कि राष्ट्रपति चुने जाने के लिए उनके पास ज़रूरी समर्थन नहीं था. लेकिन हाल-फिलहाल के दिनों में जानकारों को ऐसा लगता है कि सरकार के भीतर उपराष्ट्रपति का असर बढ़ता जा रहा है. गुज़मैन की जगह पर आईं सिल्विना बटाकिस उपराष्ट्रपति क्रिस्टीना फर्नांडीज़ की वामपंथी सहयोगी हैं और उनकी नियुक्ति प्रशासन पर क्रिस्टीना फर्नांडीज़ की बढ़ती पकड़ का एक और सबूत है. गुज़मैन का इस्तीफ़ा राष्ट्रपति अल्बर्टो फर्नांडीज़ के सहयोगियों के सरकार से अलग होने की श्रृंखला में सबसे ताज़ा है. 

सरकार में ये उथल-पुथल उस वक़्त हो रही है जब अर्जेंटीना हाल के वर्षों में सबसे ख़राब आर्थिक संकट का सामना कर रहा है. पिछले महीने अर्जेंटीना में मुद्रास्फीति की वार्षिक दर 60.7 प्रतिशत पर पहुंच गई और इसमें लगातार बढ़ोतरी हो रही है.

सरकार में ये उथल-पुथल उस वक़्त हो रही है जब अर्जेंटीना हाल के वर्षों में सबसे ख़राब आर्थिक संकट का सामना कर रहा है. पिछले महीने अर्जेंटीना में मुद्रास्फीति की वार्षिक दर 60.7 प्रतिशत पर पहुंच गई और इसमें लगातार बढ़ोतरी हो रही है. देश में औसत मुद्रास्फीति 50 प्रतिशत के ऊपर बने रहने की आशंका है. वैसे तो ये स्थिति अर्जेंटीना के लिए अव्यवस्था नहीं है क्योंकि अर्जेंटीना का महंगाई के साथ ‘बार-बार का रिश्ता’ रहा है लेकिन महामारी के कारण आर्थिक परेशानी के साथ-साथ रूस-यूक्रेन संघर्ष की वजह से हालात और भी ख़राब हो गए हैं. 

स्रोत: https://www.statista.com/statistics/316750/inflation-rate-in-argentina/

अर्जेंटीना के लोग जब सबसे किफ़ायती दर पर रोज़मर्रा का ज़रूरी सामान ख़रीदने के लिए जाते हैं तो एक दुकान से दूसरी दुकान तक सामानों की क़ीमत में अंतर आ जाता है. महंगाई का संकट और उस पर काबू करने में सरकार की नाकामी की वजह से अतीत में अर्जेंटीना की सरकारें गिर चुकी हैं और मौजूदा राष्ट्रपति की अप्रूवल रेटिंग को देखें तो वो भी अगले साल होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में उसी रास्ते पर चलते हुए दिखाई दे रहे हैं. 

जहां चीन और ब्राज़ील, अर्जेंटीना के भीतर अपने हितों की वजह से ब्रिक्स में अर्जेंटीना को शामिल करने को लेकर मुखर हैं वहीं दक्षिण अफ्रीका, भारत और रूस के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता है.

