Published on Jul 13, 2017 Updated 0 Hours ago

चीन-बांग्लादेश संबंधों के कई पहलु हैं। दोनों देश रक्षा, आर्थिक, राजनीतिक और जनता के बीच आपसी सम्पर्क जैसे संबंधों को साझा करते हैं।

क्या बढ़ रही हैं चीन-बांग्लादेश की नज़दीकियां

चीन के पूर्व प्रधानमंत्री झो एनलाई के साथ शेख मुजीबुर्रहमान — ढाका स्टेडियम, 1957।

यह The China Chroniclesसीरीज की 61वीं कड़ी है।

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चीन और बांग्लादेश के संबंध शुरुआती परस्पर विरोध से लेकर स्थायी सामरिक साझेदारी की स्थापना तक नाटकीय बदलाव के साक्षी रहे हैं। 1971 में बांग्लादेश की आजादी के दौरान चीन ने पाकिस्तान का समर्थन किया था। और तो और बांग्लादेश की आजादी के बाद, चीन ने संयुक्त राष्ट्र में बांग्लादेश के प्रवेश को भी वीटो किया था।उसके बाद से दोनों देशों के रिश्तों में महत्वपूर्ण बदलाव आया है। आज बांग्लादेश, चीन को अपना दुख-सुख का साथी और भरोसेमंद सहयोगी समझता है। 2016 में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की ढाका यात्रा के दौरान दोनों देशों ने सामरिक साझेदारी की स्थापना की।

चीन और बांग्लादेश के राजनयिक संबंधों की स्थापना 1976 में हुई। चीन और बांग्लादेश के राजनयिक संबंधों की स्थापना बांग्लादेश की आजादी की लड़ाई के नेता और देश के प्रथम प्रधानमंत्री शेख मुजीबुर्रहमान की हत्या के कुछ महीनों बाद जनवरी 1976 में हुई थी। शेख मुजीबुर्रहमान अगस्त 1975 में एक सैन्य विद्रोह में मारे गए थे। चीन के साथ बांग्लादेश के संबंधों को बढ़ावा देने का श्रेय मुजीबुर्रहमान की हत्या के बाद स्थापित हुई सैन्य तानाशाही को दिया जाता है। 1977 में, सैनिक तानाशाह जनरल जिला उर रहमान ने चीन का दौरा किया। यह बांग्लादेश के किसी भी राष्ट्राध्यक्ष की प्रथम चीन यात्रा थी। उनकी इस यात्रा ने दोनों देशों के संबंधों को मजबूती दी और वे निरंतर ​विकसित होते चले गए। चीन के प्रति बांग्लादेश की नीति में निरंतरता देखी गई है। 1991 में बांग्लादेश में लोकतंत्र की बहाली हो गई और लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गई सरकारों ने चीन के साथ संबंधों को समर्थन दिया। लोकतांत्रिक ढंग से चुने गए नेता नियमित रूप से चीन की यात्राएं करते रहे हैं। बांग्लादेश की वर्तमान प्रधानमंत्री शेख हसीना ने जून 2014 में चीन की यात्रा की थी। चीन-बांग्लादेश संबंधों के कई पहलु हैं। दोनों देश रक्षा, आर्थिक, राजनीतिक और जनता के बीच आपसी सम्पर्क जैसे संबंधों को साझा करते हैं।

चीन और बांग्लादेश के राजनयिक संबंधों की स्थापना शेख मुजीबुर्रहमान की हत्या के कुछ महीनों बाद जनवरी 1976 में हुई थी। 

दोनों देशों के रक्षा संबंधों को उनके आपसी रिश्तों की बहुत बड़ी ताकत समझा जाता है। चीन इकलौता ऐसा देश है जिसके साथ बांग्लादेश ने रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। चीन, बांग्लादेश के लिए हथियारों का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है। बांग्लादेश के सुरक्षा बल टैंकों, मिसाइल लॉन्चरों, लड़ाकू विमानों और अनेक हथियार प्रणालियों सहित चीनी हथियारों से लैस हैं। हाल ही में, बांग्लादेश ने चीन से दो मिंग पनडुब्बियां खरीदी हैं। इसके अलावा चीन, बांग्लादेश सेना के अधिकारियों को प्रशिक्षण भी देता है। चीन के हथियारों पर बांग्लादेश की निर्भरता ने सेना को चीन के साथ रक्षा संबंधों का प्रमुख समर्थक बना दिया है।