इस बेहद ख़राब आर्थिक संकट को देखते हुए गुज़मैन ने 44 अरब अमेरिकी डॉलर के कर्ज़ की पुनर्संरचना के लिए अंतरराष्ट्रीय  मुद्रा कोष (आईएमएफ) के साथ एक समझौता किया था. लेकिन उपराष्ट्रपति ने इस समझौते की कड़ी आलोचना की. उन्होंने दावा किया कि इस समझौते में आईएमएफ़ को बहुत ज़्यादा रियायतें दी गई हैं और इसकी वजह से इस बात की पूरी आशंका है कि आर्थिक विकास में रुकावट आएगी. अब गुज़मैन की जगह पर बटाकिस के आने और उनके द्वारा आईएमएफ के अधिकारियों से मिलकर इस समझौते को लेकर फिर से बातचीत का इरादा जताने के बाद आईएमएफ से मिलने वाली संभावित राहत भी अर्जेंटीना के लिए अनिश्चित हो गई है. आर्थिक संकट ने अर्जेंटीना में निवेशकों को डरा दिया है. इसकी ख़ास वजह ये है कि हर बीतते दिन के साथ अर्जेंटीना में विदेशी मुद्रा का भंडार कम होता जा रहा है. आंतरिक फूट की वजह से सरकार की नीतियों में अनिश्चितता ने अर्जेंटीना में निवेशकों के बीच और डर पैदा कर दिया है और बाज़ार में घबराहट आ गई है. 

चीन का फैक्टर

इस पृष्ठभूमि में अर्जेंटीना की अंतरराष्ट्रीय स्थिति में एक दिलचस्प मोड़ उस वक़्त आया जब चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अल्बर्टो फर्नांडीज़ को 2022 के ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में शामिल होने के लिए न्योता दिया. इस घटनाक्रम ने ब्रिक्स संगठन में अर्जेंटीना के संभावित प्रवेश को लेकर बहस को फिर से शुरू कर दिया. ये पहला मौक़ा नहीं था जब अर्जेंटीना के किसी राष्ट्रपति ने ब्रिक्स की बैठक में भाग लिया. क्रिस्टीना फर्नांडीज़ ने 2014 में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भाग लिया था जबकि 2018 में मौरिसिओ मैक्री ने. अल्बर्टो फर्नांडीज़ अर्जेंटीना को ब्रिक्स में प्रवेश दिलाने की अपनी इच्छा को लेकर काफ़ी मुखर रहे हैं. उनके मुताबिक़ ब्रिक्स उस विश्व व्यवस्था का एक मिल-जुल कर काम करने वाला विकल्प है जो कुछ देशों के फ़ायदे के लिए काम कर रहा है. उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि अर्जेंटीना के हित ब्रिक्स के हित से मेल खाते हैं. 

लेकिन ऐसे वक़्त में जब अर्जेंटीना की अर्थव्यवस्था मंदी की चपेट में है, यूक्रेन संघर्ष और महामारी के लंबे असर के कारण ख़राब वैश्विक आर्थिक स्थिति की वजह से यहां के हालात और भी कठिन हैं, तब उसके लिए ब्रिक्स में शामिल होना आसान प्रक्रिया नहीं होगी. इसके अलावा अर्जेंटीना की आर्थिक स्थिति के कारण ब्रिक्स के लिए उसे ‘उभरती अर्थव्यवस्थाओं’ के गुट का सदस्य बनाना ठीक नहीं होगा. वैसे तो चीन चाहता है कि ब्रिक्स को और मज़बूत बनाने के लिए इस समूह का विस्तार किया जाए लेकिन औपचारिक तौर पर किसी नये सदस्य को शामिल करने के लिए सभी सदस्यों की पूर्ण सहमति के साथ-साथ जटिल प्रशासनिक और राजनयिक प्रक्रिया से गुज़रने की ज़रूरत होती है. इसके अलावा ब्रिक्स की विविधता इसके विस्तार को कठिन प्रक्रिया बनाती है. जहां चीन और ब्राज़ील, अर्जेंटीना के भीतर अपने हितों की वजह से ब्रिक्स में अर्जेंटीना को शामिल करने को लेकर मुखर हैं वहीं दक्षिण अफ्रीका, भारत और रूस के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता है. इस बात को लेकर भी डर है कि ब्रिक्स में अर्जेंटीना की मौजूदगी कहीं ब्राज़ील की स्थिति को कमज़ोर न करे क्योंकि दोनों देश एक ही महादेश से आते हैं और कृषि उद्योग के बाज़ार में एक दूसरे के व्यावसायिक प्रतिस्पर्धी भी हैं. ये चिंता ब्रिक्स के दूसरे सदस्यों के लिए भी हो सकती है क्योंकि दूसरे देश भी कृषि उद्योग के क्षेत्र में बड़ा योगदान देते हैं. लेकिन ब्रिक्स में अर्जेंटीना को शामिल करने को लेकर चीन का प्रस्ताव बताता है कि अर्जेंटीना के साथ उसके संबंध काफ़ी अच्छे हैं. इसकी वजह ये है कि लैटिन अमेरिका के बाहर चीन अर्जेंटीना का सबसे प्रमुख निर्यातक है. अर्जेंटीना पहले से ही एशियन इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक का हिस्सा है और वो इस साल औपचारिक रूप से चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) में शामिल हो गया है. 

घरेलू स्तर पर अर्जेंटीना में और भी ज़रूरी मुद्दे हैं जिन पर राजनीतिक ध्यान देना आवश्यक है. राष्ट्रपति को आसमान छूती महंगाई को काबू में करने के लिए कोई रास्ता तलाशना होगा. ये इसलिए भी ज़रूरी है क्योंकि 2023 में चुनाव होने वाले हैं.

आगे की राह 

शायद मौजूदा समय में अर्जेंटीना के लिए एक आसान विकल्प हो सकता है न्यू डेवलपमेंट बैंक में शामिल होना जिसे ब्रिक्स बैंक के नाम से भी जाना जाता है. इस बैंक का सदस्य बनने के लिए ब्रिक्स की सदस्यता ज़रूरी नही है. हाल के समय में उरुग्वे, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) और बांग्लादेश इसके सदस्य बने हैं. न्यू डेवलपमेंट बैंक की स्थापना 2014 में हुई थी और उस समय से इसने अपने सदस्य देशों में लगभग 80 परियोजनाओं को मंज़ूरी दी है जिनकी लागत 30 अरब अमेरिकी डॉलर है. इस तरह ब्रिक्स बैंक में शामिल होने से अर्जेंटीना के लिए एक नई वित्तीय मदद की राह खुलेगी जिसकी ज़रूरत अर्जेंटीना की अर्थव्यवस्था को बहुत ज़्यादा है. 

घरेलू स्तर पर अर्जेंटीना में और भी ज़रूरी मुद्दे हैं जिन पर राजनीतिक ध्यान देना आवश्यक है. राष्ट्रपति को आसमान छूती महंगाई को काबू में करने के लिए कोई रास्ता तलाशना होगा. ये इसलिए भी ज़रूरी है क्योंकि 2023 में चुनाव होने वाले हैं. आम लोगों के नेता अल्बर्टो फर्नांडीज़ का अर्जेंटीना में निष्ठावान समर्थकों का एक आधार है लेकिन बाज़ार और उनकी कैबिनेट में बड़े पैमाने का संकट उनके समर्थकों की निष्ठा के लिए परीक्षा की घड़ी हो सकता है. उपराष्ट्रपति के साथ सार्वजनिक रूप से असहमति के कारण ये संकट और भी बढ़ गया है. सरकार को अपनी असहमति एक तरफ़ रखकर अर्जेंटीना में संरचनात्मक मुद्दों पर ध्यान देने की ज़रूरत है क्योंकि इनकी  वजह से लगातार महंगाई का दबाव बना हुआ है और अर्जेंटीना की तरफ़ से अपनी अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धता पूरा करने की चुनौती है. 

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Vivek Mishra

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Vivek Mishra is Deputy Director – Strategic Studies Programme at the Observer Research Foundation. His work focuses on US foreign policy, domestic politics in the US, ...

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Akanksha Singh

Akanksha Singh

Akanksha Singh has done her BA. LLB(Hons.) from Ram Manohar Lohiya National Law University. She is currently pursuing her Masters in Diplomacy Law and Business ...

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