उल्लेखनीय है कि आजादी के बाद बांग्लादेश की सेना में पाकिस्तान से आए सेना के अधिकारियों को शामिल किया गया था, जो चीनी हथियारों से वाकिफ थे। चीनी हथियारों के साथ उनकी इस पहचान के कारण बांग्लादेशी सेना ने चीन से हथियार मंगवाने को तरजीह दी। शीत युद्ध के प्रभाव की भी अनदेखी नहीं की जा सकती। मुजीबुर्रहमान को भारत के साथ उनकी निकटता के कारण सोवियत समर्थक के तौर पर देखा जाता था। इसके अलावा भारत और सोवियत संघ ने बांग्लादेश को पाकिस्तान से आजादी पाने में भी सहायता की थी। चीन और बांग्लादेश अतीत को भुला कर मेलमिलाप कर चुके हैं और उनके संबंध प्रत्येक क्षेत्र में बढ़ रहे हैं।

आर्थिक संबंध द्विपक्षीय रिश्तों का महत्वपूर्ण पहलु है। चीन, बांग्लादेश का सबसे बड़ा व्यापार सहयोगी है और उनका आपसी व्यापार 10 बिलियन डॉलर का है। हालांकि व्यापार संतुलन चीन के पक्ष में है और चीन तथा बांग्लादेश का व्यापार अंतर 9 बिलियन डॉलर जितना है। घाटे में कमी लाने के लिए बांग्लादेश ने रियायतों की मांग की और चीन ने बांग्लादेशी उत्पादों को अपने बाजारों तक शुल्क मुक्त पहुंच उपलब्ध करायी। चीन की ओर से दी गई इन रियायतों के बावजूद, घाटे में कोई स्पष्ट बदलाव दिखाई नहीं दिया। चीन, बांग्लादेश में विशेषकर विनिर्माण के क्षेत्र में निवेश भी कर रहा है।

राष्ट्रपति जिनपिंग की 2016 की यात्रा के दौरान चीन ने बांग्लादेश को 24 परियोजनाओं के लिए मुख्य रूप से ऋण सहायता के रूप में 24 बिलियन डॉलर की सहायता देने का वादा किया था।

विकास संबंधी सहयोग दोनों देशों के आपसी संबंधों का एक महत्वपूर्ण भाग है। अवसंरचना में चीन, बांग्लादेश का प्रमुख विकास सहयोगी या डेवलपमेंट पार्टनर है। चीन पुलों, सड़कों, रेलवे ट्रैक्स, हवाई अड्डों और बिजली घरों का निर्माण कर रहा है। चीन की सहायता मुख्य रूप से ऋण सहायता के रूप में मिल रही है। राष्ट्रपति जिनपिंग की 2016 की यात्रा के दौरान चीन ने बांग्लादेश को 24 परियोजनाओं के लिए मुख्य रूप से ऋण सहायता के रूप में 24 बिलियन डॉलर की सहायता देने का वादा किया था।

इस तरह की विकास संबंधी साझेदारी की पहलों के जरिए चीन को बांग्लादेश में अपनी छवि सुधारने में मदद मिली। विकास संबंधी साझेदारी के माध्यम से चीन अपने आपको इस रूप में प्रस्तुत कर सका कि वह बांग्लादेश का मित्र है और वहां की जनता का कल्याण और प्रगति चाहता है। चीन की इस छवि ने बांग्लादेश में उसकी लोकप्रियता बढ़ाने में योगदान दिया है। चीन ने बांग्लादेश में राजनीतिक लाभ उठाने के लिए अपनी इस लोकप्रियता का बहुत समझदारी से इस्तेमाल किया है और दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ-सार्क में पर्यवेक्षक के तौर पर अपने प्रवेश को समर्थन देने के लिए बांग्लादेश को राजी किया । साथ ही उसने बांग्लादेश को बेल्ट रोड इनिशिएटिव (बीआरआई)में शामिल होने के लिए समझाया।

इन पहलों के अलावा चीन, बांग्लादेश के छात्रों को चीन में पढ़ने के लिए छात्रवृत्ति उपलब्ध करा रहा है तथा बांग्लादेशियों को चीनी भाषा सीखने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है। चीनी भाषा सीखने के लिए बांग्लादेश यूनिवर्सिटी ऑफ प्रोफेशनल्स में बांग्लादेश की सेना द्वारा चाइनीज लैंगुएज सेंटर की स्थापना की गई। इतना ही नहीं, चीन और बांग्लादेश के बीच अब यूनान के कुनमिंग के जरिए विमान सेवा भी उपलब्ध है।

चीन और बांग्लादेश के सम्बन्धों की प्रगति का महत्वपूर्ण कारण बांग्लादेश में इस बारे में बनी सर्वसम्मति है। चीन ने बांग्लादेश के अंदरूनी मामलों पर सार्वजनिक तौर पर कोई टिप्पणी न करते हुए बड़ी कुशलता से बांग्लादेश में यह धारणा बनाई है कि वह राजनीतिक रूप से तटस्थ है और उसके अंदरूनी मामलों में दखल नहीं देता।

बांग्लादेश का दावा है कि इन सम्बन्धों का सार आर्थिक विमर्श हैं। बांग्लादेश के लिए, चीनी निवेश आकर्षक हैं, क्योंकि उसे बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए इसकी बेहद जरूरत है। बांग्लादेश का लक्ष्य 2040 तक विकसित राष्ट्र बनना है और इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए उसको अपना बुनियादी ढांचा विकसित करना होगा और आर्थिक उत्पादकता को बढ़ावा देना होगा। चीन, बांग्लादेश की विकास सम्बन्धी परियोजनाओं के लिए वित्तीय सहायता उपलब्ध कराने में उदार रहा है।

चीन की प्रमुख दिलचस्पी बांग्लादेश के 160 मिलियन के सशक्त बाजार में है।

चीन की प्रमुख दिलचस्पी बांग्लादेश के 160 मिलियन के सशक्त बाजार में है।इसके अलावा, सस्ते मजदूरों के कारण बांग्लादेश चीन के विनिर्माण उद्योगों के लिए आउटसोर्सिंग का एक अच्छा विकल्प है। इसके साथ साथ बांग्लादेश के बन्दरगाह चीन के लिए महत्वपूर्ण प्रेरणा हैं, क्योंकि वे एक आकर्षक वैकल्पिक मार्ग उपलब्ध कराते हैं, जिससे ऊर्जा की आपूर्ति के लिए मलक्का जलडमरूमध्य पर उसकी निर्भरता कम हो सकती है। चीन के यूनान प्रान्त से बांग्लादेश की भौगोलिक निकटता के मद्देनजर ऊर्जा संसाधनों की आपूर्ति के लिए इन बन्दरगाहों तक आसानी से पहुंच बनाई जा सकती है।

हालांकि, चीन और बांग्लादेश की इस दोस्ती के लिए भारत भी एक कारक है। बांग्लादेश में एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा भी है, जो भारत को संतुलित करने के लिए चीन के साथ मजबूत रिश्ते बनाने का हिमायती है। यह रिश्ता चीन को दक्षिण एशिया के एक प्रमुख देश में मौजूदगी का अवसर देता है। बांग्लादेश, भारतीय बाजारों तक उसके उत्पादों की पहुंच सुगम बनाने के लिए एक पुल का काम कर सकता है। इतना ही नहीं, बांग्लादेश की सामरिक स्थिति, खासतौर पर शेष भारत को उसके पूर्वोत्तर भाग से जोड़ने वाले सिलीगुड़ी गलियारे से निकटता भी इस रिश्ते के प्रेरक कारणों में से एक है। भारतीय सुरक्षा विश्लेषकों की राय है कि भारत और चीन के बीच विवादित सीमा को लेकर दोनों देशों के बीच कोई बड़ा संघर्ष छिड़ने की स्थिति में चीन, बांग्लादेश के साथ अपने रिश्तों का लाभ उठाकर भारत पर पैनी नजर रख सकता है। हालांकि बांग्लादेश के विश्लेषकों का मानना है कि ऐसे अनुमान असम्भव हैं, इसकी बजाए बांग्लादेश, भारत और चीन दोनों के साथ अच्छे संबंध रखना चाहता है। हाल ही में बांग्लादेश की प्रधानमंत्री ने कहा था कि उनके देश के चीन के साथ संबंधों के बारे में भारत को चिंता नहीं करनी चाहिए।

जहां एक ओर चीन-बांग्लादेश के संबंध आमतौर पर सौहार्दपूर्ण हैं, वहीं ऐसे प्रमाण भी हैं, जिनसे यह संकेत मिलता है कि बांग्लादेश, चीन के अलोकप्रिय आदेशों के प्रति आज्ञाकारी रवैया नहीं रखता। वर्ष 2014 में सोनादिया डीप-सी पोर्ट के निर्माण के संबंध में बांग्लादेश द्वारा चीन की शर्तें नहीं मानने को इसका उदाहरण माना जा सकता है।

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